Friday, February 4, 2022

विवाह के बाद बने रिश्ते और परदे पर अंतर्द्वंद

- हेमंत पाल 

   फिल्मों का काम सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं है। समाज की अच्छी-बुरी परंपराओं से भी उसका बहुत बराबरी का सरोकार होता है। ऐसा ही एक सामाजिक मसला है विवाहेत्तर रिश्ते! स्पष्ट है कि पुरुष और महिला के बीच के ये ऐसे रिश्ते होते हैं, जो शादी के बाद कई कारणों से बनते हैं और इन्हें हर स्थिति में छुपाया जाता है। इन रिश्तों की अपनी अलग-अलग कहानी होती है और फिल्मों में इन्हीं कथानकों को फ़िल्मकार परोसते रहे हैं। ऐसी कहानियों से लगता है, कि ये फिल्में समाज की मूल समस्याओं, रूढ़िवादी परम्पराओं को दूर करने या उन्हें सामने लाने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ती। सामान्यतः फिल्मों में पति ही बेवफाई करता है और राज खुलने पर पत्नी उसे माफ़ करके जिंदगी की राह पर चलने लगती है। लेकिन, एक फिल्म 'रुस्तम' ऐसी भी आई जिसमें पत्नी के विवाहेत्तर रिश्तों को गुंथा गया था। ये सच्ची घटना पर बनी फिल्म थी।  
      विवाहेत्तर रिश्तों की सच्ची कहानियों पर बनी 'रुस्तम' को भी सफल फिल्म माना जाता है। ये फिल्म दो बार बनी थी। पहली बार ये 1963 में ’ये रास्ते हैं प्यार के’ नाम से बनी जिसमें सुनील दत्त-लीला नायडू थे। इस फिल्म की कहानी की खासियत थी, एक महिला के विवाहेत्तर रिश्ते। अपराध की पृष्ठभूमि पर बनी रहस्य एवं रोमांच से भरी यह फिल्म नौसेना अधिकारी केएम नानावटी की असल जिंदगी पर आधारित थी। फिल्म में नौसेना अधिकारी अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या की कोशिश करता हैं। सामान्यतः फिल्मों में पुरुष के विवाहेत्तर रिश्तों को दिखाया जाता है और अंत में पत्नी माफ करके पति को अपना लेती है। लेकिन, शायद ये अकेली ऐसी फिल्म थी, जिसमें महिला विवाहेत्तर रिश्तों में हो और वह पति से माफी मांगे। फिर पति फैसला करता कि उसे माफ करना है या नहीं! दूसरी बार बनी इस फिल्म में अक्षय कुमार और इलियाना डिक्रूज मुख्य भूमिकाओं में थे। दूसरी बार बनी इस फिल्म के लिए अक्षय कुमार को नेशनल अवॉर्ड मिला था।
     ऐसे रिश्तों पर यश चोपड़ा की सबसे चर्चित फिल्म 'सिलसिला' (1981) को कहा जा सकता है। फिल्म की विवादास्पद कास्ट ने इस फिल्म की रोचकता को बढ़ा दिया था। अमिताभ बच्चन, रेखा और जया बच्चन अभिनीत इस फिल्म को अमिताभ की निजी जिंदगी से भी जोड़कर देखा जाता है। यश चोपड़ा को ऐसे फिल्मकारों में गिना गया, जो प्रेम की नब्ज जानते थे। 'सिलसिला' को कई कारणों से बड़ी फिल्म माना गया। उस दौर में विवाहेत्तर रिश्तों के कारण फिल्म की कहानी को आधुनिक समझा गया। ये भी चर्चा चली कि फिल्म की कहानी अमिताभ, जया और रेखा के रियल लाइफ लव स्टोरी पर आधारित थी। यश चोपड़ा को उम्मीद थी कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल करेगी। लेकिन, यश चोपड़ा की उम्मीदें धराशाई हो गई। फिल्म के गीत-संगीत को पसंद किया गया, पर फिल्म नहीं चली।
     ऐसा नहीं है कि यश चोपड़ा के लिए विवाहोत्तर संबंध पर फिल्म बनाने का यह पहला अवसर था। इस परम्परा की नींव उनके बड़े भाई और निर्माता-निर्देशक बीआर चोपड़ा अपनी चर्चित और संगीतमय फिल्म 'गुमराह' से पहले ही डाल चुके थे। फिल्म का आरंभ रामायण के उस प्रसंग से होता है, जिसमें मायावी हिरण का पीछा करते समय सीता को बाहर निकलने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके साथ ही एक उद्घोष होता है कि विवाहित नारी के जीवन में भी ऐसी ही लक्ष्मण रेखा होती है, जिसे पार करने पर वैवाहिक जीवन नष्ट हो जाता है। फिल्म की नायिका माला सिन्हा