- हेमंत पाल
हिंदी फिल्मों के इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो दिखने में आता है कि शुरुआती काल से अब तक ज्यादा प्रयोग नहीं किए गए। जिस विषय को दर्शकों ने पसंद किया, उसी ढर्रे पर फिल्म बनाई जाने लगी। फिल्मों के विषयों पर नजर दौड़ाई जाए तो अधिकांश फ़िल्में कुछ तय विषयों की मोहताज रही है। सफल और असफल प्रेम कहानियां, खून का बदला खून, पारिवारिक विवाद, अमीरी-गरीबी की लड़ाई, डाकुओं का आतंक, गुंडागर्दी, देशभक्ति, राज परिवारों के षडयंत्र, कॉमेडी और जासूसी यानी सीक्रेट एजेंटों पर ही ज्यादा फ़िल्में बनी और ये आज भी जारी है। इसके अलावा जो प्रयोग हुए वो दर्शकों को ज्यादा आकर्षित नहीं कर सके। श्याम बेनेगल और सत्यजीत रॉय ने जरूर फ़िल्मी विषयों की जड़ता को तोडा, पर इनकी फिल्मों के दर्शक सीमित रहे! ब्लैक एंड व्हाइट से अभी तक की फिल्मों पर नजर दौड़ाई जाए, तो प्रेम कथाओं के बाद जासूसी पर आधारित फिल्मों को सबसे ज्यादा पसंद किया गया।
जासूसों के बारे में आम धारणा है कि इन्हें हमेशा से देशभक्त और अपने कर्त्तव्य के लिए जान तक देने वाला जांबाज माना जाता है। दुश्मन के खिलाफ वो अपने हर मंसूबे में कामयाब होता है। लेकिन, ये धारणा फिल्मों के जासूसों के लिए ही ठीक है। वास्तविक जासूसों के कारनामे कभी फिल्मी कथाओं की तरह सामने नहीं आ पाते! लेकिन, फिल्मों में जासूसों की जो छवि बनाई गई है, वो सच्चाई से बहुत अलग है! फिर भी दर्शक ऐसी फिल्मों के दीवाने होते हैं। क्योंकि, इन विषयों पर बनने वाली फिल्मों में जमकर एक्शन के साथ और रोमांस और देशभक्ति का तड़का होता है। फिल्म का हीरो अपनी जासूसी के कर्त्तव्य के साथ देश के प्रति ऐसा समर्पण दिखाता है कि दर्शक में भी देशभक्ति का जज्बा कुंचाले भरने लगता है। जासूसी पर बनी फिल्मों में वो सारा मसाला होता है, जो फिल्म को हिट बनाने के लिए जरूरी है। खुफिया एजेंसी 'रॉ' और 'आईबी' से जुड़े एजेंटों पर कई फिल्में बनाई गई। ये एजेंट दुश्मन देश में घुसकर वहां जासूसी करते हैं और साजिशों को असफल करने का कोई मौका नहीं छोड़ते! जासूसी कहानियां हॉलीवुड का सबसे सफल विषय रहा है, इसलिए इसे बॉलीवुड ने भी इसे जमकर भुनाया! सीक्रेट एजेंट ऐसा हॉट केक विषय है, जिसे कोई छोड़ना नहीं चाहता। सामाजिक फिल्मों बनाने वाले 'राजश्री' ने भी 1977 में महेंद्र संधु को लेकर 'एजेंट विनोद' बनाई। ये फिल्म एक विख्यात साईंटिस्ट को अपहर्ताओं से छुड़ाने पर बनी थी। बाद में 2012 में भी इसी नाम से फिल्म बनाई गई थी।
फिल्मों में हीरो को सीक्रेट एजेंट बनाकर कथानक गढ़ने का काम आजादी के बाद बनी फिल्मों में ज्यादा दिखाई दिया। उसके बाद से अब तक ये विषय न तो पुराना पड़ा और न इस तरह की फिल्मों के प्रति दर्शकों का जुनून कम हुआ। रवि नगाइच ने 1967 में जितेंद्र को हीरो बनाकर 'फर्ज' बनाई थी। इसमें जितेंद्र ने सीक्रेट एजेंट-116 की भूमिका निभाई, जो अपने साथी एजेंट की हत्या का राज खोलता है। 'रामायण' जैसा सफल टीवी सीरियल बनाने वाले रामानंद सागर ने धर्मेंद्र को लेकर 1968 में 'आंखें' बनाई। ये देश के खिलाफ षड़यंत्र रचने वाले गिरोह को ख़त्म करने की कहानी थी। इसमें धर्मेंद्र ने देशभक्त जासूस की भूमिका निभाई थी। ये पूरी तरह फार्मूला फिल्म थी, जो सुपरहिट रही। मिथुन चक्रवर्ती के शुरूआती फिल्म करियर में जो फ़िल्में सफल हुई, उनमें एक 1979 में बनी 'सुरक्षा' भी है। ये फिल्म हॉलीवुड की जेम्सबांड जैसी फिल्मों की नकल थी। इसमें मिथुन का किरदार सीक्रेट एजेंट 'गनमास्टर जी-9' का था, जो देश के दुश्मनों के षड़यंत्र का राज खोलता है।
