Friday, March 19, 2021

राज्यपाल पद की गरिमा और सत्यपाल मलिक उवाच!

 

 मेघालय के राज्यपाल ने अपने पद की मर्यादा सीमा रेखा की कई बार लांघा है। अब उन्होंने 'किसान आंदोलन' का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के सामने किसानों की बात रखी है। ये भी कहा कि इन्हें खाली हाथ मत भेजना, न इन पर बल प्रयोग करना। ये खाली हाथ गए, तो 300 साल तक नहीं भूलेंगे। सिखों को मैं जानता हूँ,  इंदिरा गांधी ने भी 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' के बाद अपने यहां एक माह तक महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराया था। उन्हें अहसास था कि मैंने इनके अकाल तख्त को नुकसान पहुँचाया है, ये मुझे छोड़ेंगे नहीं! सत्यपाल मलिक ने तो यहाँ तक कहा कि उन्होंने किसान नेता राकेश टिकैत की गिरफ्तारी भी रुकवाई।  

- हेमंत पाल 
   देश में राज्यपाल का पद निरपेक्ष माना जाता है! वह न तो खुलकर किसी का पक्ष लेता है और न विरोध करता है। राज्य में उसकी भूमिका केंद्र सरकार के प्रतिनिधि की होती है और मर्यादा की खातिर उसे राजनीति से दूर रहना पड़ता है। लेकिन, कुछ सालों से राज्यपालों की राजनीतिक प्रतिबद्धता सामने आने लगी है। यदि राज्यपाल के पद पर कोई नेता बैठा है, तो उसका अपनी पार्टी के प्रति झुकाव साफ़ नजर आता है! राज्यपाल अब न सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी करने लगे, बल्कि विवादों में भी फंसने से भी नहीं चूकते! क्योंकि, अब वो रास्ता भी खुला है, जो राज्यपाल की कुर्सी पर बैठे किसी व्यक्ति को राजनीति के गलियारे में ले जाता है। ताजा प्रसंग मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से जोड़कर देखा जा रहा है, जिन्होंने खुलकर 'किसान आंदोलन' का समर्थन करके केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। सत्यपाल मलिक ने भाजपा में लम्बा समय बिताया, पर उनको जानने वाले उन्हें आज भी 'सोशलिस्ट' विचारधारा वाला व्यक्ति मानते हैं। समाजवादी आंदोलन का हिस्सा रहे मलिक राजनीति में हवा का रुख समझने में भी माहिर समझे जाते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि उन्होंने जो भी बोला उसके पीछे कोई गूढ़ अर्थ छुपा है! 
    अपने घर लौटे सत्यपाल मलिक ने साफ़ कहा कि केंद्र सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को कानूनी मान्यता दे, तो किसान मान जाएंगे और अपना आंदोलन ख़त्म कर देंगे। उन्होंने केंद्र सरकार की नीतियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार गलत रास्ता अपना रही है, वो किसानों को हरा नहीं पाएगी। सत्ता के अहंकार में किसानों के साथ ज्यादती न करें, उनकी जायज मांगे मान लेनी चाहिए। उनका यह भी कहना था, कि राज्यपाल का काम चुप रहना है, लेकिन मेरी आदत है कि जो सामने हो रहा है, उस पर बोलूं! लेकिन, मलिक ने जो बोला, वो उनके लिए मुसीबत का कारण बन सकता है! अमूमन कोई राज्यपाल केंद्र सरकार की नीतियों पर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करते! लेकिन, सत्यपाल मलिक की आदत रही है कि वे अकसर राज्यपाल पद की मर्यादा की सीमा लांघते रहते हैं। जब वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, तब भी उन्होंने ऐसी कई टिप्पणियां की, जिस पर उंगलियां उठी! शायद यही कारण था कि उन्हें कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद अपेक्षाकृत छोटे राज्य मेघालय भेज दिया गया।    
