Saturday, October 17, 2015

भारत मैच जीता, पर सिंधिया की टीम हारी!



इंदौर में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच हुए वन-डे क्रिकेट मैच में भारत ने प्रतिद्वंदी टीम को हरा दिया हो, पर इस आयोजन के पीछे हुई राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया की आयोजक टीम हार गई! मैच के टिकट जिस तरह बेचे और सौजन्य पास जिस तरह बाटें गए, लोगों में आक्रोश का पारा सिर के ऊपर निकल गया! मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) पर कालाबाजारियों से टिकट बिकवाने के सीधे आरोप लगाए गए। ये पूरी प्रक्रिया पारदर्शी थी। टिकट बेचने का तरीका भी गलत था और सौजन्य पास देने में भी अपने 'गुट' को आगे रखा गया! इस पर भी सबसे गंभीर मसला एमपीसीए के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के व्यवहार को लेकर सामने आया! उन्होंने न तो कांग्रेस के नेताओं की नाराजी दूर करने की कोई कोशिश की और न भाजपा नेताओं को सौजन्य पास लौटाने से रोका! ये सामान्य शिष्टाचार का मामला था, जिसका निर्वहन नहीं किया गया! इसका कांग्रेस और खुद सिंधिया की राजनीति पर कहाँ और कैसा असर पड़ेगा, अभी इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता! लेकिन, ये तय है कि  क्रिकेट मैच की इस राजनीति से प्रदेश की राजनीति लम्बे समय तक खदबदाती रहेगी!
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- हेमंत पाल 


   राजनीति के खेल में कितनी राजनीति होती है, ये देशभर को पता है। मध्यप्रदेश भी क्रिकेट की इस राजनीति से अछूता नहीं है। लेकिन, ये पहला मौका है जब इंदौर में हुए वन-डे क्रिकेट मैच में भाजपा और कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच की राजनीति की खाई चौड़ी हो गई! साथ ही कांग्रेस की जो राजनीति गुटों में बंटी थी, और ज्यादा बिखर गई! मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेता और मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में इसी कॉलम में मैंने एक बार लिखा था कि 'वे दिल्ली में राजनीति का शतरंज खेलते हैं और मध्यप्रदेश में क्रिकेट की राजनीति करते हैं।' ये बात अब पूरी तरह साबित भी हो गई! इंदौर में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच हुए क्रिकेट मैच में सिंधिया का रुख न तो नेता जैसा था, न खिलाडी जैसा! वे पूरी तरह अपने सामंती व्यवहार के कारण 'महाराजा' बने रहे! ऐसे महाराजा जिसे जरा भी झुकना और किसी की सलाह मानना पसंद नहीं! यहाँ तक कि उन्होंने खुद की पार्टी के नेताओं और विपक्ष के लोगों से भी सामान्य शिष्टाचार्य निभाने की जरुरत नहीं समझी! 
    इंदौर में हुए इस मैच में टिकटों और सौजन्य पासों को लेकर काफी विवाद हुआ! टिकट जिस तरह बेचे गए और सौजन्य पास बांटे गए, उस पर उंगलिया उठती रही और बवाल होता रहा! एमपीसीए के अध्यक्ष होने के नाते ज्योतिरादित्य सिंधिया का दायित्व था कि वे इस सारे मामले में मध्यस्थता करके मामले को ठंडा करते, पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया! उन्होंने अपने राजनीतिक शागिर्दों के हाथ में सौजन्य-पासों की कमान सौंपकर कांग्रेस की गुटबाजी को और हवा दे दी! इसे किसी भी नजरिए से सिंधिया की राजनीतिक या प्रबंधकीय सफलता नहीं कहा जा सकता! यदि कोई नेता किसी खेल गतिविधि में संलग्न होता है, तब भी वह अपनी राजनीतिक पहचान से अलग नहीं हो सकता! यदि इस क्रिकेट मैच आयोजन की सफलता का श्रेय सिंधिया को दिया जाएगा, तो मैच से जुडी खामियाँ भी उनके खाते में ही दर्ज होंगी! इस का मैच के टिकटों का मसला कब और कहाँ सिंधिया और कांग्रेस की राजनीति को प्रभावित करेगा, कहा नहीं जा सकता! लेकिन, ये तय है कि इंदौर की भविष्य की राजनीति पर ये मैच गहरा असर डालेगा!   
   मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इंदौर डिवीजन क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश विजयवर्गीय की अपनी अलग साख है। वे टिकट मामले में खुद की उपेक्षा से इतने खफा हो गए कि इस वन-डे मैच के टिकट एमपीसीए को लौटा दिए! इससे पहले विजयवर्गीय ने मैच के टिकटों को लेकर अपने समर्थकों से सोशल मीडिया पर माफी मांगी! कैलाश विजयवर्गीय के टिकट लौटाए जाने के फैसले पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि कुछ लोगों में स्पोर्ट्समैनशिप नहीं है। खेल में राजनीति नहीं होना चाहिए, लेकिन राजनीति में गेम स्पिरिट होना चाहिए! हालांकि, कुछ लोगों में इसका अभाव है। ये विजयवर्गीय की गुगली पर सिंधिया का शॉट जरूर था, पर इसे बॉउंड्री पर कैच कर लिया गया! विजयवर्गीय ने टिकट लौटाकर जो गुगली फेंकी थी, उसका असर भाजपा के अलावा कांग्रेस के नेताओं पर भी हुआ! इंदौर नगर निगम के सभापति अजय नरुका ने भी व्यक्तिगत रूप से सिंधिया से मिलकर उन्हें दिए टिकट लौटा दिए! इसका अनुसरण कुछ और स्थानीय भाजपा नेताओं ने भी किया! दरअसल, ये सब सिंधिया की उस सामंती ठसक का जवाब ही था, जो विजयवर्गीय समर्थकों ने उन्हें दिया!       
  ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय के बीच कोई सीधी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता नहीं है। इसके पीछे भी क्रिकेट ही है। मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के दो बार के चुनाव में सिंधिया ने विजयवर्गीय को हराया है। यही कारण है कि जब भी मध्यप्रदेश में क्रिकेट को लेकर कोई राजनीति होती है, ये दोनों नेता आमने-सामने आ जाते हैं। सिंधिया ने राजनीतिक रूप से ताकतवर कैलाश विजयवर्गीय को एमपीसीए के चुनाव में दो बार कड़ी शिकस्त दी, पर उनकी राजनीति इससे कहीं प्रभावित नहीं हुई! इसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम जरूर हुए और ये विवाद उसी की एक परिणति कही जा रही है। 
    मैच के टिकटों के वितरण को लेकर गड़बड़ियां सामने आई तो 'इंदौर डिवीजन क्रिकेट एसोसिएशन' के अध्यक्ष कैलाश विजयवर्गीय और 'मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन' के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया की बयानबाजी सामने आई! विजयवर्गीय ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि 'आज सुबह से इंदौर के अनेक लोगों के फोन मेरे पास आ रहे हैं, आमजन को शुल्क देकर भी क्रिकेट मैच के टिकट नहीं मिल पा रहे हैं और कुछ लोग टिकट ब्लैक में बेच रहे हैं।' हम इंदौर शहर के लोग शर्मिंदा हैं!' विजयवर्गीय ने अपनी दूसरी पोस्ट में लिखा 'जब भी इंदौर में क्रिकेट मैच हुआ है, मैंने स्टेडियम में कार्यकताओं के साथ ही मैच देखा! इस बार मध्यप्रदेश क्रिकेट एशोसिएशन ने भारत-दक्षिण अफ्रीका मैच के टिकट देने में असमर्थता व्यक्त की! मैं सभी कार्यकर्ताओं से क्षमा प्रार्थी हूँ। बिहार चुनाव में व्यस्त होने के कारण में भी मैच देखने नहीं आ पाऊंगा, मेरा परिवार भी घर बैठकर मैच देखेगा। सभी कार्यकर्ताओं से अनुरोध है कि आप लोग भी घर बैठकर ही टेलीविजन पर मैच का आनंद लें।'
  इस पूरे मामले का सबसे दिलचस्प पहलू ये भी कि भाजपा नेताओं की ही तरह कांग्रेस के नेता भी ज्योतिरादित्य सिंधिया से नाराज हुए। पूर्व सांसद और कांग्रेस के बड़े नेता सज्जन वर्मा तो सिंधिया से इतने खफा हो गए कि न  देखने गए और न इंदौर में ही टिके! वे शहर से ही बाहर चले गए! इंदौर के करीब सभी बड़े कांग्रेसी नेता स्टेडियम से नदारद रहे। इन नेताओं की ये नाराजी दूर करने की भी कोशिश नहीं की गई! यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक इस टिकट प्रपंच से अलग रहते तो शायद विवाद इतना नहीं बढ़ता! लेकिन, पूर्व विधायक तुलसी सिलावट और शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन ने जिस तरह मैच के ' मुफ्त पास' बाटें उससे विवाद ज्यादा बढ़ा! इन दोनों नेताओ ने भी ये सारे 'पास' अपने चेलों को दिए! आशय यह कि इस पूरे मैच में 'महाराजा' और उनकी 'प्रजा' का ही जलवा दिखा! 
