- हेमंत पाल
भाजपा नेताओं की छवि का ग्राफ पिछले पाँच सालों में कुछ ज्यादा ही नीचे आया! ईमानदारी, मतदाताओं के प्रति जिम्मेदारी, पक्षपात, लोगों के प्रति व्यवहार और सामाजिक छवि के मामले में भाजपा नेताओं की छवि गिरी है। आज कोई भी इस बात को स्वीकार नहीं करता कि भाजपा के विधायक, नेता और मंत्री ईमानदार, व्यावहारिक, गैर-पक्षपाती हैं। देखा जाए तो आज राजनीति की सारी खामियाँ भाजपा नेताओं में ही नजर आती हैं। ये खामी इसलिए ज्यादा नजर आती है, क्योंकि पार्टी के बड़े नेता और संघ के पैरोकार सुचिता के दंभ में चूर हैं। वे इस बात का दावा करने का मौका भी नहीं चूकते कि वे ही जनता के सही प्रतिनिधि हैं। इन सारी बुराइयों से कांग्रेस भी अलहदा नहीं है, लेकिन न तो उनके पास सत्ता है कथित बेईमानी करने के मौके! इसलिए चुनाव में मतदाताओं की नाराजी उन पर कम ही उतरेगी। कहने का तात्पर्य ये कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा नेताओं की छवि ज्यादा दागदार है। ऐसे में पार्टी को उन चेहरों को किनारे करना होगा, जो पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्योंकि, पार्टी की छवि उन्हीं लोगों से बनती है, जो उसका प्रतिनिधित्व करते हैं।
भाजपा भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि उसके लिए अगला विधानसभा चुनाव आसान नहीं है। सिर्फ आश्वासन से काम नहीं चलने वाला, मतदाता सारे वादों का हिसाब मांगेंगे! पिछले चुनाव में मोदी-लहर ने विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका अदा की थी। इस बार ऐसी कोई उम्मीद नहीं कि केंद्र सरकार का कामकाज प्रदेश में जीत का मददगार बनेगा। क्योंकि, 'अच्छे दिन आएंगे' जैसे लोक लुभावन नारे, नोटबंदी और जीएसटी की नाराजी का खामियाजा भी प्रदेश में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार बचाने का यही उपाय है कि अच्छी छवि वाले चेहरों को चुनाव के मैदान में उतारा जाए। पार्टी ने भी इस आशंका को भांप लिया है। अतः जिन विधायकों की छवि अच्छी नही है, उनका टिकट कटना लगभग तय है। पिछली बार मोदी-लहर में कई ऐसे लोग जिनकी छवि अच्छी नहीं थी, फिर भी वे विधायक बनने में कामयाब हो गए थे। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं होगा। ऐसे विधायकों पर गाज गिरनी तय है, जिनकी छवि दागदार है। इसकी संख्या कितनी होगी, अभी यह कह पाना अभी मुश्किल है। लेकिन, ये दो अंकों से आगे भी बढ़ सकती है। पार्टी आलाकमान के इशारे पर प्रदेश के ऐसे विधायकों की सूची बनना शुरू हो गया है, जिनकी जनता के बीच नकारात्मक छवि बनी है।
संघ को भी मध्यप्रदेश के बारे में जो रिपोर्ट मिली है, उसके सरकार के हालात ठीक नहीं हैं। इसमें समय रहते बड़ा सुधार नहीं किया गया तो भाजपा के लिए 'मिशन-2018' मुश्किल हो जाएगा। जनता निचले स्तर के भ्रष्टाचार से परेशान है। योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो रहा! घोषणाओं के बाद भी योजनाओं का फायदा वंचितों तक नहीं पहुंच रहा! अफसरों की मनमानी से लोग परेशान हैं। मंत्री और संगठन के पदाधिकारी जनता के प्रति गंभीर नहीं हैं। संघ की स्पष्ट हिदायत है कि लोगों की नाराजी के जो भी कारण हैं, उनपर काबू पाया जाए! फिर भी कोई सुधार नजर नहीं आ रहा। क्योंकि, निरंकुश अफसरशाही और खुद को खुदा समझने वाले मंत्रियों और विधायकों के तेवर अब लोगों को रास नहीं आ रहे! उनमें बदलाव आता है, तो लोग ये समझेंगे कि ये सिर्फ दिखावा और चुनाव जीतने का हथकंडा है!
