Wednesday, July 1, 2015

खुरदुरी खाकी से घबराने लगा इंदौर!


- हेमंत पाल 
  किसी नेता की जन-लोकप्रियता का पैमाना क्या होता है? इस सवाल के जवाब में कई तर्क और उद्धरण दिए जा सकते हैं। लेकिन, इसका सबसे सटीक जवाब होगा 'जनता की दुखती नब्ज को छू लेना!' भाजपा के कद्दावर नेता, मंत्री और पार्टी की केंद्रीय समिति में महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने एक बार फिर वही किया! इंदौर में पुलिस के अघोषित रात्रि कर्फ्यू पर उन्होंने करारी चोट की! एक बड़े पुलिस अधिकारी को लिखी चिट्ठी में विजयवर्गीय ने लिखा कि पुलिस का खौफ सिर्फ और सिर्फ सामान्य जनता पर है, अपराधियों पर तो बिल्कुल ही नहीं! रात 11 बजे शहर बंद करने का निर्णय लेने से पहले आपने एक भी जनप्रतिनिधि से बात नहीं की? 
  सामान्यतः देखा गया है कि जब भी कोई बड़ा पुलिस अधिकारी शहर में नया आता है, वो बजाए जनता से सौजन्यता वाले सम्बंध बनाने के, खौफ के जरिए अपना प्रभाव ज़माने की कोशिश करता है। वही सब इन दिनों इंदौर में देखा जा रहा है। जिस वर्दी से गुंडों, बदमाशों और समाज के असामाजिक तत्वों को खौफ खाना चाहिए, उस खाकी वर्दी से आम लोग भयभीत हैं! शहर की सभी प्रमुख सड़कों पर पुलिसिया आतंक का माहौल है! भीड़ भरी सड़कों के बीच बैरियर लगाकर बंदूकधारी पुलिस जवान नजर आ रहे हैं! ये ट्राफिक सुधार की कोई कोशिश है, कानून व्यवस्था के सुधार का प्रयोग या फिर भय का बाज़ार लगाने की, समझ नहीं आता!     
  जिस तरह कहा जाता है कि ताले चोरों के लिए नहीं लगाए जाते! उसी तर्ज पर कहा जा सकता है कि पुलिस गुंडों और बदमाशों पर काबू करने के लिए भी नहीं होती! क्योंकि, उन्हें सब पता होता है कि पुलिस कहाँ है और कहाँ नहीं! यदि पुलिस इतनी ही तत्पर और सजग है तो इंदौर में अपराधों पर अंकुश क्यों नहीं लग सका? पिछले कुछ समय से इंदौर देश के बड़े अपराधियों की गतिविधियों का अड्डा जैसा बन गया है! प्रदेश में सबसे ज्यादा अपराधों के लिए कुख्यात हो चुके इस शहर की जनता को पुलिस के खौफ की नहीं, भरोसे की ज्यादा जरुरत है। रात 11 बजे से शहर को बंद करा देने या सडकों पर बंदूक थामे खाकी के उतर जाने से शहर में शांति शायद नहीं आएगी! 
   मालवा के इस बढ़ते शहर की अपनी अलग ही तासीर है। इंदौर सौजन्यता भरी व्यवहार कुशलता और खाने-पीने के शौकीन लोगों के लिए जाना जाता है। खाना-पीना यहाँ एक शौक जैसा है। और देर रात तक खाने की दुकाने खुली रहना यहाँ की परंपरा में शुमार! सिर्फ कानून-व्यवस्था के नाम पर किसी शहर की परंपराओं को बदलना तार्किक नहीं कहा जा सकता! कैलाश विजयवर्गीय ने भी अपनी चिट्ठी में लिखा है कि 'यह आपने इसलिए किया है कि सैकड़ों वर्षों से चली आ रही शहर की परंपराओं और तासीर से परिचित नहीं हैं! आपसे पहले किसी ने भी शहर की इस आदत को बदलने की कोशिश नहीं की, क्योंकि वे जानते थे या हम सब जानते हैं कि अपराध वे लोग नहीं करते जो देर रात दुकानों में खाते-पीते या खरीदारी करते हैं।' 
  पुलिस की इस 'नाटकीय' सख्ती के बाद यदि इंदौर में अपराध के आंकड़े कम हो जाते या होने वाले अपराधों के आरोपी पकड़ लिए जाते तो पुलिस की इस सख्ती को लोग हाथो-हाथ लेते! पर, ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा! जहाँ पुलिस होगी, वहां से तो असामाजिक छूमंतर हो ही जाते हैं! ऐसे में पुलिस के हत्थे वो आम आदमी ही आते हैं! जो दुपहिया वाहनों पर चलते हैं और अपनी खुशियाँ सराफे, 56-दुकान या ऐसे ही अपने इलाके के बाजार में चाट-पकौड़ी खाकर मानते हैं! लेकिन, जब पुलिस 11 बजे दुकानें बंद करवा दे और सडकों पर डंडा फटकारने लगे तो लोग कहाँ जाएंगे! परेशान लोगों और व्यापारियों के लिए कैलाश विजयवर्गीय ने जो कदम उठाया वो सत्ता और विपक्ष के उन नेताओं के लिए सबक है जो जनता के नेता होने का दम्भ तो भरते हैं पर, ऐसे वक़्त में खामोश रहते हैं! पुलिस के बहाने एक बार फिर इस जन-नेता ने लोगों के दिल में अपना ख़म ठोंक दिया!

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