का प्रेम सुनील दत्त से होता है और शादी अशोक कुमार से होता है। कुछ सालों बाद अचानक उसके जीवन में उसके प्रेमी का आगमन होता है और उसके कदम लड़खड़ाने लगते हैं। प्रेमी उसे समझाने का प्रयास करता है 'चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों!' लेकिन, विवाहोत्तर रिश्ते के प्रति आकृष्ट नायिका कहती है 'रुक न पाऊं मैं खिंचती चली आऊं मैं।' विवाहोत्तर रिश्तों पर यह समय से पहले बनी ऐसी फिल्म थी, जिसे गीतों और चुस्त पटकथा के कारण सराहा गया था। अशोक कुमार ,मीना कुमारी और प्रदीप कुमार अभिनीत फिल्म 'भीगी रात' भी कुछ ऐसी ही फिल्म थी। इसमें भी विवाह के बाद पत्नी के जीवन में पुराने प्रेमी का आगमन होता है।
    1977 में आई यश चोपड़ा की रमेश तलवार निर्देशित फिल्म 'दूसरा आदमी’ का कथानक भी कुछ हद तक विवाहेत्तर रिश्तों के नजदीक से निकलता दिखाई देता है। फिल्म में ऋषि कपूर, नीतू सिंह, राखी, शशि कपूर, देवेन वर्मा और परीक्षित साहनी की मुख्य भूमिका थी। इस फिल्म में राखी को ऐसी मनःस्थिति में बताया गया था, जिसे ऋषि कपूर में अपना खोया हुआ प्यार (शशि कपूर) नजर आता है। वो बार-बार ऋषि कपूर में अपना खोया हुआ प्यार देखती है! वैसे यश चोपड़ा की 'दाग' और 'जोशीला' में भी विवाहेत्तर रिश्तों का कथानक था। जबकि, बीआर चोपड़ा ने इसी तरह की कहानी पर पहले 'अफसाना' बनाई फिर उसकी रीमेक 'दास्तान' बनाई! बीआर चोपड़ा की 'निकाह' में भी विवाहेत्तर रिश्ते का पेंच था। 
    1986 में आई ‘एक पल’ भी लव ट्रायंगल वाली ही फिल्म थी। इसमें शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह और फारुख शेख ने अभिनय किया था। यह फिल्म कामकाज में डूबे पति, एक उदास बीवी और उसके एक्स ब्वॉय फ्रेंड के बीच पनपती कहानी थी। ये फिल्म मशहूर बांग्ला लेखिका मैत्रेयी देवी की कहानी पर आधारित थी। सामान्यतः लड़की अपनी गलती मान बैठती है, पर यहां औरत का एक अलग ही रूप सामने आया था। इमरान हाशमी और मल्लिका शेरावत की विवाहेत्तर रिश्तों पर बनी फिल्म 'मर्डर' 2004 में रिलीज हुई थी। इसका निर्देशन अनुराग बसु ने किया था। 2006 में आई फिल्म 'कभी अलविदा ना कहना' में रानी मुखर्जी, शाहरुख खान, अभिषेक बच्चन और प्रीति जिंटा जैसे कलाकार थे। इस फिल्म में रानी मुखर्जी और शाहरुख खान के बीच विवाहेत्तर रिश्ते दिखाए थे। फिल्म में रानी और अभिषेक से और शाहरुख, प्रीति से शादी कर चुके होते हैं। लेकिन, वे कोई भी अपने रिश्तों से खुश नहीं रहता। जब रानी और शाहरुख की मुलाकात होती है, तो दोनों प्रेम करने लगते हैं। 'कभी अलविदा ना कहना' भी ऐसी ही एक फिल्म थी, जिसमें विवाहेत्तर रिश्तों की कहानी थी। करण जौहर की इस फिल्म को समय से आगे की कहकर उसका विरोध भी हुआ था। 2016 की 'अजहर' में इमरान हाशमी, नरगिस फाखरी और प्राची देसाई ने अभिनय किया था। यह फिल्म भी विवाहेत्तर रिश्तों पर आधारित और पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन की जिंदगी से प्रेरित थी।
   अलग से विषयों पर फिल्म बनाने वाले विनोद पांडे ने अपनी फिल्म 'एक बार फिर' (1980) में दीप्ति नवल और सुरेश ओबेराय के विवाहेत्तर रिश्ते दिखाए थे। इसे बहुत पसंद किया था। इससे प्रेरित होकर विनोद पांडे ने शबाना आजमी, परवीन बाबी और मार्क जुबेर को लेकर 1982 में 'ये नजदीकियां' का निर्माण किया। विवाहेत्तर प्रेम संबंधों पर आधारित यह फिल्म भी बेहद सफल हुई थी। इसके साथ ही एक ही भूल, रिहाई, हजारों ख्वाहिशें ऐसी, पंचवटी, अस्तित्व और ’मनमर्जियां’ भी ऐसी ही फ़िल्में है, जो विवाहेत्तर रिश्तों की कहानियों पर बनाई गई थी। अनुराग बसु के निर्देशन में बनी फिल्म 'लाइफ इन ए मेट्रो' (2007) भी विवाहेत्तर रिश्तों के साथ एक महिला के अकेलेपन की कहानी थी। इससे पहले फिल्म महेश भट्ट ने 'अर्थ' (1982) में अपनी निजी जिंदगी के पन्ने पलटे थे। परवीन बॉबी के साथ उनके विवाहेत्तर रिश्तों के अलावा पहली पत्नी से अलग होने की घटना भी फिल्म का हिस्सा थी। फिल्म की मूल कहानी महेश भट्ट से जुड़ी जरूर थी, पर सब कुछ फिक्शन में दिखाया गया था। 
