- हेमंत पाल
सरकार के फैसलों को नौकरशाही किस तरह धरातल पर उतारती है, इसका सबसे अच्छा उदाहरण है प्याज उपजाने वाले किसानों से प्याज की खरीदी और अब उसका निपटान! किसानों से 6 रुपए किलो पर 1 लाख 4 हजार क्विंटल प्याज खरीदने वाली सरकार अब उसी प्याज को खुली नीलामी में 2 रुपए किलो में बेचने पर आमादा है। अब कंट्रोल की दुकानों पर प्याज एक रुपए किलो में बेचने की कोशिश हो रही है। जून माह में सरकार ने जो प्याज खरीदी, इसमें से करीब 20 फीसदी से ज्यादा प्याज खराब हो गई! प्याज के परिवहन, गोदामों में रखरखाव करने पर सरकार को यह प्याज साढ़े 9 रुपए किलो में पड़ी! सरकारी एजेंसी 'मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) ने प्याज खरीदी के लिए बैंक से कर्ज भी लिया! इसका ब्याज उन्हें देना है। प्याज खरीदी में सरकार को करोड़ों रुपए का घाटा उठाना पड़ा! इसके बावजूद यदि किसान खुश नहीं हुए तो सरकार ने ये सारी कवायद किसके की? प्याज की बंपर पैदावार के बाद मई में थोक मंडियों में इस सब्जी के भाव इस कदर गिर गए थे कि किसानों के लिए खेती की लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा था। इस स्थिति से नाराज किसानों ने प्याज फेंकना शुरू कर दिए थे। इन घटनाओं के बाद प्रदेश सरकार ने पहल करते हुए किसानों से प्याज खरीदा था।
प्याज उत्पादक किसानों की मदद के लिए सरकार ने 6 रुपए किलो प्याज खरीदी की लोकलुभावन घोषणा की थी! किसानों को घाटे से बचाने के लिए सरकार ने 4 जून से 30 जून तक 6 रुपए किलो की दर पर 1,04,000 टन प्याज की खरीद की थी। सरकार का मकसद ठीक था। लेकिन, पर इस योजना का क्रियान्वयन करने में अफसरों ने भारी लापरवाही की! उन्होंने सिर्फ मुख्यमंत्री के एक लाइन के आदेश को सुना कि किसानों से 6 रुपए किलो में प्याज खरीदना है! इस प्याज को कब तक स्टॉक करना है? इसे कैसे रखा जाएगा? इस प्याज का निपटान किस तरह होगा? ये सब खरीदी के फैसले के साथ ही तय हो जाना था! पर, इस दिशा में न तो उस वक़्त सोचा गया और न बाद में कोई योजना बनाई गई! प्याज को कच्ची फसल माना जाता है, जिसका भंडारण आसान नहीं होता! लेकिन, अफसरों के पास कोई इस सोच को लेकर कोई प्लानिंग होगी, ऐसा नहीं लगा! क्योंकि, खरीदा गया करीब 20 फीसदी से ज्यादा प्याज बारिश में ख़राब हो गया!
मध्यप्रदेश में प्याज की कीमतें जब एक रुपए में 5 किलो तक आ गई थी, तब भी दिल्ली, चंडीगढ़ और उत्तरभारत के कई शहरों में प्यार 20 रुपए किलो के आसपास था! क्या सरकार के इन सलाहकार अफसरों को ये नहीं लगा कि ये प्याज वहाँ बिना लाभ-हानि के बेचने की कोशिश की जाए? माना कि सरकार मुनाफा कमाने के लिए व्यापारिक सोच नहीं रख सकती, पर इस तरह अपना मूलधन तो वापस पा ही सकती थी! किसानों से प्याज खरीदकर सड़ा देना तो और फिर आने-पौने दाम पर बेचने की जुगत समझदारी नहीं है! 'मार्कफेड' ने भी प्याज को ऐसे खरीदकर गोदामों में भर लिया जैसे गेहूं को किया जाता है। उसी का नतीजा है कि गीला प्याज फिर उग आया और सड़ गया! अब इस सड़े प्याज को ठिकाने लगाने के लिए सरकार को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। 'मार्कफेड' ने कलेक्टरों को इस काम में लगाया कि वे चाहें तो राशन की दुकानों पर यह प्याज दो-तीन रुपए किलो बेच दे। बाद में ये स्थिति एक रुपए किलो तक पहुँच गई! इसके अलावा इस प्याज को अनुसूचित जाति, जनजाति के विद्यार्थियों के होस्टल में और जेल में कैदियों की रसोई के लिए 4 रुपए किलो पर बेच गया! व्यापारियों को ये प्याज खुली नीलामी में थोक भाव में दो रुपए किलो में बेचा गया!
