- हेमंत पाल
सिनेमा की कहानियों में कुछ सदाबहार विषय ऐसे हैं, जो कई बार दोहराए गए और दर्शकों ने उन्हें पसंद भी किया! प्रेम कहानियों में भी पुनर्जन्म का तड़का लगा। ये कथानक का ऐसा फार्मूला है, जो बरसों पहले अपनाया गया था और आज भी इसी फार्मूले का उपयोग किया जा रहा है। ये ऐसा तड़का है, जिसे परिवेश के मुताबिक ढाला गया! यही कारण है कि फिल्म इंडस्ट्री में पुनर्जन्म काफी हिट कांसेप्ट है। एक जन्म से दूसरे जन्म तक फैली पुनर्जन्म की कहानियों में प्रेम को सबसे ज्यादा प्रधानता दी गई। इस विषय पर प्रेम से लगाकर बदला लेने वाली फ़िल्में भी बनाई गई। इनमें ज्यादातर कहानियां ऐसी थी, जिनमें एक जन्म में अधूरे रहे प्रेम के कसमें-वादों को पूरा करने के लिए प्रेमियों ने दूसरा जन्म लिया। जबकि, पुनर्जन्म की कुछ कहानियों में बदले की झुलसती आग थी। खलनायक एक जन्म में नायक को मार देता है, उसका बदला लेने के लिए वो दूसरा जन्म लेकर खलनायक को सजा देता है और उसे बताता भी है, कि वो कौन है! कई बार दोनों जन्मों के नायक बदल भी दिए गए, तो ऐसी भी फ़िल्में बनी जिनमें एक ही कलाकार ने दोनों भूमिकाएं अदा की। जितना संभव हो सका, फिल्मकारों ने हर उस मसाले का इस्तेमाल किया।
दरअसल, पुनर्जन्म का मतलब मनुष्य की आत्मा का अपने सारे विकारों के साथ फिर जन्म लेना ही नहीं होता! बल्कि, ये जीवन के आदर्श मूल्य जैसे मानवीय करुणा का बार-बार लौटना भी होता है। वास्तव में पुनर्जन्म की अवधारणा वैदिक अवतारवाद का ही एक रूप है। इसे तथ्यात्मक रूप से सही भी साबित किया गया। ऐसे कई उदाहरण है, जिनमें बच्चे को अपने पिछले जन्म की बातें, पुराना घर, रिश्तेदार सभी याद आए। लेकिन, व्यस्क होने पर पूर्व जन्म की बातें याद आना फिल्मों में ही दिखाई दिया। इस विषय पर गहन अध्ययन करने वाले विष्णु के अगले अवतार को 'कल्कि' कहते हैं। यह भी धारणा है कि वर्तमान समय वही है, जिसमें विष्णु के इस अवतार का जन्म होना है। जाने-माने गीतकार शैलेंद्र ने पुनर्जन्म पर अपनी दार्शनिकता कुछ इन शब्दों में व्यक्त की 'मरकर भी याद आएंगे किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे, जीना इसी का नाम है कि ले सके तो किसी का दर्द ले सके तो ले उधार!' मान्यता यह भी है कि जीवन नदी का एक किनारा है और दूसरा किनारा मृत्यु है। आनंद तो बस तैरते रहना है।
पुनर्जन्म की अवधारणा से प्रेरित पहली फिल्म 1949 में आई कमाल अमरोही की 'महल' को माना जाता है। अशोक कुमार और मधुबाला की ये फ़िल्म ऐसी लड़की की कहानी थी, जिसके गरीब पिता उसे राजकुमारी की तरह पालते हैं। अभाव की प्रतिक्रिया में जन्मा प्रेम साजिश का शिकार हो जाता है। अशोक कुमार उस लड़की (मधुबाला) को अतृप्त आत्मा मान लेता है। उसकी खूबसूरती का शिकार होकर उससे मिलने की चाह में अपने जीवन को ख़त्म करने को भी तैयार हो जाता है। फिल्म के गाने ‘आएगा आने वाला, आएगा आने वाला' आज भी सुना जाता है। इसके बाद 1958 में बिमल रॉय ने ‘मधुमति’ बनाई। बताया जाता है कि ‘परख’ फिल्म के फ्लॉप होने के कारण दुखी बिमल रॉय वापस बंगाल लौटने का सोच रहे थे। ऐसे में ऋत्विक घटक ने चंद घंटों में ‘मधुमति’ की कहानी का प्लॉट लिखकर उन्हें दिया था। इसी कहानी पर उन्होंने 'मधुमति' बनाई, जिसकी सफलता ने बिमल रॉय को भी ‘नया जन्म’ दिया। पुनर्जन्म वाली फिल्मों में एक सुनील दत्त और नूतन की ‘मिलन’ भी है। 1968 में आई मनोज कुमार, वहीदा रहमान और राजकुमार की फिल्म ‘नीलकमल’ भी एक जन्म से दूसरे जन्म तक की कहानी है। इसमें राजकुमार को आत्मा की तरह प्रस्तुत किया गया था, जो अपनी बिछुड़ चुकी प्रेमिका को गाना गाकर पुकारता है, और प्रेमिका (वहीदा रहमान) उसकी तरफ खिंची चली आती है। सुभाष घई ने हॉलीवुड की ‘रीइनकारनेशन ऑफ पीटर प्राउड’ से प्रेरित होकर ऋषि कपूर और टीना अंबानी को लेकर ‘कर्ज’ बनाई थी। बाद में इसे दोबारा भी बनाया गया, पर बात नहीं बनी।
