- हेमंत पाल
कश्मीर और बॉलीवुड का रिश्ता दशकों पुराना रहा है। कई सुपरहिट फिल्मों को कश्मीर में फिल्माया गया है। प्रेम कहानियों के जरिए कई बार कश्मीर की वादियां और खूबसूरत घाटियों को दिखाया गया! कभी रोमांस दिखाया गया, तो कभी गानों को यहाँ फिल्माया गया! लेकिन, अब कश्मीर में बनने वाली फिल्मों में बर्फीले पहाड़ों पर सेना के जवान बंदूकों के साथ ज्यादा दिखाई देते हैं! सरकार ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म कर दिया! इस फैसले का असर कश्मीर समेत पूरे देश पर पड़ा है और आगे फिल्मों में भी दिखाई देगा। बॉलीवुड ने भी जम्मू-कश्मीर से जुड़े मुद्दे को फिल्मों के जरिए उठाया और वहाँ की त्रासदी पर कई कहानियां गढ़ी! उन्होंने कश्मीर की नैसर्गिक सुंदरता के साथ आतंकवाद के स्याह पहलुओं को भी सेलुलॉइड पर उतारा! बीते तीन दशकों में जब कश्मीर मसला ज्यादा उलझा तो जो कश्मीर की वादियाँ कभी प्रेम कहानियां फिल्माने के लिए उपयोग की जाती थी, वहाँ भटकते युवाओं और सेना की कार्रवाई को फिल्माया जाने लगा!
वक्त के साथ यहाँ की राजनीति जिस तरह बदलती रही, ये बदलाव फ़िल्मी कहानियों में भी नजर आया। कश्मीर के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव, अलगाववाद, आतंकवाद और सेना की तैनाती के कारण फिल्मों में दिखाई देने वाला खूबसूरत कश्मीर परदे पर भी बदलता गया। बर्फीले पहाड़, हरीभरी वादियां तो आज भी फिल्मों में दिखती हैं, लेकिन उनका प्रसंग बदल गया! प्रेम और रोमांस से बदलकर राजनीति, युद्ध, सेना की कार्रवाई और आतंकवाद जैसे विषयों में बदल गया। 60 के दशक में जब फ़िल्मी कहानियों में रोमांस छाया था, 90 के दशक में वो तनाव, आतंक और साजिशों में समा गया। फिल्मकारों ने भी यहाँ की खूबसूरती को छोड़कर त्रासदी को सामने लाने की ज्यादा कोशिश की। मिशन कश्मीर, रोजा, फना, सिकंदर, हैदर माचिस, एलओसी, जब तक है जान, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, हक़ से, टेंगो चार्ली और ताहन जैसी फिल्में बनी जिसमें खूबसूरत कश्मीर में छुपे दर्द को दिखाया गया! इन फिल्मों ने कश्मीर में तैनात सेना के दूसरे चेहरे, वहाँ के लोगों की परेशानियों और सामाजिक मुद्दों को दर्शकों के सामने रखा!
कश्मीर की समस्या उलझने का असर ये हुआ कि रोमांटिक कहानियों की जगह बंदूकों की आवाजों और साजिशों ने ले ली! कुछ फिल्मों में यह दिखाने की कोशिश हुई, कि कैसे घाटी में एक पूरी पीढ़ी अपनी जिंदगी बदले की आग में झोंक दी! कुछ मौकापरस्त अलगाववादी लोग कैसे राजनीति चमकाने के लिए युवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। कश्मीर मसले पर बनी फिल्मों में ऐसे कई टकराव दिखाकर देश के लोगों को यहां की काली सच्चाई से रूबरू कराने की कोशिश हुई है। इसी के साथ फिल्मकारों का नजरिया भी कश्मीर की सच्चाई के मुताबिक तेजी से बदला!
यदि कश्मीर समस्या पर बनी फिल्मों की बात की जाए तो चंद ही फ़िल्में ऐसी हैं, जो सच से रूबरू कराती हैं। 2000 में बनी फिल्म 'मिशन कश्मीर' वहाँ पनपते आतंकवाद को लेकर बनी थी। ये फिल्म अल्ताफ नाम के एक कश्मीरी युवक की कहानी थी, जो गलत रास्ते पर भटक जाता है। जबकि, उससे पहले 1992 में आई 'रोजा' प्रेम कहानी में आए मोड़ और आंतकवाद के नजरिए से आम आदमी की समस्या दिखाने की कोशिश की गई थी। फिल्म 'फ़ना' एक नेत्रहीन लड़की और आतंकवादी की प्रेम कहानी थी। 2002 में आई 'मां तुझे सलाम' का मूल विषय भी कश्मीर मसला था। लेकिन, 'हैदर' इन सबसे आगे रही। ये कश्मीरी लड़के की कहानी थी, जिसके पिता गायब हो जाते हैं! उनपर आरोप लगता है कि वो आतंकवादियों को शरण देते हैं। शाहिद कपूर ने फिल्म में बेहतरीन एक्टिंग की है फिल्म में कश्मीर के बीते हुए समय और वर्तमान को दिखाने की कोशिश की गई है। इसके बाद 'उरी' में सर्जिकल स्ट्राइक का नजारा था!
अब, जबकि कश्मीर के राजनीतिक हालात बदले हैं, फिल्म बनाने वालों ने भी अपना रुख बदल लिया! जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 प्रावधान में बदलाव के बाद बॉलीवुड इस संजीदा विषय पर फिल्म बनाने पर उतावला हो रहा है। इंडियन मोशन पिक्सर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (इम्पा), प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर्स काउंसिल में अनुच्छेद-370 पर संभावित फिल्मों के शीर्षकों को रजिस्टर कराने को लेकर निर्माताओं में होड़ मची गई! यानी समय के साथ कश्मीर की कहानी भी बदलती गई! प्रेम के बाद आतंकवाद और अब वहाँ आया बदलाव बॉलीवुड का विषय बनेगा!
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