ज्योतिरादित्य सिंधिया की मालवा-निमाड़ में तीन दिन की 'जन आशीर्वाद यात्रा' ने साबित कर दिया कि अब वे भाजपा के बड़े नेता बन गए। उनका 'बड़ा' होना तो ठीक, पर भाजपा के कई नेताओं का कद उनके सामने बौना हो गया। भाजपा नेताओं के साथ जनता ने भी इस सच्चाई को मान लिया। उनकी यात्रा की शुरुआत के समय इंदौर एयरपोर्ट पर जिस तरह का जमावड़ा हुआ, उससे सिंधिया का राजनीतिक भविष्य भी तय हो गया। उनके स्वागत में पार्टी के विधायक समेत कई वरिष्ठ नेता हाथ बांधकर खड़े थे। यात्रा के अंतिम दिन इंदौर में उनका जिस तरह स्वागत-सत्कार हुआ उससे भी लग गया कि उनके कद को कम नहीं आंका जा सकता। अभी तक माना जाता था कि सिंधिया के समर्थक वही हैं, जो उनके साथ कांग्रेस से भाजपा में आए हैं! लेकिन, इस यात्रा ने इस भ्रम को भी खंडित कर दिया। आश्चर्य नहीं कि भाजपा में एक नए 'सिंधिया गुट' की नींव पड़ जाए। जो भी अनुमान लगाया जाए, पर इस बहाने भाजपा में एक नया सत्ता केंद्र जरूर खड़ा हो गया। ये भले ही भाजपा की विधानसभा चुनाव की तैयारी हो, पर इसने सिंधिया को ऊंचाई तो दे दी। 000
मालवा-निमाड़ में भाजपा की तीन दिन की 'जन आशीर्वाद यात्रा' ने स्पष्ट कर दिया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के बड़े नेता बन गए! उनकी अगवानी में भाजपा के कई बड़े नेता जिस तरह हाथ बांधकर खड़े थे, उससे लग गया कि प्रदेश की राजनीति में उनकी हैसियत अब सिंहासन हिलाने की हो गई। तीन दिन में उनकी अगवानी में भाजपा मानो बिछ सी गई। 4 जिलों, 4 लोकसभा क्षेत्रों, 33 विधानसभा सीटों की 584 किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान 78 कार्यक्रमों में सिंधिया ने हिस्सेदारी करके दर्शा दिया कि उनकी भविष्य की रणनीति क्या है। 'जन आशीर्वाद यात्रा' का राजनीतिक मंतव्य अभी पार्टी ने स्पष्ट नहीं किया, पर इसके पीछे भाजपा के दिल्ली दरबार ने कुछ तो सोच ही रखा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस यात्रा ने उनकी भाजपा के दिग्गज नेता की तरह प्रदेश में अपनी धाक जरूर जमा दी। अब उन्होंने अपनी अलग जमीन बनाना भी शुरू कर दिया। आश्चर्य नहीं कि वे बहुत जल्द सत्ता के सिंहासन पर दिखाई दें! क्योंकि, सिंधिया की सक्रियता के पीछे पार्टी के बड़े नेताओं की रणनीति पहले से तय है।
भाजपा के कई नेता अभी तक समझ नहीं पा रहे थे, कि वे ज्योतिरादित्य सिंधिया से कितनी नजदीकी रखें! उनके ज्यादा करीब जाना कहीं उनका राजनीतिक कद न घटा दे। यही कारण था कि लम्बे समय तक सिंधिया के आसपास वही चेहरे नजर आए, जो उनके साथ कांग्रेस से आए थे। लेकिन, धीरे-धीरे भाजपा नेताओं को समझ आने लगा कि सिंधिया भाजपा की राजनीति में लम्बी रेस के घोड़े हैं, जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। कुछ भाजपा नेता जिनका कोई तारणहार नहीं था, उन्होंने भी सिंधिया को अपना आका मान लिया। जन आशीर्वाद यात्रा में उनके स्वागत में जिस तरह पलक-पांवड़े बिछाए गए उससे प्रदेश की भाजपा राजनीति में नए समीकरण बनते नजर आ रहे हैं। यात्रा की शुरुआत में इंदौर एयरपोर्ट पर उनके स्वागत में कई भाजपा विधायक, पूर्व विधायक और बड़े नेता जिस तरह नतमस्तक थे, वो यह समझने के लिए काफी था कि प्रदेश में नए राजनीतिक सत्ता केंद्र का गठन हो चुका है। सिंधिया जब कांग्रेस में थे, तब उनके कट्टर दुश्मन और भाजपा में आने के बाद उनसे कन्नी काटने वाले नेता भी स्वागत करते दिखाई दिए। ये मालवा की सहज, स्वाभाविक मेजबान परंपरा नहीं, राजनीति की नई दस्तक है।
