- हेमंत पाल
दिल्ली में इन दिनों एक नई तरह की राजनीतिक जंग चल रही है। जो राजनीतिक न होते हुए भी राजनीति को केंद्र में रखकर चलाई जा रही है। केंद्र में काबिज एनडीए सरकार और दिल्ली सरकार के बीच छिड़ी खामोश जंग यही कह रही है! राजनीतिक मोर्चे पर लगातार असफल हो रही केजरीवाल सरकार खुद की पार्टी के विरोधियों और विपक्ष से बचने के लिए केंद्र के विरोध का अराजनीतिक तरीका अपनाया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कभी दिल्ली पुलिस कमिश्नर से पंगा लेते नजर आते हैं, कभी महिला सुरक्षा के मुद्दे पर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मौका ढूंढते हैं! सोमनाथ भारती से लेकर जितेंद्र तोमर तक के मामले, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज देने को लेकर टकराव के बीच ही अब एक लड़की मीनाक्षी की हत्या पर सियासत शुरू हो गई है। साफ है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच की लड़ाई में दिल्ली पुलिस अभी धुरी बनी हुई है। ये सब करने के पीछे एक ही मकसद नजर आते है कि खुद को लाइम लाइट में बनाए रखकर राजनीति के तवे को गर्म रखना!
तनाव का ताजा कारण है दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार के बीच महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा! दिल्ली सरकार इस मुददे पर एक दिन का विशेष सत्र बुलाने जा रही है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मुताबिक इस मामले पर एक आयोग भी बनाया जाएगा! ये आयोग जांच करेगा कि सीआरपीसी में क्या बदलाव की जरूरत हैं, ऐसे मामलों में पुलिस की क्या लापरवाही रही? उनके खिलाफ क्या एक्शन लिया जाए? दिल्ली पुलिस कमिश्नर और दिल्ली के मुख्यमंत्री की एक तल्ख बैठक भी हुई! लेकिन, पुलिस कमिश्नर के बयान के बाद दिल्ली सरकार ने अखबारों और रेडियो पर हमलावर विज्ञापन शुरू कर दिए। विज्ञापनों में प्रधानमंत्री को दिल्ली पुलिस के लिए समय देने की अपील की गई और कहा गया कि दिल्ली पुलिस निरंकुश है। उस पर किसी की लगाम नहीं!
मीनाक्षी हत्याकांड को लेकर आम आदमी पार्टी इन दिनों कुछ ज्यादा ही उग्र नजर आ रही है। पार्टी के यूथ विंग ने दिल्ली पुलिस कार्यालय के बाहर प्रदर्शन भी किया। केजरीलवाल ने पत्रकारों से कहा भी कि दिल्ली में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बदतर हो रही है। दिल्ली पुलिस प्रधानमंत्री के अधीन आती है! या तो वे कुछ करें या दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार को सौंप दिया जाना चाहिए। दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार को सौंपे जाने की पैरवी करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि पुलिस दिल्ली सरकार के प्रति उत्तरदायी नहीं होगी, तो उसे जवाबदेह कैसे बनाया जाएगा? उधर, दिल्ली के गृहमंत्री सत्येन्द्र जैन ने पुलिस आयुक्त बी एस बस्सी से इस बात का स्पष्टीकरण मांगा कि आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई? जबकि, पीडिता ने कई बार शिकायत दर्ज करवाई थी! केजरीवाल सरकार ने मामले की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश देकर आग में घी जरूर डाल दिया!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल केंद्र की एनडीए सरकार के साथ टकराव की राजनीति क्यों कर रहे हैं? इसके क्या नतीजे निकलेंगे, इसे लेकर अभी सिर्फ अटकलें ही लगाई जा सकती हैं! जबकि, आम आदमी पार्टी मानना है कि यह लड़ाई अब बड़ी हो गई है, इससे पीछे हटने में उसे नुकसान ही होगा! 'आप' का दावा है कि दिल्ली की जनता की नज़रों में मोदी सरकार द्वारा केजरीवाल सरकार को अनावश्यक परेशान किया जा रहा है! केजरीवाल अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को परेशान किए जाने को लेकर कहते हैं कि कल उनका नंबर भी आ सकता है! आशय यह कि इससे उनके लड़ाकू मुख्यमंत्री होने के इरादे स्पष्ट नजर आते हैं।
ये तनातनी दिल्ली की नौकरशाही पर कब्जे के अधिकार को लेकर शुरू हुई! अब इसे बिहार के लोगों तक ले जाने की तैयारी है। दिल्ली में बड़ी संख्या में बिहारी रहते हैं। 'आप' को लग रहा है कि विधानसभा चुनावों के दौरान बिहार पहुँचकर भाजपा और नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ माहौल बनाया जा सकता है। पार्टी के नेता संजय सिंह भी कह चुके हैं कि हम भाजपा के ख़िलाफ़ चुनाव प्रचार के लिए बिहार जा सकते हैं। इसके बावजूद उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री केजरीवाल के बीच चल रहे घमासान के बीच भाजपा केजरीवाल के ख़िलाफ़ सड़क पर खड़ा होने से बच रही है।
