Sunday, February 14, 2021

मोहब्बत से सराबोर रहा सिनेमा का परदा!

हेमंत पाल

    फिल्मों के लिए प्रेम यानी मोहब्बत बेहद मुफीद विषय रहा है। ये जीवन का ऐसा कोमल अहसास हैं, जिसे कहीं से भी मोड़कर उसे कथानक का रूप दिया जा सकता है। गिनती की जाए तो अभी तक जितनी भी फ़िल्में बनी, उनमें सबसे ज्यादा फिल्मों के विषय मोहब्बत के आसपास ही घूमते रहे। फिल्मों के  शुरूआती समय में धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर फ़िल्में बनी, फिर आजादी के बाद संघर्ष को विषय बनाकर कहानियाँ गढ़ी गई। लेकिन, उसके बाद 60 के दशक से लम्बे समय तक अधिकांश फिल्मों का कथानक मोहब्बत ही रहा! सफल और असफल दोनों तरह की प्रेम कहानियों पर खूब फ़िल्में बनी और चली! राजाओं, महाराजाओं की मोहब्बत के किस्से भी दर्शकों को चाशनी चढ़ाकर परोसे गए! दरअसल, सिनेमा में  मोहब्बत ऐसा जीवंत और जज्बाती विषय है, जिसकी सफलता की गारंटी ज्यादा होती है। प्रेम कहानियों पर बनी फ़िल्में परदे पर नए चेहरों को परोसने का भी सुरक्षित और मजबूत आधार रहा है। सिनेमा का इतिहास बताता है कि परदे पर जब भी में नए कलाकारों को उतारने का मौका आया, सबसे अच्छा विषय प्रेम से सराबोर कहानियों को ही समझा गया। 
      जब से मानव जीवन की शुरुआत हुई, पुरूष के साथ औरत की जरूरत महसूस की गई! क्योंकि, बिना औरत के प्रेम और सृष्टि की रचना असंभव है। इतिहास में भी इस बात का जिक्र है कि कई बड़े युद्ध सिर्फ मोहब्बत की खातिर लड़े गए। कई सल्तनतें इसी मोहब्बत की भेंट चढ़ी! इसलिए प्यार के जज्बे से हिंदी फ़िल्में भी अलग नहीं रह सकीं। फिल्म का कथानक कितना नयापन लिए हो, उसका मोहब्बत से कोई वास्ता न हो, फिर भी उसमें कहीं न कहीं एक प्रेम कहानी जन्म जरूर पनपती है। क्योंकि, प्रेम जीवन की वो शाश्वत सच्चाई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता! भारतीय दर्शक के जीवन में  मोहब्बत के अलग ही मायने हैं और वो इन्हीं भावनाओं को वो हर पल जीता है। उसे 'मुगले आजम' की सलीम और अनारकली का इश्क कामयाब न होना उतना ही सालता है जितना 'सदमा' में श्रीदेवी और कमल हासन का बिछड़ना! फिल्म बनाने वालों ने भी दर्शकों की इस कमजोरी को अच्छी तरह समझ लिया। फिल्मों के हर कथानक में एक लव स्टोरी इसलिए होती है, कि ये सबसे बिकाऊ तड़का जो होता है। 
   फिल्मों में प्रेमियों का मिलन का तरीका कई बार इतना जोरदार होता है, कि युवा दर्शक अपने प्रेम को भी उसी रूप में महसूस करके समाज और परिवार से विद्रोह तक कर देते हैं। इसके विपरीत जब फिल्मों में मोहब्बत की  दुखांत कहानियां जन्म लेती हैं और देवदास, एक दूजे के लिए, क़यामत से कयामत तक और 'सैराट' जैसी फ़िल्में बनती है, तो यही दर्शक ख़ुदकुशी तक कर लेते हैं। क्योंकि, प्यार ऐसा जज्बात है, जिसकी तलाश हर किसी को जीवनभर रहती है। उसका स्वरूप चाहे जैसा भी हो, किंतु सच्ची मोहब्बत प्यार हर किसी की चाहत होती है। वैसे तो सामान्य जिंदगी में