केंद्रीय मंत्री की हैसियत से इंदौर आए सिंधिया का जिस तरह स्वागत किया गया, उसने राजनीतिक स्वागत परंपरा का तो रिकॉर्ड तोड़ा ही, भाजपा के नेताओं का भ्रम भी खंडित कर दिया कि वे सिंधिया के सामने बहुत छोटे हैं! सिंधिया का स्वागत करने वालों में उनके समर्थक ही नहीं, भाजपा कार्यकर्ता भी धक्के खाते दिखाई दिए। इंदौर का हर शक्ति संपन्न नेता अपनी भीड़ लेकर स्वागत में खड़ा था। आम तौर पर भाजपा में किसी दलबदल वाले नेता को इतनी तवज्जो देने का रिवाज नहीं है। इतिहास इसका गवाह भी है। पर, सिंधिया के स्वागत में वो सब हुआ, जो अमूमन भाजपा में नहीं होता। काफी अरसे बाद एयरपोर्ट पर इतनी बड़ी तादाद में नेताओं और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा देखा गया। भारी भीड़ और धक्का-मुक्की की स्थिति यह थी, कि व्यवस्था संभालने में पुलिस के छक्के छूट गए। भाजपा के कई ऐसे बड़े नेता भी भीड़ में दिखाई दिए, जो नेताओं की आगवानी भी अपनी ठसक से करने के आदी रहे हैं।
भाजपा के दिल्ली वाले नेताओं ने जिस तरह सिंधिया को तवज्जो दी, उसके आगे सारे नेता शरणागत हो गए। पहले उन्हें राज्यसभा की सीट से नवाजा गया, फिर केंद्र में मंत्री बनाया। अब उनके समर्थकों को अच्छी हैसियत देने की तैयारी की जा रही है। लेकिन, मालवा-निमाड़ की जन आशीर्वाद यात्रा ने इस इलाके की भाजपा राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। इन तीन दिनों की हलचल ने उन नेताओं की भी चूलें हिला दी, जो अपने आपको स्वयंभू समझने की भूल करने लगे थे। सिंधिया ने यात्रा के साथ मालवा-निमाड़ के लोगों से अपने सामाजिक संबंधों को भी मजबूत करने की पहल की। यात्रा के दौरान वे जहाँ भी गए, वहां के प्रतिष्ठित लोगों से घर जाकर मुलाकात की। अभी तक भाजपा के दूसरे नेता ये औपचारिकता भुलाकर अपने दंभ से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। लेकिन, सिंधिया ने अपनी 'श्रीमंत' पहचान को किनारे करके रिश्तों की नई गांठ बांधने की पहल की, जिसके राजनीतिक मंतव्यों को समझा जा सकता है।
प्रदेश में इंदौर की राजनीति की जगह अहम् है। राजधानी भले भोपाल हो, पर सत्ता के कई सूत्र इंदौर की डोर से ही संचालित होते हैं। मालवा-निमाड़ में भाजपा की जड़ें हमेशा से गहरी रही हैं, पर 2018 के चुनाव में ये बहुत ज्यादा दरक गई थी। सिंधिया की इस यात्रा से पश्चिम मध्यप्रदेश में भाजपा को फ़ायदा होगा, इससे इंकार नहीं है। भाजपा का गढ़ रहे मालवा-निमाड़ पर नजर दौड़ाई जाए, जो पिछली बार प्रदेश में कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा आधार यही इलाका रहा था! 2013 के चुनाव की अपेक्षा 2018 में भाजपा को 27 सीटों का नुकसान हुआ और कांग्रेस ने 26 सीटें ज्यादा जीती। निर्दलियों के खाते में भी इस बार 3 सीट गई। मालवा-निमाड़ की 66 सीटों में से भाजपा को 27 और कांग्रेस को 35 सीटें मिली। इस क्षेत्र में 31 सीटें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 24 जीती थीं, पर कांग्रेस के खाते में मात्र 6 सीट गई थीं, एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती। 2018 में भाजपा 14 सीट हार गई। भाजपा को 10 सीटें मिली, तो कांग्रेस के खाते में 20 सीटें गईं। 31 में से 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए हैं। 2013 में भाजपा ने सभी 9 सीटें जीती थीं। जबकि, 2018 के चुनाव में उसे सिर्फ 4 जगह ही जीत मिली, 5 सीटें कांग्रेस ने छीन ली। आदिवासी आरक्षित 22 सीटें हैं! 2013 में 15 सीटों पर भाजपा का झंडा गड़ा था और 6 पर कांग्रेस का, पर 2018 में 15 सीट कांग्रेस ने जीती और 6 भाजपा ने। मालवा-निमाड़ की 42 ग्रामीण सीटों में से 21 कांग्रेस ने जीती!
