कमलनाथ सरकार प्रदेश की बेरोजगारी से निजात पाने के लिए भी अक्टूबर में होने वाले निवेशक सम्मेलन का उपयोग करने के मूड में हैं! उन्होंने इसका संकेत मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तत्काल बाद दे भी दिया था कि प्रदेश के उद्योगों को 70% रोजगार प्रदेश के लोगों को देना होगा! इस घोषणा का विपक्ष ने विरोध भी किया, पर इसका कोई असर नहीं हुआ! दरअसल, प्रदेश सरकार रोजगार मूलक निवेश नीति पर काम कर रही है। इसका नजारा, इस बार के निवेशक सम्मेलन में दिखाई देगा, जिसे कमलनाथ सरकार ने 'मेग्नीफिसेंट मध्यप्रदेश' नाम दिया है। ये 18 से 20 अक्टूबर तक इंदौर में होगा! इसका खाका बनाया जा चुका है और उस पर काम भी शुरू हो गया! मुख्यमंत्री ने देश के बड़े उद्योगपतियों से अपने पुराने रिश्तों का इस्तेमाल कर प्रदेश के हर जिले की जरूरत के मुताबिक निवेश लाने की योजना बनाई है।
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- हेमंत पाल
बेरोजगारी मध्यप्रदेश की एक बड़ी समस्या रही है। पिछली शिवराज सरकार भी इससे अंजान नहीं थी, लेकिन निवेश को लेकर उसकी नीति अस्पष्ट थी। इस समस्या का हल उद्योगों के अलावा और कुछ हो भी नहीं सकता! किंतु, शिवराज सरकार ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया! उनकी सरकार के लिए 'इंवेस्टर्स समिट' एक इवेंट तक सीमित था! भारी भरकम खर्च के बाद भी इसके कभी सार्थक नतीजे नहीं निकले! अब कमलनाथ सरकार के पास सबसे अच्छा मौका है, जब वे उद्योगपतियों को अपनी निवेश घोषणाओं को जमीन पर उतारने के लिए मजबूर करेंगे! कमलनाथ ने कहा भी है कि प्रदेश में आज सबसे बड़ी जरूरत युवकों के लिए सुरक्षित रोजगार के नए अवसर पैदा करना! जब तक प्रदेश में निवेश नहीं आएगा, ये काम संभव नहीं हो सकता। इसके लिए निवेशकों के बीच सरकार को विश्वास का वातावरण निर्मित करना पड़ेगा! क्योंकि, निवेश तभी आता है, जब उद्योगपति को सरकार पर भरोसा हो! निवेशक को जब भरोसा होता है, कि वे यहां आकर भ्रष्टाचार में नहीं फंसेंगे, तभी वे निवेश के लिए आगे बढ़ते हैं! प्रदेश सरकार नई निवेश नीति भी बना रही है, जो क्षेत्रवार और जिलावार होगी! क्योंकि, उद्योग के मामले में हर जिले की स्थिति अलग है।
शिवराज सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में 5 'इंवेस्टर्स समिट' हुए और लगभग हर समिट में एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के समझौतों (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए थे। मगर जमीनी स्तर पर कुछ नजर नहीं आया। कई इलाकों में किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीनें ले ली गईं, मगर कोई उद्योग नहीं लगा। कमलनाथ ने इस पर भी चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि यह सच है कि उद्योगों ने जमीन तो ले ली, मगर उद्योग नहीं लगे! क्योंकि, विश्वास नहीं था। यही कारण है कि कमलनाथ ने कुर्सी संभालते ही शिवराज सरकार की तय 'इन्वेस्टर्स समिट' रद्द कर दी, जो इसी साल 23 और 24 फरवरी को इंदौर में होने वाली थी। शिवराजसिंह चौहान को चौथी बार अपनी सरकार बनने का इतना भरोसा था कि उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले ही समिट के लिए तैयारी शुरू कर दी थी। दिल्ली और मुंबई में उद्योगपतियों के साथ मीटिंग भी कर ली थी! लेकिन, सरकार नहीं बनने से सारी उम्मीदें धरी रह गई!
