- हेमंत पाल
यह शाश्वत सत्य है कि जब जीवन में कोई दवा काम नहीं आती, वहाँ दुआ अपना असर दिखाती है। ये सिर्फ निजी जीवन में ही नहीं होता, फिल्मों में भी होता है। क्योंकि, हिन्दी फ़िल्में कहीं न कहीं लोगों के जीवन से जुड़ी होती है। फिल्मों में शुरुआत से अब तक ऐसे दृश्यों, संवादों और गीतों की भरमार है, जिसमें आपात स्थिति में कभी नायक तो कभी नायिका मंदिर का दरवाजा खटखटाते हैं और भगवान से कुछ अच्छा होने की उम्मीद करते हैं। सिनेमा हाल में बैठे दर्शक भी किसी चमत्कार की आशा करते हैं और चमत्कार होने पर तालियां बजाते हैं।
अमिताभ बच्चन की सफल फिल्मों में से एक 'दीवार' फिल्म को ही लीजिए। फिल्म का नायक हमेशा मंदिर की सीढ़ियों के बाहर बैठा मिलता है। वह नास्तिक है, भगवान को नहीं मानता। लेकिन, फिल्म के अंत में जब उसकी मां की जान पर आन पडती है, वह भी लड़खड़ाते हुए, गिरते पड़ते मंदिर का घंटा थामकर जब कहता है 'आज खुश तो बहुत होगे' तो सिनेमाहाल में सन्नाटा छा जाता है। नाटकीय संवादों की अदायगी के बाद जब अमिताभ मंदिर से बाहर निकलता है तो ईश्वर की दुआ साथ लेकर जाता है।
फिल्मकार मनमोहन देसाई ऐसे चमत्कार दिखाने में उस्ताद थे। उन्हें दर्शकों की नब्ज पकडना आता था। वे जानते थे कि हिंदी फिल्मों का दर्शक चमत्कार को स्वीकारता है और उसे नमस्कार भी करता था। यही कारण है कि 'अमर अकबर एंथोनी' में उन्होंने 'आया है तेरे दर पर सवाली' जैसा साईं भक्ति गीत जोड़कर चमत्कार दिखाया था। बरसों से अंधी निरूपाराय को आंख के साथ बेटा भी मिल जाता है। देव आनंद जैसे ग्लैमरस स्टार की फिल्मों में इस तरह के चमत्कारिक दृश्य कम ही देखे गए। लेकिन, 'गाइड' में पानी न बरसने से उसके साथ उपवास करते ग्रामीणों की परेशानी देखकर ईश्वर से सवाल कर बैठता है 'यह जिंदगी रहे ना रहे, मैं नहीं जानता कि तू हैं या नहीं, यदि तू है तो अपने बच्चों की सुन!' इसके बाद ईश्वर वाकई 'अल्लाह मेघ दे पानी दे' सुनकर अकालग्रस्त गांव को अपने आशीर्वाद की बौछारों से सराबोर कर देता है।
भगवान को न मानने वाले नायक का भगवान के दरवाजे पर आकर दुआ मांगने का दृश्य पहले हर दूसरी फिल्म में शामिल किया जाता था। दर्शक भी समझ जाते थे, कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन दीवार, अमर अकबर एंथोनी और 'गाइड' जैसे दृष्य कभी कभार बन पाते हैं। ऐसे दर्जनों गीत हैं जिसमें थक हारकर ईश्वर से प्रार्थना के बोल होते हैं। ऐसे प्रार्थना गीत हर समय से दर्शकों को पसंद रहे हैं और गाहे-बगाहे सुनाई दे जाते हैं। देव आनंद की तरह ही शम्मी कपूर को भी पर्दे पर अक्सर नास्तिक ही दिखाया गया। लेकिन, उन्होंने भी 'उजाला' में 'अब कहां जाएं हम' फिल्म 'सच्चाई' में 'ओ मेरे खुदा ओ मेरे परमात्मा' जैसे गीत गाए हैं। 'तुमसे अच्छा कौन है' में अपनी अंधी बहन के बलात्कारी को खोजने में हताश शम्मी कपूर जब मंदिर जाकर अपने को कोसते हुए प्रार्थना करता है, तो उसे खलनायक का लॉकेट मिल जाता है और उसके साथ दर्शक भी राहत सांस लेते हैं।
