Monday, May 3, 2021

संगीत ही नहीं, किस्से भी जुड़े इन गीतों से!

हेमंत पाल

      सिनेमा के इतिहास में कई कालजयी फ़िल्में दर्ज हैं, उनमें सबसे ऊपर नाम है के. आसिफ की 'मुगले आजम' का! उन्होंने इस फिल्म को बनाने में जितना समय लगाया, उतना ही वक़्त इसके संगीत को रचने में भी लगा! यही कारण है कि इस फिल्म के गीत आज भी अपने माधुर्य के कारण पसंद किए जाते हैं। इसका संगीत नौशाद ने दिया था। संगीत को लेकर के. आसिफ और नौशाद के बीच खींचतान के किस्से काफी चर्चित रहे। बताते हैं कि आसिफ ने जब  नौशाद को बतौर एडवांस पैसे दिए, तो नौशाद गुस्से में आ गए और पैसे लौटा दिए! ऐसा क्यों हुआ, ये   कभी साफ़ नहीं हुआ। बाद में बड़ी मनौव्वल के बाद वो संगीत देने के लिए तैयार हुए थे। नौशाद ने राग दरबारी, राग दुर्गा, राग केदार और राग बागेश्री जैसी शास्त्रीय धुनों के आधार पर गाने तैयार किए। यही कारण है कि जब प्यार किया तो डरना क्या, प्रेम जोगन बन के, मोहे पनघट पे, मोहब्बत की झूठी कहानी पर रोए जैसे गाने आज भी ताजा हैं।
   'मुगले आजम' के लिए बड़े गुलाम अली खान गाने को तैयार नहीं थे। लेकिन, उन्होंने मना करना ठीक नहीं समझा और बहुत ज्यादा पैसे मांग लिए। के. आसिफ तो इसके लिए भी तैयार हो गए। इस फिल्म के एक गीत 'मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे' गाने को लेकर एक निर्देशक ने आसिफ और नौशाद के सामने एक ये आशंका भी जताई थी, कि दर्शक शायद एक मुस्लिम बादशाह को होली मनाते देखना मंजूर नहीं करें। ऐसा न हो कि इस गाने को लेकर कोई बवाल न हो! लेकिन, फिल्म का कथानक में ऐसा ताना-बाना बुना गया था, कि किसी को ये बात ध्यान में भी नहीं आई! नौशाद ने इस गाने को राग गारा को आधार बनाकर रचा था।
    सुनील दत्त की फ़िल्म 'मुझे जीने दो' (1963) का गाना 'नदी नारे न जाओ श्याम पइयां पडूं' वास्तव में नौटंकियों में गाया जाने वाला गाना था। इसे कानपुर घराने की गुलाबो बाई गाती थी, जो मूलतः बृज और बुंदेलखंड का लोकगीत था। सुनील दत्त को ये गीत इतना पसंद था कि उन्होंने इसे अपनी फिल्म में लेना चाहा! लेकिन, फिल्म के लिए गीत का मूल स्वरूप बदला गया। गीत का अंतरा साहिर लुधियानवी ने लिखा और संगीत में जयदेव ने बांधा था। फ़िल्मी गीतों को लेकर ऐसे किस्सों में फिल्म 'दो बदन' का गीत 'रहा गर्दिशों में हरदम मेरे इश्क़ का सितारा' भी चर्चित है। फिल्म के लिए ये गीत मोहम्मद रफी ने गाया था। पर, इस गीत को पहले किसी और फिल्म के लिए मुकेश ने रिकॉर्ड किया था। पर, उसमें यह गीत नहीं लिया गया। मनोज कुमार को यह गीत बेहद पसंद था। जब 'दो बदन' बनने लगी, तो ये गीत फिल्म में लेने का सोचा गया। लेकिन, फिल्म के सभी गीत मोहम्मद रफी गा रहे थे, इसलिए धुन और रेंज में बदलाव करके इसे रफी की आवाज में फिर रिकॉर्ड किया गया।  
     फ़िल्मी गीतों को लेकर एक बेहद दिलचस्प किस्सा ऐसा है जिसने दो नए गायकों को अनजाने में मौका मिला। 'विश्वास' (1969) के गीत 'आपसे हमको बिछड़े हुए' को पहले मुकेश और लता मंगेशकर को गाना था। लेकिन, मुकेश तब मुंबई में नहीं थे, तो कल्याणजी-आनंदजी ने इसे शूटिंग के लिए मनहर और कंचन की आवाज में डब करा लिया। उन्होंने सोचा कि बाद में इसे मुकेश और लता से गवा लेंगे। जब मुकेश लौटे और उन्हें यह गीत सुनाया, तो वे बोले कि यह गीत बहुत अच्छा गाया है, इसे ऐसा ही रहने दें। मुकेश ने जिद से यह गीत मनहर और कंचन को मिल गया और इस गीत से दोनों को ब्रेक मिला। फिल्म 'जिंदगी जिंदगी' के गीत 'जिंदगी ये जिंदगी तेरे हैं दो रूप' गाने की रिहर्सल के लिए संगीतकार एसडी बर्मन ने मन्ना डे को बुलाया था। उनकी आदत थी कि वे गायक को गीत गाकर सुनाते थे। एसडी बर्मन ने अपनी स्टाइल में इसे गाया! मन्ना डे ने दोबारा गाने को कहा। जैसे ही एसडी बर्मन ने दोबारा गीत पूरा किया, मन्ना डे ने तुरंत कहा कि मुझे नहीं लगता कि मैं इस गीत को आपसे अच्छा गा सकता हूँ। इस गीत को आपको ही गाना चाहिए। बहुत समझाने पर भी मन्ना डे नहीं माने और गीत एसडी बर्मन  ही रिकॉर्ड हुआ।  
   एसडी बर्मन ने 'मुंबई का बाबू' के लिए 'चल री सजनी अब क्या सोचे' की धुन बना ली थी। वे इसे किशोर कुमार से गवाना चाहते थे। पर, किशोर कुमार किसी न किसी बहाने से टालते रहे! उन्होंने कई दिन तक तो किशोर कुमार का इंतजार किया, फिर इसे मुकेश से गवा लिया। ऐसा ही वाक़या 'निकाह' के गीत 'दिल के अरमा आंसुओं में बह गए' को लेकर भी है। संगीतकार रवि इस गीत को आशा भौंसले से गवाने के मूड में थे। उन्होंने आशा की आवाज को ध्यान में रखकर धुन भी बना ली थी। लेकिन, सलमा आगा जो फिल्म की नायिका थी, खुद इस गीत को गाने के लिए अड़ गई! वे गायिका भी थीं, इसलिए संगीतकार को उनकी बात मानना पड़ी। रवि ने धुन में थोड़ा बदलाव करने इसे सलमा आगा से गवाया, जो काफी लोकप्रिय भी रहा! ऐसे किस्सों का कोई अंत नहीं है। ज्यादातर गीतों के साथ कोई न कोई कहानी जुड़ी है। 
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