Sunday, February 26, 2023

33 दिनों के 26 आयोजन में विक्रमादित्य नदारद!

- हेमंत पाल

      महाकवि कुमार विश्वास ने उज्जैन में 'महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ' से राम कथा वाचन करते हुए जो विवाद खड़ा किया, उससे सिर्फ वे ही निशाने पर नहीं आए! इस बहाने पूरी संस्था की चीर-फाड़ शुरू हो गई। अब इस बात पर भी बहस चल पड़ी कि शोधपीठ जैसी गंभीर संस्था खुद को इवेंट कंपनी की तरह कैसे प्रोजेक्ट कर सकती है! इसलिए कि शोधपीठ का सालाना कार्यक्रम 'विक्रमोत्सव' पहले सात दिन और फिर नौ दिन के होते थे। लेकिन, इस साल ये आयोजन 33 दिन पर पहुंच गया! देश की सांस्कृतिक चेतना पर केंद्रित 33 दिन के इस 'विक्रमोत्सव-2023' का आयोजन 18 फरवरी से शुरू हुआ जिसकी पूर्णाहुति 22 मार्च को होगी। इसमें 26 आयोजन किए जा रहे हैं, जिसमें 'महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ' सहित शासन के 31 विभागों की भागीदारी है। आश्चर्य इस बात पर कि आज तक किसी भी सरकारी संस्थान ने इतना लम्बा आयोजन नहीं किया! फिर क्या कारण है कि इस संस्था को इतनी मनमर्जी करने की छूट दी गई! ध्यान देने वाली बात यह भी, कि संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने तो एक तरह से इस पूरे आयोजन से पल्ला झाड़ रखा है।  
    2019-2020 में उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य के काम पर शोध के नजरिए से इस शोधपीठ की स्थापना की गई थी। इसे शासन के संस्कृति विभाग के अंतर्गत रखा गया था। शुरुआती दौर में विक्रमादित्य से जुड़ी शोध पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। विक्रमादित्य से संबद्ध प्रामाणिक दस्तावेज इकट्ठा करके उस पर काम किया। ये वो काम था, जिससे इस शोधपीठ की साख बनी और इसका उद्देश्य प्रतिपादित हुआ। लेकिन, धीरे-धीरे ये गंभीर संस्था इवेंट की तरफ मुड़ने लगी और इसे हर साल होने वाला 'विक्रम उत्सव' आयोजित करने का दायित्व सौंप दिया गया। इसी के साथ ये संस्था इसके मकसद से भटक गई।
     सही शब्दों में कहा जाए तो 'विक्रम उत्सव' की इवेंट कंपनी बनने के साथ ही इस 'महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ' में वे सारी खामियां दिखाई देने लगी, जो किसी भी अच्छे मकसद को भटकाने के लिए काफी होती है! ऐसे में वो सारी साख जो इस शोधपीठ की पहचान थी, ध्वस्त हो गई! अपना आदमी वाद और सेटिंग बाजी से लगाकर यहां वो सब होने लगा जिसके लिए सरकारी संस्थाएं बदनाम होती है। इस बार 33 दिनों का आयोजन इस सबकी अति है। ख़ास बात ये कि बैनर भले ही विक्रमादित्य के नाम का है, पर ज्यादातर आयोजनों का स्वरुप कुछ और ही है। भला विक्रमादित्य का पुस्तक मेले, व्यापार मेले, युवा विज्ञान मेले, कवि सम्मेलन, दीपोत्सव, नाट्य, प्रदर्शनियां, प्रकाशन, ग्रामोद्योग हस्त शिल्प मेले, वन औषधि मेले, पौराणिक फिल्मों के अंतरराष्ट्रीय समारोह और युवा विज्ञान सम्मेलन से क्या वास्ता!      
