Monday, October 2, 2017

कांग्रेस के पास इंदौर में आठ सीटों के आठ नेता भी नहीं!

- हेमंत पाल   

  इंदौर में कांग्रेस की राजनीति बुरी तरह थक चुकी है। शहर में आज कांग्रेस की राजनीति का कोई नामलेवा नहीं बचा। फिर भी नेताओं का अहम् और मतभेदों के अध्याय कम नहीं हुए। अब तो हालत ये हो गई कि इंदौर में सारे कार्यकर्ता नेता बन गए। कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में लगी कुर्सियों का भरना तक मुश्किल हो गया है। लेकिन, पोस्टरों पर नेताओं के चेहरों की चमक कम नहीं हो रही। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि पीढ़ियां बदल जाने और एलईडी के ज़माने में भी पार्टी फ्यूज बल्बों से अपना घर रोशन करने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि दिमाग पर जोर डालने पर भी इंदौर की राजनीति में पाँच ऐसे नेता याद नहीं आते जो नई पीढ़ी से उभरे हों! आज भी पार्टी ने तीन दशक पुराने नेताओं को ही कांग्रेस का कर्णधार बना रखा हैं। ये खुद तो कुछ कर नहीं पाते, नए नेताओं को भी उभरने नहीं देते!
  इंदौर जिले में विधानसभा की आठ सीटें हैं, पर आज पार्टी के पास ऐसे आठ नेता नजर नहीं आते, जिन्हें सालभर बाद चुनाव लड़ना है। विधानसभा की पाँच सीटें इंदौर में ही हैं, जिनमें चार पर भाजपा का कब्ज़ा है। सिर्फ राऊ की सीट कांग्रेस के पास है, जहाँ से जीतू पटवारी विधायक हैं। तय है कि पटवारी फिर वहीं से चुनाव लड़ेंगे, पर बाकी की चार सीटों पर पार्टी की कोई तैयारी नजर नहीं आती। जैसा कि हमेशा होता है, इस बार भी एकवक्त पर पत्ते फैंटे जाएंगे और जिसके पास ट्रम्प होगा, टिकट उसे मिल जाएगा। इंदौर में कांग्रेस के नेताओं में जितने मतभेद हैं, उनका विधानसभा चुनाव तक सुलझना संभव नहीं है। मुद्दे की बात ये कि पिछले एक दशक से शहर में कांग्रेस का ऐसा कोई नेता बचा, जो सर्वमान्य हो! 
  कांग्रेस ने तो इंदौर में 'मिशन-2018' की जिम्मेदारी महेश जोशी को सौंपी है। उन्होंने भोपाल में संगठन कार्यालय पर अपना काम भी शुरू कर दिया है। महेश जोशी ने पिछले चुनाव के बाद सक्रिय राजनीति से अपने आपको मुक्त कर लिया था और पैतृक गांव कुशलगढ़ में जा बसे थे। उन्हें वापस बुलाकर पार्टी ने काम सौंपा है। वे इंदौर समेत प्रदेश स्तर पर कार्यकर्ताओं को जोड़ने के काम में लगे हैं। लेकिन, वे ये काम ठीक से कर सकेंगे, इसमें शक है। क्योंकि, अब उनकी कोड़ा-फटकार राजनीति का दौर नहीं रहा। वे जिस लहजे में बात करते हैं, वो आज की पीढ़ी के नेताओं को सुनने की आदत नहीं है। उनकी संगठन क्षमता पर किसी को शक नहीं है और पार्टी के सभी बड़े नेता उनके कायल रहे हैं। लेकिन, वे राजनीति की बदलती धारा के मुताबिक खुद को बदल नहीं सके! यही कारण है कि उनके सक्रिय होते ही उनके विरोध के मोर्चे भी उभर गए!
  कांग्रेस का एक भी नेता ऐसा नहीं है जो इंदौर में कांग्रेस को सक्रिय करने की कोशिश करता दिखाई देता हो! शहर कांग्रेस के अध्यक्ष का मसला भी उलझा हुआ है। कांग्रेस तभी दिखाई देती है, जब कोई बड़ा नेता इंदौर आता है। महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष शोभा ओझा भी तभी अवतरित होती हैं, जब बड़ा मंच सजता है। राऊ के विधायक जीतू पटवारी ही अकेले नेता हैं, जो हर फटे में टांग अड़ाने माहिर माने जाते हैं। लेकिन, उनकी गतिविधियां सेल्फ प्रमोशनल एक्टिविटी ज्यादा लगती है। कई कांग्रेसी नेता तो भाजपा के आभामंडल से प्रभावित होकर अंदर से भाजपाई ही हो गए! इसके अलावा जिन्हें कांग्रेसी नेता कहा जाए वे सिर्फ बयानबाजी और नकली आंदोलन से खुद को जिंदा रखने की कोशिश तक सीमित हैं। ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला कर सकेगी! यदि कांग्रेस ऐसा सोचती है तो ये उसकी ग़लतफ़हमी से ज्यादा कुछ नहीं है।
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