Thursday, June 18, 2020

सुशांत के बहाने ये प्रलाप क्यों!


- हेमंत पाल
   सुशांत सिंह की ख़ुदकुशी के बाद बॉलीवुड में कोहराम मचा है। कंगना रनौत, शेखर कपूर, अनुभव सिन्हा के अलावा कई बड़ी हस्तियों ने सुशांत की मौत पर सवाल खड़े किए! कहा गया कि सुशांत फ़िल्मी दुनिया में असुरक्षित महसूस  थे! उनका एक बड़े बैनर के साथ फ़िल्म कॉन्ट्रैक्ट को लेकर भी विवाद था। बॉलीवुड के कई बड़े फ़िल्मी घरानों ने सुशांत को काम नहीं करने दिया। इससे सुशांत गहरे अवसाद में थे। सुशांत की ख़ुदकुशी को इन सारी बातों से  जोड़कर देखा जा रहा है। इनमें कितनी सच्चाई है, ये जानने की कितनी भी कोशिश की जाए सच्चाई कभी सामने नहीं आएगी! कई जाने-माने कलाकारों के आरोप हैं कि पुराने दिग्गज नए लोगों को इंडस्ट्री में घुसने नहीं देते! शेखर कपूर ने भी कहा कि सुशांत उनके पास आकर रोया करते थे, क्योंकि बॉलीवुड के लोगों ने उन्हें निराश किया। कंगना रनौत ने कहा कि ये कोई सुसाइड नहीं, एक प्लान्ड मर्डर है। फिल्म इंडस्ट्री के पेशेगत प्रतिद्वंदिता के कारण उन्होंने ख़ुदकुशी की है। कहा जा रहा है, कि सुशांत सिंह पिछले कुछ समय से ज्यादा परेशान थे। उन्‍हें मुंबई क्राइम ब्रांच ने एक जांच के संबंध में तलब भी किया था। क्योंकि, उनकी पूर्व मैनेजर दिशा ने भी कुछ दिन पहले ख़ुदकुशी कर ली थी। पुलिस ने सुशांत का बयान भी लिया था। तभी से वे मानसिक रूप से परेशान थे। सच तो ये है कि सुशांत कामयाबी की सीढ़ियाँ दोगुनी तेजी से चढ़ रहे थे। इस लॉक डाउन के दौर में पिछले 3 माह में ऐसे किसी मुद्दे का टेंशन होना किसी के गले नहीं उतरता!
  बॉलीवुड में जब लोगों की लोकप्रियता बढ़ती है तो कलाकार एकाकी हो जाते हैं। ये उनकी मज़बूरी भी होती है कि वे उन्हीं से बचते हैं, जो उन्हें प्रसिद्धि देते हैं। सुशांत के बारे में कहा जाता है कि वे लोगों से जल्दी घुलते-मिलते नहीं थे! मानसिक परेशानी की स्थिति में व्यक्ति का यही अकेलापन उसे अंदर ही अंदर खाने लगता है। इस घटना को सुशांत की कायरता न समझकर इसका इल्जाम दूसरों पर डालने की कोशिश हो रही है। जबकि, सुशांत ने ‘छिछोरे’ फ़िल्म में जो किरदार निभाया, वो एक आशावादी और सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति का है। वे ख़ुदकुशी से बचे अपने बेटे को जिंदगी के बड़े से बड़े हादसे को सकारात्मकता ढंग से हल करने की बात करता है। अपने हॉस्टल के किस्सों जरिए उसे अपने संघर्ष से रूबरू करवाता है। लेकिन, वास्तविकता में सुशांत ऐसा नहीं था! वो महज एक फ़िल्मी किरदार था! इससे लगता है कि जीवन में कुछ ऐसे अप्रत्याशित तत्व होते हैं, जो व्यक्ति को नकारात्मक सोच के लिए मजबूर करते हैं। जब ये तत्व किसी की मनःस्थिति पर हावी होते हैं, तभी ऐसा कुछ होता है जो सुशांत के साथ हुआ! इस ख़ुदकुशी से ये बात एक बार  फिर साबित हुई।  
   इस ख़ुदकुशी ने बॉलीवुड के उन फ़िल्मी घरानों पर चर्चा जरूर छेड़ दी, जहाँ कुछ ख़ास कलाकारों की तूती बोलती है। ये आरोप भी लगा कि जो गैर फ़िल्मी युवा अपने सपनों को साकार करने इस दुनिया में आते की कोशिश करते हैं, ये ठिकाने उन्हें पैर नहीं ज़माने देते! यहाँ उनका ही सिक्का चलता है, जिनकी अपनी पहचान है और जड़ें फ़िल्मी दुनिया में गहरी है। यहाँ गॉडफादर के बगैर किसी की पूछ नहीं होती! यह परंपरा बरसों से चली आ रही है। ये आरोप है और हो सकता है कि सच्चाई भी हो, पर ऐसे घराने कहाँ नहीं हैं! हर कारोबार में घरानों की ही तो पूछ होती है! फिर क्या कारण है कि फ़िल्मी घरानों पर उंगली उठी? यहाँ तक कि राजनीति में भी परिवारवाद हावी है! फिर ये आरोप सिर्फ बॉलीवुड पर ही क्यों? 