चेतन आनंद ने राजेश खन्ना और हेमा मालिनी को लेकर ‘कुदरत’ बनाई, जो इस विषय पर बेमिसाल फिल्म थी। हेमा मालिनी और राजेश खन्ना को लेकर मुशीर रियाज ने भी 'मेहबूबा' नाम से एक जन्म जन्मांतर से जुड़ी फिल्म बनाई थी। ख़ास बात ये कि पुनर्जन्म पर बनी करीब सभी फिल्मों के गीत-संगीत बेहद सफल रहे। दर्शकों ने फिल्म भले पसंद नहीं की हो, पर गाने खूब चले। इसके बाद लम्बे समय तक इस फॉर्मूले को दोहराया नहीं गया। 1992 में आई सलमान खान की फिल्म 'सूर्यवंशी' भी दो जन्मों से जुड़ी थी। राकेश रोशन की 1995 में आई फिल्म 'करण अर्जुन' भी बदले के कथानक पर दो जन्मों तक फैली थी। शाहरुख़ खान और सलमान खान के अभिनय वाली ये अपने समयकाल की सुपरहिट फिल्म थी। ये दो भाइयों की मौत और बदले के लिए उनके पुनर्जन्म की कहानी थी। संजय कपूर और तब्बू की फिल्म 'प्रेम' में भी दो जन्मों का बंधन था। 'अब के बरस' (2002) भी इस विषय पर बनी बड़ी हिट थी। इसमें आर्या बब्बर और अमृता राव मुख्य भूमिका में थेl 2007 में आई दीपिका पादुकोण की पहली फिल्म 'ओम शांति ओम' की कहानी भी दो जन्मों तक फैली थी। इसमें शाहरुख़ खान मुख्य भूमिका में थेl विक्रम भट्ट के निर्देशन में बनी करिश्मा कपूर की 2012 में आई फिल्म 'डेंजरस इश्क़' में भी दो जन्मों का जुड़ाव था। 2015 में आई फ़िल्म 'एक पहेली लीला' भी पिछले जन्म पर आधारित थी। दिनेश विजान ने पुनर्जन्म और कभी न मिटने वाले प्यार की कहानी पर कुछ साल पहले 'राब्ता' बनाई थी। इसमें सुशांत सिंह राजपूत और कृति सेनन ने अभिनय किया था। लेकिन, फिल्म दर्शकों के गले नहीं उतरी।
शाहरुख खान की सफल फिल्मों में गिनी जाने वाली 'ओम शांति ओम' भी पुनर्जन्म के आसपास ही घूमी थी। इसमें शाहरुख खान की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो जाती है और उसकी आत्मा कार में बैठी महिला के गर्भ में प्रवेश कर जाती है। इस बीच दीपिका मर जाती है, लेकिन वह अवतार नहीं लेती, बल्कि, एक भटकती आत्मा बन जाती है। ऐसे कथानकों पर एक दिलचस्प फिल्म 'मक्खी' भी बनी, पर वो तेलुगु में बनी और हिंदी में डब की गई थी। इसकी कहानी सामान्य से अलग थी। निर्धारित मान्यताओं से अलग इस फिल्म में मनुष्य अगले जन्म में मक्खी के रूप में बदला लेने के लिए जन्म लेता है और अपनी प्रेमिका के साथ हुए धोखे का बदला लेता है। डबिंग वाली ही फिल्म 'मगधीरा' भी थी, जो हिंदी में पसंद की गई। फिल्म के मुख्य किरदार रामचरण तेजा और काजल अग्रवाल थे। इस फिल्म का कथानक पुराने ज़माने वाली राजा-महाराजाओं पर केंद्रित था।
1995 में आई तब्बू और संजय कपूर की फिल्म 'प्रेम' को भी दर्शकों ने पसंद किया था। इसका पुनर्जन्म वाला कथानक सामान्य ही था। संजय कपूर छोटे कस्बे की यात्रा पर जाता है, जहां उसकी मुलाकात तब्बू से होती है, जिसे वह अपने सपने में लाछी के रूप में देखता आया है। लाछी को देखकर उसे इस बात का यकीन हो जाता है कि वह पिछले जन्म के प्रेमी हैं। 'लव स्टोरी 2050' भी ऐसी ही फिल्म थी जिसमे प्रियंका चोपड़ा एक कार दुर्घटना में खुद को मार डालती हैं। क्योंकि, उसकी शादी हरमन बावेजा से होने वाली होती है। फिर हरमन बोमन टाइम मशीन की मदद से भविष्य में जाते हैं और प्रियंका पुनर्जन्म रूप लेकर भविष्य में वापस आ जाती है। शाहिद कपूर और प्रियंका चोपड़ा की 'तेरी मेरी कहानी' की कहानी तो बेहद उलझी हुई थी। पूरी फिल्म के दौरान पता ही नहीं चलता है कि उनका पुनर्जन्म हुआ है। फिल्म की कहानी उनके 3 जन्मों पर आधारित है। लेकिन, पटकथा बेहद कमजोर होने से ये फ्लॉप फिल्मों की सूची में दर्ज है। अभी भी ये विषय पुराना नहीं पड़ा है। जब किसी फ़िल्मकार के सामने ऐसी कोई कहानी आई, दो जन्मों की प्रेम कहानी फिर आकार ले लेगी।
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