Tuesday, August 20, 2019

भीड़ में खो जाने वाला हरफनमौला!

- हेमंत पाल

   फ़िल्मी दुनिया में चॉकलेटी चेहरों को चांस ज्यादा मिलता है! ऐसे बहुत कम ही कलाकार हैं, जिनका चेहरा भीड़ में खो जाने वाला है, पर वे अपने अभिनय से छाप छोड़कर अपनी पहचान बनाने में कामयाब होते हैं! ऐसा ही एक चेहरा है आयुष्मान खुराना का! चेहरे-मोहरे से समाज के मध्यवर्ग का प्रतिनिधित्व करता, परेशान सा ये चेहरा कहीं से चॉकलेटी हीरो नहीं लगता और है भी नहीं! आयुष्मान का न तो फ़िल्मी बैकग्राउंड है और उनके ऊपर किसी गॉडफादर का हाथ है! वे आज जो भी हैं, अपने अभिनय के दम पर हैं! उन्होंने अपने अभिनय से बॉलीवुड में अच्छा मुकाम भी पाया और राष्ट्रीय पुरस्कार जैसा सम्मान भी! आयुष्मान का नाम आते ही उनकी एक अलग छवि उभरकर आती है। वे लीक से हटकर फिल्में करते हैं और ऐसी फिल्मों को तवज्जो भी देते हैं, जिसमें उनकी अदाकारी को पहचाना जाए। यही कारण है कि हर फिल्म में आयुष्मान का अभिनय दमदार होता है! उन्हें देखकर नहीं लगता कि वे अभिनय कर रहे हैं, लगता है जैसे वे उस रोल को जी रहे हैं।
  याद किया जाए तो 70 और 80 के दशक में हल्की-फुल्की फिल्मों का एक दौर आया था। जिसमें मध्यवर्ग की परेशानियों, अभाव भरी जिंदगियों और जिंदगी की नई-नई पैचीदगियों को ढालकर फ़िल्में बनाई जाती थी। ऐसी फिल्मों में सबसे पसंदीदा अभिनेता होते थे अमोल पालेकर! आज भी कुछ उसी तरह की फिल्मों का दौर है! लेकिन, अमोल पालेकर की जगह ले ली आयुष्मान खुराना ने! आज आयुष्मान उसी सीधे-साधे युवक की छवि को आगे बढ़ाते से लगते हैं। वे मध्यवर्ग के किरदारों में एकदम फिट बैठते हैं! उनका अभिनय फिल्म की कहानी के किरदार को असलियत में ढाल लेता है और मध्यवर्गीय दर्शक खुद को उससे आसानी से जोड़ भी लेता है। 'विक्की डोनर' से अपने करियर की शुरुआत करने वाले आयुष्मान अब तक 10 से ज्यादा फिल्में कर चुके हैं और हर फिल्म में उन्होंने अलग-अलग तरह के रोल किए।    
  आयुष्मान के लिए अभिनय का सफर आसान नहीं था। उन्होंने कई पापड़ बेले! लेकिन, उनकी किस्मत का तारा तब चमका, जब जॉन अब्राहम ने उन्हें स्पर्म डोनर जैसे बोल्ड विषय पर फिल्म के लिए चुना। इस तरह 2012 में आयुष्मान खुराना ने शुजित सरकार के डायरेक्शन में 'विकी डोनर' से अभिनय की दुनिया में पहला कदम रखा था। यह फिल्म शुक्राणु दान और बांझपन की कहानी थी। समीक्षकों ने फिल्म को सराहा और आयुष्मान के अभिनय की भी तारीफ हुई। इसके बाद 'दम लगा के हईशा' और 'बरेली की बर्फी' में भी आयुष्मान ने अपनी अदाकारी  दिखाया। 'शुभ मंगल सावधान' को भी अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। उनकी फिल्में 'बधाई हो' और 'अंधाधुन' में आयुष्मान के काम की जमकर तारीफ हुई है। 'अंधाधुन' में बेहतरीन अभिनय के लिए तो उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार देने की घोषणा की गई। 
  'बधाई हो' में उनका ऐसे बेटे का किरदार है, जिसकी माँ अधेड़ उम्र में फिर से मां बनने वाली है! शुभ मंगल सावधान, बरेली की बर्फी और दम लगा के हईशा में उनके मध्यवर्गीय परिवार वाले युवक के किरदार ने नए रंग भरे! जिस 'अंधाधुन' फिल्म में तो उनका बड़ा अजीब सा किरदार है! नायक अंधा नहीं होकर भी, संगीत के अंधे टीचर की तरह रहता है। ऐसे में वो एक हत्या का चश्मदीद गवाह बन जाता है और कहानी उलझ जाती है। देखा जाए तो आयुष्मान की अभिनय यात्रा बहुत लम्बी रही है। वे पांच साल तक चंडीगढ़ के थिएटर के साथ जुड़े रहे, जिसने उनके अभिनय को तराशा! बाद में आयुष्मान ने दिल्ली में एफएम चैनल 'बिग एफएम' में रेडियो जॉकी के रूप में काम किया। टीवी पर वे पहली बार एम-टीवी रोडीज के सीजन-2 में नजर आए। बाद में एम-टीवी पर ही पेप्सी एमटीवी वाजअप, द वाइस आफ यंगिस्तान जैसे युवाओं के कार्यक्रमों में वीडियो जॉकी बने! आयुष्मान को मल्टी टैलेंटेड कहा जा सकता है। वे सिर्फ अच्छे अदाकार ही नहीं है, वे गाते भी हैं, एंकरिंग भी करते हैं और रेडियो जॉकी का काम  उन्होंने किया ही है। यानी अभी उनके अभिनय के और भी कई रंग देखना बाकी है! 
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