Tuesday, February 25, 2020

रिश्ता की आँच से रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश!

   मध्यप्रदेश की कांग्रेस इन दिनों त्रिकोण में फंसी है। मुख्यमंत्री कमलनाथ और पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच कुछ दिनों से शीतयुद्ध जारी है, जिसमें शब्दबाणों से हमले किए जा रहे हैं। ये सारा शीतयुद्ध मीडिया के मैदान में चल रहा है। मीडिया ने दोनों दिग्गजों के लिए अपना मैदान खोल दिया! इस सियासी जंग के पीछे दो कारण छुपे हैं। एक कारण तो राज्यसभा की खाली होने वाली वो अतिरिक्त सीट है, जिस पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को भेजे जाने की चर्चा है! दूसरा, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद है, जिस पर अपने नेता को काबिज करने के लिए सिंधिया समर्थक लम्बे समय से लगे हैं। लगता है, इस जंग का अब निर्णायक समय आ गया! दिग्विजय सिंह ने मोर्चा संभाल लिया! वे दोनों नेताओं के बीच मध्यस्थ की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने इस मुद्दे को बातचीत से हल करके रास्ता निकालने के प्रयास किए हैं। इसके अलावा भी कुछ दबे-छुपे कारण हैं, जो इस मुलाकात से जोड़कर देखे गए हैं। 
000           

