हेमंत पाल
सिनेमा की दुनिया में 'हिट' से बड़ी ख़ुशी और कोई नहीं होती! इस 'हिट' को स्थाई बनाने के लिए कई तरह प्रयास किए जाते हैं। दर्शकों को वही स्टोरी नए कलेवर में दिखाई जाती है या आगे बढ़ाकर परोसी जाती है! ये उसी फॉर्मूले को फिर से कैश करने का तरीका है। ये चलन नया भले दिखाई देता हो, पर है नहीं! जब से सिनेमा की शुरूआत हुई, तभी से फिल्मों के रीमेक और सीक्वल बन रहे हैं। लेकिन, पिछले दो दशकों से इस ट्रेंड ने ज्यादा जोर पकड़ा! ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से एक ही स्टोरी को फिर से बनाने या उसके आगे की कहानी रचकर उस पर फिल्म बनाई जाती रही है। 1913 में दादा साहब फाल्के ने ‘राजा हरिशचंद्र' बनाई थी। कुछ फिल्म इतिहासकारों का मानना है कि 1917 में इस फिल्म का इसी नाम से रीमेक बना था। 1928 में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास ‘देवदास‘ पर पहली बार नरेश मित्रा ने फिल्म बनाई। फिर इस पर 1935 में प्रथमेश बरूआ ने भी फिल्म बनाई। 1955 में बिमल रॉय ने एक बार फिर ‘देवदास' बनाई। इस फिल्म को नए तरीके से बनाने का सिलसिला थमा नहीं है। इस उपन्यास को अब तक करीब 11 बार बनाया जा चुका है। 2002 में संजय लीला भंसाली ने भी शाहरुख़ खान, माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या रॉय को लेकर बड़े केनवस पर ‘देवदास‘ बनाई! ‘देवदास' का मोह यही खत्म नहीं हुआ। अनुराग कश्यप ने ‘देवदास' को कुछ नए तरीके से 'देव-डी' के नाम से बनाया!
रीमेक तो दशकों से बनती रही हैं, पर सीक्वल का चलन ज्यादा पुराना नहीं है। कुछ निर्माताओं ने सीक्वेल बनाने की हिम्मत जुटाई! सन 1986 में रिलीज हुई ‘नगीना‘ का 1989 में ‘निगाहें‘ के नाम से सीक्वल बना। 1999 में आई ‘वास्तव‘ को 2002 में 'हथियार' नाम से बनाया गया! सीक्वल और रीमेक की बॉलीवुड में शुरू से ही दिखाई पड़ रहा है लेकिन पिछले दो दशकों में ये ट्रेंड हॉलीवुड से ज्यादा प्रभावित दिख रहा है। हॉलीवुड के दर्शक सीक्वल फिल्में देखने के आदी है। इसीलिए वहां सीक्वल और रीमेक फिल्में हिट भी होती है। हमारे यहाँ भी हॉलीवुड फिल्मों के सीक्वल दर्शकों ने पसंद किए। आज भी दर्शक सीक्वल और रीमेक के दर्शक दीवाने है! इसी का नजीता है ‘स्पाइडर मैन' के रीमेक और ट्विलाइट, फ़ास्ट एंड फ्यूरियस, हैरी पॉटर, लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स और जेम्स बॉन्ड सीरीज के सीक्वल ने भारत में खूब कमाई की। हॉलीवुड की इसी सफलता को बॉलीवुड भी भुनाना चाहता है। यही कारण है कि यहां सीक्वल और पुरानी फिल्मों के रीमेक लगातार बन रहे हैं! लेकिन, हर हिट फिल्म का सीक्वल या रीमेक भी दर्शक पसंद करें, ये जरुरी नहीं!
