उत्तर प्रदेश समेत देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। एक तरफ कोरोना की तीसरी लहर का हमला, दूसरी तरफ राजनीति की गहमागहमी के बीच होने वाले ये चुनाव निर्वाचन आयोग और राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती साबित होंगे। चुनाव वाले पांच राज्यों में से चार में भाजपा की सरकार है, जिसे पार्टी को हर हालत में बचाना है। लेकिन, वर्तमान राजनीतिक हालातों के बीच जनता को अपने पक्ष में करना मुश्किल लग रहा। जहां तक विपक्ष की बात है तो 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जो विपक्ष सामने आया था, उसके पास खोने को कुछ नहीं है! इसलिए ये चुनाव भाजपा के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है। चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में जिस तरह भाजपा में भगदड़ मची है, इस चुनाव के नतीजों का पूर्वानुमान आसान नहीं। पांचों राज्यों की चुनावी तस्वीर देखें, तो स्पष्ट रूप से किसी एक पार्टी की जीत के बारे में दावा नहीं किया जा रहा। दरअसल, ये चुनाव अयोध्या में राम मंदिर, किसान आंदोलन और कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित व्यवस्था के बीच हो रहे हैं और ये चुनाव नतीजों को प्रभावित भी कर सकते हैं।
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- हेमंत पाल
पांच राज्यों में राजनीतिक पार्टियां एक बार फिर मतदाताओं के सामने याचक की मुद्रा में खड़ी हो गई! क्योंकि, अगले पांच सालों के लिए मतदाताओं का फैसला ही इन पार्टियों का भविष्य तय करेगा। संकट है कि चुनाव वाले पांच में से तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में लंबे समय तक चला किसान आंदोलन अपना असर दिखाएगा। इस आंदोलन के लम्बे समय बाद भाजपा को अहसास हो गया था कि किसान आंदोलन उनके वोट बैंक में सेंध लगाएगा, इसलिए केंद्र सरकार ने कृषि कानून वापस लेकर दांव खेला है! लेकिन, इससे किसान कितने संतुष्ट हैं, इसका अनुमान नहीं लगा। उत्तर प्रदेश और पंजाब में में सालभर चला ये आंदोलन असर दिखाएगा, इससे इंकार नहीं किया। यहाँ सात चरणों में होने वाले मतदान की शुरुआत किसान आंदोलन के गढ़ यानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होगी, जबकि चुनाव का अंत पूर्वांचल से होगा। इन विधानसभा चुनावों में भाजपा के सेनापति नरेंद्र मोदी ही होंगे। क्योंकि, पार्टी उनकी छवि को हर चुनावी राज्य में भुनाने की कोशिश करती रही है और यहाँ भी करेगी। उनके साथ उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के अलावा पार्टी के कई नेता मोर्चा संभालेंगे।
उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। पिछली बार प्रचंड बहुमत से विधानसभा चुनाव जीतने वाली भाजपा इस बार अपना वही प्रदर्शन दोहरा पाएगी, इसमें शक है। क्योंकि, इस बात उसके लिए मैदान साफ़ नहीं है। 2017 का चुनाव एकतरफा जीत साबित हुआ था, अबकी बार यह समाजवादी पार्टी से सीधे मुकाबले का चुनाव हो गया है। भाजपा के वोट बंटने के कई कारण दिखाई दे रहे हैं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यह कि भाजपा से विद्रोह करने वाले नेता समाजवादी पार्टी में ही खिसक रहे हैं। भाजपा के लिए मुश्किल ये है कि दिल्ली की सरकार का रास्ता लखनऊ से ही होकर जाता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश को लेकर खींचतान ज्यादा ही मची है। एक कारण यह भी कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा सीटों संख्या भी बाकी चारों राज्यों की कुल सीटों से कहीं ज्यादा है।
भाजपा ने पिछली बार आसमान फाड़ बहुमत जीता था। उसे करीब तीन-चौथाई सीटें हासिल हुई थीं। लेकिन, इस बार मुकाबला बिखरा हुआ सा है। समाजवादी पार्टी की ताकत तो बढ़ी ही है, कांग्रेस भी भाजपा का खेल बिगाड़ सकती है। असदुद्दीन ओवैसी ने भी यहाँ अपने उम्मीदवार उतारने का एलान करके मामले को पैचीदा बना दिया। ऐसे में 'आम आदमी पार्टी' (आप) भी सेंध मारने की कोशिश में है। भाजपा के लिए चुनावी जंग को फतह करना इस बार आसान इसलिए नहीं है कि ठाकुर और ब्राह्मणों का एक बड़ा खेमा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से छिटका हुआ है। ऐसे में किसान आंदोलन, कोरोना से उपजी अव्यवस्था और हिंदुत्व जैसे कारक भाजपा के वोट बैंक को प्रभावित करेंगे।
पांच में से चार राज्य पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर ऐसे हैं जहां कांग्रेस वापसी के लिए संघर्ष कर रही है। पांच में से पंजाब में उसकी सरकार है। यदि वह बाकी चार में से किसी राज्य में वापसी नहीं कर सकी, तो उसके लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा। यहाँ तक कि पंजाब में भी अब उसकी स्थिति आसान नहीं है। पंजाब के साथ गोवा में भी 'आम आदमी पार्टी' घुसपैठ कर रही है। उसने उत्तराखंड में अपना संगठन मजबूत किया, पर पंजाब में ग्राउंड लेवल पर 'आप' बेहतर स्थिति में है। यदि वो पंजाब में जीतती है, तो पहली क्षेत्रीय पार्टी होगी, जिसने दूसरे राज्य में भी सरकार बनाई।
