आम आदमी के जहन में बरसों से पुलिस को लेकर एक ख़ास छवि रही है। लोग मानते हैं कि पुलिस सभ्य लोगों की मदद के लिए नहीं होती! क्योंकि, सभ्य लोग पुलिस से डरते हैं और नहीं चाहते कि उनसे कभी सामना करना पड़े! इसका कारण है 'खाकी' का खौफ! आम लोगों और पुलिस के बीच दूरी कम करने के सामाजिक प्रयास कई बार हुए, पर सब बेनतीजा रहे! इसका कारण है, पुलिस का अमानवीय और पक्षपाती होना! इंदौर में पिछले दिनों कुछ पुलिस वाले जिस तरह की अनैतिक गतिविधियों को लेकर बेनकाब हुए हैं, वो पुलिस का नया चेहरा है! उससे लोग सहम से गए! गुंडों से दोस्ती, आपराधिक लोगों को प्रश्रय और शराब पीकर दुष्कर्म की कोशिश ने पुलिस की वर्दी को और ज्यादा दागदार बना दिया है। आश्चर्य इस बात का कि अब छोटे पुलिसवालों के अलावा बड़े और जिम्मेदार पुलिस अफसर भी ऐसे कृत्यों में लिप्त पाए गए! लेकिन, पूरा पुलिस महकमा ऐसा नहीं हैं! लेकिन, रेवड़ में चंद काली भेड़ों
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- हेमंत पाल
जनता और पुलिस के रिश्तों को लेकर चर्चा हमेशा गर्म रहती है। शांतिप्रिय आदमी पुलिस से बचना चाहता है! इसलिए कि 'खाकी' का भय अपराधियों से ज्यादा फरियादियों को होने लगा! अपराधियों से तो पुलिस का हमेशा साबका बना रहता है, इसलिए वे तो भयभीत नहीं रहते! लेकिन, सभ्य आदमी अपनी इज्जत को लेकर पुलिस का सामना करना नहीं चाहता! पुलिस के पास कानून व्यवस्था को लेकर जितनी कानूनी शक्तियां हैं, उतनी किसी के पास नहीं! लेकिन, सरकार और समाज की सारी कोशिशें पुलिस को मानवीय नहीं बना सकीं और न उसका निरंकुश चेहरा ही बदल सका! देखा जाए तो आजादी के बाद भी जो बिल्कुल नहीं बदली, वो पुलिस ही है! इस व्यवस्था में जो बदलाव किए जाने थे, वो नहीं हो सके! इस दिशा में अभी तक होने वाली कोशिशें भी फाइलों में दबकर रह गई! इसी का नतीजा है कि पुलिस के कामकाज पर लगातार उँगलियाँ उठती रही हैं।
आज स्थिति यह है कि सामान्य लोग खाकी वर्दी से डरते हैं। उन्हें लगता है कि पुलिस सिर्फ नेताओं की सुरक्षा और गुंडों, बदमाशों और अपराधियों को संरक्षण देने के लिए है। पिछले कुछ दिनों में इंदौर में जिस तरह की घटनाएं घटी, ये मानना मज़बूरी हो गया है कि पुलिस से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं की जा सकती! इंदौर में भी पुलिस को लेकर लोगों की अकसर शिकायतें सामने आती रहती है। थानों में शिकायत करने आने वालों के साथ दुर्व्यवहार होना तो आम बात है। इसके अलावा कोई घटना होने पर फोन नहीं उठाना भी पुलिसकर्मियों की आदत है। ये भी नितांत सच है कि पुलिस के ऐसे चंद पक्षपाती और अपराधिक चरित्र वाले कर्मचारियों के कारण पूरा विभाग बदनाम हो रहा है। ये वो काली भेड़ें हैं, जो रेवड़ को बदनाम करती हैं।
पुलिस में सुधार की बात है, तो सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस व्यवस्था में सुधार के संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। उम्मीद की जा रही थी, कि राज्य सरकारें दिशा-निर्देशों का पालन करेंगी और तत्परता से कदम उठाएंगी! लेकिन, राज्य सरकारों ने पुलिस सुधारों के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई, लेकिन वे स्वेच्छा से कुछ भी करने को तैयार नहीं हुईं। राज्य सरकारें हमेशा ही पुलिस सुधारों को लेकर ढीले रवैये का परिचय देती हैं। सच तो ये है कि वे पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का परित्याग नहीं हो पा रहा! जब तक पुलिस व्यवस्था में माकूल सुधार लागू नहीं किए जाते, तब तक पुलिस की चाल, चरित्र और चेहरा शायद नहीं बदलेगा।
हाल ही में इंदौर में लोगों के प्लॉटों पर कब्जा करने वाले एक कुख्यात गुंडे का जब आपराधिक रिकॉर्ड सामने आया, तो कई पुलिस वालों के चेहरे उजागर हुए! शहर के एक थाने के तत्कालीन सीएसपी समेत ज्यादातर पुलिसवाले उस गुंडे के साथी और हिस्सेदार निकले। वे गुंडे को अपने साथ गाड़ी में घुमाते थे और जमीन पर कब्जे के लिए भी पहुंच जाते! विभाग ने इन आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई तो की, लेकिन उन प्रभावित लोगों की पीड़ा को कौन समझेगा, जिन्होंने पुलिस को उस गुंडे के मददगार के रूप देखा है! उस दर्द की दवा न तो विभाग के पास है न सरकार के! पुलिस वालों से दोस्ती ने उस गुंडे को इतना बैखौफ कर दिया था कि वो खुले आम जमीनों पर कब्जे करता, फर्जी रजिस्ट्री बनवाता और शिकायत करने वालों को झूठे मामलों में फंसाने की धौंस देता! अब इस मामले की जब सारी परतें खुलेंगी, तब कई और राज सामने आ सकते हैं!
