Friday, August 5, 2016

न निवेश बढ़ा न नौकरियां, फिर झूठ का किला क्यों?


हेमंत पाल 


   मध्यप्रदेश में उद्योगों का माहौल बना है। दुनियाभर के उद्योगपति मध्यप्रदेश की तरफ खिंचे चले आ रहे हैं। औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है। बेकार हाथों को काम मिल रहा है! बहुत जल्द प्रदेश में कोई भी बेरोजगार नहीं होगा! ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट ने प्रदेश में निवेश की संभावनाएं बढ़ा दी है। कई विदेशी उद्योगपतियों ने मध्यप्रदेश में अपनी इकाइयाँ लगाने में रूचि दिखाई! ये वो दावे हैं, जो प्रदेश सरकार हमेशा करती रही है। लेकिन, सच्चाई ये नहीं है। न तो उद्योग बढे, न नौकरियाँ, न औद्योगिक उत्पादन और न निवेश बढ़ा! जब उद्योग नहीं बढे तो नई नौकरियां बढ़ने का तो सवाल ही नहीं! बल्कि नौकरियां घटीं हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने भाषणों में यह कहना नहीं भूलते कि उन्होनें प्रदेश को बीमारु से तेजी से दौडते प्रदेश के रुप में खडा कर दिया! लेकिन, हकीकत इससे अलग है। भाषणों में मध्यप्रदेश जरुर तेजी से दौड रहा है, धरातल पर आज भी ये प्रदेश बीमारु राज्य की श्रेणी में खडा है। नौकरियों की कमी से सामाजिक व्यवस्थाएं भी गड़बड़ा रही हैं! बेरोजगार युवा आत्महत्या कर रहे हैं! मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में है, जहाँ सर्वाधिक युवा आत्महत्या करते हैं!
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     अग्रणी उद्यमियों के संगठन एसोसिएटेड चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्टीज ऑफ इंडिया (एसोचैम) की अध्ययन रिपोर्ट वित्त वर्ष 2015-16 के लिए 'एनालिसिस ऑफ मध्य प्रदेश' इकॉनोमी, इंफ्रास्ट्रक्च एण्ड इंवेस्टमेंट' (मध्य प्रदेश का विश्लेषण : अर्थव्यवस्था, मूलभूत ढांचा एवं निवेश) विषय पर अध्ययन किया। इस रिपोर्ट ने सरकार के भारी निवेश के दावों की असलियत सामने ला दी! 'एसोचैम' ने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की विदेश यात्राओं के बावजूद प्रदेश में निवेश नहीं बढ़ा! बल्कि 14 प्रतिशत घट गया! देश में मध्यप्रदेश का औद्योगिक योगदान का हिस्सा भी घट गया। आशय यह कि जो उद्योग चल रहे थे, वे भी धीरे-धीरे बंद होने लगे! 87 प्रतिशत निवेश भी अफसरशाही के जाल में फंसा है। जबकि, 44 हजार करोड़ रुपए की निवेश घोषणाएं ऐसी हैं जो सिर्फ घोषणा ही थीं। 'एसोचैम' के महासचिव डीएस रावत  मुताबिक यह रिपोर्ट राज्य सरकार के लिए आंखे खोलने का काम करेगी। सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करके नए प्रोजेक्ट को आकृष्ट कर सकती है।  
  सरकार कितने भी दावे करे, पर रिपोर्ट का सच यही है कि प्रदेश में पिछले एक दशक के दौरान नया निवेश घटा है! इसका असर ये हुआ कि उद्योगों में नौकरियां 25 फीसदी कम हो गई। जबकि, अभी तक सरकार कहती रही है कि प्रदेश में उद्योग बढ़ने के साथ ही नई नौकरियाँ भी बढ़ी है। इस बात पर विवाद हो सकता है कि वास्तव में सच क्या है? सरकार अभी तक जो कहती आई है, वो सच है या 'एसोचैम' की नई रिपोर्ट? इस बात से इंकार नहीं कि सरकार ने औद्योगिक निवेश बढ़ाने के लिए कई कोशिशें की है। सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके चार 'ग्लोबल इंवेस्टर समिट' आयोजित की! इस समिट से करीब 8.5 लाख करोड़ रुपए के निवेश के करार भी हुए! लेकिन, ये करार धरातल पर उतरे कि नहीं, ये बताने सामने कोई नहीं आया! इस बात का खुलासा 'एसोचैम' की रिपोर्ट ने किया है कि प्रदेश में पिछले वित्त वर्ष में नए निवेश केवल 53,076 करोड़ रुपए के ही हैं। इस निवेश में सरकारी क्षेत्र की हिस्सेदारी 74 फीसदी तक है। जबकि, रिपोर्ट से सामने आई असलियत के विपरीत हाल ही में प्रदेश में उद्योगों के विकास और विस्तार के लिए निर्मित वातावरण को बेहतर बनाने के लिए 9 नए औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करने का निर्णय लिया। नए औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना के लिए भूमि का निर्धारण  दिया गया! इस मकसद से खर्च की अनुमति भी दे दी गई। आशय यह कि सरकार रिपोर्ट पर कान धरने बजाए, वही सब करने में लगी है जिसके लिए उसे कटघरे में खड़ा किए जाने की कोशिशें की गईं! 