- हेमंत पाल
  
  कांग्रेस के नेता भले ही प्रदेश संगठन में सब कुछ ठीक होने के दावे कर रहे हों, पर तय है कि सब ठीक तो नहीं है। कुछ दिन थमकर विवादों की आंधी का गुबार फिर चलने लगता है, जिससे पूरा सियासी माहौल धूल-धुसरित हो जाता है। पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अब सरकार के वचन-पत्र पर उंगली उठाकर मुख्यमंत्री कमलनाथ को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की! सिंधिया का ये हमला कितना सही है या गलत, मुद्दा ये नहीं है! असल बात ये कि ऐसी स्थितियां क्यों बनी कि उन जैसे बड़े नेता को एक अराजनीतिक मंच पर सरकार को चुनौती देने की जरुरत पड़ गई! क्या इसलिए कि जब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को कोई पद मिलने का जिक्र चलता है, उसमें अड़ंगेबाजी शुरू हो जाती है। पहले जब प्रदेश अध्यक्ष का नाम चला, तो किसी आदिवासी नेता को पद देने का मुद्दा उछालकर उस पर पानी झोंक दिया गया! अब उनकी नाराजी को राज्यसभा की खाली होने वाली सीट से जोड़कर देखा जा रहा है। इस सीट से सिंधिया को भेजे जाने की बात चली है।       
 अप्रैल में मध्यप्रदेश से राज्यसभा की तीन सीट खाली हो रही है। इनमें दो कांग्रेस को और एक भाजपा को मिलने के कयास लगाए गए हैं। एक सीट से दिग्विजय सिंह को फिर भेजे जाने का जिक्र किया जा रहा है। दूसरी सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को दावेदार माना जा रहा है। लेकिन, जिस एक सीट से सिंधिया का नाम आने की संभावना है, वहां से प्रियंका गांधी का नाम भी उछाल दिया गया! जबकि, प्रियंका के मध्यप्रदेश से राज्यसभा जाने के आसार कम ही हैं। लेकिन, विवादों का जो गुबार उठा है, उसे थामना जरुरी है। क्योंकि, राज्यसभा की तीसरी सीट कांग्रेस को तभी मिल सकती है, जब सारे विधायक एकजुट हों! यदि सेबोटेज हुआ तो भाजपा के खाते में दो सीट जाने का अंदेशा है। लेकिन, इसके लिए जरुरी है कि बड़े नेताओं के बीच मतभेद खत्म किए जाएं! दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुलाकात का असल मकसद यदि यही है, तो तय है कि आने वाले दिनों में समीकरण बदलेंगे!   
   अब जरा वो गणित भी समझ लिया जाए, जिसे लेकर सियासत का पारा गरमा रहा है। राज्यसभा की तीन में से दो सीटों पर तो कांग्रेस और भाजपा के एक-एक नेता के चुने जाने के आसार हैं! लेकिन, तीसरी सीट के लिए कांग्रेस को दो विधायकों के समर्थन की जरुरत पड़ेगी, जबकि भाजपा को 9 विधायकों में सेंध लगाना पड़ेगा। चुनाव के फार्मूले के मुताबिक हर उम्मीदवार को 58 विधायकों के वोट की जरुरत होगी। फिलहाल 230 विधानसभा में विधायकों की संख्या 228 है! दो सीटें खाली है। कांग्रेस के पास 114 व भाजपा के 107 विधायक हैं। इस गणित से कांग्रेस को दूसरी सीट जीतने के लिए बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी व निर्दलीय विधायकों का समर्थन जरूरी होगा। कांग्रेस के लिए दो विधायकों की जुगाड़ मुश्किल नहीं है, भाजपा के लिए ये तभी संभव है जब वो कांग्रेस में फूट का फायदा उठाने में कामयाब जाए! 
  सियासत में चल रही इस उठापटक के बीच कांग्रेस में विपरीत ध्रुव के रूप में विख्यात दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच की बातचीत को लेकर मीडिया में कई तरह के अनुमान लगाए! इस मुलाकात को लेकर मीडिया में जो मसाला तैयार किया है, उसके मुताबिक राज्यसभा की सीट के अलावा प्रदेश अध्यक्ष बड़ा मसला है। सिंधिया समर्थक तो दोनों ही कुर्सियों के लिए जिद किए बैठे हैं। लेकिन, यदि दोनों के बीच बातचीत की कोई संभावना भविष्य में बनती है, तो शायद इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजी को कुछ हद तक दूर करने की कोशिश जरूर होगी। क्योंकि, राज्यसभा को लेकर कांग्रेस में जो अटकलबाजियां है, उसका फैसला अंततः पार्टी आलाकमान को करना है। पार्टी की उस असहजता को दूर करने के लिए भी दोनों ने बीच कोई ऐसा रास्ता तो निकाला होगा, जिससे भाजपा को पार्टी में सेंध लगाने का मौका न मिले, जिसकी आशंका पार्टी को सता रही है। कारण कि सियासी असंतुलन के माहौल में पार्टी कोई जोखिम लेना भी नहीं चाहेगी।
  कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का सवाल भी अहम् है। क्योंकि, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष भी हैं! इस पद पर कौन बैठेगा इसे लेकर असमंजस बरक़रार है। जब भी अध्यक्ष पद की बात चलती है, सिंधिया समर्थक अपने नेता को इसके लिए सही चेहरा बताते हैं! लेकिन, जो इससे असहमत हैं, वे इस पद पर किसी आदिवासी को बैठाने की बात करते हैं। इसके पीछे मूल कारण ये बताया जाता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 में से 31 सीटें जीती हैं। कमलनाथ भी किसी आदिवासी नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, ताकि आदिवासियों में संदेश जाए कि पार्टी उनके साथ है। अध्यक्ष पद की इस दौड़ में अब तक बाला बच्चन, उमंग सिंघार, ओमकारसिंह मरकाम और कांतिलाल भूरिया का नाम सामने आ चुका है। 
  कांग्रेस महासचिव और पार्टी के मध्यप्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने तो सिंधिया और कमलनाथ के बीच भी मुलाकात की संभावना जताई है। उन्होंने कहा कि दोनों नेता विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस द्वारा जनता से किए वादों को पूरा करने के तरीकों पर बात करेंगे। दोनों लंबित मुद्दों पर काम करेंगे और विभिन्न वर्गों के लोगों की चिंताओं और मांगों का समाधान निकालेंगे। उन्होंने दोनों के बीच मतभेद की संभावनाओं को भी नकार दिया। लेकिन, सभी जानते  ये पूरा सच नहीं है। दोनों नेताओं के बीच तनाव का जो रिश्ता है, उसकी गर्माहट को सियासत में महसूस किया जा रहा है! लेकिन, दिग्विजय सिंह की मध्यस्थता से दोनों के बीच जमी बर्फ पिघलेगी और पार्टी एकजुट होगी!
-----------------------------------------------------------------------------------------  

No comments: