Friday, February 24, 2017

तीन धाराओं से जनसैलाब बनने और बंटने का सबब

- हेमंत पाल

  गुटबाजी और कांग्रेस का चोली-दामन का साथ है। जब भी कांग्रेस मध्यप्रदेश में अपने प्रतिद्वंदी के खिलाफ कमर कसने की कोशिश करती है, पार्टी की सेना अपने तीन क्षत्रपों के पीछे कतारबद्ध हो जाती है। पार्टी का झंडा भले एक है, पर धाराएं तीन है। इस बार भी कांग्रेस इस सबसे मुक्त नहीं हो सकी! राजधानी में भाजपा सरकार के खिलाफ हुए पार्टी के प्रदर्शन के दौरान भी गुटबाजी उभरकर सामने आई! गुटबाजी को पाटने की कोशिशें भी हुई, पर नेताओं के बीच की दरार छुप नहीं पाई! चार साल बाद प्रदेश कांग्रेस ने पार्टी को भाजपा के खिलाफ एकजुट दिखाने के लिए कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित पार्टी के सभी बड़े नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश तो की! लेकिन, यहाँ भी सारा शक्ति प्रदर्शन गुटों में बंटकर रह गया। बैनर, पोस्टर और नारे भी कांग्रेस के बजाए नेताओं के नाम से लगे। तीन नेताओं की तीन धाराओं में बंटी पार्टी यदि एकजुट प्रयास करे, तो भाजपा को चुनौती देना मुश्किल नहीं है। लेकिन, ऐसा हो नहीं पा रहा! इस आंदोलन में पार्टी ने भीड़ तो जुटा ली, पर अपनी एकजुटता नहीं दिखा पाई, जिसकी सबसे ज्यादा जरुरत है!

