- हेमंत पाल
इन दिनों एनकाउंटर को लेकर खासी चर्चा है। फिल्में समाज का आईना होती है, जो मनोरंजन के साथ समाज की बुराइयां भी दिखाती है। सिनेमा में हर सामाजिक मुद्दे और घटना को फिल्म बनाकर जनता के सामने पेश किया जाता रहा है। अब उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर अतीक अहमद के बेटे असद के एनकाउंटर के बाद से ही ये मुद्दा चर्चा में है। इस बाहुबली के हत्यारे फरार बेटे असद को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। पुलिस इसे मुठभेड़ यानी एनकाउंटर कहती है, जबकि लोग जानते हैं कि ये पुलिस का अपराधियों को ठिकाने लगाने का पुलिस का आसान तरीका है। सालभर पहले भी उत्तरप्रदेश का एक नामी गुंडा विकास दुबे भागकर उज्जैन पहुंचा था। पुलिस को उसकी खबर मिली और उसे यहां आकर पकड़ लिया गया। पुलिस पेशी के लिए उसे कानपुर ले जा रही थी। लेकिन, रास्ते में पुलिस की गाड़ी पलट गई। कहानी के मुताबिक मौका देखकर विकास दुबे ने एक पुलिसवाले की बंदूक छीनी और भागने की कोशिश की। पुलिस ने उसे सरेंडर करने की चेतावनी दी। लेकिन, वह भागने लगा तो पुलिस ने उसे गोली मार दी। इस प्रकार से विकास दुबे भागते हुए पुलिस की गोली का शिकार हो गया। इस खबर ने फिल्मकारों का ध्यान खींचा और घटना पर फिल्म की योजना बनने लगी। दरअसल, ऐसी सच्ची अपराधिक कथाओं पर फिल्म बनाना आसान होता है। क्योंकि, अपराधी की वारदातों को कथानक का हिस्सा बना लिया जाता है। इसमें एक्शन भी होता है और ड्रामा भी। ऐसी फ़िल्में दर्शकों पसंद भी ज्यादा आती है।
अब आते हैं उन फिल्मों के जिक्र पर जो एनकाउंटर की ही कुछ सच्ची और कुछ गढ़ी गई कहानियों पर बनी। नाना पाटेकर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'अब तक छप्पन' में एनकाउंटर ही मुख्य कथानक है। फिल्म में पुलिस अफसर बने नाना पाटेकर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट होते हैं, जो 56 अपराधियों का एनकाउंटर करते हैं। फिल्म में नाना पाटेकर ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट साधु अगाशे का किरदार निभाया था। कहा जाता है कि ये फिल्म मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक से प्रेरित किरदार था। ऐसी ही एक और फिल्म आई थी 'शागिर्द' और इसमें भी नाना पाटेकर मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म की कहानी भी एनकाउंटर के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में नाना पाटेकर पुलिस वाले होते हैं और अपराध के खात्मे के लिए गुंडे मवालियों को मारते हैं। साल 2005 में रिलीज हुई क्राइम ड्रामा फिल्म 'सहर' आई थी। इसका निर्देशन कबीर कौशिक ने किया है। इसमें अरशद वारसी ने ऐसा ही किरदार निभाया था। इसमें वे तेज-तर्रार पुलिस वाले की भूमिका में होते है। इसकी कहानी गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के माफियाओं के एनकाउंटर के इर्द-गिर्द घूमती है।
फिल्म ‘शूटआउट एट वडाला’ से पहले फिल्म का पहला पार्ट ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ था, जो 2007 में रिलीज हुआ। अपूर्व लखिया के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म 1991 के लोखंडवाला की सच्ची शूटआउट घटना पर बनाई गई है। इस फिल्म में गैंगस्टर माया डोलस की कहानी थी। फिल्म में माया का रोल विवेक ओबेरॉय ने किया था। वहीं पुलिस वाले के रोल में संजय दत्त नजर आए थे, जो बदमाशों का एनकाउंटर करते हैं। 2013 में आई फिल्म ‘शूटआउट एट वडाला’ का कथानक भी एनकाउंटर पर आधारित है। इसमें गैंगस्टर मान्या सुर्वे के किरदार को जॉन अब्राहम ने निभाया। कहा जाता है कि पुलिस ने पहली बार किसी गैंगस्टर का एनकाउंटर किया था।
