Tuesday, May 15, 2018

इंदौर के उलझे समीकरणों में भाजपा के लिए चुनाव मुश्किल!


- हेमंत पाल 


  इंदौर में पाँच सालों से राजनीतिक सन्नाटा था, पर जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, सरगर्मी बढ़ने लगी। कहा जा सकता है कि मौसम से ज्यादा गर्मी राजनीतिक माहौल में आ रही है। चुनाव से पहले भाजपा लोगों को आकर्षित करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती, इसलिए नगर निगम के मार्फ़त करोड़ों के काम के भूमिपूजन करवाए गए। जिले के प्रभारी मंत्री जयंत मलैया ने तीन दिन इंदौर में डेरा डाला, कई जगह फीते काटे और कुदाली चलाई! साथ ही उन्होंने जनता के बीच उन विधायकों का वजन भी आँका, जिन्हें पार्टी को फिर मैदान में उतारना है! शहर के 6 विधानसभा क्षेत्रों में से शायद ही कोई इलाका हो, जहाँ प्रभारी मंत्री को सबकुछ ठीक मिला हो! विधायकों से नाराजी सिर्फ लोगों तक सीमित नहीं है, पार्टी में भी रोष बरक़रार है। सुदर्शन गुप्ता को अपने इलाके में उषा ठाकुर के दखल से आपत्ति है तो रमेश मेंदोला से जुड़े पार्षद महापौर मालिनी गौड़ से रूठकर बैठे हैं। भाजपा ने हर जिले के प्रभारी मंत्री को ये जिम्मेदारी सौंपी है कि वो अपने जिले की रिपोर्ट बनाकर पार्टी को सौंपे ताकि टिकट वितरण के दौरान उस रिपोर्ट के आधार पर फैसला हो! तय है कि पार्टी को इंदौर की रिपोर्ट में समीकरण उलझे हुए ही मिलेंगे! 
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   पश्चिम मध्यप्रदेश में भाजपा की अपनी ताकत है और इंदौर उस ताकत का ऊर्जा केंद्र है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव से यहाँ कांग्रेस के हाथ सिर्फ एक सीट आती रही! दो बार अश्विन जोशी ने भाजपा को मात दी और पिछला चुनाव राऊ से जीतू पटवारी ने जीतकर एक सीट वाली परंपरा को बरक़रार रखा। लेकिन, इस बार के हालात कुछ बदले हुए से नजर आ रहे हैं। बिखरी हुई कांग्रेस एक जाजम पर बैठती जा रही है, वहीं भाजपा में बिखराव स्पष्ट नजर आ रहा है। प्रभारी मंत्री के कार्यक्रम भी इससे नहीं बच सके और जयंत मलैया की कोशिशें भी फूट की दरार को भरने में कामयाब नहीं हुई! क्षेत्र क्रमांक एक में सुदर्शन गुप्ता के प्रभाव और कामकाज से प्रभारी मंत्री संतुष्ट दिखे, पर इस इलाके से पहले उषा ठाकुर विधायक थी, तो उनके समर्थकों ने सुदर्शन गुप्ता की चुगली करने में कोई कसर नहीं छोड़ी! उषा ठाकुर के समर्थकों की कोशिश रही कि सुदर्शन गुप्ता के खिलाफ माहौल बनाकर उन्हें टिकट से बेदखल किया जाए। प्रभारी मंत्री ने अपने राजनीतिक अनुभव से इंदौर के विधानसभा क्षेत्रों का क्या मूल्यांकन किया ये तो बाहर नहीं आ सका, पर क्षेत्र में भाजपा में फूट उन्हें भी पार्टी की सेहत के लिए ठीक नजर नहीं आई होगी! 