उत्तराखंड में भी भाजपा मुश्किल में है। यहाँ कांग्रेस ज्यादा बेहतर हालात में नजर आ रही है। उत्तराखंड में पिछले कार्यकाल में भाजपा ने तीन बार मुख्यमंत्री बदले, फिर भी उसका मुकाबला मुश्किल ही है। उधर, पंजाब में इस बार भाजपा के साथ अकाली दल नहीं है। कांग्रेस से टूटे कैप्टन अमरिंदर उसके नए दोस्त बने हैं, पर उनसे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। यही कारण है कि पंजाब में मुकाबला कांग्रेस और 'आप' में होने के आसार ज्यादा हैं। पंजाब में एक दलित को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने दांव तो खेला है, पर ये कितना कामयाब होता है, इस बारे में अभी कोई दावा नहीं कर रहा।
बार गोवा में भी मामला उलझा हुआ लग रहा है। यहाँ 'आप' और 'तृणमूल कांग्रेस' ने भाजपा और कांग्रेस के परंपरागत मुकाबले को चतुष्कोणीय बना दिया है। यहाँ सीटों की संख्या बहुत कम होने से एक-एक सीट का महत्व समझा जाता है। अभी की स्थिति में कहा नहीं जा सकता कि नतीजों का ऊंट किस करवट बैठेगा! लेकिन, भाजपा को जनता की नाराजी भारी पड़ सकती है। उधर, पांचवें राज्य मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व की 'एनडीए' सरकार है। पर, यहां उसे कांग्रेस चुनौती दे रही। भाजपा ने पूर्वोत्तर पर विशेष रूप से ध्यान दिया है। इसलिए मणिपुर में उसे अपनी मौजूदा स्थिति को बचाए रखना जरूरी है।
ये विधानसभा चुनाव कोरोना संक्रमण की छाया में कराए जा रहे हैं। बिहार के चुनाव भी कोरोना की पहली लहर के उतार के दौर में हुए थे। जबकि, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु के चुनाव कोरोना की दूसरी लहर के दौर में हुए। आज देशभर में कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों और इलाज की अफरा तफरी से लोग परेशान हैं। पांच राज्यों के चुनाव कोरोना की तीसरी लहर के उस शुरुआती दौर में शुरू हुए। आशंका है कि अगर जरूरी कदम न उठाए गए, तो इन चुनाव वाले राज्यों में तीसरी लहर सबसे भयावह हो सकती है। इसलिए इस बार पहले से सबक लेकर चुनाव आयोग ने कोरोना प्रतिबंधों के सख्ती से पालन करने का संदेश और निर्देश राजनीतिक दलों और लोगों को दिया है। अपनी तरफ से चुनाव आयोग ने कोरोना संक्रमण से बचते हुए चुनाव कराने के सारे इंतजाम कर दिए हैं और ज्यादा से ज्यादा चुनाव प्रचार डिजिटल और मीडिया के जरिए करने को कहा।
भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के बाद सबसे महत्वपूर्ण राज्य पंजाब है। उसे अपने चार राज्य बचाने के साथ पंजाब में बिना अकाली दल की मदद के उतरकर अपनी हैसियत बढ़ाना है। लेकिन, उसके लिए अपने बलबूते पर कमल खिलाना आसान नहीं लग रहा। क्योंकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह कमजोर मोहरा हैं और उनकी उम्र भी ऐसी नहीं रही कि पंजाब की जनता उन पर पांच साल के लिए भरोसा करें! उधर, कांग्रेस को पंजाब में अपनी सरकार बचाने के साथ उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में अपनी साख को साबित करना है। जबकि, कांग्रेस के सामने उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के चमत्कारिक नेतृत्व के प्रदर्शन का भी अहम लक्ष्य है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ भाजपा और उसके गठबंधन दलों को रोकने और अपनी सरकार बनाने के मंसूबे के साथ मैदान में है, तो बसपा की कोशिश इतने विधायक लाने की भी है कि बिना उसके कोई सरकार न बना सके। इस पार्टी का हमेशा से यही लक्ष्य भी रहा है।
कांग्रेस में पंजाब की जीत का पूरा दारोमदार मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ जैसे नेताओं पर है, तो उत्तराखंड में कांग्रेस की कमान पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के हाथ में है। आम आदमी पार्टी को पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और गोवा में अरविंद केजरीवाल के चमत्कारिक चेहरे पर सबसे ज्यादा भरोसा है। जबकि, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अकेले ही मोदी और योगी की चुनौतियों को टक्कर दे रहे हैं। भाजपा से समाजवादी पार्टी में कुछ प्रमुख नेताओं के आ जाने से उनकी ताकत इजाफा ही हुआ है। जबकि, बसपा को मायावती पर भरोसा है। पार्टी महासचिव सतीश मिश्रा ब्राह्मण को जोड़ने के लिए प्रदेशभर में मेहनत कर रहे हैं, पर फ़िलहाल जो हालात हैं, उन्हें देखकर लग नहीं रहा कि बसपा निर्णायक स्थिति में रहेगी। इन सारे हालात को देखते हुए पांचों राज्यों के चुनाव नतीजों को लेकर कोई पूर्वानुमान लगा पाना मुश्किल है। इसलिए भी कि चुनाव से पहले समीकरण रोज बदल रहे हैं।
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