नरेंद्र मोदी की सरकार ने भले ही अपने चुनावी वादों को पहले बजट में शामिल न किया हो, पर गंगा पर सौगातों की बारिश कर दी! कई ऐसी घोषणाएं हैं, जो सही मायनों में गंगा और उसके तट पर बसे शहरों के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होंगी। नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी की भी बहुत सी उम्मीदें साकार हुई है! ' नमामि गंगे परियोजना' को मोदी सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना के रूप में देखा जा रहा है। केंद्रीय बजट में 2037 करोड़ का प्रावधान इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए किया गया है। इससे समन्वित गंगा संरक्षण मिशन की शुरुआत होगी! इस परियोजना से गंगा समेत उसकी सहायक नदियों सहित कई क्षेत्रों का भी विकास होगा। इससे गंगा की साफ-सफाई में मदद मिलेगी और और गंगा में जहाज परिवहन भी विकसित होगा!
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- हेमंत पाल
नरेंद्र मोदी सरकार के पहले बजट में 'नमामि गंगे' के ऐलान में 'नमो' की छाप दिखती है। बजट में नदियों की सफाई से लेकर नदियों को जोड़ने वाले प्रोजेक्ट पर भी फोकस किया गया है। 'नमामि गंगे' नाम से इंटीग्रेटेड गंगा कंजर्वेशन मिशन शुरू करने का ऐलान किया गया है। इसमें एनआरआई से भी मदद लेने का उल्लेख है। बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि 'नमामि गंगे' नाम से इंटीग्रेटेड गंगा कंजर्वेशन मिशन शुरू किया जाएगा। शुरुआती साल के लिए 2037 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। देश की विकास प्रक्रिया में एनआरआई का अहम योगदान रहा है। गंगा नदी के कंजर्वेशन के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने में भी एनआरआई कम्युनिटी अहम योगदान दे सकती है। इसलिए गंगा के लिए 'एनआरआई गंगा फंड' बनाया जाएगा, जिससे आर्थिक मदद मिल सके।
भाजपा के लिए गंगा का मसला चुनाव अभियान में भी एक बड़ा मुद्दा रहा। वाराणसी से नामांकन करने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था 'न मैं यहां आया हूं और न ही किसी ने मुझे यहां भेजा है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है'। हिंदू नगरी कहे जाने वाले वाराणसी में बीजेपी ने गंगा के सफाई के मसले पर कैंपेन भी किया था। बजट में केदारनाथ, हरिद्वार, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, पटना और दिल्ली में रिवर फ्रंट के सौंदर्य और घाटों के विकास के लिए 100 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया गया। जेटली ने कहा कि रिवरफ्रंट और घाट सिर्फ हिस्टोरिकल हैरिटेज ही नहीं हैं, बल्कि इनमें से कई नदियां और घाट पूज्य हैं। लोग इनकी पूजा करते हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नदियों को जोड़ने के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर बात शुरू हुई थी, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाई। अब मोदी सरकार ने इस पर फोकस किया है। जेटली ने बजट में नदियों को जोड़ने वाले प्रोजेक्ट की डिटेल रिपोर्ट की तैयारी के लिए 100 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया।
इसी साल 24 अप्रैल की दोपहर बाद अपना नामांकन दाखिल करने के लिए बनारस कचहरी के बरामदे में खड़े भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने कहा था कि न मैं यहां आया हूं और न ही किसी ने मुझे यहां भेजा है, यहां तो मुझे गंगा मां ने बुलाया है। यह दृश्य बदला और जनता की इच्छा से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। गंगा को लेकर उनकी वचनबद्धता पर सबको भरोसा था, जिसे अंतत: अमलीजामा भी पहनाया वित्तमंत्री अरुण जेटली के आम बजट में। अब 'नमामि गंगा' नाम से गंगा व उसके तटों के उद्धार को एक नया प्रोजेक्ट शुरू करने का प्रावधान किया गया है। वित्तमंत्री ने इसके लिए बजट में 2037 करोड़ रुपए का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत अहमदाबाद में साबरमती रिवर फ्रन्ट की तर्ज पर उत्तर भारत में गंगा रिवर फ्रन्ट का श्री गणेश किया जाना है। इसमें गंगा जल संरक्षण के साथ ही तटों के संरक्षण व संवर्धन का प्रावधान संभावित है। नदी किनारे पॉथ-वे और पौधरोपण कर इसे समृद्ध क्षेत्र बनाने का भी प्लान इसमें निहित है।
भारत में कृषि के माध्यम से दौलत का सर्वाधिक उत्पादन करने वाली गंगा बेल्ट को अब कारोबारी नजरिए से भी और समृद्ध किया जाएगा। पूर्व में औने-पौने शुरू की गई जल परिवहन की कवायद को अब व्यवस्थित रूप देते हुए इलाहाबाद से हल्दिया तक गंगा जल परिवहन हेतु बजट में प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त गंगा घाटों के लिए भी 10 करोड़ का बजट प्रावधानित किया गया है। यह संपूर्ण कवायद गंगा रिवर फ्रन्ट को अहमदाबाद के उस साबरमती रिवर फ्रन्ट की तर्ज पर पिरोकर पेश करना है जिसे गुजरात मॉडल के नवरत्नों में से एक बताकर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं।
सबसे बड़ी चुनौती
गंगा सफाई अभियान की सबसे बड़ी बाधा होगी गंगा में गिरने वाले शहरी और औद्योगिक कचरे को रोकना। यह समस्या सरकार और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है। गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है। जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। कैंसर के सबसे अधिक मरीज गंगा के बेल्ट से संबंधित हैं। इसके अलावा दूसरी जलजनित बीमारियां हैं।
सर्वेक्षणों के अनुसार गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रसायनिक कचरा गिराया जाता है, जिसका सीधा संबंध औद्योगिक इकाईयों और रसायनिक कंपनियों से हैं। गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रसायनिक कारखाने और शुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग शामिल हैं। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा को आंचल करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। वहीं शुगर मिलों का स्क्रैप इसके लिए और अधिक खतरा बनता जा रहा है। गंगा में गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है। जबकि 15 प्रतिशत औद्योगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्योगिक ईकाइयां स्थापित हैं।
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