       इतने लम्बे आयोजन में कितने झोल-झाल हैं, उसका एक नजारा तो सामने आ ही गया। अंदरखाने से रिसी ख़बरें बताती है कि इस सबके पीछे दो व्यक्ति हैं। एक इस शोधपीठ के निदेशक श्री राम तिवारी और दूसरे उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव जो इस शोधपीठ की स्थानीय समिति के अध्यक्ष भी हैं। आखिर जब किसी आयोजन का बजट ढाई करोड़ होगा तो स्वाभाविक है, मुद्रा का आचमन करने के नए-नए फॉर्मूले भी सोच लिए जाएंगे! वही सब यहां भी हो रहा है। बता दें कि ये वही श्री राम तिवारी हैं, जो राज्य शासन के संस्कृति विभाग के बरसों तक संचालक और कर्ताधर्ता रहे हैं। उनमें 'इवेंट' को 'मैनेज' करने के सभी गुण हैं।  
    33 दिन के इस आयोजन की जिम्मेदारी 35 सरकारी विभागों के हवाले की गई है। इसके अलावा कुछ जिम्मेदारी संघ की अनुषांगिक संस्थाओं को भी सौंपी गई। इसलिए कि जब किसी कार्यक्रम में अड़चन आए तो 'संघ' की इन संस्थाओं को बीच में डालकर उसे संभाल लिया जाए, जैसे 'प्रखर राष्ट्रवाद' वाले कार्यक्रम हुआ था। वास्तव में ये कार्यक्रम किसी और विभाग को करना था, पर जब उस विभाग ने हाथ खड़े किए तो उसे 'संस्कार भारती' ने किया। इस पूरे इवेंट की तैयारी कितनी लचर है, ये शुरूआती दौर में ही साबित हो गया। बची खुची किए कविराज कुमार विश्वास ने खोल दी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि 22 मार्च तक इस आयोजन की हालत क्या होगी, इसे समझा जा सकता है।      
    रामकथा के पहले दिन जब कथावाचक के श्रीमुख से 'संघ' को लेकर विवादास्पद बोल निकले, उसके बाद जो हुआ वो सबके सामने हैं। लेकिन, कुमार विश्वास के माफीनामे के बाद भी जब स्थिति संभलती नहीं दिखी, तो शाम के सेशन में जबरन की भीड़ बढाकर ये प्रचारित किया गया कि रामकथा कितनी ज्यादा सफल है। ये बात अलग है कि कुमार विश्वास करीब 50 लाख लेकर राम कथा का वाचन करने दिल्ली से उज्जैन तो आ गए, पर तीन दिन उनका रात्रि विश्राम इंदौर की पांच सितारा होटल में हुआ। उज्जैन के बारे में मान्यता है कि कोई 'राजा' श्रेणी का व्यक्ति (जैसे सिंधिया परिवार के लोग) यहां रात नहीं बिताते! क्योंकि, उज्जैन के राजाधिराज अकेले भगवान महाकाल हैं। लेकिन, कुमार विश्वास को उज्जैन में रात्रि विश्राम में क्या दिक्कत थी, ये समझ से परे है।
    'महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ' के कामकाज की सारी सच्चाई सामने आ गई। ये भी तय है कि ये संस्था अपने मूल मकसद से भटक गई है। अब यदि सरकार ने इसे और ढील दी, तो इसका हश्र क्या होगा, इसे सोचा जा सकता है। अब सरकार के लिए जरुरी हो गया कि इस तरह के इवेंट पर नकेल कसी जाए और 33 दिन के पूरे आयोजन जांच भी हो! क्योंकि, 33 दिन तक होने वाले फिजूल के इवेंट का मकसद क्या है और इससे किसका भला होना है! निदेशक श्रीराम तिवारी और मंत्री मोहन यादव की इच्छा से तो आयोजन का स्वरुप तय नहीं होगा! इसमें संस्कृति विभाग का दखल जरूरी है कि उच्च शिक्षा विभाग का जिसके मंत्री मोहन यादव है! संस्कृति विभाग की मंत्री उषा ठाकुर के आयोजन से अलग-थलग रहने का असल कारण भी पता होना चाहिए!
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