Thursday, October 29, 2015

पेटलावद हादसे के बाद भी भाजपा का पलड़ा भारी!



रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव
   
रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव और देवास विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के सामने खुद को स्थापित आदिवासी नेता साबित करने की चुनौती है। जबकि, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को झाबुआ में एक बार फिर भाजपा की पकड़ साबित करना है। यहाँ भाजपा की संभावित उम्मीदवार निर्मला भूरिया को मुख्यमंत्री की इसी छवि का फ़ायदा मिलने का भरोसा है। पेटलावद हादसे के बाद शिवराज सिंह ने जो सक्रियता और संवेदनशीलता दिखाई उससे भाजपा के पक्ष में पलड़ा झुकता दिखाई दे रहा है। इसके अलावा देशभर में चर्चित व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच के बाद यह पहला चुनाव है, जिससे व्यापमं घोटाले के असर का अनुमान लगाया जा सकेगा! मध्यप्रदेश के सबसे चर्चित व्यापमं घोटाले का सबसे ज्यादा असर भी इस क्षेत्र में हैं। उधर, देवास विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा में परिवारवाद खिलाफ शरद पाचुनकर के विद्रोह की आशंका से नए समीकरण बनने के आसार दिखाई दे रहे हैं।  
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 - हेमंत पाल 
 सांसद दिलीपसिंह भूरिया के निधन के बाद से ही रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट के उपचुनाव की हलचल है। चुनाव की औपचारिक घोषणा के बाद अब ये हलचल जंग में तब्दील हो जाएगी! दोनों ही बड़े दलों ने अपनी चुनावी तैयारियों के लिए ताल ठोंक ली है। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया ने तो जनसम्पर्क एक एक दौर भी पूरा कर लिया! जबकि, ये नितांत भी सच है कि भाजपा के पास डंके की चोट पर ये चुनाव जीत सकने वाला ताकतवर दावेदार नहीं है। भाजपा अपने संगठन और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के दम पर ही चुनाव जीतने का दावा कर सकती है। यही कर भी रही है। जबकि, कांग्रेस के पास भी एक ही उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के अलावा कोई और नाम नहीं है। केंद्र में मंत्री रह चुके कांतिलाल पिछला चुनाव हार चुके हैं! पर, कांग्रेस की मजबूरी है कि इस आदिवासी इलाके में उसके पास और कोई ऐसा नेता नहीं है, जिसकी पूरे इलाके में पकड़ हो! भाजपा की तरफ से दिलीपसिंह भूरिया की पुत्री और विधायक निर्मला भूरिया ही सबसे प्रमुख दावेदार दिखाई दे रही है। पेटलावद हादसे के बाद शिवराज सरकार ने जो काम किए उससे भाजपा की पकड़ इस सीट पर और ज्यादा मजबूत हुई है। 
  भाजपा के पास निर्मला भूरिया को उम्मीदवार बनाना एक तरह से फायदे का सौदा है। इसके पीछे कई राजनीतिक और सामाजिक कारण भी हैं! जैसे स्व. दिलीपसिंह भूरिया को श्रद्धांजलि के रूप मे वोट मांगे जा सकेंगे। निर्मला पांच बार की विधायक हैं और पिता के कारण उनका नाम लोकसभा के हर इलाके में परिचित करवाने में दिक्कत भी नहीं आएगी! निर्मला भी उसी भील जनजाति की हैं, जिससे कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया आते हैं।
   शिवराज अपने हर दौरे मे निर्मला भूरिया को साथ में लेकर घूमते हैं, और स्व. दिलीपसिंह की बेटी के रूप मे परिचय भी करवाते रहे। राखी से पहले पेटलावद मे शिवराज ने निर्मला से राखी बंधाई, जिससे यह साफ  हुआ कि अब भाई बनकर निर्मला के लिए वोट मांगेंगे। ताजा हालात के मुताबिक झाबुआ और आलीराजपुर जिले मे कांग्रेस कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। जबकि, झाबुआ विधानसभा में भाजपा बेहद कमजोर है। पेटलावद में भी मुकाबला करीब बराबरी का ही है। यही हाल थादंला में भी है। संसदीय क्षेत्र के तीसरे जिले रतलाम में कांग्रेस की हालत ख़राब है। रतलाम की दोनों विधानसभाओं शहर और ग्रामीण में भाजपा प्रतिद्वंदी कांग्रेस से बहुत आगे है। यदि कांग्रेस रतलाम को सँभालने में कामयाब हुई, तो ये उपचुनाव बराबरी पर आ सकता है! 
