Friday, October 2, 2015

प्रदेश कांग्रेसियों में अपराजय 'दिग्विजय'



- हेमंत पाल 

   किसी नेता को जब पार्टी के बाहर और भीतर की राजनीति को सही तरीके से सम्भालना आए, तभी उसे 'दिग्विजय' नेता कहा जाता है! इस मायने में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को सबसे सही नेता कहा जा सकता है, जिनका पार्टी में जलवा बरक़रार है। वे असल में राजा हैं! व्यवहार से भी और कार्यप्रणाली से भी! प्रदेश में कांग्रेस के लिए वे ही खेवनहार बन सकते हैं। विवादों को सीने पर झेलना और फिर उन्हें फ़ुटबाल की मानिंद उछाल देना, ये सिर्फ दिग्विजय सिंह लिए ही संभव है। यही है असल 56 इंच का सीना! वे जो भी बात कहते हैं, उसमें न तो लाग-लपेट या दुराव-छुपाओ नहीं होता! राजनीति में ये बिरला ही उदहारण है कि कोई नेता पार्टी का समर्थन और जनता का साथ होने के बावजूद 10 साल लिए स्वतः वनवास ले ले! इसके बाद जब लौटे तो पूरे दम ख़म के साथ!  
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   मध्यप्रदेश में कांग्रेस की राजनीति दिग्विजय सिंह के आसपास ही घूमती है। कभी उनके समर्थन में तो कभी विरोध में! 12 साल पहले तक जिस दिग्गी राजा की प्रदेश में तूती बोलती थी, अब कांग्रेस की राजनीति उनके विरोध और समर्थन पर आकर सिमट गई है। कांग्रेस के इस नेता की सबसे बड़ी खासियत ये है कि आप उसका विरोध कर सकते हो, उनको अनदेखा कर सकते हो, पर उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते! मध्यप्रदेश में उनकी सत्ता को गए 12 गए, पर आज भी वे ख़बरों की सुर्खियां बने रहते हैं! इन दिनों वे फिर चर्चा में हैं! कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी को लेकर उभरे मतभेद और प्रदेश में पार्टी खस्ता हालत के वक़्त में वे ही उम्मीद की किरण बने हुए हैं। 
   दिग्विजय सिंह की छवि पार्टी के बाकी नेताओं से कुछ अलग है। कांग्रेस के कुछ नेता उन्हें प्रदेश में कांग्रेस के बंटाधार का अकेला दोषी मानते हैं। उनका कहना है कि अपने दस साल के कार्यकाल में दिग्गी राजा ने ऐसा कुछ नहीं किया कि जनता उन्हें और कांग्रेस को फिर मौका दे! सड़क, बिजली और पानी ये तीनों ऐसे मामले हैं, जिन्हें लेकर दिग्विजय सिंह को कोसने वाले कम नहीं हैं! लेकिन, ये कहने और सोचने वाले भी कम नहीं हैं, जिन्हें आज भी मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह का कोई विकल्प नजर नहीं आता! ये कहने वाले भी सामने आने लगे हैं कि प्रदेश में कांग्रेस को फिर जीवन देना है, तो दिग्विजय सिंह को ही कमान सौंपना पड़ेगी! इसलिए कि कांग्रेस में उन्हें अकेला ऐसा नेता माना जाता है, जो जमीन से जुड़े हैं और प्रदेशभर में सैकड़ों कार्यकर्ताओं को उनके नाम से जानते हैं। ये उनकी ऐसी खासियत है जिसका हर कोई लोहा मानता है! आज शायद ही प्रदेश में ऐसा कोई नेता नहीं होगा, जो पार्टी कार्यकर्ताओं को नाम से पुकारता हो और जिसकी एक आवाज पर भीड़ जमा हो जाती है। 
 सार्वजनिक रूप से भाजपा के नेता दिग्विजय सिंह बारे में कोई भी टिप्पणी करते हों, पर भाजपा यदि कांग्रेस के किसी नेता से भयभीत होती है, तो वो दिग्गी राजा हैं! उसके बयानों को लेकर अकसर सवाल किए जाते हैं। लेकिन, शायद किसी को याद नहीं होगा कि दिग्विजय सिंह अपने किसी बयान से कभी पलटे हों, या बयान के पक्ष में सबूत देने में आनाकानी की हो! कांग्रेस में ऐसे बड़े नेताओं की बहुत कमी है, जो खुलकर भाजपा और संघ पर हमले करते हों! दिग्विजय सिंह पार्टी की इस कमी को पूरा करते हैं। शायद यही कारण है कि कांग्रेस उनके खिलाफ उठने वाली लहरों से किनारा कर लेती है। जब वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने कहा था कि आतंकवादी घटनाओं में आरएसएस से जुड़े लोग शामिल हैं! तब उनके इस बयान की जमकर आलोचना हुई! पर, दिग्विजय सिंह अपने इस आरोप पर लगातार कायम रहे! इसके अलावा मुंबई हमले में पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे के मामले में भी उन्होंने कहा था कि मुझे करकरे ने फोन करके आरएसएस के कुछ लोगों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने की जानकारी दी थी! बाद में कॉल डिटेल देकर उन लोगों के मुँह बंद कर दिए थे, जो इसे कोरी गप्प बता रहे थे। दिल्ली के 'बाटला हाउस' मामले में भी दिग्विजय सिंह आखरी तक अपनी बात पर अड़े रहे कि ये एनकाउंटर है। तात्पर्य ये कि आज कांग्रेस में ऐसा कौनसा नेता है, जिसका होमवर्क और संपर्कों का दायरा और बयानों के पक्ष में तथ्य जुटाने का काम परफेक्ट हो!