भाजपा नेताओं के बेलगाम बोल और तेवर अब जनता के निशाने पर हैं। भाजपा के इन नेताओं पर न तो पार्टी कोई कार्रवाई करती है और न सत्ता के भय से प्रशासन ही कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा पाता है। अब इस सबका मूल्यांकन आने वाले चुनाव में होगा। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सुदर्शन गुप्ता, रामेश्वर शर्मा, सांसद चिंतामणि मालवीय, विधायक शंकरलाल तिवारी, सुदर्शन गुप्ता, कालूसिंह ठाकुर और वेलसिंह भूरिया के धमकी भरे ऑडिया भी लोगों ने सुने हैं। ये सारे सबूत पार्टी की नीयत और सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करते हैं! संगठन पदाधिकारियों की वाचालता इसलिए भी ध्यान देने वाली हैं, क्योंकि संघ की समन्वय बैठक में इन नेताओं ने ही भ्रष्टाचार को लेकर अफसरों पर हमला बोला था! किसी भी नजरिए से देखा जाए तो इस बार विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिए आसान चुनौती नहीं है। उसे चौथी बार चुनाव जीतने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना होगा। जबकि, मुकाबले में खड़ी कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है। कांग्रेस के उम्मीदवारों की छवि पर कोई उंगली भी नहीं उठाई जा सकेगी! ऐसे में छवि बचाने का सबसे बड़ा संकट भाजपा के सामने ही है।
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अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव न तो चुनावी हथकंडों से जीता जा सकेगा और न वादे करके या कथित रंगीन सपने दिखाकर! यदि स्थितियां सामान्य रही तो बरसों बाद देश में ये ऐसा चुनाव होगा, जिसमें सत्ताधारी भाजपा की लोकप्रियता, मतदाताओं में पैठ और उसकी नीतियों का निष्पक्ष मूल्यांकन होगा। लगातार तीन चुनाव जीतकर भाजपा ने पिछले सालों में क्या कुछ किया, लोगों ने उसे कितना सही समझा, क्या फिर भाजपा को मौका दिया जाना चाहिए? अगला चुनाव इन सारे सवालों का सही आकलन होगा। इसलिए कि अगले चुनाव में जब भाजपा मतदाताओं के सामने वोट मांगने खड़ी होगी, तब उसके पास कोई ऐसा बहाना नहीं बचेगा कि वो मतदाताओं से आँख चुरा सके! उसे अपने तीन कार्यकाल का पूरा बही-खाता मतदाताओं के सामने रखना होगा। पार्टी के पास बचने का विपक्ष के असहयोग का कोई बहाना भी नहीं होगा। जबकि, कांग्रेस के पास सरकार के खिलाफ आरोपों की लम्बी फेहरिस्त होगी।
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जब भी कोई चुनाव आता है, सत्ताधारी पार्टी के सामने सबसे बड़ा संकट अपनी सरकार बचाने का होता है। मध्यप्रदेश में भाजपा ने लगातार तीन बार चुनाव जीतकर अपना झंडा गहरे तक तो गाड़ दिया, पर असली चुनाव इस बार है। भाजपा को लगातार दो बार कांग्रेस की दिग्विजय सरकार की नाकामियों, कांग्रेस की आपसी सिर फुटव्वल और जीत के अतिआत्मविश्वास ने दिलाई। जबकि, भाजपा को मिली तीसरी जीत का कारण मोदी-लहर था। इससे कोई इंकार भी नहीं करेगा। लेकिन, इस बार ऐसे कोई फैक्टर नजर नहीं आ रहे, जो भाजपा को आसान जीत दिला सकें। भाजपा को चौथी बार सरकार बनाने के लिए कड़ी चुनौती से जूझना है। क्योंकि, ऐसे कई कारण है जो भाजपा की राह में रोड़े अटकाएंगे। सबसे बड़ा रोड़ा है, भाजपा नेताओं की छवि! लोगों ने जिस विश्वास से कांग्रेस के बदले भाजपा को चुना था, वो विश्वास कई मायनों ध्वस्त हुआ।भाजपा नेताओं की छवि का ग्राफ पिछले पाँच सालों में कुछ ज्यादा ही नीचे आया! ईमानदारी, मतदाताओं के प्रति जिम्मेदारी, पक्षपात, लोगों के प्रति व्यवहार और सामाजिक छवि के मामले में भाजपा नेताओं की छवि गिरी है। आज कोई भी इस बात को स्वीकार नहीं करता कि भाजपा के विधायक, नेता और मंत्री ईमानदार, व्यावहारिक, गैर-पक्षपाती हैं। देखा जाए तो आज राजनीति की सारी खामियाँ भाजपा नेताओं में ही नजर आती हैं। ये खामी इसलिए ज्यादा नजर आती है, क्योंकि पार्टी के बड़े नेता और संघ के पैरोकार सुचिता के दंभ में चूर हैं। वे इस बात का दावा करने का मौका भी नहीं चूकते कि वे ही जनता के सही प्रतिनिधि हैं। इन सारी बुराइयों से कांग्रेस भी अलहदा नहीं है, लेकिन न तो उनके पास सत्ता है कथित बेईमानी करने के मौके! इसलिए चुनाव में मतदाताओं की नाराजी उन पर कम ही उतरेगी। कहने का तात्पर्य ये कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा नेताओं की छवि ज्यादा दागदार है। ऐसे में पार्टी को उन चेहरों को किनारे करना होगा, जो पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्योंकि, पार्टी की छवि उन्हीं लोगों से बनती है, जो उसका प्रतिनिधित्व करते हैं।
