Wednesday, November 25, 2015

छोटी फ़िल्मों के बड़े असर!


- हेमंत पाल 
   आजकल फिल्मों के 'अच्छे' होने को उनके बड़े बजट से आँका जाता है। जितना बड़ा प्रोडक्शन हाउस, जितना बड़ा निर्माता उतनी ही बड़ी फिल्म! 'मुगले आजम' से शुरू हुआ 'बड़ी' फिल्मों का दौर आज भी जारी है! करन जौहर, यशराज फिल्म्स, संजय लीला भंसाली और शाहरुख़ खान का रेड चिली प्रोडक्शन हॉउस ऐसे ही कुछ नाम हैं, जो बड़े बजट वाली 'बड़ी' फ़िल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं! आशय यह नहीं कि भारी भरकम बजट से बनने वाली फ़िल्में सफल हो ही जाती हैं! बड़े सितारों और महंगे सेटों वाली फिल्मों के बीच में कुछ ऐसी फिल्में भी आती हैं, जो दर्शकों पर खासा असर छोड़ती हैं और कमाई भी करने में पीछे नहीं रहती!
  याद कीजिए लंच बॉक्स, पानसिंह तोमर, शिप ऑफ़ थीसिस, गैंग ऑफ़ वासेपुर कुछ ऐसी ही कुछ फ़िल्में हैं, जिन्होंने थिएटर से बाहर निकलते दर्शकों को कुछ सोचने पर मजबूर किया! करण जौहर का धर्मा प्रोडक्शन बहुत बड़ा बैनर है! इस बैनर ने दिल तो पागल है, कुछ कुछ होता है, अग्निपथ (रीमेक), स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर और ये जवानी है दीवानी जैसी बड़े बजट की फार्मूला फिल्में बनाई है! लेकिन, इसी प्रोडक्शन हॉउस ने 'लंच बॉक्स' जैसी छोटी फिल्म भी बनाई! इसके अलावा विक्की डोनर, फरारी की सवारी, शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी और 'कहानी' ऐसी ही छोटी फ़िल्में हैं जिन्होंने बड़ी-बड़ी फिल्मों को पानी पिला दिया! ये कम बजट की ऐसी फ़िल्में थी, जिनमें न तो बड़े सितारे थे और न हो महंगे सेट! फिर भी ये फ़िल्में चली और बजट से कई गुना ज्यादा कमाई भी की! इन फिल्मों के निर्माण में यू-टीवी, वॉयकॉम, पीवीआर पिक्चर्स और रिलायंस जैसे प्रोडक्शन हाउस और स्टूडियोज़ ने पैसा लगाया या डिस्ट्रीब्यूट किया!
   इस तरह की फ़िल्में हर दौर में बनती रही है। 80 के दशक में 'जाने भी दो यारो' जैसी कम बजट की कई फ़िल्में बनी और अच्छी चली! पेस्टनजी, मिर्च मसाला, सलाम बॉम्बे और चश्मे बद्दूर जैसी कई फ़िल्में बनी! ये आर्ट नहीं, ठेठ फार्मूला लेकिन अर्थपूर्ण फ़िल्में थी, जिन्होंने दर्शकों का जमकर मनोरंजन किया! पिछले कुछ सालों में मेट्रो शहरों में कई मल्टीप्लेक्स थिएटर बने और इनमे चलने वाली फिल्मों का एक नया दर्शक वर्ग तैयार हुआ। नया दर्शक वर्ग मतलब महँगी कारों से आने वाले लोग, सीमित और गद्देदार सीटें, हमेशा कोल्ड्रिंक पीते और पोप कॉर्न चबाते दर्शक! इन दर्शकों को सस्ती टिकट वाली बिना सितारों वाली फ़िल्में कभी रास नहीं आती!  
