- हेमंत पाल
किसी भी फिल्म की सफलता का फार्मूला क्या है, ये किसी को नहीं पता! दर्शकों को फिल्म की कहानी पसंद आएगी, कलाकारों की एक्टिंग को सराहा जाएगा, गी
त और संगीत फिल्म को हिट कराएँगे या फिर भव्य सेट और फिल्म का बड़ा बजट हिट कराने का फार्मूला बनेगा? ये ऐसा सवाल है जिसका जवाब अभी तक कोई खोज नहीं पाया है। लेकिन, ये तय है कि कहानी, एक्टिंग या गीत-संगीत से तो फिल्म की सफलता की उम्मीद की जा सकती है, पर सेट की भव्यता और फिल्म का बड़ा बजट कभी किसी फिल्म के हिट होने का कारण नहीं बन सकता! इस बात को सलमान खान की नई फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' के संदर्भ में भी देखा जा सकता है। राजश्री प्रोडक्शन की इस फिल्म की संभावित सफलता में इसके भव्य सेट और करोड़ों के बजट को आकलित किया गया और हाइप क्रिएट किया गया! पर, फिल्म देखकर निकलने वाले दर्शकों के चेहरे पर फिल्म से संतुष्ट होने जैसे भाव नहीं दिखे! ये फिल्म पैसे कमाने के नजरिए से भले ही सफल कही जाए! लेकिन, राजश्री की फिल्मों से दर्शक जो उम्मीद करते हैं, वो कुछ भी दर्शकों को इस फिल्म में शायद नजर नहीं आया!
थोड़ा पलटकर देखा जाए, तो बड़े बजट और भव्य सेट वाली फिल्मों की सफलता हमेशा ही संदिग्ध रहती है। संजय लीला भंसाली की फिल्म 'देवदास' का बजट तब करीब पचास करोड़ आँका गया था। इसमें भव्य सेट, माधुरी दीक्षित का लाखों का लहंगा और गहने थे, जिसने फिल्म को भव्यता प्रदान की! इस फिल्म की कामयाबी का कारण शानदार अभिनय था, न कि भव्य सेट, महंगे गहने और कपडे! क्योंकि, फिल्म का बडा बजट और भव्यता ही किसी फिल्म की सफलता का कारण बने ये संभव नहीं है!
'देवदास' के कमर्शियली हिट होने के बाद तो बड़े बजट की फिल्मों का चलन शुरू हो गया। लेकिन, भ्रम जल्दी दूर हो गया! अनिल शर्मा की सौ करोड़ कि फिल्म 'द हीरो' औंधे मुंह गिरी! व्यवसाय के नाम पर फिल्म फ्लॉप रही। संजय लीला भंसाली की 'देवदास' ने रिकॉर्ड तोड़े, पर भंसाली की ही अगली बड़े बजट की फिल्म 'सांवरियां' ने बुरी तरह फ्लॉप हो गई! इसके बाद बड़े बजट की फिल्मों के इस हश्र से फिल्मकारों को समझ में आ गया कि किसी भी फिल्म के हिट होने का कारण सेट की भव्यता और बड़ा बजट नहीं होता! इसके लिए जरुरी है जानदार कहानी, शानदार एक्टिंग और सुमधुर गीत-संगीत! ये फैक्टर मिलकर ही फिल्म की सफलता की कहानी रचते हैं।
इसलिए कि आज के दर्शकों के लिए फिल्मों की भव्यता ज्यादा मायने नहीं रखती! कम और औसत बजट की फिल्मों को दर्शक मिलने का कारण भी यही है।अब ये फिल्में अपनी लागत से कई गुना ज्यादा बिजनेस करने में भी समर्थ हैं। स्पष्ट है कि आज के दर्शक फिल्मों में भव्य सेट लकदक नहीं, दमदार कहानी देखना चाहते हैं। आमिर खान की पत्नी किरण राव की 5 करोड़ में बनी फिल्म 'धोबी घाट' ने लागत का 3 गुना बिजनेस किया! यही स्थिति 'तनु वेड्स मनु' और इसकी सीक्वल 'तनु वेड़्स मनु रिटर्न्स' की रही! राजकुमार गुप्ता की 9 करोड़ में बनी 'नो वन किल्ड जेसिका' ने 28 करोड़ रुपये की कमाई की। उड़ान, पीपली लाइव और लंच बॉक्स' ने भी अपनी लागत से कहीं ज्यादा कमाई करके निर्माता को मालामाल कर दिया!
कम बजट की इन फिल्मों की सफलता बताती है कि आज के दर्शक मनोरंजन के साथ गुणवत्ता भी देखते हैं। यही कारण है कि अनजान चेहरों वाली पर सशक्त कहानी और कसी हुई पटकथा वाली कई कम बजट की फिल्मों को सराहना मिलती है, पर बेंग-बेंग, जोधा अकबर, वीर जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हो पाती! क्योंकि, दर्शक आज बड़े बजट की बेकार फिल्मों को देखने की बजाए कम बजट की अच्छी फिल्में देखकर ज्यादा खुश होते हैं। सूरज बड़जात्या ने 'प्रेम रतन धन पाया' की सफलता के लिए जबरदस्त हाइप बनाया था! हफ्तेभर पहले एडवांस बुकिंग शुरू कर दी, प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी, आज के सबसे चमकते सितारे सलमान खान को डबल रोल में फिल्म में उतारा फिर भी क्या वे उम्मीद के मुताबिक फिल्म बनाकर दर्शकों को ख़ुशी दे पाए? शायद नहीं! फिल्म देखकर थिएटर से बाहर आता दर्शक सबसे अच्छा समीक्षक होता है। उसके कमेंट ही फिल्म का सही आकलन होते हैं! ' प्रेम रतन धन पायो' देखकर निकले दर्शकों ने भी फिल्म के प्रति अच्छी भावना व्यक्त नहीं की! भव्य सेट और ढेर सारे कलाकारों भीड़ बावजूद वो कहानी गुम थी, जिसकी तलाश में दर्शक थिएटर तक गया था!
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