इस तरह के प्रार्थना गीतों में 'दो आंखे बारह हाथ' का गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' आज भी परेशानी में हौंसला बढ़ाता है। दिलीप कुमार की फिल्मों में भगवान और दिलीप कुमार के बीच के संवाद दृश्य बहुत पसंद किए जाते थे। उनकी फिल्म 'दिल दिया दर्द लिया' भले ही असफल रही हो, पर फिल्म में दिलीप कुमार और भगवान शंकर के बीच फिल्माए गए संवाद बहुत लोकप्रिय हुए थे। वैसे तो परदे पर 'आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है' और 'इंसाफ का मंदिर है ये भगवान का घर है' जैसे गीतों के जरिए दर्शकों को भावनाओं में बहाने में कामयाब रहे हैं।
भगवान को न मानने वाले नायक का भगवान के दरवाजे पर आकर दुआ मांगने का दृश्य पहले हर दूसरी फिल्म में शामिल किया जाता था। दर्शक भी समझ जाते थे, कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन दीवार, अमर अकबर एंथोनी और 'गाइड' जैसे दृष्य कभी कभार बन पाते हैं। ऐसे दर्जनों गीत हैं जिसमें थक हारकर ईश्वर से प्रार्थना के बोल होते हैं। ऐसे प्रार्थना गीत हर समय से दर्शकों को पसंद रहे हैं और गाहे-बगाहे सुनाई दे जाते हैं। देव आनंद की तरह ही शम्मी कपूर को भी पर्दे पर अक्सर नास्तिक ही दिखाया गया। लेकिन, उन्होंने भी 'उजाला' में 'अब कहां जाएं हम' फिल्म 'सच्चाई' में 'ओ मेरे खुदा ओ मेरे परमात्मा' जैसे गीत गाए हैं। 'तुमसे अच्छा कौन है' में अपनी अंधी बहन के बलात्कारी को खोजने में हताश शम्मी कपूर जब मंदिर जाकर अपने को कोसते हुए प्रार्थना करता है, तो उसे खलनायक का लॉकेट मिल जाता है और उसके साथ दर्शक भी राहत सांस लेते हैं।
इस तरह के प्रार्थना गीतों में 'दो आंखे बारह हाथ' का गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' आज भी परेशानी में हौंसला बढ़ाता है। दिलीप कुमार की फिल्मों में भगवान और दिलीप कुमार के बीच के संवाद दृश्य बहुत पसंद किए जाते थे। उनकी फिल्म 'दिल दिया दर्द लिया' भले ही असफल रही हो, पर फिल्म में दिलीप कुमार और भगवान शंकर के बीच फिल्माए गए संवाद बहुत लोकप्रिय हुए थे। वैसे तो परदे पर 'आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है' और 'इंसाफ का मंदिर है ये भगवान का घर है' जैसे गीतों के जरिए दर्शकों को भावनाओं में बहाने में कामयाब रहे हैं।
निराशा और हताशा के समय में हमारे फिल्मी गाने प्रेरक साबित होकर वैक्सीन या बूस्टर की भूमिका निभाते हैं। इन दर्जनों गीतों में मोला मेरे मोला, तेरे दर पर आया हूं कुछ करके जाऊंगा, तेरे द्वार खड़ी दुखियारी, अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम, ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूं, इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना, तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो, हमको मन की शक्ति देना, ओ पालन हारे निर्गुण और न्यारे तुमरे बिन हमरा कोनू नाही जैसे प्रार्थना गीत न केवल मन की शांति देते हैं, बल्कि परेशानी से जूझते हुए आगे बढ़ने और मुसीबत को हराकर उसे जीतने की प्रेरणा भी देते हैं।
दरअसल, प्रार्थना निर्बल और सभी तरह से हताश इंसान की सबसे बड़ी शक्ति है। प्रार्थना के स्वर में गुथी तडप धरती से होकर सीधे आसमान पर बैठे ईश्वर तक पहुंचती है । जब आज की तरह कोरोना से लड़ते इंसान के सारे उपाय निष्फल हो रहे हैं और आस की डोर टूटने लगी है, तो अनायास वह सबकुछ भूलकर उस पर विश्वास कर कहने लगा है 'जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए तुम देना साथ मेरा' ऐसे में उसे यकीन भी है, कि उसकी प्रार्थना भगवान तक जरूर पहुंचेगी।
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