Friday, April 28, 2023

सोनू सूद इंदौर से लोकसभा चुनाव लड़े तो क्या होगा!

      कोरोना काल में गरीबों और जरूरतमंदों के मसीहा बनकर उभरे फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने चुनावी राजनीति में उतरने की इच्छा जताकर नई राजनीतिक बहस छेड़ दी। अभी तक वे राजनीति में आने को लेकर इंकार करते रहे हैं। वे एक चैनल के रियलिटी शो के लिए इंदौर आए थे। यहां उन्होंने यह संभावना जताई कि मैं इच्छा तो नहीं रखता, लेकिन भविष्य का कुछ कह नहीं सकते। अगर मौका मिले तो इंदौर से चुनाव लड़ना पसंद करूंगा। इसलिए कि मैं इंदौर और यहां के लोगों को पहले से जानता हूं। 
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- हेमंत पाल
   
      फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने इंदौर से चुनाव लड़ने के बारे में जो कहा वह सच हो या नहीं, वे यहां से चुनाव लड़े या नहीं, पर इससे राजनीतिक गर्माहट तो आ गई! मीडिया के एक सवाल के जवाब में उन्होंने जो कहा उससे शहर की राजनीति में खलबली है! क्योंकि, जिस अंदाज में सोनू सूद ने इंदौर के प्रति अपनी आत्मीयता दिखाई और राजनीति में आने के संकेत दिए वो कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चिंता वाली बात है। सोनू सूद ने यह भी कहा कि इंदौर से मेरा एक खास रिश्ता है। मैं यहां से चुनाव भी लड़ सकता हूं। निश्चित रूप से चुनाव लड़ने से उनका आशय लोकसभा चुनाव लड़ना ही है। 
      सबसे बड़ा सवाल यह है कि सोनू सूद किस पार्टी से चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं। लेकिन, यह तय है कि वे भाजपा या कांग्रेस से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे। यदि वे उम्मीदवार बनते भी हैं, तो निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी (आप) के ही उम्मीदवार होंगे। सोनू का 'आप' पार्टी के बैनर से चुनाव लड़ना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं होगा। क्योंकि, मध्यप्रदेश में तीसरी राजनीतिक ताकत बनने के लिए 'आप' जिस तरह कोशिश भी कर रही है। उसके लिए सोनू सूद एक बड़ा राजनीतिक हथियार हो सकते हैं। लेकिन, सोनू ने इससे पहले कभी चुनाव लड़ने को लेकर मंशा जाहिर नहीं की। उनका झुकाव कभी राजनीति की तरफ दिखाई भी नहीं दिया। उन्हें न तो भाजपा ने प्रभावित किया, न कांग्रेस ने। यदि थोड़ा झुकाव कभी दिखा तो वो 'आप' की तरफ ही दिखाई दिया।     
       इस अभिनेता ने कोरोना के दौरान गरीबों के लिए जो किया, उससे उनकी इमेज फ़िल्मी हीरो से कहीं ज्यादा बड़ी हो गई। अब उनका सम्मान 'पब्लिक हीरो' की तरह किया जाता है। आज भी उनके घर के सामने मदद चाहने वालों की भीड़ लगती है। सोनू सूद ने कहा कि वैसे भी राजनीति की दुनिया बेहतर है। क्योंकि, राजनीति कमाल की दुनिया है। वहां भी लोग अच्छा काम करते हैं। मुझे लगता है कि जब भी कोई अच्छा काम करने लगता है, तो कहा जाता है कि राजनीति में आइए। मुझे लगता है कि उसके बिना भी अच्छा काम किया जा सकता है। पर, आने वाले समय में पता नहीं क्या लिखा है। मैं इच्छा तो नहीं रखता लेकिन, यह हो जाता है, तो आना तो चाहिए। सोनू सूद ने कहा कि मुझे जनता की सेवा करना बहुत पसंद है। सभी जानते हैं कि मैं कई तरह से लोगों की मदद कर रहा हूं। लोगों की मदद करने का एक अच्छा माध्यम राजनीति भी है। 
