Wednesday, July 1, 2015

न पार्टी जीती न उम्मीदवार, जीते शिवराज!

गरोठ उपचुनाव 

- हेमंत पाल 
   गरोठ में भाजपा आंकड़ों में जरूर जीत गई हो, पर कई मायनों में इस जीत ने पार्टी को आईना दिखा दिया! इसे भाजपा उम्मीदवार चंदरसिंह सिसौदिया या पार्टी की जीत कतई नहीं कहा जा सकता! ये सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री की छवि और उनकी कोशिशों की जीत है। डेढ़ साल पहले जिस भाजपा ने कांग्रेस उम्मीदवार को 25 हज़ार वोटों से हराया था, इस उपचुनाव में वही जीत घटकर आधी रह गई! वो भी करीब एक महीने तक पूरी पार्टी और सरकार के जुटने के बाद! मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान यदि प्रचार के के अलावा चुनाव प्रबंधन में खुद को नहीं लगाते तो ये जीत आसान नहीं थी!   
  संगठन का चंदरसिंह सिसौदिया को उम्मीदवार बनाने का फैसला सही नहीं कहा जा सकता! इस फैसले ने पार्टी के लिए जातिगत समीकरणों को नुकसान ही पहुँचाया। क्योंकि, पूरे इलाके में सौंधिया ठाकुरों को लेकर लोगों में नाराजी है। इलाके की कमजोर जातियों में उनके प्रति भय, खौफ का मौहाल है। इसलिए जातिगत समीकरणों के लिहाज से भाजपा का ये दांव उल्टा पड गया! भाजपा के जो वोट घटे, उसमें एक बड़ा कारण ये भी है। गरोठ क्षेत्र में सौंधिया ठाकुरों के अलावा वैश्य और जैन समाज के वोटर्स का दबदबा है। ये पहली बार हुआ कि गरोठ के इस उपचुनाव में वैश्य वोटर्स भाजपा से काफी हद तक कट गया! शायद ये पहली बार हुआ कि भाजपा का परंपरागत वैश्य वोट बैंक खिसका हो! कांग्रेस उम्मीदवार सुभाष सोजतिया खुद जैन हैं, इसलिए जैन वोटर्स का पलड़ा उनकी तरफ झुकना स्वाभाविक था, वही हुआ भी! कांग्रेस ने भी अपनी कोशिशों में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी को जो फ़ायदा मिलता है, वो भाजपा को भी मिला। इसके बावजूद भाजपा ने जैन वोटर्स में जो सेंध लगाई, वो शिवराज सिंह के अपने प्रयासों से मिले! 
   चंदरसिंह सिसौदिया को लेकर पार्टी के स्थानीय संगठन में भी विरोध था। पार्टी का एक बड़ा धड़ा सिसौदिया की उम्मीदवारी के खिलाफ था! इसका समय रहते पता भी लग गया! भाजपा ने कुछ पद बांटकर इस खदबदाते विरोध को दबाने की कोशिश भी की, लेकिन बात बनी नहीं! उम्मीदवारी के ही एक दावेदार राजेश चौधरी ने प्रचार के बीच में उसके और मुख्यमंत्री के बीच हुई बातचीत को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करके मौहाल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी! इस सबके पीछे एक कारण ये भी है कि भाजपा में बढ़ते 'ठाकुरवाद' से पार्टी में नाराजी पनप रही है! इसे भी पार्टी को गंभीरता से लेना होगा।  
  भाजपा भले ही जीत को लेकर उत्साहित हो, पर सारे दमखम के बावजूद जीत आधी रह जाना पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। सरकार प्रदेश में विकास के लाख दावे करे, पर गरोठ इलाके की हालत देखकर लगता नहीं कि यहाँ कुछ हुआ है। भानपुरा के लोग तो वहाँ के मुख्य मार्ग की हालत से ही बेहद खफा हैं! इस क्षेत्र में न तो सड़कें बनी और ना विकास के कोई काम हुए! ऊपर से किसानों का फसल बोनस बंद कर दिए जाने और भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर भी सरकार के प्रति लोगों का गुस्सा दिखाई दिया! इसका असर जीत का अंतर घटने से साफ़ भी हो जाता है।     
  मतदान के हफ्तेभर पहले तक यहाँ हार-जीत का अनुमान लगाना आसान नहीं था! इंटेलिजेंस और सीआईडी की रिपोर्ट भी संभवतः इसी तरफ इशारा कर रही थी। सबसे चौंकाने वाली रिपोर्ट तो खुद भाजपा संगठन का इंटरनल सर्वे था! जिसमें पार्टी की जीत पर संदेह व्यक्त किया गया था! प्रचार बंद होने के अंतिम दिन तक भाजपा की जीत संदिग्ध ही रही! शायद यही कारण था कि मुख्यमंत्री जो प्रचार के अंतिम दिन राजधानी लौटने वाले थे, रात रुक गए! उन्होंने वहाँ बूथ स्तर तक की छोटी-छोटी बैठकें ली! मुख्यमंत्री कोई रिस्क लेना नहीं चाह रहे थे! शिवराज सिंह की इस सक्रियता का ही नतीजा था कि आज गरोठ में भाजपा की जीत का परचम लहरा रहा है!  
  2003 में भाजपा सरकार में आई थी! इसके बाद से अभी तक 18 उपचुनाव हुए हैं! इनमें से 12 बार भाजपा जीती और 6 बार उसे वोटर्स ने हरा दिया! भाजपा के सामने गरोठ 19वां उपचुनाव था! छह राउंड की मतगणना के बाद पहली बार कांग्रेस 200 वोटों से आगे आई, लेकिन ये बढ़त बरक़रार नहीं रख सकी!

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