Saturday, April 29, 2017

मोहनखेड़ा में भाजपा ने खोया ज्यादा और पाया कुछ नहीं!

- हेमंत पाल 

भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति जैसी अहम बैठक हो जाए और कोई अमृत-कलश नहीं निकले, सामान्यतः ऐसा नहीं होता! लेकिन, यदि ऐसा हुआ है तो इसका सीधा सा मतलब है कि या तो विचारों को ठीक से मथा नहीं गया या फिर कोई आयोजन में कोई बड़ी खामी रह गई! धार जिले के मोहनखेड़ा में हुई दो दिन की कार्यसमिति की बैठक को कुछ इसी नजरिए से देखा जा सकता है। अनुमान था कि इस बैठक में आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कोई रणनीतिक चर्चा होगी! चुनाव को लेकर संगठन की जमीनी तैयारियाँ सामने आएँगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ! मुख्यमंत्री ने ज्यादातर वक़्त कांग्रेस और उसके बहाने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमले करने में बिताया। बैठक से नदारद मंत्रियों पर भी उनका गुस्सा बरसा! मुद्दे की बात ये कि कार्यसमिति के राजनीतिक प्रस्ताव का ड्राफ्ट बहुत हल्का नजर आया। बैठक के इस एकमात्र दस्तावेज में बहुत सी तथ्यात्मक भूलें थीं। इस प्रस्ताव के ड्राफ्ट को जिस गैरजिम्मेदाराना ढंग से तैयार किया गया, वो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।  
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  मोहनखेड़ा में हुई भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक से शायद पार्टी ने कुछ भी हांसिल नहीं किया! यदि कुछ उम्मीद की गई होंगी, तो नतीजा सिफर ही रहा। लेकिन, कई मामलों में ये बैठक खामियों भेंट जरूर चढ़ गई। बैठक में पेश किए गए राजनीतिक प्रस्ताव को देखकर नहीं लगता कि इसके लिए गंभीरता से कोई तैयारी की गई! इसमें कथ्य और तथ्य दोनों तरह की खामियाँ दिखाई दीं। कई बिंदू तो ऐसे हैं, जिनमें अधूरापन स्पष्ट नजर आया। इस दस्तावेज को सरकार की रीति नीति और संगठन की भावी तैयारियों के अनरूप नजर आना था, पर ये सरकारी प्रेस नोट से ज्यादा नहीं लगता! बैठक का ये अकेला दस्तावेज किसी भी द्रष्टिकोण से मुख्यमंत्री की घोषणाओं और मंशाओं को आधार बनाकर तैयार किया हुआ नहीं लगता!          
   इस राजनीतिक प्रस्ताव को जिस चलताऊ तरीके से बनाया गया है, वो प्रस्ताव की भाषा और आंकड़ों से साफ़ दिखाई भी देता है। पहले पन्ने पर मणिपुर में भाजपा की जीत का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि वहाँ भाजपा का वोट प्रतिशत 2 से बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया। ये आंकड़ा त्रुटिपूर्ण है। लगता है प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार करते समय तथ्यों को तलाशा तक नहीं गया! जबकि, पार्टी के मुखपत्र 'कमल संदेश' के मार्च अंक में ही दर्ज है कि 2012 के चुनाव में भाजपा को 2.12 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार वहां पार्टी को 36.3 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी की उपलब्धि को कार्यसमिति की बैठक में घटाकर दिखाना क्या सही है?
  राजनीतिक प्रस्ताव की प्रस्तावना में भी खामियाँ हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का उल्लेख करते हुए कहा गया कि पांच में से चार राज्यों में सरकार बनाने का जनादेश पाकर भारतीय जनता पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता गौरवान्वित महसूस कर रहा है! जबकि, ये बात किसी से छुपी नहीं है कि भाजपा को सिर्फ उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में ही पूर्ण बहुमत मिला है। गोवा और मणिपुर में भाजपा ने ताबड़तोड़ जोड़तोड़ करके सरकार बनाई है। राजनीतिक प्रस्ताव का मसौदा बनाने वाले पदाधिकारी क्या ये भी नहीं जानते कि जनादेश पाने और सरकार बना लेने में फर्क होता है। 'भाजपा के नेतृत्व और नीति के पक्ष में जनादेश' शीर्षक में नरेंद्र मोदी का गुणगान करते हुए लिखा गया है कि हर घर शौचालय जैसे कार्यक्रम से गरीबों के आर्थिक सशक्तिकरण को मजबूती मिली है। क्या पार्टी का कोई ज्ञानी ये बता सकता है कि किसी गरीब के घर में शौचालय बन जाने से उसका आर्थिक सशक्तिकरण कैसे होता है?  
