Wednesday, June 5, 2019

बंगाली सत्ता में सेंध मारने में अव्वल रहे इंदौर के 'भाई'

   इस बात को करीब तीन दशक हो गए जब लोग इंदौर की एलआईजी कॉलोनी के चौराहे पर केशरिया दुपट्टा डाले एक नेता को अकसर देखते थे! तब वे स्कूटर के पीछे बैठे नजर आते थे! ये थे कैलाश विजयवर्गीय! आज भी उनकी सहजता में फर्क नहीं आया! लेकिन, आज उनका राजनीतिक कद आसमान छूने लगा! इंदौर के बाद प्रदेश की भाजपा राजनीति में अपना दम दिखाने वाले कैलाश विजयवर्गीय ने मध्यप्रदेश के बाहर भी कारनामे किए हैं! हरियाणा में भाजपा की सरकार बनाने की जुगत लगाने के बाद उन्होंने पश्चिम बंगाल के ममता राज की जड़ें हिला दी! लोकसभा चुनाव में वहाँ की 42 में से 18 सीटों पर 'कमल' खिलाकर उन्होंने पार्टी के लिए नई संभावनाएं भी जगाई! मुद्दे की बात की बात ये कि इस नेता ने उस राज्य में भाजपा की जड़ें मजबूत की, वे जहाँ की भाषा भी नहीं जानते! लेकिन, कहा जाता है कि विश्वास और उम्मीद की कोई भाषा नहीं होती! बंगाली राज्य के लोगों को ये भरोसा हो गया कि उन्हें कोई ममता बैनर्जी के अराजक राज से मुक्त करवा सकता है तो वो है भाजपा और कैलाश विजयवर्गीय! इसी विश्वास ने तो वहाँ कमाल किया है!   
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- हेमंत पाल

