- हेमंत पाल
अकसर इस बात के लिए फिल्मों की आलोचना की जाती है, कि फ़िल्म की कहानियों में महिला पात्रों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती! उन्हें कभी केंद्रीय भूमिका नहीं दी जाती और हीरो से रोमांस के लिए ही रखा जाता है। फिल्म की कहानी का पूरा ताना-बाना ही ऐसा बुना जाता है कि हीरो दर्शकों की नजर में बना रहे। नाच-गाने और रोमांस के अलावा नायिका को हीरो की भूमिका को सपोर्ट करने वाला ही किरदार दिया जाता रहा है। लेकिन,यदि कोई फिल्म महिला मुद्दे पर केंद्रित है, तो वह कला फ़िल्म की तरह बनकर रह जाती हैं या उन पर 'लीक से हटकर' बनी फ़िल्म का ठप्पा जड़ दिया जाता है। पर, अब यह चलन बदल रहा है। हिंदी फ़िल्मों में नई नायिका का उदय हो गया! वो अकेली हनीमून मना आती है, अपराधियों को ढूंढ लेती है और खुद गैंग भी चला लेती है।
अब फिल्मों में महिलाओं को केंद्रीय पात्र बनाने से फिल्मों का परिदृश्य भी बदल रहा है! महिला किरदारों को 'हीरो' की तरह देखा जा रहा है, जो पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलती हैं। सिर्फ कथानक ही नहीं प्रमोशंस, मार्केटिंग और पूरा अभियान ही उनके आसपास घूमता हैं। बीते कुछ सालों में ऐसी कई बेहतरीन फिल्में आई, जिनमें महिलाओं के चरित्र को इस तरह से प्रदर्शित किया गया जिससे उनका आत्मविश्वास और भावनाएं उजागर हुई हैं। ऐसी ही और फिल्मों का निर्माण हो रहा है, जो महिलाओं पर केंद्रित हैं, पर उनका महिमा मंडन नहीं करती।
जबकि, सिनेमा में लंबे समय तक पुरुषों का वर्चस्व रहा है। 'अभिमान' में जया भादुड़ी की भूमिका ऐसा ही एक उदहारण था। बीते सिनेमा की नायिकाएं हों या ‘दिलवाले दुलहनियाँ’ की या फिर ‘कुछ कुछ होता है’ की आधुनिक नायिका जो लंदन से लौटकर भी घर में आरती गाती दिखाई देती है। इसलिए कि इसी में उसकी भारतीयता दिखाने का प्रयास होता रहा है! हिंदी सिनेमा का दर्शक ऐसी ही नायक आश्रित नायिकाओं का मुरीद भी रहा है। लेकिन, बदलते वक़्त ने नायिका को नई भूमिका सौंप दी। अब फिल्मों के कथानक समय, काल और परिस्थितियों के मुताबिक बदल रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री की इसी परंपरा की ताजा कड़ी है महिला प्रधान फ़िल्में! पिछले चार-पाँच सालों में ऐसी कई फ़िल्में दिखाई दीं, जिनमें नायिका प्रधान रही! महिलाओं पर केंद्रित कहानियों पर कई फिल्में बनी, जो महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी सोच को खारिज करने और महिला सशक्तिकरण से जुड़ी थीं।
महिलाओं के मुद्दों या उनके नज़रिए को दर्शाती गुलाब गैंग, क्वीन, मर्दानी, मर्दानी-2, मैरी कॉम, दम लगा के हईशा, एन एच 10, पीकू, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, एंग्री इंडियन गॉडेस को ऐसी ही फिल्मों में गिना जा सकता है। अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'पिंक' भी महिला केंद्रित है। मीरा नायर की क्वीन आफ काटवे, नीरजा, अकीरा, सरबजीत, साला खुडूस जैसी फिल्में भी महिलाओं पर केन्द्रित फिल्में थी। सुजाय घोष की 'कहानी-2' के सस्पेंस में विद्या बालन और अर्जुन रामपाल की मुख्य भूमिकाएं हैं। लेकिन, फोकस पूरी तरह फिल्म की नायिका पर ही रहा। आमिर खान की 'दंगल' महावीर सिंह फोगट की जीवन कथा पर आधारित स्पोर्ट्स ड्रामा थी। इसमें फोगट अपनी बेटियों गीता और बबिता को कुश्ती सिखाकर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवान बनाता हैं। फिल्म 'नूर' भी महिला केंद्रित थी। 'हसीना' का मूल कथानक भी एक गैंगस्टर महिला का है। ये फिल्म कुख्यात दाउद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की जीवन शैली पर आधारित है। इसमें श्रृद्धा कपूर ने 'हसीना' की भूमिका निभाई है। देखना है कि ये दौर कब तक चलता है। कब तक नायक पगडंडी पर चलता है। क्योंकि, एक ही विषय पर फ़िल्में तब तक ही बनती है, जब तक दर्शक उन्हें पसंद करें।
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