Friday, June 17, 2016

अपराधों की बाढ़ से घिरा 'शांति का टापू'


- हेमंत पाल    

   इस बात को ज्यादा दिन नहीं बीते जब दिल्ली में निवेश की संभावनाओं पर एक सेमिनार में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा था कि 'मध्यप्रदेश शांति का टापू' है। यहाँ उद्योग लगाने की अपार संभावनाएँ हैं। मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों से मध्यप्रदेश में निवेश के लिए उन्हें आमंत्रित किया और कहा था कि निवेशकों को यहाँ 'शांति का माहौल मिलेगा! लेकिन, नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकार्ड्स (एनसीआरबी) के आंकड़े इस 'शांति के टापू' की कलई खोलते हैं! मध्यप्रदेश में हर तरह के अपराध बढ़ रहे हैं! महिला सुरक्षा का दावा करने के बावजूद सबसे ज्यादा बढ़ोतरी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की ही है! इस मामले में प्रदेश ने देशभर में बाजी मार ली! लूटपाट की घटनाओं से लोग त्रस्त हैं! बाल अपराधियों के नए आंकड़ों ने चौंका दिया! प्रदेश में 'रेत माफिया' के रूप में एक नया अपराधिक गिरोह पनप रहा है! अधिकारियों पर हमले हो रहे हैं। जिस पर प्रदेश की कानून व्यवस्था का कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है! क्या कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति सरकार की चिंता का कारण नहीं है?
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   देशभर में बढ़ती अपराधिक घटनाओं को लेकर हंगामा मचा है! अपराधों के लिए कुख्यात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरोप लगाया है कि बिहार को बदनाम करने की कोशिश हो रही है, जबकि अन्य प्रदेशों में भी अपराध हो रहे हैं! अन्य प्रदेशों से उनका आशय भाजपा शासित मध्यप्रदेश और राजस्थान से था! ऐसे में नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकार्ड्स (एनसीआरबी) देश के सभी प्रदेशों का अपराध रिकार्ड्स सामने ला रही है! 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की जनसंख्या 10.4 करोड़ है एवं मध्यप्रदेश की 7.26 करोड़ और राजस्थान की 6.85 करोड़ है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 44 फीसदी आबादी अधिक होने के साथ ही मध्यप्रदेश से 35 फीसदी कम अपराध होते हैं। बिहार में प्रति एक लाख की आबादी पर 174 संज्ञेय अपराधों की रिपोर्ट दर्ज हुए, जबकि मध्यप्रदेश में 358.5 मामले दर्ज हुए हैं, करीब दोगुना। यानी अपराधों के मामले में बिहार बदनाम जरूर है, पर अपराधों की संख्या मध्यप्रदेश में कहीं ज्यादा है!
  एनसीआरबी के आंकड़ों के नजरिए से जब मध्यप्रदेश का अपराध रिकॉर्ड सामने आया तो असल सच भी सामने आया कि 'शांति का टापू' भी अशांति का जंगल बनता जा रहा है! सबसे ज्यादा ख़राब स्थिति महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की है! प्रदेश में पिछले नौ महीनों (जुलाई 2015 से मार्च 2016) में बलात्कार के करीब साढ़े 3 हज़ार के मामले दर्ज हुए! ये वे मामले हैं, जिनकी शिकायत दर्ज हुई! ऐसे भी मामले हैं जिनमें पीड़िता सामाजिक कारणों और बदनामी के भय से पुलिस के पास तक नहीं आती! ये आंकड़े बताते हैं कि मध्यप्रदेश में महिलाएं कितनी सुरक्षित और निर्भीक हैं! सरकार, प्रशासन, पुलिस और जानकारों का यह दावा है कि मध्यप्रदेश में शत-प्रतिशत अपराध थानों में पंजीबद्ध किए जाते हैं, इसलिए यह आंकड़ा ज्यादा नजर आता है। अन्य राज्यों में तो बलात्कार से लेकर अन्य गंभीर अपराध दर्ज ही नहीं किए जाते। यदि यह बात मान भी ली जाए, तो इसका मतलब यही हुआ कि अपराध तो मध्यप्रदेश में हुए ही हैं, जो बकायदा थानों पर दर्ज भी किए गए!
   वर्ष 2001 और पिछले 9 महीने की तुलना करें तो ये आंकड़े करीब दोगुने से ज्यादा हैं। 2001 में बलात्कार के 2851 मामले सामने आए थे, जबकि 2013 में 4335 मामले दर्ज किए गए। प्रदेश में औसतन लूटपाट की 6 घटनाएं होती हैं! 15 हज़ार चोरी की वारदात भी दर्ज की गई। ये वे मामले हैं, जो पुलिस के रिकॉर्ड में आए! कई बार तो लोग पुलिस कार्रवाई और कोर्ट के चक्करों से बचने के लिए शिकायत तक नहीं करते! महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर तो मध्यप्रदेश हमेशा ही सुर्ख़ियों में रहा है! लेकिन, अब प्रदेश में नाबालिग अपराधियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। ये बाल अपराधी लूट, अपहरण, छेड़छाड़ और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में भी पीछे नहीं हैं! एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक नाबालिगों के खिलाफ दर्ज अपराधों में प्रदेश 2014-15 में देश में सबसे ऊपर रहा! नाबालिगों पर दर्ज 7,802 अपराधों में सबसे ज्यादा बाल अपराधी इंदौर, ग्वालियर जैसे बड़े शहरों से हैं! प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर का नाम सबसे ऊपर हैं। संस्कारधानी कहे जाने वाले शहर जबलपुर के नाबालिग भी संस्कार नहीं पा सके!   
