Friday, October 27, 2017

कांग्रेस की करवट के नीचे कहीं दब न जाए भाजपा!

- हेमंत पाल
 
  मध्यप्रदेश में कांग्रेस अगले विधानसभा चुनाव में बड़ा दांव खेलने की तैयारी में है। ये दांव क्या होगा, अभी इस पर कयास ही लगाए जा रहे हैं। लेकिन, ये तय है कि इस बार कांग्रेस भाजपा को वॉकओवर देने के मूड में नहीं है। 2003 में जब दिग्विजय सिंह ने सत्ता खोई थी, तब दस साल तक राजनीति से दूर रहने का प्रण लिया था। लेकिन, कांग्रेस में उसमें पाँच साल और जोड़कर भाजपा को पूरे 15 साल सत्ता-सुख भोगने का मौका दे दिया। पर, अब नहीं लगता कि कांग्रेस 'मिशन 2018' को हल्के में लेगी। इन दिनों कांग्रेस की राजनीति जिस तरह करवट ले रही है, उससे काफी कुछ अनुमान लगाए जा सकते हैं! कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम नई भूमिका के लिए तय हो रहे हैं। उधर, राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा से भाजपा के खिलाफ खामोश अलख जगाने में लगे हैं। वे चर्चा से बाहर होते हुए भी चर्चा से बाहर हैं। पर, ख़बरों के गर्भ में उनकी भूमिका पहले से निर्धारित लग रही है। कयासों का लब्बोलुआब ये है कि तीनों बड़े नेताओं किरदार लिखे जा चुके हैं। इंतजार है उनके मंच पर उतरने का!   
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  विधानसभा चुनाव की निकटता को देखते हुए कांग्रेस पार्टी नए सिरे से रणनीति बनाने में जुट गई है। उसे लग गया है कि प्रदेश में भाजपा सरकार के प्रति लोगों में नाराजी लगातार बढ़ रही है। यही कारण है कि सुप्त पड़ी कांग्रेस अपनी 15 साल पुरानी सलवटें दूर करने में लग गई! पार्टी के वे तारणहार जो अभी तक कांग्रेस से बेखबर थे, वे फिर सक्रिय होने लगे! उनकी जय जयकार करने वाले भी कड़क खादी में नजर आने लगे! कांग्रेस के जिन दिग्गजों के पास कांग्रेस की कमान समझी जाती है, उनके बयान फिर मीडिया में नजर आने लगे! प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव खिलाफ फिर तलवारें भांजी जाने लगी है। कमलनाथ को अरुण यादव जगह मुखिया बनाने की चर्चाएं हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर सामने आने के कयास लगाए जाने लगे!
  मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग की कांग्रेस राजनीति बरसों से सिंधिया घराने से प्रभावित रही है। माधवराव सिंधिया ने यहाँ एकछत्र राजनीति की! कुछ वही चेहरा लोग अब ज्योतिरादित्य सिंधिया में देखने लगे हैं। उनके आचार-विचार से लगाकर व्यवहार तक में माधवराव सिंधिया की छवि है! अब, जबकि प्रदेश एक बार फिर चुनाव के मुहाने पर है, कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद के लिए ज्योतिरादित्य सबसे सटीक उम्मीदवार नजर आए। मुद्दे की बात ये कि भाजपा में ज्योतिरादित्य की संभावित उम्मीदवारी से घबराहट दिखाई देने लगी है। पिछले दिनों उन पर भाजपा की तरफ से जिस तरह के अराजनीतिक हमले किए गए, वो इस घबराहट को स्पष्ट भी करते हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी सौंपी थी! कई टिकट उनकी सलाह पर दिए गए! चुनाव रणनीति बनाने में उनका दखल रहा! लेकिन, नतीजा उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा, क्योंकि पूरे देश में मोदी-लहर थी! लेकिन, अब ऐसा कोई माहौल दिखाई नहीं दे रहा! न कोई लहर है न आँधी! बल्कि, अब भाजपा के तीन कार्यकालों को कसौटी पर कसे जाने का वक़्त जरूर आ गया!