 दस्तावेज में 'पॉलिथीन मुक्त प्रदेश' शीर्षक से दिए गए बिंदू को महज ढाई लाइन में निपटा दिया गया। देखा जाए तो ये एक गंभीर मसला है। प्रदेश में इसका हज़ारों करोड़ का कारोबार है। दो लाख से ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी इस कारोबार से जुड़ी है। पहली मई से प्रदेश में पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगा दिए जाने से बहुत कुछ बदलेगा! बेरोजगार हुए लोगों के लिए सरकार के पास क्या तैयारी है! इस बात पर चर्चा होना थी। पर, इसे सामान्य ढंग से निपटाया गया। क्या ये ऐसा मुद्दा नहीं है, जिस पर विचार विमर्श किया जाना था! पॉलीथिन पर प्रतिबंध का कारण पर्यावरण और जानवरों की सुरक्षा बताया गया। लेकिन, इसके अन्य प्रभावों की अनदेखी कर दी गई! क्या पॉलीथिन का कारोबार करने वाले इस प्रदेश के लोग नहीं हैं? गौर करने वाली एक बात यहाँ और भी है। 'कुष्ठ रोगियों की भलाई' शीर्षक में 108 परिवारों को पांच हज़ार रुपए महीने मदद देने का जिक्र है। ये आंकड़ा संदेह पैदा करता है। क्या सरकार को पूरे प्रदेश में सिर्फ इतने ही परिवार कुष्ठ पीड़ित मिले, जिन्हें मदद दी जाए?    
   प्रदेश की दो सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव का भी राजनीतिक प्रस्ताव में उल्लेख किया गया। लेकिन, यहाँ भी कथ्य में गलती कर दी गई! बांधवगढ़ में पार्टी को मिली 25 हज़ार की जीत पर खुद की पीठ थपथपा ली गई, पर अटेर की हार को सहानुभूति के खाते में डाल दिया गया। लेकिन, कांग्रेस की कथित सहानुभूति वाली जीत को हलका दिखाने के लिए ये जोड़ा गया कि जीत का अंतर 11 हज़ार से घटकर 857 रह गया! सवाल उठता है कि कांग्रेस उमीदवार के पक्ष में सहानुभूति लहर इतनी हल्की क्यों रही कि जीत 857 वोट से हुई? एक सवाल ये भी कि यदि सहानुभूति इतनी ही असरदार होती, तो झाबुआ-रतलाम लोकसभा उपचुनाव में भाजपा सांसद दिलीपसिंह भूरिया के निधन पर उनकी बेटी निर्मला भूरिया क्यों हारी?     
  मुख्यमंत्री अपनी पूरी 'नर्मदा सेवा यात्रा' के दौरान प्रदेश में पूरी तरह शराबबंदी किए जाने का नारा बुलंद करते रहे हैं। कैबिनेट की बैठक में फैसला लेकर राजमार्गों से शराब की दुकानें हटाई गईं। नर्मदा के दोनों किनारों से लगी शराब दुकानों को भी बंद कर दिया गया। लेकिन, इस बात को राजनीतिक प्रस्ताव में तवज्जो नहीं दी गई! बल्कि, 'नशा मुक्त मध्यप्रदेश' का जिक्र किया गया। क्या ये शराबबंदी से ध्यान हटाने के लिए किया गया? क्योंकि, शराबबंदी और नशामुक्ति में फर्क है। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए ये बात जोड़ दी गई कि शराबबंदी से पहले ये आवश्यक है कि इससे जुड़े सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक पक्षों के बारे में व्यापक अध्ययन हो, जो निर्णय लेने में सहायक हो! बेहतर होता की इस मसले पर खुली चर्चा होती! इससे ये संदेह उपजता है कि प्रदेश की सत्ता और संगठन में तालमेल का अभाव है। सरकार की मंशा को संगठन ठीक ढंग से समझा नहीं या न समझने का ढोंग किया! क्योंकि, सत्ता और संगठन में इतनी दूरी तो नहीं है कि पार्टी सरकार की भावनाओं को नजरअंदाज कर दे।  
  प्रदेश को लगातार 'कृषि कर्मण' पुरस्कार के लिए चुना जा रहा है। इस बार भी ये तमगा प्रदेश को मिला, पर कार्यसमिति में इस उपलब्धि का कोई उल्लेख नहीं किया गया। गौर करने वाली बात ये भी है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर मुख्यमंत्री इतना तैश में क्यों दिखाई दिए? वे कांग्रेस पर वार करते तो बात समझी जा सकती थी, लेकिन विपक्ष के किसी एक नेता को निशाने पर लेने के कई मतलब निकाले जा रहे हैं। राजमाता सिंधिया का स्तुतिगान किया जाना तो समझा जा सकता है, पर ज्योतिरादित्य को जिस तरह कटघरे में खड़ा किया गया, वो कहीं न कहीं अटेर में पार्टी की हार से उपजी हताशा भी दर्शाता है। क्योंकि, अटेर में सिंधिया घराने को लेकर भी बहुत वाद-विवाद हो चुका है। कहा जा सकता है कि मोहनखेड़ा में हुई भाजपा कार्यसमिति की इस बैठक में बखेड़ा ज्यादा हुआ! अनुशासनहीनता तो हुई ही है, पार्टी का दस्तावेज भी खामियों की भेंट चढ़ गया।      
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