  बड़े और छोटे बजट वाली फिल्मों के बीच एक अघोषित जंग हमेशा चलती रहती है! छोटे बजट वाली फिल्मों को तो किसी बड़ी फिल्म से डर नहीं लगता! पर, महँगी फिल्मे बनाने वाले निर्माता हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं कि जब उनकी फिल्म रिलीज हो रही हो तो, दर्शक बांटने वाली कोई भी फिल्म मुकाबले में न खड़ी हो! क्योँकि, फिल्म का बजट जितना बड़ा होगा, उसका फ़ायदा भी उतनी देर से निकलेगा और नुकसान का अंदेशा भी ज्यादा होगा! 'लंच बॉक्स' जैसी छोटे बजट की फिल्मों में अपनी अदाकारी दिखाने वाले इरफ़ान खान भी मानते हैं कि 90 और 2000 के दशक की शुरुआत में जो दौर था, आज उससे कहीं बेहतर वक़्त है। मसाला फ़िल्मों का सौ करोड़ रुपए कमाना भी छोटी फ़िल्मों के लिए अच्छा है! क्योँकि, ये लो-बजट फ़िल्में बड़े बजट की फिल्मों से कॉम्पटीशन नहीं करती, बल्कि उनकी मदद करती हैं! इनकी वजह से ही छोटी फ़िल्में बॉलीवुड में सरवाइव कर पाएंगी!
  साल दो साल में एक शुक्रवार ऐसा भी आया, जब सिर्फ छोटी और कम बजट की फ़िल्में ही रिलीज हुई! पिछले साल का 26 सितंबर ऐसा ही दिन था, जब कोई बड़ी फ़िल्म रिलीज़ नहीं हुई! इसका फ़ायदा उठाते हुए उस शुक्रवार 8 कम बजट की फ़िल्में रिलीज़ हुई थी! ये फ़िल्मे थीं 3-एएम, बलविंदर सिंह फेमस हो गया, बियांड : द थर्ड काइंड, चारफुटिया छोकरे, डियर वर्सेस बर, देय सी कट्टे, मैनू एक लड़की चाहिए और मुंबई-देहली-मुंबई। इनमें चारफुटिया छोकरे, बलविंदर सिंह फेमस हो गया, देसी कट्टे और मुंबई-देहली-मुंबई ठीकठाक फ़िल्में रहीं। चारफुटिया छोकरे में सोहा अली ख़ान लीड रोल में थीं! जबकि, बलविंदर सिंह फेमस हो गया में मिक्का सिंह और शान थे। वहीं देसी कट्टे में सुनील शेट्टी, जय भानुशाली और अक्षय कपूर लीड रोल्स में दिखाई दिए! 'मुंबई-देहली-मुंबई' में शिव पंडित और पिया बाजपेयी ने लीड रोल किए! 60, 70, 80 और 100 करोड़ में बनने वाली फिल्मों के दौर के बाद अब लगता है 5, 10 और 15 करोड़ में बनने वाली फ़िल्में आएँगी! इसकी बानगी भी है! 5 करोड़ में बनी 'विक्की डोनर' ने 46 करोड़ कमाए! 10 करोड़ की 'फरारी की सवारी' ने करीब 15 करोड़  कारोबार किया! जबकि, 15 करोड़ में ही बनी 'शंघाई' ने 19 करोड़ कमाए! विद्या बालन जैसी कलाकार को लेकर सिर्फ 8 करोड़ रुपए के बजट से बनी 'कहानी' ने तो 104 करोड़ रुपए कमाकर रिकॉर्ड बनाया! इसी तरह 8 करोड़ की 'पानसिंह तोमर  का आंकड़ा रहा 30.36 करोड़ रुपए। फिर भी सलमान, शाहरुख़ और आमिर खान को तो 100 करोड़ वाले क्लब में शामिल होने का ही शौक है! हो भी क्यों नहीं? जब निर्माता किसी सितारे के साथ फिल्म बनाने के लिए 100 करोड़ का जुआं खेलेगा तो 200 करोड़ की उम्मीद तो करेगा ही!
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