'जंजीर' जैसी मशहूर फिल्म का रीमेक बना तो पर बुरी तरह फ्लॉप हुआ! 'शोले' का रीमेक 'रामगोपाल वर्मा की आग' का रीमेक भी दर्शकों के गले नहीं उतरा! साउथ की फिल्मों से प्रेरित होकर वहाँ की कई फिल्मों के रीमेक बन रहे है। प्रकाश झा की फिल्म ‘सत्याग्रह‘ को साउथ में बनाया गया। बॉलीवुड में साउथ के सिनेमा के अलावा मराठी, बंगाली और अन्य भाषा की फिल्मों के रीमेक बनाने का ट्रेंड है। दर्शक भी रीमेक और सीक्वल फिल्मों को खूब पसंद करते हैं, इसलिए रीमेक और सीक्वल के ट्रेंड को आगे बढ़ने में मदद मिल रही है। वहीं आलोचक भी इस ट्रेंड को बहुत बुरा नहीं मान रहें।
इंद्र कुमार 1990 में आई फिल्म ‘दिल’ का सीक्वल बना रहे हैं। जब पहली बार 'हेरा फेरी' आई तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह इतनी बड़ी हिट होगी! एक दशक बाद फिल्म का सीक्वल आने वाला है। 'अंदाज अंदाज अपना' के सीक्वल के बाद अब 'हीरो नं 1' और 'बड़े मिया छोटे मियां' का भी सिक्वेल बनने की तैयारी है।
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सिनेमा की दुनिया में 'हिट' से बड़ी ख़ुशी और कोई नहीं होती! इस 'हिट' को स्थाई बनाने के लिए कई तरह प्रयास किए जाते हैं। दर्शकों को वही स्टोरी नए कलेवर में दिखाई जाती है या आगे बढ़ाकर परोसी जाती है! ये उसी फॉर्मूले को फिर से कैश करने का तरीका है। ये चलन नया भले दिखाई देता हो, पर है नहीं! जब से सिनेमा की शुरूआत हुई, तभी से फिल्मों के रीमेक और सीक्वल बन रहे हैं। लेकिन, पिछले दो दशकों से इस ट्रेंड ने ज्यादा जोर पकड़ा! ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से एक ही स्टोरी को फिर से बनाने या उसके आगे की कहानी रचकर उस पर फिल्म बनाई जाती रही है। 1913 में दादा साहब फाल्के ने ‘राजा हरिशचंद्र' बनाई थी। कुछ फिल्म इतिहासकारों का मानना है कि 1917 में इस फिल्म का इसी नाम से रीमेक बना था। 1928 में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास ‘देवदास‘ पर पहली बार नरेश मित्रा ने फिल्म बनाई। फिर इस पर 1935 में प्रथमेश बरूआ ने भी फिल्म बनाई। 1955 में बिमल रॉय ने एक बार फिर ‘देवदास' बनाई। इस फिल्म को नए तरीके से बनाने का सिलसिला थमा नहीं है। इस उपन्यास को अब तक करीब 11 बार बनाया जा चुका है। 2002 में संजय लीला भंसाली ने भी शाहरुख़ खान, माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या रॉय को लेकर बड़े केनवस पर ‘देवदास‘ बनाई! ‘देवदास' का मोह यही खत्म नहीं हुआ। अनुराग कश्यप ने ‘देवदास' को कुछ नए तरीके से 'देव-डी' के नाम से बनाया!
रीमेक तो दशकों से बनती रही हैं, पर सीक्वल का चलन ज्यादा पुराना नहीं है। कुछ निर्माताओं ने सीक्वेल बनाने की हिम्मत जुटाई! सन 1986 में रिलीज हुई ‘नगीना‘ का 1989 में ‘निगाहें‘ के नाम से सीक्वल बना। 1999 में आई ‘वास्तव‘ को 2002 में 'हथियार' नाम से बनाया गया! सीक्वल और रीमेक की बॉलीवुड में शुरू से ही दिखाई पड़ रहा है लेकिन पिछले दो दशकों में ये ट्रेंड हॉलीवुड से ज्यादा प्रभावित दिख रहा है। हॉलीवुड के दर्शक सीक्वल फिल्में देखने के आदी है। इसीलिए वहां सीक्वल और रीमेक फिल्में हिट भी होती है। हमारे यहाँ भी हॉलीवुड फिल्मों के सीक्वल दर्शकों ने पसंद किए। आज भी दर्शक सीक्वल और रीमेक के दर्शक दीवाने है! इसी का नजीता है ‘स्पाइडर मैन' के रीमेक और ट्विलाइट, फ़ास्ट एंड फ्यूरियस, हैरी पॉटर, लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स और जेम्स बॉन्ड सीरीज के सीक्वल ने भारत में खूब कमाई की। हॉलीवुड की इसी सफलता को बॉलीवुड भी भुनाना चाहता है। यही कारण है कि यहां सीक्वल और पुरानी फिल्मों के रीमेक लगातार बन रहे हैं! लेकिन, हर हिट फिल्म का सीक्वल या रीमेक भी दर्शक पसंद करें, ये जरुरी नहीं!
'जंजीर' जैसी मशहूर फिल्म का रीमेक बना तो पर बुरी तरह फ्लॉप हुआ! 'शोले' का रीमेक 'रामगोपाल वर्मा की आग' का रीमेक भी दर्शकों के गले नहीं उतरा! साउथ की फिल्मों से प्रेरित होकर वहाँ की कई फिल्मों के रीमेक बन रहे है। प्रकाश झा की फिल्म ‘सत्याग्रह‘ को साउथ में बनाया गया। बॉलीवुड में साउथ के सिनेमा के अलावा मराठी, बंगाली और अन्य भाषा की फिल्मों के रीमेक बनाने का ट्रेंड है। दर्शक भी रीमेक और सीक्वल फिल्मों को खूब पसंद करते हैं, इसलिए रीमेक और सीक्वल के ट्रेंड को आगे बढ़ने में मदद मिल रही है। वहीं आलोचक भी इस ट्रेंड को बहुत बुरा नहीं मान रहें।
इंद्र कुमार 1990 में आई फिल्म ‘दिल’ का सीक्वल बना रहे हैं। जब पहली बार 'हेरा फेरी' आई तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह इतनी बड़ी हिट होगी! एक दशक बाद फिल्म का सीक्वल आने वाला है। 'अंदाज अंदाज अपना' के सीक्वल के बाद अब 'हीरो नं 1' और 'बड़े मिया छोटे मियां' का भी सिक्वेल बनने की तैयारी है।
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