  पेटलावद में हुए विस्फोटक कांड के बाद जिस तरह के हालात बने थे, एक बार ये लगा था कि भाजपा को इस घटना से बड़ा नुकसान हो सकता है! इसके दो बड़े कारण थे! एक तो यह कि जिस राजेंद्र कासवां को इस घटना का सबसे बड़ा दोषी माना जा रहा है, उसके बारे में ये कहा गया कि वो भाजपा से जुड़ा है। इस कारण एक बारगी लोगों में जमकर रोष भी उभरा! फिर, ये खबर भी जंगल में आग की तरह पसरी कि उसे किसी भाजपा नेता ने ही फरार होने में मदद की है। लेकिन, वक़्त के साथ ये बात दब गई! दूसरा बड़ा कारण ये था कि गांव के बीच इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक जमा था और प्रशासन को पता नहीं चला, ये कैसे संभव है! इसे लेकर भी लोग बेहद नाराज हैं! राजेंद्र काँसवा आज भी फरार है और बीच शहर में विस्फोटकों के जखीरे के लिए कौन से अधिकारी जिम्मेदार है, इन दोनों सवालों के जवाब आज भी  नहीं मिले हैं? पर, हादसे के बाद मुख्यमंत्री ने पेटलावद आकर स्थिति तरह काबू में किया, वो तारीफ़ के काबिल है! जिस गांव में करीब 100 लोग एक विस्फोट की घटना में मारे गए हों, वहां हालात को नियंत्रित करना आसान नहीं था! लेकिन, शिवराज सिंह अपनी सूझबूझ से लोगों को ये समझाने में कामयाब रहे, कि जो हुआ वो एक दुर्घटना थी! मुख्यमंत्री को अहसास हो गया था कि यदि स्थिति को तत्काल संभाला नहीं गया, तो इससे बड़ा राजनीतिक नुकसान हो सकता है! प्रभावितों को राहत, आर्थिक मदद और बीमा क्लैम के मामले निपटाने में सरकार ने जिस तरह की तत्परता दिखाई, उसके पीछे छुपे राजनीतिक कारणों को आसानी से समझा जा सकता है! 
   जहाँ तक राजनीतिक नुकसान-फायदे की बात है, कांग्रेस इस दुर्घटना को भी राजनीतिक नजरिए से भुना नहीं सकी! इलाके में इतना बड़ा हादसा हो गया और कांग्रेस सरकार और प्रशासन को ठीक से कटघरे में भी खड़ा नहीं कर सकी! प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और कांतिलाल भूरिया ने कोशिश तो की, पर वे अपनी रणनीति में सफल नहीं हो सके! प्रदेश सरकार के मदद के पैकेज और चुस्ती-फुर्ती के आगे कांग्रेस का विरोध का पैंतरा फीका पड़ गया! आश्चर्य नहीं कि इस घटना से भाजपा को फ़ायदा मिले और कांग्रेस पर उसकी निष्क्रियता भारी पड़ जाए! 
   जहाँ तक चुनावी आंकड़ेबाजी का सवाल है, 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के दिलीपसिंह भूरिया को 57,780 वोटों से हराया था। भाजपा उम्मीदवार दिलीपसिंह भूरिया को 2,51,255 वोट मिले थे! वहीं, कांतिलाल को 3,08,923 वोट! 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने दिलीपसिंह भूरिया और कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को चुनाव लड़ाया गया। इस चुनाव में दिलीपसिंह भूरिया ने 1 लाख 8447 वोटों से जीत हासिल की। कांग्रेस के कब्जे में रहने वाली यह लोकसभा सीट मोदी लहर में कारण पहली बार भाजपा के पास आई थी। 
   दिलीपसिंह भूरिया लंबे समय तक कांग्रेस से चुनाव लड़ते रहे है। कांग्रेस शासन काल में केन्द्रीय मंत्री भी रहे। एनडीए शासन काल में कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हुए और जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाए गए थे। 2005 में दिलीप सिंह भूरिया भाजपा का दामन छोडक़र अजय भारत पार्टी और गोंडवाना गणतंंत्र पार्टी में भी पदाधिकारी रहे। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की डूबती नैया देखकर वे एक बार फिर 2008 में भाजपा में शामिल हो गए थे। इस दौरान कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने इस क्षेत्र में मजबूत जनाधार तैयार कर लिया था। यह बात अलग है कि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के सामने कांतिलाल नहीं टिक सके थे। 
    इस बार रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया के सामने खुद को स्थापित और पकड़वाला आदिवासी नेता साबित करने की चुनौती है। जबकि, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने प्रदेशभर में अपने विजय रथ को आगे बढऩे की चुनौती है। देशभर में चर्चित व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच के बाद यह पहला चुनाव है, जिससे व्यापमं घोटाले के असर का अनुमान लगाया जा सकेगा! मध्यप्रदेश के सबसे चर्चित व्यापमं घोटाले का सबसे ज्यादा असर भी इस क्षेत्र में हैं। भाजपा यदि भूरिया की बेटी को टिकट देती है तो कुछ सहानुभूति वोट मिलने की संभावनाएं हैं, लेकिन ये सहानुभूति व्यापमं के असर को कितना कम कर पाएगी यह तो वक्त ही बताएगा! लोकसभा चुनाव के लगभग 22 माह बाद होने वाले इस चुनाव में राजनीतिक हालात भी बदले हैं। क्षेत्र में दिलीपसिंह भूरिया की निष्क्रियता से मतदाता और कार्यकर्ता काफी परेशान रहे है। समस्याओं के समाधान के लिए लोगों को बार-बार भोपाल के चक्कर लगाने पड़े है।
