- हेमंत पाल
इंदौर राजनीति के बहुचर्चित सुगनीदेवी जमीन गड़बड़ी मामले में हाईकोर्ट ने विधायक रमेश मेंदोला को आरोपमुक्त कर दिया। उनके राजनीतिक भविष्य के लिए संभवतः ये फैसला मील का पत्थर साबित हो! लेकिन, इस फैसले ने इंदौर की राजनीति को फिर उलझा दिया। अब मेंदोला उन सभी लांछनों से मुक्त हैं, जो उनके आड़े आ रहे थे। उनके पास मंत्री बनने की सभी काबलियतें हैं। विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल पुनर्गठन होने के आसार भी लग रहे हैं। ऐसे में इंदौर से किसी एक को शामिल किए जाने की बात आती है तो मेंदोला का पलड़ा भारी है। दूसरी बार विधायक का चुनाव भी वे प्रदेश में सर्वाधिक वोटों से जीते थे। अब या तो इंदौर से दो विधायकों को मंत्री बनाया जाएगा या फिर किसी को नहीं! मंत्रिमंडल के पिछले पुनर्गठन में मेंदोला को इसी आरोप में शामिल नहीं किया गया था कि उनके ऊपर लोकायुक्त का मामला चल रहा है।
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सुगनीदेवी कॉलेज के पास की जमीन की कथित अफरातफरी के मामले में लोकायुक्त पुलिस द्वारा आरोपी बनाए गए तत्कालीन पार्षद और मैयर इन कौंसिल के सदस्य रमेश मेंदोला को हाईकाेर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने उनकी पुनर्विचार याचिका पर आदेश देते हुए सिर्फ अकेले उन्हें ही इस केस से आरोपमुक्त किया है। बाकी आरोपियों के बारे में आदेश दिया कि वे फिर निचली अदालत में अपनी बात रखें। ट्रायल कोर्ट नए सिरे से उनका पक्ष सुने। ये तो था कानूनी पक्ष, लेकिन राजनीतिक रूप से रमेश मेंदोला की ताकत जिस तरह बढ़ी है, उसका असर इंदौर की राजनीति में आगे देखने को मिलेगा। कैलाश विजयवर्गीय के राजनीतिक विरोधी अब मेंदोला के कंधे पर बंदूक रखकर शायद नहीं चला सकेंगे।
इंदौर में भाजपा की राजनीति लम्बे आरसे से दो ध्रुवों पर केंद्रित है। एक ध्रुव है भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, दूसरी हैं लोकसभा अध्यक्ष सांसद सुमित्रा महाजन उर्फ़ ताई! पिछले साल जुलाई में जब मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया गया था, तब यहाँ से क्षेत्र क्रमांक एक के विधायक सुदर्शन गुप्ता का नाम मंत्रिमंडल तय था! उन्हें 'ताई' के कोटे से शामिल किया जाने वाला था। मुख्यमंत्री भी चाहते थे कि सुदर्शन को लाल बत्ती मिले। शपथ का उन्हें औपचारिक आमंत्रण भी मिला था। समर्थकों ने भारी माहौल बना दिया और मिठाइयां तक बनने लगी थी। लेकिन, शायद लालबत्ती उनकी किस्मत में नहीं थी! उनकी किस्मत ने दगा दे दिया! भोपाल से फोन भी आया और वे उत्साहित समर्थकों के साथ भोपाल रवाना भी हुए, पर लौटे तो खाली हाथ! जबकि, अभी तक देखा गया है कि जिस विधायक को शपथ के लिए बुलाया जाता है, वो शपथ लेकर बत्ती वाली गाड़ी में ही लौटता है! लेकिन, सुदर्शन गुप्ता के साथ ऐसा नहीं हुआ!