    प्रभारी मंत्री को विधानसभा के क्षेत्र क्रमांक-2 का नजारा पार्टी  नजरिए से तो ठीक लगा होगा, पर यहाँ भी विधायक रमेश मेंदोला और महापौर मालिनी गौड़ में फूट सड़क पर दिखाई दी! जयंत मलैया की कोशिशें भी इस खाई को नहीं भर सकी। दो नंबर के इलाके में हुए भूमिपूजन और उद्घाटनों में न तो महापौर को औपचारिक रूप से बुलाया गया और न शिलालेख में उनका नाम लिखा गया। सीधी सी बात ये कि 'न विधायक ने बुलाया न महापौर आई!' जबकि, प्रभारी मंत्री ने महापौर को कार्यक्रम में साथ ले जाने की अपने तई कोशिश भी की, पर वे नहीं गईं! रेडीसन चौराहे पर दो साल पहले नगर निगम उपायुक्त के साथ हुए चांटा-कांड के बाद से मेंदोला समर्थक पार्षदों ने नगर निगम से दूरी बना रखी है। अपने प्रभाव के चलते पार्षदों के कोई काम तो नहीं रुकते, पर महापौर से उनकी नाराजी जगजाहिर है। इस सबके बावजूद क्षेत्र में रमेश मेंदोला का दबदबा कम नहीं हुआ! असर भी इतना कि अगले चुनाव में मेंदोला के मुकाबले मैदान में उतारने के लिए कांग्रेस के पास कोई भी दमदार नेता नहीं है। 2013 के चुनाव में रमेश मेंदोला ने यह सीट प्रदेश में सर्वाधिक 91 हज़ार से ज्यादा वोटों से जीतकर रिकॉर्ड बनाया था। इस बार ये आँकड़ा तो शायद बरक़रार न रहे, पर ये तय है कि वे सीट बचा लेंगे। 
  विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-3 से उषा ठाकुर विधायक हैं, पर वे यहाँ से अगला चुनाव लड़ेंगी या नहीं, इसमें संशय है। इंदौर की यही एक सीट ऐसी नजर आ रही है, जिसके विधायक को फिर टिकट मिलने की उम्मीद कम है। शहर के मध्य में व्यापारिक इलाके वाली पुराने और नए इंदौर का प्रतिनिधित्व करने वाली इस सीट के वोटर विधायक से काफी नाराज हैं। प्रभारी मंत्री को भी शायद यही इशारा मिला होगा। अपनी उग्र हिंदुत्व वाली छवि के चलते उषा ठाकुर पाँच साल में भी यहाँ के परंपरागत व्यापारी तबके में अपनी पैठ नहीं बना सकीं। उनके साथ हमेशा स्थानीय कार्यकर्ताओं का भी अभाव दिखाई दिया। यहाँ की समस्याओं से भी उन्होंने ज्यादा सरोकार नहीं रखा और यही कारण है कि लोग उनके प्रतिनिधित्व से खुश नहीं हैं। पार्टी उनकी सीट बदलती है या उन्हें आराम देती है, ये अभी तय नहीं है। लेकिन, यही एक सीट है जिस पर भाजपा का टिकट चाहने वाले कई नेताओं की नजर है।    
    महापौर और विधायक दो तमगों से नवाजी गई मालिनी गौड़ विधानसभा के क्षेत्र क्रमांक-4 से पिछले चुनाव जीती थीं। लेकिन, महापौर होते हुए मालिनी गौड़ के राजनीतिक असंतुष्टों की संख्या काफी ज्यादा है। गौड़ के परिवार के राजनीतिक दखल से भी इस इलाके के लोगों की नाराजी सामने आती रहती है। प्रभारी मंत्री को भी जो जानकारी मिली वो तो संतोषजनक बताई जा रही है, पर इस क्षेत्र में स्मार्ट सिटी को लेकर हुई तोड़फोड़ से लोग बेहद नाराज हैं। उनकी नाराजी दूर करने का कोई उपाय न तो पार्टी के पास है न सरकार के! तोड़फोड़ से उपजी नाराजी का असर शहर के अन्य इलाकों में भी भाजपा के वोट बैंक पर पड़ सकता है। यदि पार्टी ने 'एक व्यक्ति-एक पद' वाला कोई फार्मूला लागू किया तो संभव है कि मालिनी गौड़ को टिकट से वंचित होना पड़े! ऐसी स्थिति में उनके बेटे को टिकट मिलेगा या किसी और नेता को, अभी इस सवाल पर सिर्फ कयास ही लगाएं जा सकते हैं।   