इसके बाद लम्बे अरसे तक इस विषय को लेकर फिल्मकारों ने उत्सुकता नहीं दिखाई! देशभक्ति की फ़िल्में तो बनी, पर उसमें जासूसी कहीं नहीं दिखाई दी। 2002 में मणिरत्नम ने इसी विषय पर '16 दिसंबर' बनाई। ये पाकिस्तान के आतंकवाद पर आधारित फिल्म थी। मिलिंद सोमन अभिनीत इस फिल्म का कथानक 1971 की हार के बाद पाकिस्तान की सेना के एक रिटायर्ड अधिकारी की दिल्ली पर परमाणु बम से हमला करने की साजिश पर गढ़ा गया था। लेकिन, फिलहाल के दौर में सीक्रेट एजेंट विषय पर सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली फिल्म रही 2012 में आई 'एक था टाइगर' और 2017 में आई इसकी अगली कड़ी 'टाइगर जिंदा है!' इसकी आगे की कड़ियां आना बाकी है। सलमान खान और कैटरीना कैफ की इस फिल्म में सलमान रॉ एजेंट हैं, जिस पर एक एनआरआई वैज्ञानिक की गतिविधियों पर नज़र रखने का काम है। मोहब्बत और फर्ज के बीच झूलती इस फिल्म में वो सारे मसाले हैं, जो सलमान को चाहने वाले देखना। कहा जाता है कि यह फिल्म भारत के एक पूर्व रॉ एजेंट रविन्द्र कौशिक की सच्ची कहानी पर आधारित है। लेकिन, इसमें काफी बदलाव किए गए हैं।
हमारे देश में बनने वाली सीक्रेट एजेंट की कहानियों वाली फिल्मों में लीड रोल आमतौर पर पुरुष पात्र ही निभाते आए हैं। लेकिन, विद्या बालन ने 2012 में आई फिल्म 'कहानी' में इस धारणा को खंडित किया। इसमें उन्होंने जासूस की भूमिका निभाई थी। सुजॉय घोष के निर्देशन में बनी इस फिल्म में विद्या बालन ने ऐसी महिला का किरदार निभाया, जिसका पति गुम हो जाता है और वो उसकी खोज करती है। इसके बाद 2018 में आई 'राजी' में आलिया भट्ट ने रॉ एजेंट की भूमिका की। मेघना गुलजार की इस फिल्म में पिता के कहने पर राजी पाकिस्तानी सेना के अधिकारी के बेटे से शादी कर लेती है, जिससे वह दुश्मन देश के बारे में जानकारी ले सके। 'नाम शबाना' भी एक ऐसी ही फिल्म थी जिसमें महिला सीक्रेट एजेंट अपने कामयाब होती है। फिल्म में तापसी पन्नू ने शबाना का किरदार निभाया था।
2013 में दो ऐसी फ़िल्में आई, जिनका कथानक जासूसी पर केंद्रित था। एक थी कमल हासन की 'विश्वरूपम' और दूसरी थी जॉन अब्राहम की 'मद्रास कैफे!' फिल्म 'विश्वरूपम' वैश्विक आतंकवाद के बढ़ते खतरे पर बनी थी। इसमें एक महिला अपने पति पर जासूस होने का शक करती है। लेकिन, बाद में निकलता कुछ और है। जबकि, शुजित सरकार की 'मद्रास कैफे' राजीव गांधी हत्याकांड पर बनी थी। इसमें जॉन ने रॉ एजेंट विक्रम सिंह का किरदार निभाया था। फिल्म में श्रीलंका के उस समय के हालात और लिट्टे की गतिविधियों को दर्शाया गया था। नीरज पांडे ने भी 2015 में अक्षय कुमार को लेकर 'बेबी' बनाई, जिसका कथानक आतंकवादी सरगना मौलाना की आतंकवादी हमले की साजिश रचने पर आधारित था। फिल्म में 'बेबी' भारत की ख़ुफ़िया टीम के मिशन का नाम होता है। नीरज पांडे ने बाद में इसी विषय पर 'अय्यारी' भी बनाई थी। इसी साल (2015) में बांग्ला के मशहूर प्राइवेट जासूस ब्योमकेश बख्शी पर आधारित फिल्म 'डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी' भी आई, जिसका निर्देशन दिबाकर बनर्जी ने किया था। इसमें दूसरे विश्व युद्ध के समय काल की कहानी को फिल्माया गया था। 40 के दशक ये फिल्म पूरी तरह जासूसी कलेवर में थी।
इसके अलावा जासूसी पर जो फ़िल्में बनी, उनमें अमिताभ बच्चन की 70 के दशक में आई 'द ग्रेट गैम्बलर' भी थी, जिसमें उन्होंने अंडरकवर कॉप की भूमिका निभाई थी। 'डी डे' में इरफान खान रॉ के स्पेशल एजेंट की भूमिका में थे। श्रीराम राघवन ने सैफ अली खान को लेकर 'एजेंट विनोद' बनाई, जिसमें हीरो कोड क्रेक करते हुए पाकिस्तान पहुंच जाता है। सनी देओल ने भी 'द हीरो' में ऐसी ही भूमिका की थी, जो दुनिया को न्यूक्लियर हमले से बचाने का काम करते हैं। हुसैन जैदी की किताब 'मुंबई एवेंजर्स' पर बनी फिल्म 'फैंटम' में सैफ अली खान ने मुख्य भूमिका की थी। फिल्म में वे रॉ एजेंट थे, जो ऐसे कवर्ड ऑपरेशन को अंजाम देता है, जो 26/11 मुंबई हमले के पीछे मास्टरमाइंड था।
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