    भाजपा ने काफी पहले से अपने मतदाताओं को साधने के प्रयास हर स्तर पर तेज कर दिए हैं। पिछले दो माह से भाजपा ने इस क्षेत्र में संगठनात्मक आयोजनों का सिलसिला तेज कर दिया है। संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान एवं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी इस क्षेत्र के दौरे  किए है। झाबुआ की इस सीट पर खुद मुख्यमंत्री पैनी नजर बनाए हैं। इस सीट पर दो दर्जन से अधिक विधायकों को भाजपा ने तैनात किया है। बाद में तीन दर्जन विधायकों और आधा दर्जन मंत्रियों को भी यहां लगाया जाएगा। प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन सीट से जुड़े तीनों जिलों झाबुआ, आलीराजपुर और रतलाम की बैठकें ले चुके हैं। संगठन ने मुख्यमंत्री की सभाएं तीनों जिलों की सभी विधानसभाओं में कराने का प्लान तैयार किया है। झाबुआ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा कराए जाने की भी तैयारी है। हाल ही में कनकेश्वरी देवी की कथा के आयोजन ने भी भाजपा के एक्शन प्लान  मजबूती दी है। 
  कांग्रेस ने अभी कोई बड़ा आयोजन इस क्षेत्र में नहीं किया है। लेकिन, कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ने भी अपनी सक्रियता इस क्षेत्र में बढ़ा दी है। रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव के परिणाम भाजपा और कांग्रेस की भावी राजनीति के लिए महत्वपूर्ण होंगे। भाजपा की तैयारी और क्षेत्र में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की सक्रियता को देखते हुए कांग्रेस ने भी चुनाव का होमवर्क शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने अपने करीब दो दर्जन विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व सांसदों को यहां पर लगा दिया। इस टीम को कई जिम्मेदारी दी गई। पार्टी ने औपचारिक घोषणा तो नहीं की पर कांतिलाल भूरिया को उम्मीदवार बनाए जाने की लगभग हरी झंडी दे चुकी है। प्रत्याशी बनाए जाने का भरोसा मिलने ही भूरिया भी क्षेत्र में जनसम्पर्क करने में जुट गए हैं। 
देवास में भाजपा का परिवारवाद 
   देवास महाराजा स्व. तुकोजीराव पवार की मृत्यु के बाद देवास विधानसभा सीट के लिए भी रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव के साथ मतदान होना है। भाजपा ने यहाँ से स्व. पवार की पत्नी गायत्री राजे पवार के चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं। जबकि, कांग्रेस ने अभी तक उम्मीद्वार को लेकर पत्ते नहीं खोले! लेकिन, अब ये मुकाबला इसलिए दिलचस्प हो गया, क्योंकि यहाँ से मराठा सरदार और भाजपा के ही पूर्व नेता शरद पाचुनकर ने चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। पाचुनकर कहा कि वे वशंवाद और परिवारवाद का दंश देवास को नहीं झेलने देंगे। देवास इलाके के सभी भाजपा विधायक किसी न किसी परिवार की देन हैं। उन्होंने आरोप लगाया की पार्टी अपने सिद्धांतों पर नहीं चल रही। सोनकच्छ से भाजपा विधायक राजेंद्र वर्मा के पिता पूर्व सांसद रहे हैं। हाटपिपलिया से पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी वंशवाद की देन हैं। खातेगांव-कन्नोद से विधायक आशीष शर्मा के पिता भी भाजपा से जुड़े हैं। यह सब परिवारवाद ही तो है! पाचुनकर के चुनाव लड़ने की घोषणा से भाजपा की संभावित उम्मीदवार गायत्री राजे पवार की परेशानी बढ़ सकती हैं। उनका पुत्र हत्या के एक मामले में फरार है। ऐसे में मराठा सरदार का विरोध चुनाव में मुश्किलें पैदा कर सकता है। क्योंकि, पार्टी में गायत्री राजे को लेकर बहुमत जैसी स्थिति नहीं है। क्योंकि, वे पार्टी की प्राथमिक सदस्य भी नहीं है। जहाँ तक सहानुभूति की बात है तो अब देवास में फिलहाल ऐसा कोई माहौल नहीं है।  
   यहाँ कांग्रेस टिकट को लेकर दिग्गज नेताओं के कारण परेशान दिख रही है। प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव टिकट को लेकर कई बैठकें कर चुके हैं! लेकिन, तीन-चार नामों की दावेदारी के कारण टिकट को लेकर तकरार है। यहाँ दिग्विजय सिंह, कमलनाथ अपने अपने समर्थकों की उम्मीदवारी लेकर जोर लगा रहे हैं। ऐसी स्थिति में प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के लिए फैसला लेना मुश्किल है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि टिकट का अंतिम निर्णय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का होगा। लेकिन, इस कड़वे सच को भी स्वीकारना होगा कि देवास में कांग्रेस पूरी तरह मुकाबले से बाहर है। शरद पाचुनकर ने यदि भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ विरोध कर भी दिया, तो भी कांग्रेस इस विद्रोह से कोई फ़ायदा ले सकेगी, ऐसी उम्मीद नहीं है। 
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(लेखक 'सुबह सवेरे' के राजनीतिक संपादक हैं)
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