Sunday, February 5, 2017

सत्ता के सुविधाभोग से दूषित होती भाजपा

  मध्यप्रदेश में जबसे भाजपा ने सत्ता संभाली, पार्टी संगठन को सुविधाभोग की आदत लग गई! जिस संगठन का दायित्व सत्ता को बेलगाम होने से रोकना होता है, वही संगठन सत्ता की मलाई का भोग लगाने लगा। ये व्यवहार पार्टी के शीर्ष संगठन से लगाकर मध्यप्रदेश तक में नजर आ रहा है। अब पार्टी की बैठकें पांच सितारा सुविधाओं से ओतप्रोत होती है। पार्टी संगठन में संघ के सादगी वाले चरित्र का नामों-निशान नहीं बचा। एक झोले में दो जोड़ी कपडे रखकर जीवनभर अविवाहित रहकर संघ का काम करने वाले स्वयं सेवकों को भुला ही दिया गया। उनकी जगह कलफ वाले कड़क कुर्ते पायजामे और लेनिन की महंगी जैकेट ने ले ली। नेताओं का सिर्फ रहन सहन ही नहीं बदला, उनकी भाषा में भी कलफ लग गया। संगठन पर सत्ता का मद ऐसा चढ़ा कि सभी नेता मदमस्त हो गए। ये सत्ता के चुम्बक का असर है या कोई और कारण नहीं पता! लेकिन, लोगों की आँखों में सत्ता कि ये खुमारी अब खटकने लगी है।    

