मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चौहान चैन की जितनी बंसी बजा रहे हैं, इतनी निश्चिंतता का माहौल शायद किसी मुख्यमंत्री को नहीं मिला। उन्हें न तो कहीं से शह मिल रही है, न किसी से मात खोने का ही खतरा है। शतरंज की बिसात पर जितने भी मोहरे दिख रहे हैं, सब के सब शिवराज के पाले के हैं। आसपास भी कोई ऐसा मठाधीश नजर नहीं आ रहा जो उनकी कुर्सी की तरफ तिरछी नजर रखता हो! गाहे-बगाहे जो इस कुर्सी तक पहुंचने की मंशा रखते थे, वे अभी अपने अस्तित्व बचाने की कोशिश में लगे हैं। राजनीति में इतना चैन अमूमन कम ही दिखाई देता है। लेकिन, शिवराज को कहीं न कहीं जो एक मात्र खतरा दूर नजर आता है तो वह है उमा भारती। पार्टी हाईकमान के उमा भारती को फिर भाजपा में लाने के फैसले से शिवराज बेचैन हैं। इसलिए कि वे जानते हैं कि उमा का भाजपा में आना महज एक नेता की घर वापसी नहीं, बल्कि प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का नया संकेत होगी।
राजनीति पर पैनी नजर रखने वालों को पता है कि उमा भारती की राजनीतिक शैली क्या है? वे कैसे अपने समर्थकों की टोली खड़ी करती हैं और प्रदेश की राजनीति में उनका दखल किस हद तक जा सकता है। अभी शिवराजसिंह का कोई विरोधी नहीं है, बात यह नहीं! परदे के पीछे उनकी मुखालिफत करने वाले कई हैं पर, विरोध करने वाले मुखर नहीं हो पाते। क्योंकि, उनके पास कोई राजनीतिक शरणस्थल नहीं है। यदि उमा भारती की भाजपा में वापसी हो जाती है, तो तय है कि शिवराज के खिलाफ नई खेमेबंदी शुरू हाते देर नहीं लगेगी, जो शिवराज सरकार को अस्थिर कर सकती है। यही वह कारण है जो शिवराज को बार-बार उमा विरोध के लिए उकसाता रहता है। नितिन गडकरी ने पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद जिन दो नेताओं की घर वापसी का जिक्र किया था, उनमें एक थे यशवंत सिंह और दूसरी थी उमा भारती! एक किताब में पाकिस्तान के नेता मोहम्मदअली जिन्ना का गुणगान करने के लिए पार्टी से निकाले गए यशवंत सिंह को तो पार्टी में शामिल कर लिया गया, पर उमा भारती के लिए अभी पार्टी ने दरवाजा नहीं खोला।
मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं में कैलाश जोशी अकेले ऐसे नेता हैं जिसने उमा के पक्ष में बयान दिया था, लेकिन उनके जैसे थके और चुके हुए नेताओं की सलाह का शायद अब कोई मतलब नहीं रह गया। खुद पार्टी भी असमंजस में है कि वह अपने फैसले पर अमल करे या पीछे लौट जाए! इस फायर ब्रांड नेता को भाजपा उत्तर प्रदेश में इस्तेमाल करना चाहती है और साथ ही हिंदुत्व् का माहौल भी बनाना चाहती है, जो पार्टी की सबसे बड़ी ताकत है। किंतु, इस बात की क्या गारंटी कि उमा भारती उत्तर प्रदेश की सीमा लांघकर मध्यप्रदेश नहीं आएंगी! यदि उमा यह सीमा लांघती है तो तय है कि भाजपा की राजनीति में उथल-पुथल मच जाएगी। उधर, उमा भारती अभी खमोश है, शायद इसलिए कि उन्हें पार्टी में ससम्मान वापसी का भरोसा दिलाया गया है। यदि इसमें देरी होती है, तो हो सकता है वे एक बार फिर से वाचाल हो उठें!
भाजपा में इस बात को स्वीकार करने वालों की कमी नहीं है कि दिग्विजय सिंह को फिर से सत्ता में आने से रोकने में 2003 में उमा भारती ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजनीति की एक खास शैली में उमा का प्रचार अभियान आज भी याद किया जाता है। इसी राजनीतिक अंदाज के कारण वे प्रदेश की सत्ता पर काबिज भी हुईं, लेकिन कायम नहीं रह सकी। परिवारवाद और कमजोर प्रशासनिक समझ के कारण वे फिसली और फिर फिसलती ही चली गईं। अपनी गलतियों की पहचान करने के बजाए वे चंद स्वार्थी लोगों के हाथ में कैद होकर रह गई और ऐसे में उनकी 'भारतीय जनशक्ति पार्टी" का भी वजूद कायम नहीं रह सका। अब वे फिर पार्टी के दरवाजें पर खड़ी हैं, लेकिन उनकी पुरानी गलतियां ही उनकी राह का रोड़ा बन गईं। पार्टी हाईकमान को उनके विरोधी यह समझाने में लगे हैं कि उमा भारती की वापसी भाजपा के लिए वरदान तो शायद साबित न हो, अलबत्ता अभिशाप जरूर साबित होगी!
उमा भारती को पार्टी में लाने के पीछे हाईकमान का मकसद भले ही मध्यप्रदेश में विकल्प खड़ा करना न हो, पर ऐसा नहीं होगा इसकी गारंटी भी कोई नहीं ले रहा। प्रदेश के नेता चाहते हैं कि हाईकमान को उमा भारती की जरूरत उत्तर प्रदेश में है तो पार्टी में उनकी वापसी का रास्ता भी उसी राज्य से तैयार किया जाए। भाजपा यदि उत्तर प्रदेश फतह करना चाहती है तो मध्यप्रदेश को दांव पर लगाना कौनसी राजनीतिक समझदारी है? जबकि, उमा भी अपनी जेबी पार्टी की दुर्दशा से यह समझ चुकी है कि राजनीति आसान खेल नहीं है! भाषण सुनने के लिए आई भीड़ वोटर नहीं होती, भाषण देना एक कला तो हो सकती है, पर राजनीतिक सफलता का रास्ता वहां से होकर नहीं जाता! हाशिए पर आ चुकी उमा का आने वाला कल क्या होगा, इस बात का दावा कोई नहीं कर रहा। फिर भी उनसे खौफ खाने वालों के नाम तलाशें जाएं तो उनमें सबसे पहला नाम शिवरासिंह चौहान का होगा जिन्हें उमा भारती अपनी कुर्सी के लिए खतरा जरूर नजर आ रही है।
3 comments:
its reality of MP politics.
pad kar maja aa gaya sir.
pad kar maja aa gaya sir
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