Saturday, July 4, 2020

एक गीत के नाम लिखी फिल्म की कामयाबी!

- हेमंत पाल

   हिंदी फिल्मों की दुनिया अजीब है। जिस तरह से नमक के बिना खाने के स्वाद की कल्पना करना मुश्किल है, उसी तरह गानों के बगैर फिल्मों के बारे में सोचना भी उतना ही मुश्किल है। राज कपूर, देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार और राजेश खन्ना जैसे सितारों ने तो रूपहले पर्दे पर झूमते हुए गाने गाकर ही बाॅक्स ऑफिस पर कब्जा ज़माने में सफलता पाई थी। लेकिन, कुछ फिल्में ऐसी भी हैं, जो केवल एक गाने के कारण बाॅक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ इकट्ठा करने में कामयाब रही। कभी ये कव्वाली रही, कभी ग़ज़ल तो कभी शादियों में गाए जाने वाले गीत!
  एक गीत की बदौलत बाॅक्स ऑफिस पर सिक्कों की बरसात कराने में संगीतकार रवि बेजोड़ रहे। उनकी एक नहीं, कई ऐसी फिल्में हैं, जो केवल एक गाने के कारण दर्शकों ने बार-बार देखी! ऐसी ही फिल्मों में एक है शम्मी कपूर की 'चायना टाउन' जिसका गीत 'बार बार देखो, हजार बार देखो' तब जितना मशहूर हुआ था, आज भी उतना ही मशहूर है। शादी ब्याह से लेकर पार्टियों में जहां कई नौजवानों को संगीत के साथ थिरकना होता है, इसी गीत की डिमांड होती है। रवि की दूसरी फिल्म हैं 'आदमी सडक का' जिसका गीत 'आज मेरे यार की शादी है' बारात का नेशनल एंथम बनकर रह गया है। इसके बीना दुल्हे के दोस्त आगे ही नहीं बढते! इसी तरह दुल्हन की बिदाई पर 'नीलकमल' का रचा गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा' ने दर्शकों की आंखें नम तो की, फिल्म की सफलता में भी बहुत योगदान दिया।
     रवि ने आरएटी रेट (दिल्ली का ठग), तुम एक पैसा दोगे वह दस लाख देगा (दस लाख ), मेरी छम छम बाजे पायलिया (घूँघट), हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं (घराना), हम तो मुहब्बत करेगा (बाम्बे का चोर), ए मेरे दिले नादां तू गम से न घबराना (टाॅवर हाउस ), सौ बार जनम लेंगे सौ बार फना होंगे (उस्तादों के उस्ताद), आज की मुलाकात बस इतनी (भरोसा), छू लेने दो नाजूक होंठों को (काजल ), मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी कभी (आंखे), तूझे सूरज कहूं या चंदा (एक फूल दो माली), दिल के अरमां आंसुओं में बह गए (निकाह) जैसे एक गीत की बदौलत पूरी फिल्म को दर्शनीय बना दिया!
   फिल्मों को बाॅक्स आफिस पर कामयाबी दिलवाने वाले अकेले गीतों में दिल के टुकडे टुकडे करके मुस्करा के चल दिए (दादा), आई एम ए डिस्को डांसर (डिस्को डांसर), बहारों फूल बरसाओ (सूरज), परदेसियों से न अंखियां मिलाना (जब जब फूल खिले), चांद आहें भरेगा (फूल बने अंगारे), चांदी की दीवार न तोडी (विश्वास), शीशा हो या दिल हो (आशा), यादगार हैं। सत्तर के दशक में एक फिल्म आई थी 'धरती कहे पुकार के' जिसका एक गीत 'हम तुम चोरी से बंधे इक डोरी से' इतना हिट हुआ था कि इसी गाने की बदौलत यह औसत फिल्म सिल्वर जुबली मना गई। इंदौर के अलका थिएटर में तो उस दिनों प्रबंधकों को फिल्म चलाना इसलिए मुश्किल हो गया था कि काॅलेज के छात्र रोज आकर सिनेमाघर में जबरदस्ती घुस आते और इस गाने को देखकर ही जाते थे। कई बार तो ऐसे मौके भी आए जब रील को रिवाइंड करके छात्रों की फरमाइश पूरी करना पड़ी।
   हिंदी सिनेमा में एक दौर ऐसा भी आया जब किसी सी-ग्रेड फिल्म की एक कव्वाली ने दर्शकों में गजब का क्रेज बनाया था। इस तरह की फिल्मों में स्टंट फिल्म बनाने वाले फिल्मकार और आज के सफल समीक्षक तरूण आदर्श के पिता बीके आदर्श निर्मित फिल्म 'पुतलीबाई' भी शामिल है। फिल्म की नायिका आदर्श की पत्नी जयमाला थी। इस फिल्म की एक कव्वाली 'ऐसे ऐसे बेशर्म आशिक हैं ये' ने इतनी धूम मचाई थी, कि सी-ग्रेड फिल्म 'पुतलीबाई' ने उस दौरान प्रदर्शित सभी फिल्मों को पछाडते हुए सिल्वर जुबली मनाई थी। इसके बाद तो हर दूसरी फिल्म में कव्वाली रखी जाने लगी। 'पुतलीबाई' के बाद एक और फिल्म आई थी नवीन निश्चल, रेखा और प्राण अभिनीत 'धर्मा' जिसमें प्राण और बिंदू पर फिल्माई कव्वाली 'इशारों को अगर समझों राज को राज रहने दो' ने सिनेमा हाॅल में जितनी तालियां बटोरी बॉक्स आफिस पर उससे ज्यादा सिक्के लूटने में सफलता पाई।    इसके बाद कव्वाली का दौर थमा,तो फिल्मकारों ने इससे पीछा छुड़ाकर फिर गजलों पर ध्यान केंद्रित किया। एक गजल से सफल होने वाली फिल्मों में राज बब्बर, डिम्पल और सुरेश ओबेराय की फिल्म 'एतबार' (किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है) और 'नाम' (चिट्ठी आयी है) प्रमुख हैं। इस तरह देखा जाए तो हिंदी फिल्मों का मिजाज बड़ा अजीब है, कभी फिल्में दर्जनों गानों के बावजूद हिट नहीं होती तो कभी बिना गाने और महज एक गाने के दम पर बाॅक्स ऑफिस पर सारे कीर्तिमान तोड़ देती है।
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