Saturday, November 14, 2015

शाब्दिक हिंसा से लहूलुहान होती राजनीति!


इन दिनों पूरे देश में शाब्दिक हिंसा का दौर है! जिसे, जब मौका मिलता है शब्दों के तीर चलाने में देरी नहीं करता! इस काम में सबसे आगे हैं देश के निरंकुश नेता! प्रतिद्वंदी नेताओं पर बयानबाजी करते-करते ये नेता भूल जाते हैं कि उन्हें जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना है! अभिनेता शाहरुख़ खान के असहिष्णुता वाले बयान पर इतना उबाल आया कि कई नेता उसके पीछे पड़ गए! इधर, मध्यप्रदेश में भी कई नेता जुबानी बवासीर से पीड़ित होते जा रहे हैं! कभी ये बयान राजनीतिक होते हैं, कभी कुछ और! बाद में खंडन-मंडन या बयान वापसी की बात  जाती है! क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जुबान खोलने से पहले नेता दो पल सोच लें कि वे क्या बोलें और क्या नहीं?
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  - हेमंत पाल 
   शब्दों से किसी पर वार करने की मंशा भी हिंसा कहलाती है और ऐसी किसी इच्छा का न होना अहिंसा! अहिंसा का सीधा सा तात्पर्य शारीरिक हिंसा न करना! क्योंकि, यह स्पष्ट रूप में दिखाई देती है। लेकिन, ये भी सच है कि शरीर पर लगी चोट के निशान तो वक़्त के साथ धूमिल हो जाते हैं, पर वाचिक हिंसा सबसे ज्यादा आघात करती है! इस तरह की हिंसा सीधे दिल पर वार करती है। कहा जाता है कि वाणी किसी भी व्यक्ति के अंतर्मन को समझने का सबसे अच्छा माध्यम है। यानी जिसकी जैसी सोच होती है, वैसे ही उसके बोल होते हैं! ये बात जीवन के हर मोर्चे पर लागू होती है! निजी जीवन में भी, व्यवहार में भी और कर्म में भी! कुछ इसी तरह की शाब्दिक हिंसा आजकल मध्यप्रदेश के कुछ मंत्री और संगठन जुड़े लोग कर रहे हैं। प्रदेश की पशुपालन मंत्री कुसुम महदेले एक बच्चे को लात मारने के बाद 'राजनीतिक किरकिरी' का सामना कर रही हैं। शिवराज-सरकार में ऐसे कई मंत्री हैं, जो गाहे-बगाहे अपनी हरकतों या अटपटे बयानों के कारण विवादों में घिर जाते हैं।
  लोग जनप्रतिनिधियों से ये उम्मीद नहीं करते कि उनके मुँह से अनर्गल शब्द निकले! इसलिए कि जनप्रतिनिधियों को जनता खुद चुनती है, इसलिए लोग नहीं चाहते कि उनका कोई प्रतिनिधि उनसे ऐसा व्यवहार करे! कुसुम महदेले ने पन्ना में जो किया वो इसीलिए अक्षम्य हैं कि वे जनता द्वारा चुनी हुई प्रतिनिधि हैं, पर मंत्री होने के गुरुर में चूर होकर लात मारने जैसा कृत्य कर बैठी! आश्चर्य इस बात पर कि एक रूपए के लिए गिड़गिड़ाते बच्चे पर इस महिला मंत्री को दया नहीं आई! अपने अक्खड़ व्यवहार के लिए पहले भी कुसुम महदेले विवादों में रही हैं! कुछ दिनों से मंत्रियों की बयानबाजी पर अंकुश न होने से जब भी किसी मंत्री को मौका मिलता है, कुछ भी बोल देता है!  प्रदेश में सूखे और कर्ज की स्थिति से परेशान होकर किसान आत्महत्या कर रहे हैं! लेकिन, इस मामले संवेदना दिखाने बजाए कई मंत्रियों के बेतुके बयान सामने आ रहे हैं! किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर महदेले ने कहा था 'बेटे की मौत पर नहीं करते सुसाइड, फसल बर्बादी पर कैसे मर गए?' इस महिला मंत्री ने कुछ दिनों पहले किसानों से मुलाकात के दौरान कई बार अपने तीखे तेवर दिखाए थे। सोयाबीन की फसल बर्बाद होने पर उन्होंने किसानों को डांटते हुए कहा था कि 'उन्हें क्या किसी डॉक्टर ने कहा कि वो हर साल सोयाबीन की फसल बोएं और अपनी जमीन का कबाड़ा कर लें।
  ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने प्रदेश सरकार की शराब नीति का बचाव करते हुए दावा किया कि गुजरात में शराब पर पाबंदी के बावजूद वहाँ शराब के कस्टमर कई गुना बढ़ गए! गुजरात में बड़े-बड़े शराब किंग तैयार हो गए, जिनकी करोड़ों-अरबों की जायदाद है। गोपाल भार्गव सरकार के उस फैसले का बचाव कर रहे थे, जिसमें राज्य सरकार ने देसी शराब ठेकों पर अंग्रेजी शराब बेचने की मंजूरी दी है। इसी कोशिश में भार्गव अपनी ही पार्टी की दूसरी राज्य सरकार की विफलता पर भी इशारों-इशारों में उंगली उठा बैठे! देखा जाए तो ये सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी पर ही ऊँगली उठाई गई है। इससे पहले इसी मंत्री ने कहा था 'महात्मा गांधी मेरे सपने में आए थे! एफडीआई पर कांग्रेस के रवैये को लेकर वे रो रहे थे! जिन अंग्रेजों से गांधीजी ने लड़ाई लड़ी, पिछले दरवाजे से फिर वे देश में एफडीआई के जरिए प्रवेश कर रहे हैं। आज यदि गांधीजी जिंदा होते तो गोडसे उनकी हत्या नहीं करते, बल्कि वे ही अपनी कनपटी में गोली मारकर आत्महत्या कर लेते।' ये प्रतिद्वंदी पार्टी पर कैसी शाब्दिक हिंसा है? चीन की यात्रा से लौटकर भी भार्गव ने वहाँ के अनुभव भी ख़ास अंदाज में सुनाए और कहा कि चीन तो भारत से चीन 100 साल आगे निकल गया। भारत न लड़ सकता है और न सियाचिन वापस ले सकता है। किसी मंत्री से क्या इस तरह के बयान की उम्मीद की जाना चाहिए?
  विवादास्पद बयान देने में शिवराज-मंत्रिमंडल के मंत्रियों में सबसे आगे हैं गृह मंत्री बाबूलाल गौर! वो किसी विरोधी नेता या पार्टी पर तो ऊँगली नहीं उठाते पर जो बोलते हैं, वो मजाक जरूर बन जाता है! उन्होंने एक बार शराब पीना शान की बात बताया और कहा कि शराब पीना स्टेटस सिंबल है, इससे अपराध नहीं बढते! कहा कि जब कोई पीकर डगमगाता है, तब अपराध बढते हैं जब कोई समझकर पीता है तो उससे अपराध नहीं बढता! उन्होंने तो शराब पीने को लोगों का संवैधानिक अधिकार तक बताया! इसके पहले गौर ने कहा था कि बलात्कार एक सामाजिक अपराध है, जो पुरुष और महिला पर निर्भर करता है।' 
   बात यहीं तक नहीं! बाबूलाल गौर की एक कार्यक्रम के दौरान जुबान फिसली तो फिसलती चली गई। रूसी महिलाओं के साथ हुए मुलाकात का जिक्र उन्‍होंने कुछ इस अंदाज में किया कि कोई भी खुद को हंसने से रोक नहीं पाया! उन्होंने कहा कि एक बार कुछ रूसी महिलाओं ने उनसे पूछा कि वे बिना चेन और बेल्‍ट की मदद से धोती कैसे पहनते हैं? मैंने कहा कि मैं खोलकर कैसे दिखाऊं? इस तकनीक को सीखने के लिए आपको अकेले मुझसे मिलना होगा! रूसी यात्रा के अनुभव का जिक्र करते हुए गौर ने बताया कि रूस की औरतें काफी मोटी होती हैं। उन्‍होंने मुझे गले लगा लिया। वो मुझे चूमने लगीं। मैंने उनसे कहा कि अगर ये फोटो बीजेपी वाले देख लेंगे तो मुझे टिकट ही नहीं देंगे। उन्‍होंने बताया कि रूस में सम्मान देने का तरीका है, भारत में ऐसा होता तो हंगामा खड़ा हो जाता। अपने यहां अगर कोई ऐसे सम्‍मान करे तो जूते खा ले! यह उनकी परंपरा है। मुझे इस पर बहुत हैरानी हुई। एक बार उन्‍होंने कहा था कि महिलाओं को ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए, जिससे कोई आकर्षित हो! वहीं, गौर साहब ने व्यापमं मामले में आरोपियों की लगातार हो रही मौतों के बारे में विवादित बयान दिया था कि आरोपियों की मौत सामान्य है, जो दुनिया में आता है उसे जाना ही है! 