कांग्रेस शुरू से ही शिवराज-सरकार कार्यकाल में होने वाली इस तरह की इंवेस्टर्स समिट का विरोध करती रही है। खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ भी 'ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट' के सरकारी पाखंड के खिलाफ रहे हैं! उन्होंने इस पर होने वाले खर्च और निवेश प्रस्तावों के मूर्त रूप न लेने को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। कमलनाथ खुद उद्योगपति हैं और निवेश की बारीकियों और उद्योगपतियों की मानसिकता को भी वे समझते हैं। देश के बड़े उद्योगपतियों से भी उनके नजदीकी रिश्ते रहे हैं। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में अपने वचन पत्र में प्रदेश में नई उद्योग नीति लाने और उद्योगों के अनुकूल माहौल बनाने का वादा भी किया था। ये सच भी किसी से छुपा नहीं है कि शिवराज सरकार के कार्यकाल में (2007 से 2016 तक) हर दूसरे साल पांच इंवेस्टर्स समिट हुई! इसमें तीन इंदौर में और एक-एक ग्वालियर व खजुराहो में हुई! इन समिट्स में देश के कई उद्योगपतियों को बुलाकर प्रदेश में निवेश के लाखों करोड़ के एमओयू साइन हुए! लेकिन, वास्तविक निवेश बहुत कम हुआ! कमलनाथ ने शिवराजसिंह चौहान के कार्यकाल में हुई इंवेस्टर्स समिट के दौरान हुए एमओयू की फाइलें निकलवाने के भी निर्देश दिए थे।
शिवराज सरकार के कार्यकाल में 'इंवेस्टर्स समिट' के नाम पर क्या होता था, इसका सही खुलासा मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में दिया था। उन्होंने बताया था कि 2014 से 2018 के बीच ‘ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ के नाम से इंदौर में 8 से 10 अक्टूबर 2014 और 22-23 अक्टूबर 2016 को समिट हुईं। इन दो आयोजनों पर 4433.86 लाख का खर्च हुआ। इन समिट में निवेश के एमओयू नहीं होकर 'ऑनलाईन इन्टेंशन टू इन्वेस्ट' (निवेश आशय प्रस्ताव) हुए थे। 2014 से 4.33 लाख करोड़ के 3175 निवेश आशय प्रस्ताव तथा 2016 में 5.62 लाख करोड़ के 2172 निवेश आशय प्रस्ताव ऑनलाईन दर्ज हुए थे। इनमें 3754 प्रस्ताव अभी भी क्रियाशील स्थिति में है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था 18-20 अक्टूबर 2019 को इंदौर में प्रस्तावित निवेशक सम्मेलन का नाम 'मेग्नीफिसेंट मध्यप्रदेश' रखा गया है। इसमें करीब 500 वास्तविक निवेशक कंपनियों को ही आमंत्रित किया गया है। कार्यक्रम पर अनुमानित खर्च लगभग 16.37 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया है।
कमलनाथ सरकार नए सिरे से निवेश लाने में जुट गई है और अपने वचन पत्र के मूल मुद्दे की और बढ़ रही है। मुख्यमंत्री खुद उद्योग जगत की समझ रखते हैं, इसलिए उनके लिए निवेश लाना मुश्किल नहीं लग रहा! भरोसे के नजरिए की बात करें, तो उन्होंने पाँच साल मजबूत सरकार का संदेश दिया है। नौकरशाही को भी उन्होंने इशारा कर दिया है कि अब पुराना ढर्रा नहीं चलेगा। प्रदेश में ज्यादा निवेश लाने के लिए कमलनाथ ने मुंबई में 'राउंड टेबल फार इन्वेस्टमेंट इन एमपी' का आयोजन किया था। इसमें मुकेश अंबानी, कुमार मंगलम बिड़ला, टाटा ग्रुप के चंद्रशेखर और शापोरजी पल्लोनजी के साइरस मिस्त्री सहित कई बड़े उद्योगपतियों से चर्चा की। हलचल देखकर लगता है कि कमलनाथ की सोच शिवराज सरकार से अलग है। निवेश के लिए शिवराज सरकार ने भी बहुत जोर लगाया था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। क्योंकि, सारी कवायद अफसरशाही के हाथ में थी! उन्होंने 'इंवेस्टर्स समिट' के नाम पर खूब चाँदी काटी! लेकिन, अब उन पर भी लगाम लग गई! अब वही उद्योगपति बुलाए जाएंगे, जो निवेश का भरोसा दिलाएंगे!
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