  अपराधों के मामले में प्रदेश का सबसे आधुनिक शहर इंदौर तो लगातार असुरक्षित होता जा रहा है! अमन पसंद और चैन की जिंदगी जीने वालों का ये शहर कुछ सालों से हत्या, लूटपाट,अवैध हथियारों और ड्रग्स के कारोबार, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग और भू-माफिया के विवादों के कारण लगातार चर्चित है! जमीन की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि और रियल इस्टेट कारोबार बढ़ने के कारण अवैध वसूली करने वाले गुंडे राजनीतिक संरक्षण में पनप रहे हैं! इस सबके कारण इंदौर को अपराधों के मामले में देश के शीर्ष 10 शहरों में लाकर खड़ा कर दिया है। अकसर होने वाली लूटपाट से कारोबारियों का इंदौर पर से भरोसा उठने लगा है। अपराधों के बढ़ते आंकड़ों के कारण इंदौर एक तरह से आपराधिक राजधानी बनता जा रहा है। महिलाओं से होने वाली लूटपाट आम बात हो गई! एक काला सच ये भी है कि शरीफ लोग तो अपनी बात कहने थाने जाने से ही घबराते हैं! सरकार थानों का माहौल ऐसा नहीं बना सकी कि आम शहरी निश्चिंत होकर शिकायत लिखवाने थाने जा सके! जब तक थानों का खौफ नहीं घटेगा, अपराध कैसे कम होंगे?
  आदतन अपराधियों के आंकड़ों से अलग नजर दौड़ाएं तो मध्यप्रदेश में एक और अपराधी गिरोह पनप रहा है 'खनन माफिया' का! इनमें सबसे सक्रिय है 'रेत माफिया!' प्रतिबंध के बावजूद नदियों से रेत निकालकर बेचने वाले इस गिरोह को लगता है किसी का खौफ नहीं है! न पुलिस का, न खनिज विभाग का और न प्रशासन का! ये अवैध कारोबार करने वालों ने अपराधियों का एक गिरोह खड़ा कर लिया है, जो अफसरों और पुलिस पर भी हमले करने से बाज नहीं आता! प्रदेश में खनन माफिया का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा! मुद्दे बात ये कि इस तरह के अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने के आरोप भी लगते रहते हैं! 
  पिछले दिनों शाजापुर में रेत का अवैध परिवहन रोकने गई महिला खनिज अधिकारी व सुरक्षाकर्मियों पर लाठियों व पत्थरों से हमला कर दिया गया था! रेत माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने पहुंचे बुरहानपुर जिले के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट को 200 लाेगों ने घेर लिया और उन्हें नदी में डुबोकर मारने की कोशिश की गई! उज्जैन में अवैध खनन रोकने कोशिश करते तहसीलदार पर डंपर चढ़ाने की कोशिश की गई! मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर में रेत माफिया के ट्रक ने दो पुलिस वालों को कुचल दिया। सब-इंस्पेक्टर सुनील वर्मा और एएसआई रामदत्त सिंह बुढ़नी से एक केस की पड़ताल करके बाइक से लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें कुचल दिय गया! मुरैना के धनेला गांव में रेत माफिया ने पुलिस कांस्टेबल धर्मेंद्रसिंह चौहान की कथित हत्या करवा दी। चौहान पुलिस दल के साथ एक आरोपी को पकड़ने गए थे लेकिन रास्ते में रेत माफिया के डंपर को रोकने की कोशिश में वह शहीद हो गए। रेत माफिया के लोगों ने ही सिंगरोली जिले के वन विभाग के डिप्टी रेंजर फुलेल सिंह को जिंदा जलाने की कोशिश की। खनन माफिया के आतंक का ये प्रदेश में ये सिर्फ नजारा है। मुरैना में पदस्थ आईपीएस नरेंद्र कुमार की अवैध खनन रोकने में ही मौत हो गई थी। 
   प्रदेश में बढ़ते अपराधों का सबसे बड़ा कारण छोटे शहरों के संसाधनों पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव है। राजनीतिक संरक्षण, पुलिसकर्मियों की अपराधियों से सांठगांठ, अपर्याप्त पुलिस बल और कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगवाने वाले पुराने कानून इस मसले को और गंभीर बना रहे हैं। इस बात से इंकार नहीं कि राजनीति संरक्षण प्रदेश में अपराधों के बढ़ने का एक बड़ा कारण है! नेताओं के आस-पास समर्पित कार्यकर्ताओं के बजाए अपराधिक गतिविधियों में संलग्न गुंडों की भीड़ बढ़ती जा रही है! राजनीति से भयभीत होकर पुलिस भी उनपर हाथ डालने से डरती है! यही कारण है कि अपराधों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है! 
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