भाजपा को डर है कि केजरीवाल अभी हीरो बने हैं। ऐसे में 'आप' के ख़िलाफ़ किसी भी तरह के विरोध के नतीजे उल्टे भी हो सकते हैं। संभव है कि हालात ज़्यादा बिगड़ते देख केंद्र सरकार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की सिफ़ारिश कर दे! जहाँ तक सुलह की बात है तो फिलहाल ऐसे कोई हालात दिखाई नहीं दे रहे हैं। फ़र्जी डिग्री मामले में दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जीतेन्द्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी ने 'आप' को भड़का जरूर दिया है। एक नया मोर्चा विधायक सोमनाथ भारती के ख़िलाफ़ भी खुल गया! एक आश्चर्यजनक सच ये भी है कि प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव के साथ 'आप' से अलग हुआ गुट अभी चुप रहकर मौहाल देख रहा है। अरविन्द केजरीवाल भी चाहेंगे कि लड़ाई तब तक चलती रहे जब तक कि कोई भी फ़ैसला उनके पक्ष में नहीं हो जाता! वे जानते हैं कि नतीजे में जनता की अदालत में वोट मांगने के लिए उन्हें ही जाना होगा।
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मुद्दा भी मोदी सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच फांस बना हुआ है। आम आदमी पार्टी सरकार इसे मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश में है। मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली के संविधान और उसके अधिकारों के बारे में भी बेहतर जानते हैं। उन्हें पता है कि दिल्ली के पास पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने की वजह से वे पहले जनलोकपाल बिल पास नहीं करवा पाएंगे। 'आप' भी समझती है कि दिल्ली में उनकी केंद्र या फिर उपराज्यपाल से अधिकारों की लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक उन्हें संसद से ज्यादा से ज्यादा अधिकार नहीं मिल जाते! उधर, केंद्र में बैठी भाजपा भी जानती है कि अगर केजरीवाल सरकार को दिल्ली से जुड़े ज्यादा अधिकार दे दिए, तो आने वाले समय वे भाजपा के लिए खतरा बन जाएंगे!
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के मामले में भाजपा अपने पैंतरे बदलती रही है। दिल्ली में महानगर परिषद के बाद वर्ष 1993 में जब दिल्ली विधानसभा बनी, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने सबसे पहले ये मुद्दा उठाया। उस समय उनके सामने भी दिल्ली का शासन चलाने में राजधानी के पास पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने की वजह से दिक्कतें सामने आ रही थीं। दिल्ली में खुराना के बाद जब दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार थी। जब केंद्र में भाजपा की सरकार थी, उस समय की कांग्रेस की सरकार ने जोर-शोर से पूर्ण राज्य के दर्जे का मामला उठाया। बाद में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई तो दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे के मामले में शीला दीक्षित ने भी पलटी मार ली। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि भूमि और पुलिस उनकी सरकार के अधीन की जाए! लेकिन, दिल्ली में अन्य देशों के दूतावास और संसद है, इसलिए उन्हें दिल्ली की सुरक्षा नहीं चाहिए।
दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे के मामले में भाजपा ने भी कांग्रेस की तरह पलटी मारी! चुनावों से पहले भाजपा जो घोषणा पत्र लाई, उसमें कहीं भी दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे के मामले में आश्वासन तो दूर, उसका जिक्र भी नहीं था। अब इस मुद्दे को लेकर दिल्ली में भाजपा नेताओं से जवाब देते नहीं बन रहा! उधर, केजरीवाल और उनकी पार्टी लगातार इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को घेरने में लगे हैं। केजरीवाल और आप पार्टी अब सीधे आरोप लगा रही है कि वे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं, लेकिन भाजपा भ्रष्ट अफसरों को बचाने के लिए उन्हें दिल्ली में ज्यादा अधिकार नहीं दे रही!
आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार ने केंद्र सरकार और भाजपा को इस मुद्दे पर घेरने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। इसका सीधा प्रचार होगा, दिल्ली में 70 में से 67 विधायकों वाली आम आदमी पार्टी की सरकार मोदी सरकार की ओर से उन्हें अधिकार नहीं देने की वजह से दिल्लीवासियों के लिए ज्यादा से ज्यादा करने की इच्छा के बावजूद कुछ कर नहीं पा रही है!
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