संजय दत्त की मुख्य भूमिका वाली 1999 में आई फिल्म 'वास्तव' का हीरो माफिया की भूमिका में होता है। पहले वो आम इंसान होता है, लेकिन धीरे-धीरे अपराध के दल-दल में धंसता चला जाता है। बाद में पुलिस उसका एनकाउंटर कर देती है। 'वास्तव' संजय दत्त की बेहतरीन फिल्मों में है। फिल्म की टैगलाइन 'द रिएलिटी' का अर्थ मुंबई के अंडरवर्ल्ड के जीवन की कड़वी सच्चाईयों से था। फिल्म की कहानी मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन रहे छोटा राजन पर आधारित बताई गई है। फिल्म के साथ ही साथ फिल्म के डायलॉग भी हिट हुए थे।
जॉन अब्राहम और रवि किशन की फिल्म 'बाटला हाउस' की कहानी दिल्ली के मशहूर बाटला हाउस एनकाउंटर पर आधारित थी। इसमें पुलिस के एनकाउंटर पर जमकर सवाल भी खड़े हुए, जांच भी लंबे समय तक चलती रही। यह एनकाउंटर 19 सितंबर 2008 को हुआ था। इस एनकाउंटर को फिल्म में भी बखूबी तरीके से पेश किया गया। फिल्म में जॉन अब्राहम के साथ अभिनेत्री मृणाल ठाकुर नजर आईं थीं। रियल लोकेशन पर शूटिंग की इजाजत नहीं मिली, तो देश-विदेश के कई शहरों में 'बाटला हाउस' बना दिए गए थे। ऐसी ही एक फिल्म में जिशान कादरी ने फिल्म 'मेरठिया गैंगस्टर' में अपने लेखन और डायरेक्शन का दिलचस्प नजारा पेश किया था। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर 2' में उन्होंने डेफनिट के किरदार में अपनी एक्टिंग का नमूना पेश किया था। छोटे शहरों के बच्चे कैसे पैसे कमाने के चक्कर में अपराध की दुनिया से जुड़ जाते हैं और बाद में पुलिस का शिकार बनते हैं, इस कहानी को बखूबी से दिखाया गया।
एक एनकाउंटर से कैसे पूरे परिवार की जिंदगी बदल जाती है, ये फिल्म 'मुल्क' में दिखाया गया था। फिल्म में आतंकियों का साथ देने वाले एक शख्स का पुलिस एनकाउंटर करती है। इसके बाद उनके परिवार के लोगों के साथ होने वाली ज्यादती पर फिल्म बनाई गई है। इसमें प्रमुख भूमिका में तापसी पन्नू और ऋषि कपूर थे। 'एनकाउंटर: द किलिंग' नसीरुद्दीन शाह की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म दिखाया गया था कि कैसे माता-पिता के ध्यान नहीं दिए जाने पर बच्चे अपराध की दुनिया में चले जाते हैं और इसके बाद पुलिस के हत्थे चढ़ते हैं।
ऐसी ही एक फिल्म 2012 में आई थी फिल्म 'पान सिंह तोमर' जो राष्ट्रीय एथलीट और कुख्यात डकैत पर बनी एक सुपर एक्शन थ्रिलर बायोपिक थी। इस फिल्म में डकैत के रूप में और पान सिंह के लीड रोल में इरफान खान ने जबरदस्त अभिनय किया। फिल्म में भी एनकाउंटर सीक्वेंस काफी सटीक ढंग से फिल्माया गया। जबकि, अनुभव सिन्हा की फिल्म 'आर्टिकल 15' को दर्शकों के साथ क्रिटिक्स ने भी सराहा था। फिल्म में आयुष्मान खुराना, मनोज पाहवा, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा और जीशान अय्यूब मुख्य भूमिका थे। जातिवाद पर केंद्रित इस फिल्म में जीशान अहम किरदार में थे और फिल्म में पुलिस जीशान को मार गिराती है और उसे एनकाउंटर का नाम देती है।
कानपुर के कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे पर फिल्म बनाने की चर्चा खूब हुई। लेकिन, फिल्म बनाने के अधिकार मिले नोएडा के प्रतिभा तन्मय तैलंग और हर्षवर्धन को। फिल्म निर्माता हंसल मेहता के निर्देशन में बनाई जा रही यह फिल्म दो घंटे की होगी। फिल्म का कथानक विकास दुबे पर केंद्रित होगा जिसने अपराध का साम्राज्य स्थापित कर, शासन प्रशासन और कानून से गठजोड़ बनाकर उत्तर प्रदेश के जांबाज पुलिस अधिकारियों और पुलिसकर्मियों की जघन्य हत्या करके पूरे देश को दहला दिया था। सभी को जिज्ञासा एक अपराधी किस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र से निकलकर तीन दशक तक अपराध की दुनिया में फलता फूलता रहा। इसका परिणाम पुलिस के अधिकारियों और जवानों को अपनी जान की कीमत देकर चुकाना पड़ा। अंत में पुलिस की गिरफ्त से भागने के प्रयास में उस दुर्दांत अपराधी का अंत हुआ। इस फिल्म में अपराध के हर पहलू को दिखाने की कोशिश करने की बात की जा रही है। लेकिन, क्या फिल्म विकास दुबे के अपराध को सही तरीके से फिल्मा पाती है, इसे देखना होगा।
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