भाजपा की गलती ये रही कि उसने मालवा-निमाड़ को अपना गढ़ समझकर जीतने का पूरा जोर नहीं लगाया! 2013 के मुकाबले 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस इलाके की कई शहरी और ग्रामीण सीटें गंवाईं। कांग्रेस ने ग्रामीण इलाके की 24 सीटों पर जीत का झंडा गाड़ा! जबकि, 2013 में भाजपा ने 66 में से 57 सीटों पर झंडा गाड़ा था। भाजपा को सबसे बड़ा झटका खरगोन और बुरहानपुर जिले में लगा, जहाँ से भाजपा पूरी तरह ही साफ़ हो गई थी। इंदौर जैसे भाजपा के गढ़ में भी भाजपा 2018 के चुनाव में में 9 में से 4 सीटें हार गई थी! जबकि, 2013 में यहाँ उसने 8 सीट जीती थी। यही कारण था कि सत्ता भाजपा के हाथ से निकल गई, जिसे फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी रणनीति से भाजपा को वापस दिलाया। अब उनकी जन आशीर्वाद यात्रा क्या कमाल करती है, ये अगले विधानसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे! लेकिन, सिंधिया ने खंडवा में लोकसभा उपचुनाव का बिगुल तो बजा ही दिया।
इस इलाके में सिंधिया घराने का वर्चस्व बरसों से रहा और होलकर रियासत से उनकी नजदीकी भी जगजाहिर है। ऐसे में इंदौर के बाद देवास, शाजापुर, खरगोन और खंडवा में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा नेताओं ने हाथों-हाथ लिया। खरगोन के रावेरखेडी गांव से मराठा यौद्धा बाजीराव पेशवा के समाधि स्थल से निकली सिंधिया की यात्रा का खेड़ीगांव, बडगांव, बेड़िया, चितावद, सनावद, मोरटक्का, बड़वाह, काटकुट फाटा पर भारी स्वागत हुआ। करीब 27 गांवों से होते हुए वे बलवाड़ा आए। रात दस बजे तक सिंधिया ने 128 किलोमीटर का रोड़ शो किया। बाजीराव पेशवा की समाधि पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ हुए कार्यक्रम को मराठा वोट बैंक से जोड़ने की बात को भी सिंधिया ने नकारा और कहा कि भाजपा धर्म और समाज की राजनीति नहीं करती। लेकिन, ये तय है कि बाजीराव पेशवा को पूजने के बहाने सिंधिया की इस यात्रा से खंडवा की राजनीति को प्रभावित जरूर किया, जिसका असर लोकसभा उपचुनाव में दिखाई देगा।
ये जन आशीर्वाद यात्रा भाजपा के केंद्रीय संगठन की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा देशभर के 22 राज्यों में जन आशीर्वाद यात्राएं निकल रही है, जिनमें केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा मध्य प्रदेश से जुड़े केंद्रीय मंत्री एसपीएस बघेल और वीरेंद्र खटीक ने भी अपने-अपने इलाकों में ऐसी आशीर्वाद यात्रा निकाली। एसपीएस बघेल ने 16 अगस्त को दतिया से अपनी यात्रा शुरू की! जबकि, वीरेंद्र खटीक ने 19 अगस्त को ग्वालियर से अपनी जन आशीर्वाद यात्रा चालू की है। यात्रा के दौरान तीनों केंद्रीय मंत्री वहाँ के बुद्धिजीवियों, खिलाड़ियों, कलाकारों और संतों के अलावा शहीदों के परिजनों से मिले। लेकिन, सिंधिया की यात्रा का जो असर दिखाई दिया, वो पार्टी में नए गुट का संकेत है।
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