  मैच के टिकटों के मामले में आरोपों से घिरने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि इस मामले की जांच होगी! लेकिन, तब तक स्थिति बदल चुकी थी! दो दिनों से शहर में टिकट वितरण व्यवस्था बुरी तरह बिगडऩे से क्रिकेट प्रेमियों में भारी आक्रोश रहा! वहीं राजनीतिक संगठनों से जुड़े कुछ लोग विरोध करने उतर आए!   करीब 27 हजार दर्शकों की क्षमता वाले होल्कर स्टेडियम में मैच के टिकटों के बारे में एक महीने पहले सिंधिया ने कहा था कि हम इस मैच के ज्यादातर टिकट ऑनलाइन पद्धति से बेचने की कोशिश करेंगे! हालांकि, हम इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे कि समाज के सभी तबकों के लोगों को मैच के टिकट खरीदने में कोई दिक्कत न हो। लिहाजा हम पारंपरिक तरीके से भी टिकट बेचेंगे।’ इसके बावजूद न तो लोगों को ऑनलाइन तरीके से टिकट मिले न पारंपरिक तरीके से! जिन बैंकों को ये काम सौंपा गया था वे भी इंतजाम सके! पुलिसवालों पर भी आरोप है कि उन्होंने व्यवस्था की आड़ में टिकट खरीदे और उन्हें ब्लैक करवाया!   
   अब, जबकि ये वन-डे मैच हो गया, भारत ये मैच जीत गया है! अब कांग्रेस के अंदर राजनीति का खेल शुरू होगा! सिंधिया के खिलाफ भाजपा को जो विरोध करना था, वो तो उसने अपने तरीके से दर्ज करा भी दिया! लेकिन, लगता है अभी बिखरी कांग्रेस में और बिखराव होना बाकी है। इस बात से इंकार नहीं कि सिंधिया की फेस-वैल्यू जबरदस्त है, पर इस वैल्यू से राजनीति की तराजू में पार्टी का पलड़ा भारी नहीं हो जाता! सिंधिया ने जिस तरह क्रिकेट के खेल में अपनी गुटबाजी का तड़का लगाया है, कांग्रेस के कई नेता बेहद नाराज हैं। तुलसी सिलावट और प्रमोद टंडन को छोड़ दिया जाए, तो इंदौर के सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं ने तलवार की धार तेज कर ली! ये नेता लम्बे समय तक अपनी उपेक्षा को शायद भूल नहीं पाएंगे! जब भी मौका मिलेगा इसका बदला निकाला जा सकता है। एक गौर करने वाली बात ये भी है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ इंदौर की सांसद और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और महापौर शालिनी गौड़ दिखाई देना! इन दोनों का मैच देखने आना कोई शासकीय मजबूरी हो सकती है! पर, कयास लगाने वालों ने इसे भी कैलाश विजयवर्गीय विरोधी राजनीति का एक हिस्सा ही बताया है।     
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(लेखक 'सुबह सवेरे' के राजनीतिक संपादक हैं)

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