इस पूरी कवायद में सबसे बुरी स्थिति उन लोगों की हुई, जो राशन की सरकारी दुकान चलाते हैं। कलेक्टर के इशारे पर खाद्य विभाग के अफसरों ने इन दुकानदारों को परेशान करना शुरू कर दिया और जबरन सड़ी-गली प्याज खरीदने पर मजबूर किया। इन लोगों का तो प्याज ढुलाई का खर्च भी एक रुपए किलो प्याज में नहीं निकल पा रहा है। निष्कर्ष यही है कि सरकार के सामने जमा प्याज को ठिकाने लगाना आज सबसे बड़ा सरदर्द है। हर जिले में इस प्याज को ठिकाने लगाने के लिए अलग-अलग फॉर्मूले इस्तेमाल किए जा रहे हैं। प्याज का पाउडर बनाने वाली गुजरात की एक कंपनी भी सामने आई है। ये कंपनी तैयार खाद्य पदार्थों में डालने के लिए प्याज का पाउडर बनाती है। सरकार ने काफी कुछ प्याज तो इसी कंपनी को खपा दिया! इस कंपनी ने 4500 क्विंटल प्याज ढाई रुपए किलो में खरीदा है।
सरकार ने प्याज की खरीद 'मार्कफेड' के जरिए कराई थी। फिर प्याज की बिक्री का जिम्मा भी इसी एजेंसी को दिया गया है। 6 अगस्त तक चली इस बिक्री के लिए राज्यभर में 659 केंद्र बनाए गए थे। किसानों से खरीदे गए प्याज की नीलामी के लिए सरकार ने दो बार निविदा जारी की! दोनों बार नीलामी प्रक्रिया में 60 पैसे से लेकर तीन रुपए 16 पैसे तक की बोलियां लगाई गई! सरकार ने किसानों से खरीदे गए प्याज को बेचना शुरू करते हुए उम्मीद की थी कि इसमें से 90 फीसदी प्याज की खेप तो जल्दी बिक जाएगी! लेकिन, ऐसा हुआ नहीं! सोचा गया था कि अच्छी गुणवत्ता वाली जो प्याज बचेगी, उसका भंडारण कर लेंगे। इस प्याज को सितंबर में बेचा जाएगा! लेकिन, इस पूरी योजना में व्यवहारिकता का अभाव रहा! यदि वास्तव में अफसरों को प्याज को लेकर इतनी ही चिंता थी, तो प्याज को इतने दिन गोदामों में भरकर क्यों रखा गया?
गोदामों में सड़ रही प्याज बेचने के लिए कलेक्टरों ने भी अपनी मनमर्जी करने में कसर नहीं छोड़ी! खरगोन कलेक्टर अशोक कुमार वर्मा ने एक अजीब फरमान जारी किया! उन्होंने अफसरों और कर्मचारियों से कहा है कि जिले में हर कर्मचारी और अधिकारी कम से कम 50 किलो प्याज खरीदे! भंडारण केंद्रों में रखी गई प्याज खराब होने की दशा में इसे आश्रम, जेल, अस्पताल, एमडीएम केंद्रों के साथ-साथ उपभोक्ताओं और सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को भी प्याज खरीदने के लिए कहा गया! ताकि, प्याज खराब होने से पहले सरकारी पैसा निकल आए! 'मार्कफेड' ने खरगोन जिले में 18 हजार 443 क्विंटल प्याज खरीदे थे! करीब 1600 क्विंटल प्याज खराब होने के बाद उसे नष्ट कर दिया गया। 550 क्विंटल प्याज 4 रुपए किलो में बेच दिया गया! प्रशासन के पास जो 16 हजार क्विंटल प्याज बचा, उसी को बेचने के लिए कलेक्टर ने ये जद्दोजहद की! कर्मचारियों के सामने कलेक्टर के आदेश पर शहर से लगभग 3 किमी दूर वेयर हाउस से प्याज खरीदने की मज़बूरी भी रही! कर्मचारी खुलकर विरोध नहीं कर सकते, लेकिन उन्होंने दबी जुबान में इसे तुगलकी जरूर बताया! हालांकि, कलेक्टर का कहना है कि कर्मचारियों को प्याज खरीदने के लिए कोई बाध्यता नहीं थी! वे इच्छा से अपने उपयोग के लिए प्याज खरीद सकते हैं।
अतिउत्साह में खरीदा गया ये प्याज अब सरकार के गले पड़ गया है। किसानों को मदद देने के लिए की गई मुख्यमंत्री की घोषणा सरकार के खजाने को बड़ी चोट दे गई। जबकि, होना ये था कि प्याज खरीदी की योजना के साथ ही, इसके निपटान के इंतजाम किए जाना थे! यदि इस प्याज का भंडारण करना था तो उतनी क्षमता के शीतगृह भी होना चाहिए, जो नहीं हैं! फिलहाल प्रदेश में 212 शीत भंडार गृह हैं जिनकी मौजूदा क्षमता करीब 9.5 लाख टन है। सरकार अगले दो सालों में क्षमता बढ़ाकर 14.5 लाख टन पर पहुंचाना चाहती है। लेकिन, आज तो इसके अभाव को सरकार ने भोग ही लिया! किसानों से प्याज खरीदी और फिर इसका निपटान न हो पाना, ऐसी घटना है जिससे सम्बद्ध विभाग और अफसरों को सबक लेना चाहिए!
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