- हेमंत पाल 

  सत्ता पाने के बाद किसी राजनीतिक पार्टी का सोच, कार्यप्रणाली, रहन-सहन और व्यवहार किस तरह बदलता है भाजपा इसका सबसे सही उदाहरण है। बदलते दौर में सिर्फ पार्टी की विचारधारा ही नहीं बदली, सबकुछ बदलता नजर आ रहा है। सबसे ज्यादा बदले हैं, पार्टी के नेता! सत्ता का सुख कैसे भोगना है, ये उन्होंने अच्छी तरह सीख लिया। पार्टी की बैठकों का बदलता कलेवर भी उसी बदलती विचारधारा का संकेत है। बड़ी होटलों या रिसोर्ट में पार्टी की बैठकें होना या पांच सितारा संस्कृति का भोग राजनीति में नई बात नहीं है! नया तो ये है कि जो भाजपा हमेशा ही खुद को जमीन से जुडी पार्टी बताती आई है, ये पाखंड रचती आई है कि वो उन सारी बुराइयों से अलग है, जो राजनीति की गंदगी कही जाती है। पर, वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है! भाजपा उन सबसे कहीं ज्यादा सुविधाभोगी, पाखंडी और असंस्कारित पार्टी कही जा सकती है। संघ का वो कल्चर भी पार्टी से धीरे-धीरे विलग हो रहा है, जो कभी भाजपा पहचान रहा है! कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल जैसे नेता अब भाजपा में ढूंढने से नहीं मिलते! उनके पास पहनने के लिए दो धोती और दो कुर्ते होते थे! हाथ से कपडे धोते थे और बाहर जाते तो किसी भी कार्यकर्ता के यहाँ रुक जाते थे। आज तो भाजपा का चेहरा बने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रेसिंग सेन्स फैशन की दुनिया में डंका बजा रहा है! जब भाजपा की धारा ऊपर से ही पांच सितारा बनकर बह रही है, तो कैसे उम्मीद कि पार्टी के नीचे वाले नेता और कार्यकर्ता संस्कारित राजनीति करेंगे!  
    संघ से जुड़े कार्यकर्ताओं की विचारधारा के लिए प्राणोंत्सर्ग करने तक होती थी। ये कार्यकर्ता जब कहीं बाहर जाते तो स्थानीय कार्यकर्ता या फिर धर्मशाला में रुकते। अपनी थाली, लोटा और दो जोड़ी कपडे लेकर चलते थे, ताकि वे किसी पर बोझ न बने! सदविचार से रचे बसे ये लोग सिर्फ सादगी के साथ विचार फैलाते और संस्कृति की दुहाई देते। संघ की विचारधारा का प्रवाह फैलाने का उनका संघर्ष पैदल, बैलगाड़ी या फिर रेल के तीसरे दर्जे की यात्रा से चलता रहा। इसी सादगी के सहारे संघ की कोख से 'जनसंघ' ने जन्म लिया। इसके बाद साधारण लोगों की असाधारण क्षमता ने सत्ता का जो रास्ता दिखाया, उस पर आकर कुछ ही सालों में पूरी पार्टी भटक गई! दोने-पत्तल में कलेवा करने वाले पार्टी के नेता चाँदी की थाली में लंच लेने लगे। धर्मशाला में रात बिताने वाले स्टार होटलों में ठहरने लगे।  
  पिछले दिनों सागर में भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई। ये बैठक पूरी तरह पांच सितारा कल्चर से ओतप्रोत थी। इस बार ये बैठक एक आलीशान होटल में हुई। नेताओं को ठहरने के लिए 300 कमरे बुक थे! पार्टी के सत्ता में रहने पर संगठन किस तरह का सुख भोगता है, ये उसका सबसे सटीक उदाहरण है। जबकि, 15 साल पहले जब सागर में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, तब एक धर्मशाला को बैठक के लिए चुना गया था! बैठक में शामिल होने जो भी नेता आए थे, उन्हें भाजपा कार्यकर्ताओं के यहाँ रुकवाया गया था। आशय यह कि भाजपा कितनी भी सादगी की बात करे, पर जब सत्ता सुख भोगने का मौका आता है, तो कोई पीछे हटना नहीं चाहता! भाजपा जब भी सत्ता से बाहर होती है, आदर्शवाद की बात करती है। लेकिन, सत्ता में आने के बाद पार्टी के सुर, समझ और ज्ञान सबकुछ बदल जाता है।  
  नितिन गड़करी जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब उन्होंने पार्टी से सितारा संस्कृति को त्यागने की बात की थी! उनका सुझाव था कि पार्टी की बैठकों में पार्टी सादगी और संस्कृति झलकना चाहिए! इसके बाद भी भाजपा के सुविधाभोगी कल्चर में कोई अंतर नहीं आया! गडकरी ने पार्टी नेताओं को सीख दी थी कि राष्ट्रीय परिषद में शामिल होने वाले नेता पांच सितारा होटलों की बजाए तंबू में रुकें! वे संघ से आए थे, इसलिए वे भाजपा में संघ जैसी संस्कृति विकसित करना चाहते थे। लेकिन, आज भाजपा के जो नेता संघ से जुड़े हैं, वे भी सत्ता की चकाचौंध में आँखों पर पट्टी बांधकर घूम रहे हैं। यही कारण है कि संघ की नजरों में भाजपा का घटता जनाधार चिंता का विषय बन रहा है। आज संघ इस बात को लेकर चिंतित है कि क्या भाजपा रास्ता भटक गई है? संघ भाजपा में वही अनुशासन देखना चाहता है, जो स्वयंं सेवक में होता है। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। कार्यकर्ताओं को जनसेवा का पहाड़ा पढ़ाने वाले नेताओं को जब भी मौका मिलता है, वे सत्ता का दोहन करके सुविधाओं के मक्खन का भोग लगाने का मौका नहीं छोड़ते! ये बात सही है कि हर पार्टी का पहला मकसद सत्ता पाना होता है। लेकिन, सत्ता के सुख के साथ व्यवहारिक सादगी भी जरुरी है, जो भाजपा में कहीं नजर नहीं आती! गड़करी जब तक पार्टी अध्यक्ष रहे, वे संघ की भाषा बोलते रहें! लेकिन, ज्यादा दिन वे इस पर कायम नहीं रहे! क्योंकि, गडकरी खुद भी कारोबारी नेता हैं, वे अपनी जरुरत मुताबिक राजनीति में आए हैं। इसलिए जल्दी पार्टी के रंग में रंग गए!  
    बात सिर्फ भाजपा तक ही सीमित नहीं है। संघ की तरफ से चौकीदार बनकर भाजपा में आने वाले संगठन मंत्रियों ने भी मलाई खाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। जिलों और संभागों में तैनात संगठन मंत्रियों ने तो अपनी समानांतर सत्ता ही खड़ी कर ली! उन्हें जहाँ तैनात किया गया, वहाँ वे ठेकों और परमिटों की राजनीति में लिप्त हो गए। उन्होंने सुविधा के सारे संसाधन जुटा लिए। यहाँ तक की जमीनें खरीदने तक में देरी नहीं की! शिकायतों के बाद कुछ दागियों की साफ सफाई भी हुई, लेकिन पानी पूरी तरह शुद्ध हुआ होगा ये दावा कोई नहीं कर रहा। याद किया जाए तो सतना और कटनी के संगठन मंत्री को ऐसे ही आरोपों के बाद कार्यमुक्त किया था। संघ की पृष्ठभूमि से आए इन संगठन मंत्रियों पर अकसर सुविधाभोगी होने के आरोप लगते रहे हैं। इनकी कार्यकर्ताओं से दूरी के की भी शिकायतें भी पार्टी तक पहुँची हैं। इस प्रसंग का मतलब सिर्फ ये है कि भाजपा के सुविधाभोग ने संघ को दूषित करने में कसर नहीं छोड़ी!
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