  अगले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस संगठन में हलचल है। प्रदेश अध्यक्ष बदला जाना तय माना जा रहा है! अरुण यादव के बाद जिसे प्रदेश कांग्रेस का मुखिया बनाया जाएगा, वही नेता चुनाव भी कराएगा! यही भांपकर पार्टी हाईकमान नए सिरे से रणनीति बनाने में जुटा है! प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सबसे ताकतवर नाम कमलनाथ का सामने आया है! इस नाम की काट करने की कोशिश कहीं से नहीं की गई, तो माना गया कि ये पार्टी की रणनीति का ही कोई हिस्सा है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की संभावित भूमिका तय हो जाने के बाद स्वाभाविक सा सवाल है कि फिर दिग्विजय सिंह कहाँ होंगे? क्या वे अपनी आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा के बाद घर लौट जाएंगे? तो ये बात किसी के गले नहीं उतरती! समझा जा रहा है कि वे विधानसभा चुनाव के दौरान परदे के पीछे रणनीतिकार हो सकते हैं। क्योंकि, दिग्विजय सिंह का नेटवर्क आज भी बेजोड़ है। लेकिन, दिग्विजय सिंह फिलहाल खामोश हैं! उन्हें पता है कि मतदाताओं के बीच उनकी छवि अभी चुनाव जिताने वाली नहीं है। पर, प्रदेश में सबसे बड़ी कांग्रेस लॉबी आज भी उनके पास है।
  इस बात से शायद कोई इंकार नहीं करेगा कि आज ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी भी राजनीतिक पार्टी के मुकाबले कांग्रेस के सबसे ज्यादा स्वीकार्य यूथ आइकॉन हैं। उनकी जोड़ का युवा नेता किसी पार्टी के पास नहीं! यदि कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर ज्योतिरादित्य पर दांव लगाती है, तो भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, उनके खिलाफ माहौल बनाना, जो आसान नहीं है! लगातार तीन चुनाव जीतकर भाजपा ने अपने सारे राजनीतिक हथियार आजमा लिए हैं! अब ऐसा कुछ भी नहीं बचा, जो मतदाताओं को आकर्षित करेगा! एक तरफ भाजपा का चुनाव प्रचार रक्षात्मक होगा, वहीं कांग्रेस की भूमिका हमलावर की होगी। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा कांग्रेस के लिए सोने पर सुहागा होगा! 
  उधर, दिग्विजय सिंह अपने समर्थकों के साथ 3,300 किलोमीटर लम्बी और लगभग 6 माह की नर्मदा परिक्रमा पर हैं। ये यात्रा विजयदशमी से शुरु हुई थी। मध्यप्रदेश में अगले साल दिसंबर में और गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। दिग्विजय की यह यात्रा मध्यप्रदेश के 110 और गुजरात के 20 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजर रही है। दिग्विजय की इस यात्रा को 'मास्टर स्ट्रोक' माना जा रहा है। वे यात्रा के दौरान तो कोई राजनीतिक बातचीत नहीं कर रहे, पर इस नर्मदा परिक्रमा के बाद वे प्रदेश सरकार पर बड़ा हमला बोलेंगे, इस बात को अच्छी तरह समझा जा रहा है। दिग्विजय सिंह ने इसे अपनी आध्यात्मिक यात्रा बताया जो पूरी तरह से गैर-राजनीतिक है। लेकिन, उस वक्त जब कांग्रेस का सारा नेतृत्व गुजरात और हिमाचल प्रदेश की चुनाव रणनीति में जुटा है, आखिर दिग्विजय की इस यात्रा के मायने क्या हैं?
दिग्विजय ने खुद भी कहा कि वे अभी नर्मदा के तट पर हैं। इसलिए केवल यात्रा की ही बात करेंगे। यात्रा के बाद वह खुलकर राजनीति करेंगे और मध्यप्रदेश की गली-गली में घूमेंगे। सभी की नजर इस यात्रा पर है। लोग इस यात्रा के मायने ढूंढ रहे हैं। लेकिन, दिग्विजय कहते हैं कि अभी और कोई बात नहीं! फिलहाल सिर्फ नर्मदा और परिक्रमा के बारे में बात कीजिए। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि भले ही ये उनकी निजी यात्रा हो मगर इससे विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी को ताकत मिलेगी! जब कोई नेता धार्मिक या आध्यात्मिक यात्रा करे और राजनीति से विलग रहे, ये कैसे संभव है?
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