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  मध्यप्रदेश में कांग्रेस तीन धाराओं में विभक्त है। नदियों की तरह ये तीन धाराएं दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जटाओं से निकलकर पूरे प्रदेश में बहती है। जब कभी पार्टी को जरुरत पड़ती है, ये धाराएं बहकर एक जगह इकठ्ठा हो जाती हैं और पार्टी का जनसैलाब बना देती है, जो कांग्रेस की ताकत के रूप में सामने आता है। भोपाल का आंदोलन भी इन धाराओं के कुछ समय के लिए एक होने का उदाहरण था। जिस दिन ये तीनों धाराएं कांगेस के झंडे के नीचे एक हो जाएंगी, किसी भी सरकार की जड़ों को उखाड़ना मुश्किल नहीं होगा! लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा! तीनों नेता पार्टी मंच पर तो कई बार साथ दिखे, इनके दल भी मिले पर दिल नहीं! कांग्रेस नेतृत्व भी इन तीनों को एक जाजम पर बैठा पाने में सफल नहीं हो पा रहा! राजधानी में भी नेताओं के साझा प्रयास से पार्टी ने एकजुटता का प्रदर्शन तो किया, पर जब तक ये तीन धाराएं एक-दूसरे में समाहित नहीं होंगी, डेढ़ दशक से जमी जड़ों को हिला पाना आसान नहीं है।     
   भोपाल में कांग्रेस के हल्लाबोल की शुरुआत भी इन नेताओं की आपसी गुटबाजी से हुई! प्रदेशभर से पार्टी कार्यकर्ताओं राजधानी लाने की तैयारी भी अलग-अलग की गई! सीधे से कहा जाए तो तैयारी में भी गुटीय राजनीति हावी रही। कार्यकर्ताओं को कांग्रेसी न मानकर कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह गुटों में बांटकर देखा गया! उसी नतीजा था कि आंदोलन के दौरान इन कार्यकर्ताओं ने भी अपने नेता के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई! सिंधिया और कमलनाथ के समर्थकों ने अपने नेता को बड़ा दिखाने के लिए उनके पक्ष में नारेबाजी करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। जो नारे पार्टी के लिए लगना थे, वे कमलनाथ और सिंधिया के जयकारे में लगे! इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस किस राह पर है और उसकी दिशा क्या है? दिल्ली से आए कुछ नेताओं ने कार्यकर्ताओं को किसी एक पक्ष में नारे लगाने से रोका भी! पर, तब तक इस जनसैलाब के दिलों में पड़ी दरार उभर चुकी थी। ऐसे में समझा जा सकता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव पर क्या बीती होगी! उनका आत्मविश्वास किस हद तक डोला होगा और इस सबसे क्या पार्टी की नींव मजबूत हुई होगी? 
  राजधानी में आंदोलन के लिए लगे बैनरों और पोस्टरों में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ छाए थे। अख़बारों में पार्टी आंदोलन का आह्वान करने के लिए जो विज्ञापन छपे वे भी पार्टी को कम, नेताओं का महिमा मंडन करते ज्यादा लगे! यही वो संकेत है, जो पार्टी की रणनीति और भविष्य संकेत है। तीन नेताओं की इस तिकड़ी में अबकी बार दिग्विजय सिंह खेमा कमजोर लगा। नारेबाजी में भी उनके समर्थकों की आवाज दबी रही! बैनरों, पोस्टरों में भी दिग्गी राजा का चेहरा नजर नहीं आया। प्रदेशभर से आने वाले कार्यकर्ताओं में भी वो लोग काम थे, जिन्हें दिग्विजय समर्थक माना जाता है। इस आंदोलन के दौरान हुई सभा में दिग्विजय सिंह का ये कहना 'हम सब एक साथ हैं। पार्टी के सभी नेता एकजुट हैं। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव और प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश जो आदेश देंगे, उसके लिए सभी उनके साथ खड़े हैं।' समझा जा सकता है कि पार्टी के बड़े नेता को ये संदेश देने जरुरत क्यों पड़ी? यह आंदोलन भाजपा सरकार के खिलाफ था या महज कांग्रेस की एकजुटता दिखाने के लिए, यही स्पष्ट नहीं हो पाया! ये सच भी जगजाहिर है कि मध्यप्रदेश में विपक्ष सिर्फ नाम लेवा है। कांग्रेस की स्थिति पूरी तरह निष्प्रभावी है। कांग्रेस के कार्यकर्ता भी स्वीकारने लगे हैं कि यदि भाजपा मुकाबले में उतरना है तो पार्टी को तत्काल नई मजबूती देने जरुरत है! लेकिन, क्या सिर्फ पार्टी अध्यक्ष बदलने से कांग्रेस में शक्ति का संचार हो जाएगा? इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास नहीं है!  
  आज पार्टी का एक बड़ा तबका पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने के पक्ष में हाथ खड़े किए है। लेकिन, कोई ये नहीं बता पा रहा कि उनके पास ऐसी क्या जादू की छड़ी है, जो वे पार्टी में जान फूंक देंगे? यदि वे वास्तव में ऐसा कर सकने में समर्थ हैं, तो पार्टी हित में वो सारे कदम आज भी उठाए जा सकते हैं! कमलनाथ शिवराज और उनकी सरकार की कथित कलाकारी को नहीं चलने देने का दावा कर रहे हैं! 2018 में उनकी सरकार को उखाड़ फैंकने की बात कर रहे हैं, तो अब तक उन्होंने कुछ किया क्यों नहीं? लेकिन, कमलनाथ ने एक बात अच्छी कही कि मैं अपने ग्रामीण इलाके के दस कांग्रेसी नेताओं को रोज फोन लगाता हूँ, ताकि उनसे जीवंत संपर्क बना रहे। क्योंकि, जब तक लोग पार्टी में अपनापन महसूस नहीं करेंगें, तब तक संभव नहीं कि संगठन मजबूत बने! हम अभी तक जो चुनाव हारे उसकी वजह है कि हम स्थानीय स्तर पर संगठित नहीं हो पाए। आज नए और पुराने दोनों ही तरह के पार्टी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की जरूरत है। यदि कमलनाथ के इस फॉर्मूले पर पार्टी चले तो चमत्कार हो सकता है!
  अभी तक ये माना जा रहा था कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में किसी चेहरे को सामने रखकर वोट मांगेगी! लेकिन, अब ये बात स्पष्ट हो गई कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला! गोवा, पंजाब और उत्तरप्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी पार्टी बिना चेहरे के चुनाव लड़ेगी। पार्टी का मानना है कि चुनाव में चेहरे की जरूरत नहीं होती, जनता का समर्थन चाहिए। फिलहाल पार्टी जिस स्थिति में है, उसे देखते हुए यदि कोई चेहरा सामने किया गया तो पार्टी की हालत और ज्यादा ख़राब हो जाएगी! इसलिए कि आज कांग्रेस को किसी चेहरे पर फोकस करने के बजाए तहसील, ब्लॉक और जिले स्तर पर संगठन को मजबूत करने की जरुरत ज्यादा है। भाजपा ने अपने 13-14 साल के शासन में कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान संगठन के स्तर पर ही पहुँचाया है। गाँव-गाँव में कमल छाप कांग्रेसी मौजूद हैं। पार्टी को सबसे पहले इन्हें पहचानना होगा, तभी किसी सार्थक नतीजे की उम्मीद की जा सकती है। भाजपा के खिलाफ कांग्रेस की इस कथित एकजुटता को अब नीचे तक ले जाना जरुरी है, तभी बदलाव  की जाना संभव है!  
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