    सोनू सूद फिलहाल किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं है। लेकिन, उनके किसी न किसी पार्टी में जाने की अफवाह जरूर उड़ती रहती है। अलग-अलग नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें भी दिखाई देती है। उनकी बहन मालविका सूद ने पंजाब विधानसभा का पिछला चुनाव मोगा विधानसभा सीट से जरूर लड़ा था, पर चुनाव हार गई। सोनू सूद ने इस सीट पर अपनी बहन के लिए चुनाव प्रचार तो किया, किंतु वे हर मंच से इस बात को स्पष्ट करते रहे कि वे कांग्रेस के प्रचार करने नहीं आए! बल्कि, अपनी बहन के प्रचार के लिए मैदान में हैं। सोनू सूद दिल्ली के मुख्यमंत्री और 'आप' नेता अरविंद केजरीवाल, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल से भी मिले थे। लेकिन, इसके पीछे कोई राजनीतिक कारण नहीं ढूंढे गए। 
    इस अभिनेता की इंदौर से चुनाव लड़ने की मंशा के बाद इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने प्रतिक्रिया दी, कि उनका स्वागत है। जबकि, सच्चाई यह भी है कि यदि वास्तव में सोनू इंदौर से चुनाव लड़ते हैं, तो क्या शंकर लालवानी उनके सामने बीजेपी के उम्मीदवार होंगे! अभी इस सवाल का जवाब भी हां में नहीं दिया जा सकता। क्योंकि, इस बार पिछले लोकसभा चुनाव जैसे हालात नहीं है। खास बात यह भी है कि शंकर लालवानी के खाते में उपलब्धियों का कोई ऐसा तमगा भी नहीं है कि भाजपा उन्हें फिर मौका दे।  
     ऐसे में यह संभावना व्यक्त रही है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल या इंदौर से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। पार्टी में इसकी चर्चा भी हुई है। आज की स्थिति में सिंधिया के पास अपनी कोई परंपरागत सीट नहीं है। गुना-शिवपुरी सीट से वे 2019 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर केपी यादव से हार चुके हैं। अब इस सीट पर उन्हें मौका तभी मिल सकता है, जब केपी यादव उनके लिए सीट छोड़े, जिसके कोई आसार दिखाई नहीं देते। इसके अलावा ग्वालियर भले ही सिंधिया का घर हो, लेकिन राजनीतिक नजरिए से ग्वालियर सीट से चुनाव लड़ना सिंधिया के लिए सुरक्षित नहीं कहा जा रहा। यही कारण है कि वे ग्वालियर-चंबल इलाके से निकलना चाहते हैं और उनके लिए इंदौर से सुरक्षित सीट कोई नहीं लग रही। 
     देखा जाए तो इंदौर और भोपाल ही ऐसी सीटें हैं, जो पार्टी की ताकत के हिसाब से सबसे सुरक्षित है। भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर और इंदौर से शंकर लालवानी पहली बार के सांसद हैं। इनको पिछली बार टिकट देने के पीछे इनका राजनीतिक कद, लोकप्रियता या जनाधार नहीं कतई नहीं था। बल्कि तात्कालिक राजनीतिक कारणों से इन्हें टिकट दिया गया था। लेकिन, अभी तक इनका परफॉर्मेंस ऐसा नहीं रहा, कि पार्टी इनको फिर मौका दे। इसलिए यहां पर सिंधिया को उम्मीदवार बनाने को लेकर भाजपा को न तो कोई मुश्किल है न कोई विरोध है। लेकिन, फिर वही सवाल उठता है कि यदि सोनू सूद इंदौर से चुनाव मैदान में उतरे तो क्या पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया को यहां से उम्मीदवार बनाएगी और वे इसके लिए राजी होंगे! ये ऐसा मसला है जिसके साथ कई किंतु, परंतु हैं! पर सोनू ने इंदौर की लोकसभा चुनाव की राजनीति के ठहरे हुए पानी में अपने बयान का पत्थर मारकर उसमे लहरें तो उठा ही दी!  
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