भाजपा भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि उसके लिए अगला विधानसभा चुनाव आसान नहीं है। सिर्फ आश्वासन से काम नहीं चलने वाला, मतदाता सारे वादों का हिसाब मांगेंगे! पिछले चुनाव में मोदी-लहर ने विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका अदा की थी। इस बार ऐसी कोई उम्मीद नहीं कि केंद्र सरकार का कामकाज प्रदेश में जीत का मददगार बनेगा। क्योंकि, 'अच्छे दिन आएंगे' जैसे लोक लुभावन नारे, नोटबंदी और जीएसटी की नाराजी का खामियाजा भी प्रदेश में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार बचाने का यही उपाय है कि अच्छी छवि वाले चेहरों को चुनाव के मैदान में उतारा जाए। पार्टी ने भी इस आशंका को भांप लिया है। अतः जिन विधायकों की छवि अच्छी नही है, उनका टिकट कटना लगभग तय है। पिछली बार मोदी-लहर में कई ऐसे लोग जिनकी छवि अच्छी नहीं थी, फिर भी वे विधायक बनने में कामयाब हो गए थे। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं होगा। ऐसे विधायकों पर गाज गिरनी तय है, जिनकी छवि दागदार है। इसकी संख्या कितनी होगी, अभी यह कह पाना अभी मुश्किल है। लेकिन, ये दो अंकों से आगे भी बढ़ सकती है। पार्टी आलाकमान के इशारे पर प्रदेश के ऐसे विधायकों की सूची बनना शुरू हो गया है, जिनकी जनता के बीच नकारात्मक छवि बनी है।
संघ को भी मध्यप्रदेश के बारे में जो रिपोर्ट मिली है, उसके सरकार के हालात ठीक नहीं हैं। इसमें समय रहते बड़ा सुधार नहीं किया गया तो भाजपा के लिए 'मिशन-2018' मुश्किल हो जाएगा। जनता निचले स्तर के भ्रष्टाचार से परेशान है। योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो रहा! घोषणाओं के बाद भी योजनाओं का फायदा वंचितों तक नहीं पहुंच रहा! अफसरों की मनमानी से लोग परेशान हैं। मंत्री और संगठन के पदाधिकारी जनता के प्रति गंभीर नहीं हैं। संघ की स्पष्ट हिदायत है कि लोगों की नाराजी के जो भी कारण हैं, उनपर काबू पाया जाए! फिर भी कोई सुधार नजर नहीं आ रहा। क्योंकि, निरंकुश अफसरशाही और खुद को खुदा समझने वाले मंत्रियों और विधायकों के तेवर अब लोगों को रास नहीं आ रहे! उनमें बदलाव आता है, तो लोग ये समझेंगे कि ये सिर्फ दिखावा और चुनाव जीतने का हथकंडा है!
भाजपा नेताओं के बेलगाम बोल और तेवर अब जनता के निशाने पर हैं। भाजपा के इन नेताओं पर न तो पार्टी कोई कार्रवाई करती है और न सत्ता के भय से प्रशासन ही कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा पाता है। अब इस सबका मूल्यांकन आने वाले चुनाव में होगा। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सुदर्शन गुप्ता, रामेश्वर शर्मा, सांसद चिंतामणि मालवीय, विधायक शंकरलाल तिवारी, सुदर्शन गुप्ता, कालूसिंह ठाकुर और वेलसिंह भूरिया के धमकी भरे ऑडिया भी लोगों ने सुने हैं। ये सारे सबूत पार्टी की नीयत और सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करते हैं! संगठन पदाधिकारियों की वाचालता इसलिए भी ध्यान देने वाली हैं, क्योंकि संघ की समन्वय बैठक में इन नेताओं ने ही भ्रष्टाचार को लेकर अफसरों पर हमला बोला था! किसी भी नजरिए से देखा जाए तो इस बार विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिए आसान चुनौती नहीं है। उसे चौथी बार चुनाव जीतने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना होगा। जबकि, मुकाबले में खड़ी कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है। कांग्रेस के उम्मीदवारों की छवि पर कोई उंगली भी नहीं उठाई जा सकेगी! ऐसे में छवि बचाने का सबसे बड़ा संकट भाजपा के सामने ही है।
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