- हेमंत पाल
यदि किसी व्यक्ति से बहुत ज्यादा उम्मीदें कर ली जाए तो उससे उदासी भी उतनी ही ज्यादा होती है। भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत को भी उन लोगों में गिना जा सकता है, जिनसे पार्टी कार्यकर्ताओं ने बहुत ज्यादा अपेक्षाएं की थी! लेकिन, उन्हें निराशा ही हाथ लगी! पूर्ववर्ती संगठन महामंत्री अरविंद मेनन की अतिमहत्वाकांक्षा और अपना आदमीवाद की नीति से पार्टी का एक बड़ा धड़ा लंबे समय तक नाराज रहा! उनकी रवानगी बाद लगा था कि अब सत्ता और संगठन में अनुशासन भी आएगा और अमर्यादित व्यवहार की घटनाएं भी कम होगी। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ! सुहास भगत की ख़ामोशी और निष्क्रियता से पार्टी कार्यकर्ता निराश भी हैं और नाउम्मीद भी! कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी दस महीने बाद भी बनी हुई है और मेनन से जुड़े लोग आज भी बरक़रार हैं!
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में करीब दस महीने पहले बतौर संगठन महामंत्री सुहास भगत का आना सम्भवतः सबसे बड़ा उलटफेर था! अरविंद मेनन के कामकाज से असंतुष्ट और उपेक्षित नेताओं ने सुहास भगत से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाई थीं! उन्हें भरोसा था कि मेनन के कार्यकाल में उन्होंने जो उपेक्षा झेली है, नए संगठन महामंत्री उसे पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। लेकिन, जो वक़्त बीता है, उसमें तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया! सतह पर जो दिख रहा है उसका निष्कर्ष यही निकाला जा रहा है कि भगत कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे! यदि अरविंद मेनन की अतिसक्रियता और महत्वाकांक्षा उनकी प्रदेश से रवानगी का कारण बनी, तो सुहास भगत की खामोशी और निष्क्रियता से दिशा का निर्धारण होता दिखाई नहीं देता।
भाजपा में प्रदेश संग़ठन महामंत्री का पद राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण होता है! इस पद पर काबिज व्यक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी 'संघ' की तरफ से भाजपा में भेजा जाता है। वो निरपेक्ष भाव से प्रदेश सरकार और संगठन में समन्वय का काम करता है। इस पद की भूमिका निष्पक्ष अम्पायर जैसी होती है! तलवार की धार पर चलने जैसी ये जिम्मेदारी ही उसके अनुभव का निचोड़ होती है। ये जिम्मेदारी वाला काम होता, इसलिए 'संघ' अपने अनुशासित और गंभीर प्रचारकों को ही इस काम में लगाता है। आडंबर और दिखावे से हमेशा परहेज करने वाले 'संघ' ने सुहास भगत के लिए बकायदा पद ग्रहण समारोह किया, जो अमूमन नहीं होता। इसका संकेत ये समझा गया कि अरविंद मेनन को हटाए जाने को 'संघ' भी संदेश की तरह प्रचारित करना चाहता था! लेकिन, सवाल उठता है कि क्या भगत उन सारी उम्मीदों पर खरे उतरे? क्या आम कार्यकर्ता की उनतक पहुँच है? क्या उनकी रीति-नीति को पार्टी के लोग समझ पाए हैं? क्या उन्होंने उन खामियों को दूर करने कोशिश की, जो शिकायतें मेनन रही हैं? ऐसे और भी कई अनुत्तरित सवाल हैं जो भाजपा में अंदर ही अंदर खदबदा रहे हैं!