   इंदौर का क्षेत्र क्रमांक-5 शहर का नई बसाहट वाला पूर्वी इलाका है, जहाँ उन लोगों की संख्या ज्यादा है, जो शहर में नए बसे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र से महेंद्र हार्डिया विधायक हैं। पिछली बार तो उन्हें सरकार में राज्यमंत्री भी बनाया गया था, पर इस बार वे काबिल होते हुए भी आपसी जोड़तोड़ का शिकार हुए। प्रभारी मंत्री को मिली जानकारी में भी हार्डिया का कहीं विरोध नहीं हुआ होगा! क्योंकि, इलाके में उनकी छवि अच्छी होने के साथ-साथ वे सर्वसुलभ हैं। उनके आसपास कोई कॉकस भी नहीं है न उनके समर्थकों में ऐसे लोग हैं जो लोगों के आँख की किरकिरी बनें! इंदौर के अच्छे भाजपा नेताओं में महेंद्र हार्डिया को गिना जा सकता है। पार्टी में भी वे किसी एक गुट से कभी जुड़े दिखाई नहीं दिए और न किसी विवाद में रहे। उनकी सज्जनता को उनकी कमजोरी समझने वालों की संख्या जरूर ज्यादा है। लेकिन, पार्टी का एक गुट इस कोशिश में है कि हार्डिया को किनारे करके टिकट जुगाड़ा जाए! यदि ऐसा होता है तो पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पद सकता है। क्योंकि, लोग नहीं चाहते कि भाजपा का कोई बाहुबली नेता उनका प्रतिनिधि बनने कोशिश भी करे।         
  शहर की एकमात्र विधानसभा सीट राऊ ही है जो पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी। जब देशभर में नरेंद्र मोदी की आँधी थी, ऐसे में इंदौर के किनारे वाली इस सीट से कांग्रेस की मायने रखती है। प्रभारी मंत्री के सर्वे में भी जो तथ्य सामने आए हैं, वो इस बात का इशारा तो करेंगे ही कि भाजपा यहाँ से पिछला चुनाव सिर्फ इसलिए हारी कि यहाँ जमकर सेबोटेज हुआ था। इस बार भी यहाँ से कांग्रेस के जीतू पटवारी के सामने मुकाबले के लिए उतरने वाले आधा दर्जन नेताओं ने कलफ लगे कुर्ते तैयार रखे हैं। सबके पास खुद के जीत के दावे हैं, पर पार्टी के अंदर की ख़बरों पर भरोसा किया जाए तो यदि कैलाश विजयवर्गीय विधानसभा चुनाव लड़ने को राजी हुए तो उन्हें महू से राऊ भेजा जा सकता है। पर ऐसा ही होगा, फिलहाल ये कहा नहीं जा सकता। लेकिन, इस बार इंदौर में भाजपा को क्षेत्र क्रमांक-2 के अलावा हर सीट पर जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। क्योंकि, अगले चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही किसी उम्मीदवार की हार-जीत का कारण नहीं बनेंगे, बल्कि और भी बहुत से कारण है जिन्हें लेकर लोग भाजपा से नाराज हैं, और वे अपनी नाराजी का इजहार विधानसभा चुनाव में करेंगे। ऐसे में नेताओं का आपसी मनमुटाव भारी पड़ सकता है। जबकि, मुकाबले में उतरने वाली कांग्रेस भी बोलने के लिए बहुत कुछ है। 
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