    उत्तर प्रदेश के अपने घर अमीनगर सराय आए सत्यपाल मालिक ने अपने सम्मान में हुए अभिनंदन समारोह में केंद्र सरकार के लिए यह तल्ख़ टिप्पणियां की। उन्होंने कहा कि मैंने किसान आंदोलन के बारे में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के सामने किसानों की बात रखी है। ये भी कहा कि इन्हें खाली हाथ मत भेजना, न इन पर बल प्रयोग करना। ये खाली हाथ गए, तो 300 साल तक नहीं भूलेंगे। सिखों को मैं जानता हूँ,  इंदिरा गांधी ने भी ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद अपने यहां एक माह तक महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराया था। क्योंकि, उन्हें अहसास था कि मैंने इनके अकाल तख्त को नुकसान पहुँचाया है, ये मुझे छोड़ेंगे नहीं! सत्यपाल मलिक ने तो यहाँ तक कहा कि उन्होंने किसान नेता राकेश टिकैत की गिरफ्तारी भी रुकवाई। मालिक ने अपने आपको किसान परिवार का बताते हुए ये भी कहा कि मैं किसान परिवार से हूँ, इसलिए उनकी तकलीफ समझता हूं।
    सत्यपाल मलिक का पूरा भाषण राजनीति से प्रेरित होने के साथ केंद्र को सलाह देने वाला रहा। वे मंच पर ये भूल गए थे वे जिस पद पर हैं, उसकी मर्यादा है और वे उसका पालन करने के लिए बाध्य हैं। उन्होंने आगे की योजनाओं का खुलासा करते हुए, ये भी कहा कि किसानों की समस्या हल कराने के लिए मुझे जहां भी जाना पड़ेगा, मैं जाऊंगा। मलिक ने कहा कि एक कानून का प्रचार किया जा रहा है कि किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है! लेकिन, उनका तर्क था कि ये कानून 15 साल से है। लेकिन, जब उत्तर प्रदेश का किसान हरियाणा में फसल बेचने जाता है, तो उस पर हमला होता है।
   एक बात तो स्पष्ट है कि सत्यपाल मालिक ने जो बोला वो गलती से या भावना के अतिरेक में नहीं बोला। ये भी नहीं कहा जा सकता कि उनकी पुरानी सोशलिस्ट विचारधारा उन पर हावी हो गई, इसलिए वे किसानों के समर्थन में उतर आए! संभव है कि राजभवन से फिर राजनीति में आने की कोशिश में हों और ऐसी टिप्पणी करने वे अपना मंतव्य स्पष्ट करने में लगे हों। वे बरसों तक उत्तर प्रदेश की राजनीति से जुड़े रहे हैं और शायद फिर वहीं की राजनीति में हाथ आजमाना चाहते हों! यही कारण है कि उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन करके अपने लिए जनाधार खड़ा करने की कोशिश तो की है। उनमें  इतनी समझ तो है, कि इस सार्वजनिक बयान के बाद वे भाजपा की आँख की किरकिरी बन सकते हैं और इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। मनमर्जी चलाने के लिए बदनाम किरण बेदी को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब उन्हें राज्यपाल की कुर्सी से चलता कर दिया गया।
   राजनीति की किताब में सत्यपाल मलिक की वाचालता के किस्से कम नहीं हैं। वे जब तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, उन्होंने कई बार बोलने में मर्यादा लांघी! एक बार उन्होंने कहा था कि आतंकवादी सुरक्षाकर्मियों और बेगुनाहों लोगों की हत्या करना बंद करें! इसके बजाए उन लोगों को निशाना बनाएं, जिन्होंने सालों तक कश्मीर की दौलत लूटी है। उनके इस बयान ने भी तूल पकड़ा था। तब इस टिप्पणी पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि सत्यपाल मलिक को दिल्ली में अपनी प्रतिष्ठा की पड़ताल करनी चाहिए। यह शख्स जो एक जिम्मेदार संवैधानिक पद पर है, वह आतंकवादियों को भ्रष्ट समझे जाने वाले नेताओं की हत्या के लिए कह रहा है। बाद में सत्यपाल मलिक ने इस बयान पर बहुत लीपा-पोती भी की। ये भी कहा कि मैंने जो कुछ भी कहा, वह गुस्से में कहा। राज्यपाल होने के नाते मुझे इससे बचना चाहिए था। आश्चर्य नहीं कि सत्यपाल मलिक अपनी आदत को दोहराते हुए, फिर कह दें कि 'मैंने तो गुस्से में किसान आंदोलन का समर्थन कर दिया था।' लेकिन, उन्होंने हवा का रूख भांप लिया है! उन्हें पता है कि राजनीति की पतंग वहीं ज्यादा ऊँची उड़ती है, जिस दिशा में हवा होती है।  
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