खाकी का खौफ क्या होता है, ये सभ्य आदमी ज्यादा जानता है! शहर के एक एसआई पर पिछले दिनों आरोप लगा था कि वह शराब के नशे में फ्लैट में घुस गया और वहाँ रहने वाले युवक पर उसकी बहन से शारीरिक संबंध बनाने का दबाव बनाने लगा। उस युवक को झूठे मामले में फँसाने के लिए धमकाया और मारपीट भी की गई! उस एसआई की मांग थी, कि या तो मैं तेरी बहन के साथ संबंध बनाऊंगा, नहीं तो मुझे 20 हज़ार रुपए चाहिए! जब घटना बड़े अफसरों के सामने आई तो उसके शराब पीने, धमकी देने और जबरन पैसे मांगने पुष्टि हुई और उसके खिलाफ कार्रवाई हुई! ऐसी घटनाएं सामने आने के बाद कैसे उम्मीद की जाए कि पुलिस का काम शहर के लोगों को सुरक्षा देना है! अब खाकी के भय से तो लोग अपने घर में ही असुरक्षित होते जा रहे हैं!
इंदौर की क्राइम ब्रांच में पदस्थ एक महिला डीएसपी के खिलाफ हाल ही में इसलिए कार्रवाई की गई, कि वो बड़े अफसरों की जानकारी के बिना लेन-देन करके पुराने विवादस्पद मामलों को सुलझा रही थी! जबकि, नियम के अनुसार उन्हें शिकायती आवेदनों पर सीधे कार्रवाई का अधिकार नहीं था। उनके साथ रीडर और सिपाही को भी संलग्न पाया गया! बताते हैं कि कुछ दिनों पहले एक व्यक्ति को पकड़ा और अपने अफसरों को बिना बताए उसे थाने भेज दिया। पहले उस पर समझौते का दबाव बनाया, फिर कार्रवाई कर दी। क्राइम ब्रांच में पदस्थ अफसर सीधे आवेदन और शिकायतें नहीं ले सकते। नियम है कि एसपी (मुख्यालय) और एसएसपी द्वारा आदेशित शिकायतों की ही जांच की जाती है। जबकि, इस मामले में डीएसपी खुद ही पत्र लिखकर कार्रवाई करवा रही थीं। ये तो वे चंद किस्से हैं, जो सामने आ गए! पुलिस की अमानवीयता, पक्षपात और वसूली के किस्सों की शहर और प्रदेश में कमी नहीं है! व्यवस्था का सबसे बदरंग चेहरा पुलिस ही है, जिसके दाग धोने की कोशिश शुरू होना चाहिए! क्योंकि, कोई भी समाज तब तक नहीं सुधरता, जब तक उसके आसपास का सुरक्षा घेरा मजबूत नहीं हो! किसी गुंडे का जुलूस निकाल देने या गुंडों की अवैध संपत्ति ढहा देने से लोग खुश नहीं होंगे! ज्यादा जरुरी है पुलिस और असामाजिक तत्वों की कड़ी को तोडकर उन काली भेड़ों को ढूँढना, जो पूरे महकमे को बदनाम कर रही हैं।
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पुलिस में सुधार की बात है, तो सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस व्यवस्था में सुधार के संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। उम्मीद की जा रही थी, कि राज्य सरकारें दिशा-निर्देशों का पालन करेंगी और तत्परता से कदम उठाएंगी! लेकिन, राज्य सरकारों ने पुलिस सुधारों के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई, लेकिन वे स्वेच्छा से कुछ भी करने को तैयार नहीं हुईं। राज्य सरकारें हमेशा ही पुलिस सुधारों को लेकर ढीले रवैये का परिचय देती हैं। सच तो ये है कि वे पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का परित्याग नहीं हो पा रहा! जब तक पुलिस व्यवस्था में माकूल सुधार लागू नहीं किए जाते, तब तक पुलिस की चाल, चरित्र और चेहरा शायद नहीं बदलेगा।