सुदर्शन का रास्ता कैलाश विजयवर्गीय ने काट दिया, ये सब जानते हैं! इंदौर के 'एक' और 'दो' नंबर की लड़ाई जगजाहिर है। कैलाश विजयवर्गीय का कहना था कि सुदर्शन गुप्ता को मंत्री बनाया जाना है तो रमेश मेंदोला को भी साथ में शामिल किया जाए। लेकिन, सुगनीदेवी मामले में लोकायुक्त प्रकरण में फंसे होने के कारण मेंदोला को मंत्रिमंडल में लिया जाना संभव नहीं था। ऐसे में सुदर्शन का पत्ता भी कट गया। अब, जबकि सुगनीदेवी मामले में मेंदोला सभी आरोपों से मुक्त हैं, उनका दावा फिर मजबूत है। वे दूसरी बार विधायक बने हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने प्रदेश में सर्वाधिक 90 हज़ार से ज्यादा वोटों से जीत हांसिल की थी। ऐसे में उनके दावे की अनदेखी की जाना मुश्किल होगा।
सुदर्शन का रास्ता कैलाश विजयवर्गीय ने काट दिया, ये सब जानते हैं! इंदौर के 'एक' और 'दो' नंबर की लड़ाई जगजाहिर है। कैलाश विजयवर्गीय का कहना था कि सुदर्शन गुप्ता को मंत्री बनाया जाना है तो रमेश मेंदोला को भी साथ में शामिल किया जाए। लेकिन, सुगनीदेवी मामले में लोकायुक्त प्रकरण में फंसे होने के कारण मेंदोला को मंत्रिमंडल में लिया जाना संभव नहीं था। ऐसे में सुदर्शन का पत्ता भी कट गया। अब, जबकि सुगनीदेवी मामले में मेंदोला सभी आरोपों से मुक्त हैं, उनका दावा फिर मजबूत है। वे दूसरी बार विधायक बने हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने प्रदेश में सर्वाधिक 90 हज़ार से ज्यादा वोटों से जीत हांसिल की थी। ऐसे में उनके दावे की अनदेखी की जाना मुश्किल होगा।
प्रदेश में 2013 जब तीसरी बार भाजपा की सरकार बनी, तब इंदौर से शपथ लेने वाले कैलाश विजयवर्गीय अकेले विधायक थे। लेकिन, पार्टी के केंद्रीय संगठन में शामिल किए जाने के बाद उन्होंने मंत्री पद छोड़ दिया! उसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि उनकी जगह क्षेत्र क्रमांक 2 के विधायक रमेश मेंदोला को दी जा सकती है! क्योंकि, वो उनके सबसे करीब हैं! लेकिन, जब मंत्रिमंडल में कुछ नए मंत्रियों को शामिल करने की बात चली संभावितों में मेंदोला का नाम कहीं नहीं था! इसके बाद तीन नाम हवा में थे सुदर्शन गुप्ता, महेंद्र हार्डिया और उषा ठाकुर! इंदौर में भाजपा की दूसरी बड़ी ताकत और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सुदर्शन के लिए पूरा जोर लगा दिया था! यहाँ तक कि मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर भी पक्ष में थे! जब किसी एक विधायक के लिए इतने दिग्गज लगे हों, तो शपथ में कोई शंका भी नहीं बचती! महेंद्र हार्डिया उर्फ़ 'बाबा' के पास दिग्गजों की ऐसी कोई ताकत तो नहीं थी, पर तीन बार की जीत और पिछले मंत्रिमंडल के अनुभव से उनका दावा भी मजबूत लग रहा था! उषा ठाकुर को ये भरोसा था कि यदि रमेश मेंदोला का नंबर कटा तो कैलाश विजयवर्गीय के खाते से उनको मंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता! लेकिन, ये सारे कयास हवा हो गए। उसके बाद जो हुआ वो किसी से छुपा नहीं है।
इंदौर की 8 में से 7 सीटों पर भाजपा विधायक हैं। लेकिन, सभी के बीच किसी न किसी मामले में मनमुटाव नजर आता है। सबसे ज्यादा आपसी कटुता सुदर्शन गुप्ता और रमेश मेंदोला में है। कई बार अपने समर्थकों को लेकर भी दोनों के बीच विवाद भी हुए! पर, कभी दोनों आमने-सामने आए हों, ऐसा नहीं हुआ! पिछले साल मंत्रिमंडल का पुनर्गठन पहला मौका था, जब दोनों के बीच इतनी ज्यादा रस्साकशी हुई! एक तरफ तरफ सुमित्रा महाजन विधायक सुदर्शन गुप्ता को मंत्री बनाने के लिए अडी थी, दूसरी तरफ कैलाश विजयवर्गीय उन्हें बनने नहीं देना चाहते थे। मुद्दा रमेश मेंदोला को मंत्री बनाने का था, पर वो कहीं पीछे ही रह गया! दोनों नेताओं की जिद के पीछे अपनी अलग-अलग वजह रही! महाजन नहीं चाहती थी कि उषा ठाकुर मंत्रिमंडल में शामिल हो! जबकि, विजयवर्गीय का कहना था कि सुदर्शन को छोड़कर किसी को भी मंत्री बना दिया जाए!
अब जो नही हालात बन रहे हैं वो पलड़ा रमेश मेंदोला की तरफ झुकता लग रहा है। हाईकोर्ट के हाल के फैसले ने उनको इंदौर में लालबत्ती का सबसे बड़ा दावेदार बना दिया। ऐसे में सुदर्शन गुप्ता के लिए ये संकट खड़ा हो गया कि वे किस ताकत का इस्तेमाल करें कि पार्टी उन्हें मेंदोला से ज्यादा जरुरी समझकर लाल बत्ती थमाए! ये संकट सिर्फ दावेदारों तक ही सीमित नहीं है। ऐसे में या तो इंदौर से मुख्यमंत्री को दो विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ेगा, या फिर किसी को भी जगह नहीं मिलेगी।
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