   उनके निशाने पर हमेशा भाजपा और संघ रहे हैं, इस बात से इंकार नहीं! लेकिन, दिग्विजय सिंह ने कई बार अपनी ही पार्टी के नेताओं को भी कटघरे में खड़ा करने से गुरेज नहीं किया! याद कीजिए, जब कांग्रेस शासन के दौरान नक्सली समस्या उन्होंने अपनी ही सरकार के गृहमंत्री पी चिदम्बरम के विचारों पर अपना पक्ष एक अखबार में लिखकर ख़ारिज किया था! दिग्विजय अपने बयानों को लेकर कभी माफ़ी की मुद्रा में आए हों, ऐसा भी नजर नहीं आया! कई बार लोगों को लगता भी है कि कांग्रेस हाईकमान ने दिग्विजय सिंह को इतनी छूट कैसे दे रखी है कि वे बयानों के तीर से किसी का भी शिकार कर देते हैं! इस पर भी पार्टी कभी कुछ नहीं बोलती! यहाँ तक कि पार्टी उनके बयानों से पल्ला भी नहीं झाड़ती? दरअसल, दिग्विजय सिंह की सबसे बड़ी ताक़त भी यही है कि वे अपनी ही पार्टी और विपक्ष आँख में किरकिरी बने रहते हैं! 
    दिग्विजय सिंह पार्टी के प्रवक्ता नहीं महासचिव हैं। पर वे जिस तरह कांग्रेस के प्रवक्ता की तरह विपक्ष पर प्रहार करते हैं, विपक्ष के पास तिलमिलाने के अलावा और कुछ नहीं रहता! उनके पास प्रभार तो कर्नाटक और कुछ अन्य राज्यों का है, पर उनका निशाना हमेशा ही मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार, आरएसएस और हिन्दू कट्टरपंथी नेता रहे हैं। वे जिस तरह हर मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और संघ, भाजपा पर तीखे हमले करते हैं! भाजपा और संघ को जवाब देना मुश्किल हो जाता है। कई बार कांग्रेस ने उनके बयानों से किनारा भी किया! पर, बयानबाजी पर अंकुश कभी नहीं लगाया! इसलिए भी कि आज पार्टी में कोई प्रवक्ता या नेता नहीं है जो तरह के तथ्यात्मक बयान देने की हिम्मत रखता हो! उन्होंने जो कहा उसपर आखरी तक अड़े भी रहे। 
  कांग्रेस फोरम में भी दिग्विजय सिंह ने अपनी बात को हमेशा दमदारी से ही रखा है। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की सबसे पहली वकालत करने वाले दिग्विजय सिंह ही तो थे। इसके बाद ही ये माना जाने लगा था कि इस बयान के पीछे उनकी मंशा कितनी गहरी है! क्योँकि, राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के सुझाव का विरोध तो कोई कर नहीं सकता था! अलबत्ता, पार्टी में उनके विरोधियों ने दिग्विजय सिंह पर छुपकर तीर चलाने से किनारा जरूर कर लिया! इसके साथ ही दिग्विजय सिंह राहुल गांधी के अघोषित सलाहकार भी माने जाने लगे! 
   कांग्रेस में दिग्विजय विरोधियों की कमी नहीं है। 2003 में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस हारी थी, इस नेता खिलाफ पार्टी के भीतर जमकर विषवमन हुआ! वो ऐसा वक़्त था, जब दिग्विजय सिंह लम्बे समय तक खामोश रहे और दस साल तक खुद को मध्यप्रदेश की राजनीति से अलग कर लिया! आज ये राजनीतिक विश्लेषण का विषय हो सकता है कि दिग्विजय सिंह का वो फैसला सही था या गलत? लेकिन, ये एक तरह से पार्टी के उन नेताओं के लिए चुनौती भी थी, कि मध्यप्रदेश का मैदान खुला पड़ा है, चाहो तो कब्ज़ा कर सकते हो! पर, कोई सामने नहीं आया! यही स्थिति आज भी है। बाद के दो विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कई प्रयोग कर लिए, कोई फ़ायदा नहीं हुआ! चाहे सुरेश पचौरी हों, कमलनाथ हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी ने भी कोई ऐसा काम नहीं किया कि भाजपा को बैकफुट पर आने के लिए मजबूर होना पड़ा हो! जबकि, इनमे से कोई भी नेता दिग्विजय सिंह से कमजोर नहीं है! फिर भी कोई प्रदेश में अपना प्रभाव बना सकने में कामयाब नहीं हुआ! एक ख़ास बात ये भी है कि दिग्विजय सिंह ने कभी पार्टी विरोधियों पर पलटवार नहीं किया! ऐसे मौके भी आए तो वे सामने नहीं आए!  
   आज, जबकि प्रदेश में कांग्रेस के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है, सभी की उम्मीदों की आखिरी किरण दिग्विजय सिंह ही हैं। लेकिन, ये फैसला कांग्रेस हाईकमान को ही करना है कि प्रदेश में सुप्तावस्था में पड़ी पार्टी को संजीवनी देने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह को सौंपी जाती है, या फिर कोई नया प्रयोग किया जाता है। क्योंकि, अब वो वक़्त आ गया है, जब कांग्रेस को कोई फैसला करना ही होगा कि प्रदेश में पार्टी की भूमिका कौन तय करे? दिग्विजय सिंह या फिर कोई और?
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