'संघ' के मध्यभारत प्रांत प्रचारक रहे सुहास भगत दस महीनों में अपनी नई जिम्मेदारियों पर उतना खरे शायद नहीं उतरे, जितना उनसे उम्मीद की गई थी! अरविंद मेनन को चुनाव मैनेजमेंट का जादूगर माना गया था! तो सुहास भगत के बारे में प्रचारित किया गया था कि वे बेहतरीन संगठक हैं! लेकिन, सार्वजनिक रूप से अभी तक भगत अनुभव की कहीं छाप नजर नहीं आई! संगठन महामंत्री बनाए जाने के बाद उनके बारे में जो कुछ कहा गया था, वे उतने सजग कहीं भी और कभी भी दिखाई नहीं दिए। कहा गया था कि वे लक्ष्य के प्रति बेहद गंभीर हैं। जो करना चाहते है, उसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करते हैं। लेकिन, न तो उनका सरकार पर कोई कन्ट्रोल दिखाई दिया न संगठन पर! भगत की खासियत बताई गई थी कि वे जमीन से जुड़े संघी हैं। उनके कार्यकाल में 'संघ' के अनुषांगिक संगठनों ने काफी उन्नति की! ग्रामीण इलाकों में संघ की विचारधारा फलीफूली, कॉलेज छात्रों के लिए 'संघ शिक्षा वर्ग' चला तथा कुटुम्ब प्रबंधन जैसे काम हुए। सुहास भगत प्रदेशभर के संघ कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क और सहज संवाद उनकी परिचित शैली है। लेकिन, फिलहाल वे जिस पद पर हैं, वहाँ उनकी चिर खामोशी ने सवाल खड़े कर दिए। अभी तक तो कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी ही बनी हुई है।
नए संग़ठन महामंत्री को जिम्मेदारी सौंपने के बाद चर्चाएं थीं कि सत्ता और संग़ठन में बहुत कुछ बदलाव आएगा। संभागीय संगठन मंत्रियों की कमान भी 'संघ' प्रचारकों को देने के आसार थे। लेकिन, चंद बदलाव के अलावा वे कोई बड़ा फेरबदल नहीं कर पाए। मेनन के उन फैसलों पर भी कान नहीं धरे गए, जिन्हें गलत समझा गया था। संगठन महामंत्री कार्यकर्ताओं की उम्मीदों के जिस शिखर पर विराजित थे, वो शिखर अब दरकने लगा है। समझा गया था कि उनके फैसले प्रदेश भाजपा की भावी दिशा और दशा तय करेंगे! लेकिन, उनकी खामोशी ने भविष्य पर पानी फेर दिया। सरकार के कई मंत्री और संगठन के पदाधिकारी खुलेआम बगावती सुर में बोलते रहते हैं! घपलों, घोटालों और अनुशासनहीनता मर्यादा लांघने लगी है! ऐसे में कैसे उम्मीद लगाई जाए कि इस सब पर काबू करने के लिए कोई तैनात है?
हाल ही में हुए भाजपा के अभ्यास वर्ग के बाद अनुमान लगाया गया था कि अब भाजपा के प्रदेश संगठन में संघ का सीधा दखल दिखाई देगा। पार्टी का चेहरा भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हों, और वे 'मिशन 2018' की अगुवाई करें! लेकिन, सत्ता और संगठन के बड़े पदों पर बैठे नेता और कार्यकर्ता को संगठन महामंत्री को भरोसे में लेकर फैसले लेना होंगे। जिस दायित्व के साथ सुहास भगत को पार्टी में भेजा था, अब वहां उनका दखल और दबाव देखने दोनों देखने को मिलेगा। किन्तु, ये महज भ्रम ही निकला! क्योंकि, लगा था कि इस अभ्यास वर्ग के जरिए भगत ने अपनी उपयोगिता साबित करने की कोशिश की थी। ये भी लगा था कि पार्टी पर उनकी पकड़ बनी है। फिर भी जो सामने आया वो निराशाजनक ही है। अभ्यास वर्ग में भी अनुशासनहीनता कम नहीं थी, पर उसकी अनदेखी की गई! नेता हो या कार्यकर्ता सत्ता के मद में जो मदमस्त हैं। अभ्यास वर्ग का कोई असर सत्ता या संगठन पर पड़ा होगा, ये अभी तक नजर नहीं आया! इसके पीछे सिर्फ एक कारण नजर आता है कि पार्टी में अनुशासनहीनता चरम पर है। प्रदेशभर में भाजपा कार्यकर्ता जिस तरह मर्यादा लांघ रहे हैं, कैसे उम्मीद की जाए कि इन्हें काबू करने के लिए संघ का कोई सख्त पदाधिकारी मौजूद है!
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