हाल ही में इंदौर में लोगों के प्लॉटों पर कब्जा करने वाले एक कुख्यात गुंडे का जब आपराधिक रिकॉर्ड सामने आया, तो कई पुलिस वालों के चेहरे उजागर हुए! शहर के एक थाने के तत्कालीन सीएसपी समेत ज्यादातर पुलिसवाले उस गुंडे के साथी और हिस्सेदार निकले। वे गुंडे को अपने साथ गाड़ी में घुमाते थे और जमीन पर कब्जे के लिए भी पहुंच जाते! विभाग ने इन आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई तो की, लेकिन उन प्रभावित लोगों की पीड़ा को कौन समझेगा, जिन्होंने पुलिस को उस गुंडे के मददगार के रूप देखा है! उस दर्द की दवा न तो विभाग के पास है न सरकार के! पुलिस वालों से दोस्ती ने उस गुंडे को इतना बैखौफ कर दिया था कि वो खुले आम जमीनों पर कब्जे करता, फर्जी रजिस्ट्री बनवाता और शिकायत करने वालों को झूठे मामलों में फंसाने की धौंस देता! अब इस मामले की जब सारी परतें खुलेंगी, तब कई और राज सामने आ सकते हैं!
खाकी का खौफ क्या होता है, ये सभ्य आदमी ज्यादा जानता है! शहर के एक एसआई पर पिछले दिनों आरोप लगा था कि वह शराब के नशे में फ्लैट में घुस गया और वहाँ रहने वाले युवक पर उसकी बहन से शारीरिक संबंध बनाने का दबाव बनाने लगा। उस युवक को झूठे मामले में फँसाने के लिए धमकाया और मारपीट भी की गई! उस एसआई की मांग थी, कि या तो मैं तेरी बहन के साथ संबंध बनाऊंगा, नहीं तो मुझे 20 हज़ार रुपए चाहिए! जब घटना बड़े अफसरों के सामने आई तो उसके शराब पीने, धमकी देने और जबरन पैसे मांगने पुष्टि हुई और उसके खिलाफ कार्रवाई हुई! ऐसी घटनाएं सामने आने के बाद कैसे उम्मीद की जाए कि पुलिस का काम शहर के लोगों को सुरक्षा देना है! अब खाकी के भय से तो लोग अपने घर में ही असुरक्षित होते जा रहे हैं!
इंदौर की क्राइम ब्रांच में पदस्थ एक महिला डीएसपी के खिलाफ हाल ही में इसलिए कार्रवाई की गई, कि वो बड़े अफसरों की जानकारी के बिना लेन-देन करके पुराने विवादस्पद मामलों को सुलझा रही थी! जबकि, नियम के अनुसार उन्हें शिकायती आवेदनों पर सीधे कार्रवाई का अधिकार नहीं था। उनके साथ रीडर और सिपाही को भी संलग्न पाया गया! बताते हैं कि कुछ दिनों पहले एक व्यक्ति को पकड़ा और अपने अफसरों को बिना बताए उसे थाने भेज दिया। पहले उस पर समझौते का दबाव बनाया, फिर कार्रवाई कर दी। क्राइम ब्रांच में पदस्थ अफसर सीधे आवेदन और शिकायतें नहीं ले सकते। नियम है कि एसपी (मुख्यालय) और एसएसपी द्वारा आदेशित शिकायतों की ही जांच की जाती है। जबकि, इस मामले में डीएसपी खुद ही पत्र लिखकर कार्रवाई करवा रही थीं। ये तो वे चंद किस्से हैं, जो सामने आ गए! पुलिस की अमानवीयता, पक्षपात और वसूली के किस्सों की शहर और प्रदेश में कमी नहीं है! व्यवस्था का सबसे बदरंग चेहरा पुलिस ही है, जिसके दाग धोने की कोशिश शुरू होना चाहिए! क्योंकि, कोई भी समाज तब तक नहीं सुधरता, जब तक उसके आसपास का सुरक्षा घेरा मजबूत नहीं हो! किसी गुंडे का जुलूस निकाल देने या गुंडों की अवैध संपत्ति ढहा देने से लोग खुश नहीं होंगे! ज्यादा जरुरी है पुलिस और असामाजिक तत्वों की कड़ी को तोडकर उन काली भेड़ों को ढूँढना, जो पूरे महकमे को बदनाम कर रही हैं।
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