- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश के पश्चिमी इलाके की राजनीति का केंद्र इंदौर है। यहाँ के करीब 20 जिलों की राजनीति की कमान इंदौर के दो भाजपा नेताओं के हाथ में होती है। ये नेता हैं कैलाश विजयवर्गीय और सुमित्रा महाजन! दोनों की राजनीति एक ही वक़्त में शुरू हुई थी! लेकिन, दोनों कभी एक रास्ते पर दिखाई नहीं दिए! एक पार्टी, एक शहर, एक प्राथमिकताएं होते हुए भी दोनों के दिलों में एक-दूसरे के लिए हमेशा छुपी हुई तलवारें खींची रहीं! दोनों ने कभी सार्वजनिक रूप से अपनी तलवारों का प्रदर्शन तो नहीं किया, पर दोनों गुटों के नेताओं की दूरी ने इस बात को हमेशा ही जाहिर किया है।
करीब दो दशक से चल रही 'ताई' और 'भाई' की राजनीति ने अब नया आयाम ले लिया है। 'ताई' यानी सुमित्रा महाजन अब लोकसभा की अध्यक्ष हैं और 'भाई' कैलाश विजयवर्गीय को भाजपा ने राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश देने के लिए संगठन में महासचिव का पद दिया! अब दोनों ही नेताओं का कार्यक्षेत्र इंदौर से आगे बढ़कर राष्ट्रीय फलक पर है! इसके बावजूद दोनों ही नेताओ में खुद को जड़ों से नहीं कटने दिया! जिस तरह कैलाश विजयवर्गीय की प्राथमिकता में इंदौर का परदेशीपुरा, नंदानगर और पाटनीपुरा सबसे अव्वल हैं उसी तरह सुमित्रा महाजन को भी नारायण बाग, रामबाग़ और साकेत नगर इलाके से कुछ ज्यादा ही लगाव है।
'ताई' को पार्टी ने जो पद दिया है, उसके पीछे उनका इंदौर लोकसभा सीट से लगातार जीतना है! जबकि, कैलाश विजयवर्गीय के राजनीतिक उद्धार का कारण हरियाणा में पार्टी को जीत की राह दिखाना और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रियता दिखाना है। इस बात में दो राय नहीं कि 'ताई' इंदौर में जहाँ एक समाज और वर्ग विशेष की नेता रहीं हैं, वहीँ कैलाश विजयवर्गीय ने हमेशा सड़क की राजनीति की! इंदौर के लोग आज भी वो दिन भूले नहीं हैं, जब वे विजयवर्गीय को परदेशीपुरा से एलआईजी चौराहे के बीच स्कूटर के पीछे बैठे देखते थे! सफ़ेद कुर्ते-पाजामे में कैलाश विजयवर्गीय हमेशा केशरिया दुपट्टा डाले रहते थे और आज भी उनके पहनावे में कोई फर्क नहीं आया!
इंदौर में 'ताई' को उच्चवर्ग की नेता माना जाता है! एक तो उनका महिला होना ऊपर से सभ्रांत परिवार से जुड़े होने के कारण वे कभी उन लोगों की नेता नहीं बन सकी, जिन्हें अपने नेता की हर समय मदद की जरुरत पड़ती रहती है! अफसरों के साथ मीटिंग में भी 'ताई' और 'भाई' की राजनीति की धारा में हमेशा अंतर देखा गया है। 'ताई' जहाँ अफसरों के पाले में खड़े होकर समझाइश से मामले सुलझाने की कोशिश में रहती हैं, वहीँ 'भाई' अपने लोगों के लिए नियम-कायदों की ज्यादा परवाह नहीं करते! शायद इसलिए कि वे इसे ही अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत जो मानते हैं!
अभी कुछ दिन पहले कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर के नवागत कलेक्टर पी. नरहरी को सार्वजनिक बयां देकर प्रशासन चलाने और राजनीति न करने की सलाह दे डाली थी! इसके क्या राजनीतिक मायने निकले या निकाले गए, ये तो पता नहीं चला किन्तु इसे प्रचार खूब मिला! इसके बाद उन्होंने इंदौर में पुलिस के कथित अघोषित रात्रि कर्फ्यू पर करारी चोट की! एक बड़े पुलिस अधिकारी को चिट्ठी लिखी कि पुलिस का खौफ सिर्फ और सिर्फ सामान्य जनता पर है, अपराधियों पर बिल्कुल नहीं! रात 11 बजे शहर बंद करने का निर्णय लेने से पहले आपने एक भी जनप्रतिनिधि से बात नहीं की? उनकी इस चिट्ठी का असर हुआ! क्योंकि, असामाजिक तत्वों को पुलिस से जो खौफ खाना चाहिए, उस खाकी वर्दी से शहर के लोग भयभीत हैं! सभी प्रमुख सड़कों पर पुलिसिया आतंक पसरा है! भीड़ भरी सड़कों के बीच बैरियर लगाकर बंदूकधारी पुलिस जवान नजर आ रहे हैं! ये विजयवर्गीय की राजनीतिक शैली के वो नमूने हैं जो उन्हें जननेता बनाते हैं! जबकि, 'ताई' की राजनीतिक शैली अफसरों को पत्र लिखने से ज्यादा आगे नहीं है।
मुद्दा ये है कि क्या अब ये दोनों नेता राष्ट्रीय राजनीति की व्यस्तता के बीच इंदौर की स्थानीय राजनीति के लिए समय निकल पा रहे हैं? लोकसभा अध्यक्ष के नाते सुमित्रा महाजन की अपनी व्यस्तताएं हैं! ताजा स्थिति ये है कि वे न तो ज्यादा इंदौर आ रही हैं न लोगों से उनकी सीधी बातचीत ही हो पा रही है! जो लोग समस्याएं लेकर उनसे मिलने दिल्ली जा रहे हैं, उन्हें भी अपनी बात कहने का वक़्त नहीं मिल पा रहा! इससे अलग कैलाश विजयवर्गीय असम इलाके के पार्टी महासचिव होते हुए भी इंदौर आने का कोई मौका नहीं छोड़ते! जहाँ तक लोगों से सरोकार का मामला है तो उसे लेकर विजयवर्गीय की अपनी एक ख़ास राजनीतिक शैली है! वे अपने पास उम्मीद लेकर आए किसी भी व्यक्ति को कभी निराश नहीं करते! फिर वो उनकी पार्टी का या इलाके का हो न हो! फिलहाल उनका कार्यक्षेत्र महू है, पर इंदौर के क्षेत्र क्रमांक-2 के लोगों के लिए वे आज भी 'उनके नेता' हैं। इलाके में वे कभी किसी किसी चाय की गुमटी पर नजर आते हैं तो कभी किसी दुकान के ओटले पर ठिया जमा लेते हैं! यही नहीं पिछले दिनों वे देर रात कुछ लड़कों के साथ कुर्सी को स्टम्प बनाकर गली क्रिकेट खेलते भी नजर आए! ये कोई प्रचार पाने या गुट बनाने की तलब के लिए नहीं था। ये कैलाश विजयवर्गीय की फक्कड़ राजनीति का सिर्फ एक अंदाज है, जो सुमित्रा महाजन शायद चाहकर भी कभी नहीं कर सकती!
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