     2021 में आई 'हसीन दिलरुबा' भी कुछ ऐसी ही फिल्म थी, जिसमे तापसी पन्नू, विक्रांत मेसी और यशवर्धन थे। फिल्म में तापसी का किरदार बहुत पावरफुल था और इसमें उनका यशवर्धन के साथ अफेयर दिखाया गया। अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी 'मनमर्जियां' में भी तापसी पन्नू, विक्की कौशल और अभिषेक बच्चन मुख्य भूमिकाओं में नजर आए थे। फिल्म में तापसी का शादी के बाद भी अपने एक्स बॉयफ्रेंड से अलग न हो पाने का कथानक था। लेकिन, ये दोनों फ़िल्में परदे के बजाए ओटीटी पर आई थी। जे ओमप्रकाश ने भी राजेश खन्ना, टीना मुनीम और स्मिता पाटिल को लेकर 'आखिर क्यों' बनाई थी।     
    शमिता बहल की फिल्म 'पुड़िया' में भी विवाहेत्तर रिश्तों के जरिए एक पत्नी की दुविधा को रोमांचक ढंग से पेश किया था। इस फिल्म को आधिकारिक तौर पर शॉर्ट फिल्म के लिए नामित किया गया और इसे 8वें इंडियन सिने फ़िल्म फेस्टिवल के लिए भी आधिकारिक तौर पर चुना गया। वास्तव में यह फिल्म महज़ विवाहेत्तर रिश्तों पर बनी फिल्म नहीं थी। यह एक महिला द्वारा अपने परिवार को बचाए रखने के उसके जज़्बे पर आधारित थी। शकुन बत्रा के निर्देशन में बनी फिल्म 'गहराइयां' में भी विवाहेत्तर रिश्तों को कुछ ज्यादा ही खुले रूप में बताया गया। विवाहेत्तर रिश्तों को केंद्र में रखकर बनी इस फिल्म में दीपिका और अनन्या दोनों बहनों के बीच के जटिल संबंधों को दर्शाया गया है। 'गहराइयां' रिश्तों में बेवफाई के कोण की गंभीरता से पड़ताल करती है। ये सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने के लिए भी कहती है।
   हिंदी फिल्मों के अभिनेता जॉन अब्राहम ने एक मराठी फिल्म प्रोड्यूस की, जिसका नाम 'सविता दामोदर परांजपे' है! ये प्यार में धोखा खाए एक प्रेमी की सच्ची कहानी पर आधारित है। यह फिल्म सविता दामोदर परांजपे के इसी नाम पर बने मशहूर नाटक पर आधारित है, जो एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म थी। इसमें एक प्रोफ़ेसर की पत्नी में अचानक बदलाव आना शुरू हो जाते हैं। तीव्र कामवासना के चलते वो विवाहेत्तर संबंध बनाना चाहती है। फिल्म 'बीए पास' (2012) तो विवाहेत्तर रिश्तों पर ही केंद्रित है और इस सीरीज की तीन फ़िल्में बन गई। इन तीनों फिल्मों में विवाहेत्तर रिश्तों को हमेशा नए अंदाज में कहा गया है। 
     श्रृंखला की तीसरी फिल्म 'बीए पास 3' की स्टोरी पल्लवी की जिंदगी से शुरू होती है, जिसकी पति अतुल से नहीं बनती, इस वजह से वो फ्रस्ट्रेशन का शिकार बनती है। ऐसे में उसकी जिंदगी में अंशुल की एंट्री होती है। दोनों के बीच संबंध बन जाते हैं। फिर कहानी में ऐसा मोड़ आता है, जिससे इन चारों के रिश्ते बुरी तरह उलझ जाते हैं। इन रिश्तों के चक्कर में सभी को कुछ न कुछ खोना पड़ता है। विवाहेत्तर संबंध एक सनसनी की तरह होता है जिसके बारे में जानने और अंदर तक झांकने की सभी की जिज्ञासा होती है। यही जिज्ञासा दर्शकों को इस तरह की फिल्मों की तरफ आकर्षित करती है। समाज में जब तक यह आकर्षण बना रहेगा, फिल्मकारों हॉट केक की तरह विवाहेत्तर रिश्तों पर फिल्म बनाने का मौका मिलता रहेगा वे दर्शकों को गुदगुदाकर अपनी झोली भरते रहेंगे।
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