भी प्रेम कथाओं की कमी नहीं होती, पर दर्शक फिल्मों के जरिए अपनी मोहब्बत के अधूरे सपनों को जीता है। मुगले आजम, देवदास, सोहनी महिवाल से लगाकर 'धड़क' तक ने प्रेम के जज्बात को दर्शकों के दिलों में बसाया और जगाया! प्रेम के बिना भारतीय सिनेमा ब्लैक एंड व्हाइट के युग से अधूरा है! इसका सबसे सशक्त उदाहरण है कि साहित्यकार शरद चंद्र की कालजयी रचना 'देवदास' जिस पर सबसे ज्यादा फ़िल्में बनीं और हमेशा ही पसंद भी की गई! न सिर्फ हिंदी में बल्कि बांग्ला, तमिल, तेलुगु, असमिया और भोजपुरी समेत कई भाषाओं में दस से ज्यादा बार इस फिल्म के रीमेक बनें। इसमें पहली बार बनी मूक फिल्म भी शामिल है। ऐसा इसलिए कि शरद चंद्र ने प्रेम का ऐसा त्रिकोण रचा, जिसमें दर्शक हर बार उलझता रहा!
    पहली बार परदे पर उतरने वाले कलाकारों के लिए भी प्रेम कथाएं सबसे ज्यादा बार सफलता का आधार बनी! जब भी किसी सितारे के बेटे या बेटी को दर्शकों के सामने उतारा गया, ऐसी पटकथा रची गई, जिसका मूल विषय प्रेम रहा! आमिर खान (कयामत से कयामत तक), सलमान खान-भाग्य श्री (मैंने प्यार किया), अजय देवगन (फूल और कांटे), ऋतिक रोशन-अमीषा पटेल (कहो न प्यार है), राहुल रॉय-अनु अग्रवाल (आशिकी), संजय दत्त (रॉकी), सनी देयोल-अमृता सिंह (बेताब), कमल हासन-रति अग्निहोत्री (एक दूजे के लिए), ऋषि कपूर-डिम्पल (बॉबी), ट्विंकल खन्ना-बॉबी देयोल (बरसात), कुमार गौरव-विजयता पंडित (लव स्टोरी), शाहिद कपूर-अमृता राव (इश्क विश्क), दीपिका पादुकोण (ओम शांति ओम), इमरान खान (जाने तू या जाने ना), रनबीर सिंह (बैंड बाजा बारात), रणवीर कपूर-सोनम कपूर (सांवरिया), अभय देओल (सोचा न था), आयुष्मान खुराना (विकी डोनर), आलिया भट्ट-सिद्धार्थ-वरुण (स्टूडेंट ऑफ द ईयर) और आयुष शर्मा (लवयात्री) आदि। बाद में इन्होंने रास्ते भी बदले, पर करियर के शुरूआती दौर में रिस्क लेने की हिम्मत नहीं की।    
    हिंदी सिनेमा में अमर प्रेम कथाओं की फेहरिस्त अंतहीन है। मुगले आजम, आवारा, कागज के फूल, प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, पाकीजा, कश्मीर की कली, आराधना, बॉबी, सिलसिला, देवदास, मैंने प्यार किया, कयामत से कयामत तक, एक दूजे के लिए, दिल है कि मानता नहीं, लव स्टोरी, साजन, दिल, उमराव जान, 1942 ए लव स्टोरी, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है, रंगीला, कल हो न हो और 'जब वी मेट' के बाद बॉलीवुड में नई पीढ़ी के प्रेम को दर्शाने के लिए भी कई प्रेम कहानियां रची गई! जिसमें रहना है तेरे दिल में, बचना ए हसीनों, सलाम नमस्ते, लव आजकल, ये जवानी है दीवानी, वेकअप सिड, अजब प्रेम की गजब कहानी, रॉक स्टार, बर्फी, टू स्टेट्स, आशिकी-टू, कॉकटेल, शुद्ध देसी रोमांस, तनु वेड्स मनु, मसान, तमाशा, ए दिल है मुश्किल, बरेली की बर्फी जैसी अनेकों फिल्में रही! आशय यह कि परदे पर मोहब्बत का ये सिलसिला न कभी रुका है न रुकेगा। 
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