  मौसम की मार और सराकर की बेरूखी से एक ओर किसान परेशान है, तो दूसरी ओर इस मसले पर राजनीति रूकने का नाम नहीं ले रही। अधिकांश मंत्री आत्महत्या पर नई थ्योरी दे रहे हैं! मंत्रियों के मुताबिक किसान खेती खराब होने की वजह से नहीं, बल्कि परिवारिक कारणों से मौत को गले लगा रहे हैं। वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार भी ऊल-जुलूल बयानबाजी में किसी से पीछे नहीं हैं। उन्होंने टाइगर की गिनती से जुड़े मीडिया के एक सवाल पर टका-सा जवाब देते हुए कहा था कि क्या टाइगरों को लाइन से खड़ा करके गिने! जैसे गणना होती है करते हैं। कोई प्रतिस्पर्धा तो है नहीं है! यह बयान उन्होंने अपने विभाग की रिपोर्ट पेश करते हुए दिया था। 
  मंत्रियों की बयानबाजी तो अपनी जगह है, पर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान भी अपने विवादास्पद बयानों के कारण हमेशा ही सुर्खियों में बने रहते है। उनके अनमोल वचनों का भी लम्बा लेखा-जोखा है! नरसिंहपुर के करेली में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि भाजपा के उम्मीदवार को जिताइए! अगर नहीं जीता तो विकास के लिए धन कहाँ से आएगा? अगर आप सत्‍तारुढ़ पार्टी के प्रत्‍याशी को जिताएंगे, तो ही विकास के लिए धन भी अधिक मिलेगा! अध्यापकों आंदोलन के बारे में अध्यक्षजी ने कहा था कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इतना दिया है उसके बाद भी अध्यापकों का पेट नहीं भरता है। इतना तो किसी ने नहीं दिया था! व्यापमं मामले की जांच सीबीआई से कराने की बात पर नंदकुमार सिंह चौहान ने कहा कि 'सीबीआई हाई कोर्ट से बड़ी संस्था नहीं है। अभी जांच कोर्ट की देख-रेख में हो रही है। कोर्ट यदि एसटीएस, एसआईटी के अलावा सीबीआई या किसी दूसरी एजेंसी से जांच कराए तो संगठन और सरकार को इसमें कोई आपत्ति नहीं है।' 
   नंदकुमार चौहान सिर्फ बयान ही विवादस्पद नहीं देते, कुछ सामान्य बोलते हैं तो वो भी सुरखी बन जाता है। सागर जिले की खुरई विधानसभा में कार्यकर्ताओं के अभ्यास वर्ग में भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में नंदकुमार चौहान ने इतने कसीदे गढ़े कि सारी सीमाएं लांघ गए! उन्होंने मोदी को असाधारण व्यक्ति बताते हुए कहा कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद हमारी इमेज विश्व स्तर पर कहाँ से कहाँ पहुंच गई! मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले देश भिखमंगा था, उनके आने के बाद देश तरक्की का रहा है। इसी मंच पर उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की भी जमकर तारीफ की! कहा कि शिवराज का मुख्यमंत्री बनना ईश्वर का चमत्कार है। उन्होंने प्रदेश की सात करोड़ जनता की जिंदगियों में खुशियों का रंग भरा है। सरकार और संगठन दोनों ही तरफ से जब ऐसे 'बोल वचनों' की बौछार होती रहती हो, तो माना जा सकता है कि किसी की भी जुबान पर लगाम लगाने का कोई इंतजाम नहीं किया गया! इसी वाचिक हिंसा ने प्रदेश में माहौल बिगाड़ रखा है! 
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