   भाजपा को जब लोकसभा चुनाव ने दो सीटें मिली थी, तब अटलबिहारी बाजपेई ने दावा किया था कि एक दिन भाजपा देश पर राज करेगी! उस समय लोगों को ये बात कुछ असहज लगी थी! क्योंकि, सामने कांग्रेस जैसी पार्टी थी! लेकिन, अंततः अटलजी की बात सही निकली! आज लोकसभा में भाजपा की 303 सीटें हैं। कुछ ऐसी ही कहानी पश्चिम बंगाल की है! इस राज्य में भी पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 2 सीटें मिली थी! इस बार यहाँ भी कमाल हुआ और भाजपा ने 42 में से 18 सीटों पर कब्ज़ा जमाया! लेकिन, ये सब कर पाना आसान नहीं था! पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी ने जिस तरह से अपनी पार्टी की सरकार चलाई, वहाँ किसी और पार्टी के लिए जगह बनाना मुश्किल था! हिंसा, अराजकता और हत्या जैसी घटनाएं यहाँ सामान्य बात थी। हिंदू-मुस्लिम को बाँटकर ममता बैनर्जी ने जिस तरह वोट के लिए तुष्टिकरण की राजनीति चलाई, उसमें सेंध लगाने की कोई सोच भी नहीं सकता था! लेकिन, सेंध भी लगी और चमत्कार भी हुआ! उसके पीछे एक ही व्यक्ति की मेहनत और रणनीति कारगर रही! ये हैं इंदौर के 'भाई' उर्फ़ कैलाश विजयवर्गीय! उन्होंने जिस रणनीतिक कौशल से पश्चिम बंगाल में 'कमल' खिलाया वो राजनीति के जानकारों के लिए चिंतन का विषय हो सकता है! सिर्फ पाँच महीने में उन्होंने पार्टी का आधार मजबूत किया है, जिसका नतीजा सामने है! 
   भारतीय जनता पार्टी ने बहुत सोच-समझकर ममता बैनर्जी के अभेद्य किले में सेंध लगाने के अभियान की कमान पार्टी ने कैलाश विजयवर्गीय को सौंपी थी! उन्हें पश्चिम बंगाल फतह के लिए प्रभारी बनाकर मोर्चे पर लगाया गया! वहाँ की गुंडा राजनीति को काबू करके जिस तरह भाजपा के लिए जमीन तैयार की गई, उसे वही समझ सकता है, जिसे वहाँ के राजनीति का अंदाजा हो! सोच समझकर बनाई गई, पार्टी की ये रणनीति सफल रही! देशभर में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जिन नए राज्यों में बढ़त बनाई, उनमें सबसे महत्वपूर्ण है पश्चिम बंगाल! कैलाश विजयवर्गीय ने जो कुछ किया, उसी का नतीजा रहा कि पश्चिम बंगाल में 'तृणमूल' के खिलाफ लोगों की आवाज निकली! पाँच महीने पहले जब कैलाश विजयवर्गीय को वहाँ का प्रभार सौंपा गया था, तब किसी ने ये उम्मीद नहीं की थी! क्योंकि, पश्चिम बंगाल में 'तृणमूल' के विरोध का मतलब सिर्फ मौत है! ऐसे अराजक और अलोकतांत्रिक माहौल में कैलाश विजयवर्गीय ने अपना काम शुरू किया। पूरे चुनाव में 53 भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई! खुद कैलाश विजयवर्गीय को भी धमकियाँ मिली! लेकिन, तब भी उन्होंने सुरक्षा नहीं ली! बाद में पार्टी अध्यक्ष के दबाव में कुछ दिन सुरक्षा जरूर ली, पर जल्दी वापस भी कर दी!   
   पश्चिम बंगाल का पुराना राजनीतिक इतिहास हिंसा से भरा रहा है! लेकिन, 'तृणमूल' के दो कार्यकाल में हिंसा की राजनीति कुछ ज्यादा ही पनपी! राजनीतिक विरोध का जवाब मारपीट से दिया जाने लगा! असहमति के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है! ममता राज में लोग कितने परेशान है, इस बात का पता भी कैलाश विजयवर्गीय को वहाँ जाकर लगा! इसी वजह से उन्हें लोगों का साथ भी मिला! जहाँ लोग 'तृणमूल' के झंडे और बैनर के अलावा कुछ सोच भी नहीं सकते थे! लेकिन, वहाँ विरोध और दबाव के बावजूद भाजपा के झंडे लगे! रैलियों में भीड़ बढ़ी! घरों, दुकानों पर भाजपा का चुनाव चिन्ह दिखाई देने लगा! लोग भी भाजपा को वोट देने की अपील करने लगे! जहाँ 'जय श्रीराम' बोलना अपराध था, वहां इसका उद्घोष होने लगा! इसे कैलाश विजयवर्गीय की उपलब्धि माना जाना चाहिए कि उन्होंने पश्चिम बंगाल के लोगों में ये विश्वास प्रबल किया कि भाजपा का साथ देने से उन्हें नुकसान नहीं होगा! वास्तव में ये विश्वास जीतना बेहद मुश्किल काम था। क्योंकि, वहां के लोग ये भ्रम भी पाल सकते थे, कि चुनाव का नतीजा कुछ भी हो, कैलाश विजयवर्गीय तो वापस लौट जाएंगे! ऐसे में उन्हें ममता सरकार का कोप भाजन बनना पड़ सकता है! लेकिन, ऐसा नहीं हुआ और लोग कैलाश विजयवर्गीय के साथ सड़क पर निकल आए! इसी भरोसे ने पश्चिम बंगाल में सेंधमारी का मौका दिया। पश्चिम बंगाल की 42 में से भाजपा को मिली 18 सीटें जीतने का आंकड़ा बड़ा नहीं लगे! पर, वास्तव में अप्रजातांत्रिक सत्ता के सामने पार्टी की जड़ें ज़माने के लिए ये बहुत जरुरी था। 
   इंदौर के मिल क्षेत्र के इस हरफनमौला भाजपा नेता को ऐसी चुनौतियाँ स्वीकारने की आदत रही है! इंदौर के जिस मिल क्षेत्र (विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-2) का उन्होंने बरसों तक प्रतिनिधित्व किया है! एक समय था, जब वहाँ भाजपा का कोई नामलेवा नहीं था! मिल मजदूरों के कारण 'इंटक' के प्रभाव वाले इस इलाके से उन्होंने पहली बार भाजपा को जीत का स्वाद चखाया! वे इंदौर के क्षेत्र-4 से भी चुनाव जीत चुके हैं और इंदौर  विधानसभा के महू से भी! यानी इंदौर के तीन विधानसभा से वे चुनाव जीते हैं और उनके बेटे आकाश ने इन तीनों के अलावा चौथे विधानसभा (क्षेत्र-3) से चुनाव जीतकर उनके सही उत्तराधिकारी होने का ख़म ठोंक दिया!
  कैलाश विजयवर्गीय ने भाजपा को पहली बार इंदौर के महापौर पर कुर्सी पर भी काबिज करवाया! इस नेता की खासियत ही ये है कि पार्टी इन्हें जो लक्ष्य देती है, वहाँ ये 'कमल' खिला देते हैं! इन्हें पार्टी ने पहली बार इंदौर से बाहर हरियाणा में आजमाया था! 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव प्रभारी बनाया गया! इसमें भी नतीजा भाजपा के पक्ष में रहा और वहाँ पार्टी बहुमत से चुनाव जीती! इसके बाद उन्हें पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया। हरियाणा में उनके प्रदर्शन से प्रभावित होकर ही पार्टी ने उन्हें पश्चिम बंगाल कमान सौंपी थी! वे यहाँ भी रणनीति बनाने और उसे क्रियान्वित करने में सफल रहे! ये सफलता भले भाजपा की रही हो, पर इसके पीछे रणनीतिकार तो इंदौरी 'भाई' थी रहा! 
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