   'एसोचैम' के अध्ययन के मुताबिक भौतिक तथा सामाजिक ढांचे के अव्यवस्थित विकास की वजह से भागीदारी के मामले में निजी क्षेत्र की मध्यप्रदेश में दिलचस्पी घटी है। ये भी एक बड़ा कारण है कि मध्यप्रदेश में निवेश परिदृष्य की चमक फीकी पड़ी है। 'एसोचैम' का अनुमान कुछ हद तक सही भी है। प्रदेश के कई बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में आज तक मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। बिजली, पानी की समस्या तो बरसों से यथावत है। पीथमपुर जैसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र में गर्मी के दिनों में इसी साल कई औद्योगिक इकाइयों को पानी खरीदकर अपना काम चलना पड़ा! लेकिन, उद्योगपतियों सबसे बड़ी शिकायत पर्यावरण और प्रदूषण के नाम पर होने वाली ज्यादती से है। पीथमपुर के कई उद्योग हमेशा प्रदूषण निवारण की आपत्तियों से ही जूझते रहते हैं! एक तरफ जब सरकार नए उद्योगों को आकर्षित करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है, उन्हें प्रदूषण के नाम पर पर उलझाया जाता है। आश्चर्य है कि उद्योगों पर निरर्थक आपत्तियां लगाने वाले प्रदूषण बोर्ड अंकुश क्यों नहीं लगा पा रही?    
   औद्योगिक विकास और नई नौकरियों सरकार का यह झूठ प्रदेश को कई मोर्चों पर परेशान कर रहा है। औद्योगिक इकाइयों में घटती नौकरियों का सीधा असर लोगों के जीवन पर पड़ रहा है। महंगाई दौर में बढ़ती बेरोजगारी से लोग मानसिक रूप परेशान हो रहे हैं और मौत को गले लगा रहे हैं। यही कारण कि मध्य प्रदेश में बेरोजगारी, पारिवारिक परेशानियों, दिमागी बीमारियों के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हाल ही में स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) की ओर से जारी आत्महत्या के आंकड़ें किसी को भी हैरान कर सकते हैं। प्रदेश में हर साल 10,000 से ज्यादा लोग खुदकुशी कर रहे हैं। 2014 में बेरोजगारी के कारण 124 लोगों ने आत्महत्या की थी! 2015 में ये आँकड़ा बढ़कर 455 तक पहुँच गया। मध्यप्रदेश देश के 5 राज्यों में पांचवे स्थान पर है, जहाँ बेरोजगारी के कारण युवा सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक 2015 में 10293 लोगों ने विभिन्न कारणों से इहलीला समाप्त कर ली! इनमें सबसे ज्यादा इंदौर और उसके बाद रीवा का नंबर था। यदि वास्तव में प्रदेश में नौकरियों की इफरात होती तो बेरोजगारी के कारण युवा आत्महत्या नहीं करते!
  'एसोचैम' की इस बार की रिपोर्ट ही चौंकाने वाली है, ऐसा नहीं। पिछले साल (2014-2015) की 'बीमारू राज्यों' पर रिपोर्ट भी सरकार के दावों के अनुकूल नहीं रही थी! ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में मिले लाखों करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव के दम पर औद्योगिक विकास का दावा करती प्रदेश सरकार की वास्तविक स्थिति 'एसौचेम' की बीमारु राज्यों पर जारी रिपोर्ट से स्पष्ट हो गई थी। औद्योगिक विकास, सर्विस सेक्टर, घरेलू उत्पादन आदि श्रेणियों में मध्यप्रदेश बिहार से भी पिछड़ा है। 'एसोचैम' ने देश के बीमारु राज्यों की श्रेणी में शामिल मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के विकास पर यह रिपोर्ट तैयार की थी। साल 2004-05 से 2012-1013 के समयकाल में तैयार इस रिपोर्ट में प्रदेश की औद्योगिक विकास दर 9 फीसदी रही! वहीं इस दौरान बिहार में उद्योगों का विकास 14 फीसदी की दर से हुआ। इस दौरान मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान मात्र एक फीसदी बढ़कर 28 फीसदी हुआ! 'एसोचैम' द्वारा 2014 में किए गए अध्ययन में भी पता चला था कि प्रदेश में साल 2012-2013 में हुए निवेश की तुलना में 83 प्रतिशत की गिरावट आई। 'एसोचैम' के इकोनॉमिक रिसर्च ब्यूरो (आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो) द्वारा कराए गए इस अध्ययन में बीते वर्ष निवेश में गिरावट का भी खुलासा हुआ था। लगातार तीन साल के इस खुलासे के बाद भी सरकार दावा करे कि मध्यप्रदेश में औद्योगिक क्रांति आ रही है और नई नौकरियों की बाढ़ आ गई, तो ये भरोसे लायक बात नहीं है। 
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