   जिसमें टेलेंट है, उसे फ़िल्मी घरानों की कोई परंपरा नहीं रोक सकती! जिसमें क़ाबलियत नहीं है, वे भले नामी फिल्मवालों के बेटे-बेटी क्यों न हों, वे भी आउट हुए हैं। यदि घरानों से ही सबकुछ संभव होता, तो अमिताभ बच्चन का बेटा अभिषेक, जितेंद्र का बेटा तुषार और राजेश खन्ना-डिम्पल की बेटी ट्विंकल की फ़िल्में क्यों नहीं चली! जबकि, दूसरे दर्जे के हीरो रहे राकेश रोशन के बेटे रितिक रोशन ने सफलता में सबको पीछे छोड़ दिया। फिल्मों का कारोबार पूरी तरह दर्शकों की पसंद-नापसंद से चलता है, न कि घरानों की मनमर्जी से! नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने भी 14 साल तक कड़ा संघर्ष किया! फिल्मों में एक-एक सीन वाले छोटे रोल किए, पर हिम्मत नहीं हारी! उसी का नतीजा है कि आज उनकी अदाकारी का लोहा माना जाता है। इसलिए सुशांत की मौत पर सिर्फ फ़िल्मी घरानों को दोष देने वाली बात गले नहीं उतरती! यदि सुशांत को अवॉयड किया जाता तो एमएस धोनी और छिछोरे जैसी फ़िल्म उन्हें कैसे मिलती?
   कहा तो ये तक गया कि 'छिछोरे' के बाद सुशांत को सात फ़िल्में मिली थीं, पर एक-एक करके सभी या तो बंद हो गई या सुशांत को बदल दिया गया। इसे पहले बड़े बैनर की कुछ फिल्मों में सुशांत को लेने के बाद निकाल दिया था। इनमें संजय भंसाली की 'गोलियों की रासलीला : राम-लीला' और आदित्य चोपड़ा की 'बेफिक्रे' के नाम लिए जा रहे हैं। सुशांत ने इसके बाद भी कभी अपने दुःख का इजहार नहीं किया था। एक इंटरव्यू में ये जरूर कि यह बहुत मुश्किल है। यह हर किसी के लिए होता मुश्किल है! क्योंकि, हमने कुछ बहुत सफल बाहरी लोगों की कहानियों के बारे में भी सुना है और दुर्भाग्य से असफल अंदरूनी लोगों की कहानियों के बारे में भी! इसलिए, लंबे समय में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन थोड़े समय के लिए पड़ता है। अंदरूनी लोगों को वास्तव में उनकी विफलताओं को कम करने और उनकी सफलता को बढ़ाने के लिए थोड़ा अधिक स्पेस दिया जाता है। यहाँ अंदरूनी से उनका आशय उन लोगों से है, जिनकी जड़ें बॉलीवुड में है या वे किसी बड़े सितारे के बेटे या बेटी हैं। 
   कंगना रनौत ने करण जौहर को भाई-भतीजावाद का गॉड फादर कहा, जो इंडस्ट्री में आने वाले स्टार किड्स की मदद करते हैं और उनके शुरुआती करियर बनाने में मदद करते हैं! देखा जाए तो इसमें क्या बुराई है! वे वही तो कर रहे हैं, जो उन्होंने अपने फ़िल्मकार पिता से सीखा है! अब कंगना रनौत जैसे लोगों को उसमें भी खोट दिखाई देता है, तो ये उनकी अपनी परेशानी है! हादसों में भी अपनी बौद्धिक जुगाली का अवसर ढूंढने वाले ऐसे लोग ये क्यों भूल जाते हैं कि करण जौहर ने सुशांत और जैकलीन फर्नांडिस को लेकर भी 'ड्राइव' बनाई थी। उन्होंने सुशांत को भी मौका तो दिया था! ये सही है कि सुशांत ने बॉलीवुड के छह साल के करियर में कई हिट फ़िल्में दी। 2013 में आई फिल्म 'काई पो चे' से लगाकर पिछले साल आई आख़िरी फिल्म 'छिछोरे' ने डेढ़ सौ करोड़ का कारोबार किया। इस फिल्म ने उनकी काबलियत साबित कर दी, थी कि वे असाधारण कलाकार थे! पर, क्या ये जरुरी है कि बड़े फ़िल्मी बैनर अपना नफा-नुकसान भूलकर किसी भी कलाकार को सिर्फ इसलिए मौका दें, कि ऐसा नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे! जब फिल्म बनाना कारोबार है, तो फिर ये तोहमत क्यों? कंगना रनौत और अभिनव कश्यप जैसे लोग तो बस निजी खुन्नस के लिए बहाने ढूंढते रहते हैं! उनके लिए ये भी एक अवसर ही है और कुछ नहीं!  
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