- हेमंत पाल
कोरोना को आए और अपना पैर जमाए लम्बा अरसा हो चुका है। इस दौरान न केवल इंसानी जीवन बदला, बल्कि जीने का अंदाज भी बदल गया। जीने के इसी अंदाज में सिनेमा भी शामिल है। कोरोना के प्रादुर्भाव काल में एक दौर ऐसा भी आया, जब प्रोजेक्टर से निकलने वाली प्रकाश रश्मियां ठहर गई! सीटों और सिनेमा हालों में सन्नाटा पसरा रहा। यहां तक कि कैंटीन में उडने वाली स्नैक्स की खुशबू भी गायब हो गई थी। लेकिन, जीवन कोई ठहरा हुआ पानी नहीं जो ठहरकर सडांध मारने लगे। धीरे-धीरे लोगों ने कोरोना के साथ जीना सीख लिया और अब कोरोना प्रतिरोधी नई जीवनशैली रची जा रही है। मनोरंजन भी इस दौड में पीछे नहीं रहा!
सिनेमा ने पहले ओटीटी प्लेटफार्म का सहारा लेकर फिल्मों का प्रदर्शन किया। इसे खूब देखा और सराहा गया। जब मनचाहे समय और मनचाही जगह पर आपके सितारे आपके ड्राइंग रूम में उतर आएं तो कौन उनका स्वागत करना नहीं चाहेगा! इस बहाने मनोरंजन के सौदागरों को अपना माल बेचने का नया प्लेटफार्म भी मिल गया! लेकिन, इसे उन्होंने बजाए वरदान समझने के माल कमाने का प्लेटफार्म मान लिया और वह सब परोसने लगे जिसे दर्शकों ने पूरी तरह से नकार दिया। कोरोनाकाल के बाद ओटीटी प्लेटफार्म पर जितनी भी फिल्में प्रदर्शित हुई, इक्का-दुक्का को छोड़कर सभी बकवास निकली। ओटीटी के अलावा सैटेलाइट से सीधे फिल्म प्रसारण का भी दौर कोरोनाकाल के बाद से शुरू हुआ! इसे देश के महानगरों की बडी टाउनशिप और क्लब हाउसों में अपनाया जाकर रहवासियों और सदस्यों को सभी तरह की देसी विदेशी फिल्में दिखाई जाने लगी। कुछ सैटलाइट चैनलों ने भी ऑन पेमेंट फिल्मों का प्रदर्शन शुरू कर मनोरंजन को एक नई दिशा दी है।
कोरोनाकाल के घटने के बाद थिएटर को पचास प्रतिशत क्षमता से फिल्में दिखाने की जो शुरूआत हुई थी, वह प्रदर्शकों के लिए दोहरे घाटे का सौदा साबित हुई। इसका एक कारण यह भी है कि मल्टीप्लेक्स में दर्शकों की संख्या भले ही आधी रखी जाए , लेकिन स्टॉफ और एक्जिबिशन कास्ट तो लगभग वही है। हर शो के बाद सेनेटाइजेशन और लम्बे अंतराल से जहां शो की संख्या घटी है, वही इस काम के लिए अतिरिक्त स्टॉफ रखा जाना जरूरी है। इतना तामझाम इकट्ठा करके जब मल्टीप्लेक्स में फ़िल्मो का प्रदर्शन आरंभ हुआ, तो इक्का-दुक्का दर्शकों ने ही मल्टीप्लेक्स जाकर फिल्में देखना पसंद किया। लिहाजा बढ़ते घाटे के बजाए अधिकांश प्रदर्शकों ने सिनेमाघरों मे ताले लटकाने में ही फायदा महसूस किया।
इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए इंदौर समेत कई शहरों में बडे पैमाने पर ड्राइव-इन-मूवी थियेटर के निर्माण की योजना पर तेजी से अमल हो रहा है। वास्तव में देखा जाए तो यह कोई नया प्रयोग नहीं है, फिर भी कोरोनाकाल और सोशल डिस्टेंसिंग को देखते हुए इसे बेहतर प्रयास माना जाएगा। ड्राइव-इन-मूवी थियेटर्स एक अनूठा प्रयोग है, जो लोग बडे पर्दे पर फिल्में देखना चाहते हैं! उनके लिए ये प्रयोग काफी कारगर साबित हो सकता है, बशर्तें आपके पास एक गाड़ी होनी चाहिए।
इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए इंदौर समेत कई शहरों में बडे पैमाने पर ड्राइव-इन-मूवी थियेटर के निर्माण की योजना पर तेजी से अमल हो रहा है। वास्तव में देखा जाए तो यह कोई नया प्रयोग नहीं है, फिर भी कोरोनाकाल और सोशल डिस्टेंसिंग को देखते हुए इसे बेहतर प्रयास माना जाएगा। ड्राइव-इन-मूवी थियेटर्स एक अनूठा प्रयोग है, जो लोग बडे पर्दे पर फिल्में देखना चाहते हैं! उनके लिए ये प्रयोग काफी कारगर साबित हो सकता है, बशर्तें आपके पास एक गाड़ी होनी चाहिए।
पिछले दिनों कोरोना मुक्त देश न्यूजीलैंड में सिनेमाघर फिर से आबाद होने लगे है। अमेरिका जहां अब भी कोरोना वायरस शबाब पर है, वहां पर सिनेमाघरों में एक अनूठा प्रयोग अपना रहे हैं। वहां अब भी सोशल डिस्टेंसिंग और साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जा रहा है। अमेरिका में कई थियेटर चेन इस प्रयोग को लेकर काफी उत्साहित हैं। ड्राइव-इन-मूवी थियेटर्स में लोग अपनी गाड़ियां में स्पीकर लगा लेते हैं और सामने लगी विशाल स्क्रीन पर फिल्म का लुत्फ ले सकते हैं। मुंबई में कभी इस तरह का सिनेमाघर खूब चला था। अभी अहमदाबाद में भी ये चलाया जा रहा है। ड्राइव-इन-थिएटर का प्रयोग उन्हें रास आ सकता है, जो सपरिवार फिल्में देखना पसंद करते हैं। चूंकि, लोगों को अपनी गाड़ी से बाहर निकलना ही नहीं है और दूसरे लोगों के संपर्क में भी नहीं आना है, ऐसे में कोरोना वायरस के खतरे को कम किया जा सकता है और कोरोना वायरस प्रोटोकॉल फॉलो कर आराम से बड़ी स्क्रीन पर फिल्म का आनंद लिया जा सकता है। सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए ड्राइव-इन थियेटर्स के कुछ नियम भी हैं, जिनका पालन करना जरूरी है। जैसे कि इनके टिकटों की बिक्री केवल ऑनलाइन ही की जाए। सिनेमाघर में कोई टिकट घर न हों, ताकि वहां लाइन न लग सके।
गाड़ी से बाहर निकलने की परिस्थिति में मास्क लगाकर निकलना ही जरूरी होगा। कारों की पार्किंग में भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए उन्हें सुरक्षित दूरी पर खड़ी करवाया जाना चाहिए। ऐसी ही सावधानी खान-पान को लेकर बरतना आवश्यक है। दर्शक या तो अपना खुद का खाना साथ लेकर आएं या सुरक्षित तरीके से उपलब्ध सामग्री का उपयोग करें। इसके अलावा इन स्थानों पर बने प्रसाधन घरों का नियमित सेनेटाइजेशन भी जरूरी है। इस समय अमेरिका के न्यूयार्क, कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, मैरी लैंड और न्यूजीलैण्ड के ऑकलैंड, वैलिंगटन, क्रिसचर्च और हेमिल्टन के दर्शक कोरोना को भूलाकर ड्राइव सिनेमा का लुत्फ उठा रहे हैं। खुदा न खास्ता कोरोना का यह दौर यदि लम्बा चला, तो हमारे देश में भी दर्शक कार में बैठकर बडे पर्दे पर सिनेमा का लुत्फ उठाने में कोताही नहीं बरतेंगे।
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