Friday, June 24, 2016

असली सरकारी शादियों में फेरे लेते नकली जोड़े



इस फोटो को जरा ध्यान से देखिए, धार जिले के उमरबन में आयोजित 'मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना' कार्यक्रम में दुल्हन बनकर बैठी ये कन्या (?) गले में मंगलसूत्र पहने है! सीधा से मतलब है कि ये कुँवारी नहीं है, शादीशुदा महिला है जो सरकारी सुविधाओं के लालच में अपने ही पति से फिर शादी करने आ गई! ये इस तरह का पहला मामला नहीं है! गरीब कुँवारी लड़कियों की शादी करवाने की सरकार की योजना में मिलने वाले 25 हज़ार के दहेज़ के लालच में कई बार ऐसी शिकायतें सामने आई, पर इनका कोई स्थाई निराकरण नहीं हो सका! क्योंकि, इस धांधली में सरकारी कर्मचारी भी शामिल होकर अपना हिस्सा लेने से बाज नहीं आते! 
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हेमंत पाल 

  मध्यप्रदेश सरकार की एक योजना है जिसके तहत गरीब परिवारों की कुँवारी कन्याओं की सरकारी खर्च पर शादी करवाई जाती है! 'मुख्यमंत्री कन्यादान योजना' के नाम से शुरू हुई इस योजना को 11 साल हो गए! अब इसका नाम बदलकर 'मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना' कर दिया गया, क्योंकि सरकार में बैठे कुछ लोगों को 'कन्यादान' शब्द पर आपत्ति थी! योजना का नाम बदल गया है, पर ढर्रा नहीं बदला! कुँवारी लड़कियों के नाम पर शादी शुदा और यहाँ तक कि बच्चे वाली महिलाओं की उनके ही पति से फिर शादी करवा दी गई! ये धोखा कुँवारी कन्या बनकर शादी करने वाली महिला ही नहीं देती! सरकार में बैठे नुमाइंदे भी सरकार की तरफ से दिए जाने वाले 'दहेज़' में बंदरबांट करने के लिए ये हथकंडे अपनाते हैं! क्योंकि, जितने ज्यादा जोड़े, उतना बड़ा आयोजन, उतना ही ज्यादा खर्चा और उतनी ही ज्यादा कमाई भी! 
 2006 में शुरू हुई इस योजना का नाम 'मुख्यमंत्री कन्यादान योजना' था! लेकिन, अगस्त 2015 को इसे बदल दिया गया! इसे नया नाम दिया गया 'मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना!' क्योंकि, सरकार में सवाल उठा कि कन्या कब तक दान की जाती रहेगी? क्या सरकार की नजर में भी कन्या कोई दान की वस्तु है? यही कारण था कि जो योजना दस साल तक 'मुख्यमंत्री कन्यादान योजना' के नाम से संचालित थी, उसे बदल दिया गया! मध्यप्रदेश सरकार की इस योजना को देश के अन्य राज्यों ने भी अपनाया है। निर्धन, जरूरतमंद, निराश्रित परिवारों की विवाह योग्य कन्या, विधवा, परित्यक्ता के लिए होने वाले सामूहिक विवाहों के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की योजना है। लेकिन, फायदे की दुकान चलाने वालों ने इस योजना में भी सेंध लगा ली! कुँवारी लड़कियों की जगह कई आयोजनों में शादीशुदा महिलाएं बैठा जाती है। ये घटनाएं एक-दो जगह नहीं दर्जनों विवाह आयोजनों हुई!   
 ग्यारह सालों में अब तक प्रदेश सरकार साढ़े तीन लाख से ज्यादा लड़कियों की शादी करा चुकी है। सरकार के खज़ाने से 450 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च भी हुए! पहले साल सरकार हर शादी पर पांच हज़ार रुपए खर्च करती थी! लेकिन, 2009 में सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर साढ़े 7 हज़ार रुपए कर दिया! अब इस मद में सरकार ने 25 हज़ार रुपए का प्रावधान रखा है। तीन हज़ार रुपए प्रति जोड़ा आयोजक को दिए जाते हैं! बाक़ी 22 हजार रुपए कन्या के होते हैं! इसमें उसके नाम पर 10 हज़ार रुपये की फिक्स डिपॉज़िट! पांच हज़ार का सामान जैसे पायल, बिछुआ वगैरह और सात हज़ार रुपए उसके खाते में जमा कर दिए जाते हैं, ताकि वह अपनी मर्ज़ी से चाहे जहां, यह राशि खर्च कर सके और उसे पैसे के लिए किसी का मुंह न ताकना पड़े! 
  अभी जून महीने के तीसरे सप्ताह में ही धार जिले के उमरबन में 'मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना' में एक दुल्हन मंगलसूत्र पहनकर बैठी थी! मतलब ये कि वो शादीशुदा थी और सिर्फ इस योजना से मिलने वाले लाभों के लिए दुल्हन बनी थी! लेकिन, क्या ये सच अफसरों ने शादी से पहले नहीं जांचा? वास्तव में तो इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों की ही शादी करवाई जाती है। एक निश्चित रकम और तोहफों के रूप में काफी सामान दिया जाता है। यही कारण है कि पैसे और तोहफों के लालच में इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं, जहां शादीशुदा जोड़े योजना मिलने वाले फायदों के लिए दुबारा शादी करने की कोशिश करते हैं! उनकी इस कोशिश में सरकारी नुमाइंदे  शामिल जाते हैं! क्योंकि, जितने ज्यादा जोड़ों की शादी का आयोजन होगा, उतना ही फ़ायदा भी होगा!   
  ऐसे ही मामले में बैतूल जिले के चिचोली ब्लॉक के हरदू गांव में आयोजित सामूहिक विवाह समारोह में 350 युवतियों के कौमार्य परीक्षण के मामले ने देशभर में तूल पकड़ लिया था! इस सामूहिक विवाह समारोह में करीब 90 आदिवासी युवतियां शामिल थीं। दुल्हनों के अचानक हुए गर्भ परीक्षण पर विवाद खड़ा हो गया! बैतूल के तत्कालीन कलेक्टर राजेश प्रसाद मिश्रा ने ही शादी के पूर्व युवतियों के कौमार्य एवं गर्भ-परीक्षण की घटना की जांच के आदेश दिए थे। क्योंकि, उन्हें शिकायत मिली थी कि इस समारोह में शादीशुदा और गर्भवती महिलाओं को दुल्हन बनाकर बैठाया गया है। लेकिन, जब 9 दुल्हनों के गर्भवती होने की बात सामने आई तो सब खामोश हो गए! मामले की सूचना मिलते ही प्रशासन ने वह सारा सामान वापस ले लिया, जो शादी के बाद दिया जाना था। ऐसा ही शहडोल में भी हुआ था! 152 परीक्षणों में से 18 युवतियों के परीक्षण में या तो वे गर्भवती पाईं गईं या वे पहले से ही विवाहित थीं! 
  इस तरह की घटनाओं के बाद कई आयोग, मीडिया और राजनीतिक दलों ने सरकार पर चढ़ाई कर दी कि युवतियों का कौमार्य परीक्षण नहीं होना चाहिए! लेकिन, किसी ने भी यह सवाल करने की कोशिश नहीं की, कि इस तरह की शादियाँ होनी चाहिए या नहीं? इन पर सरकारी खर्च किया जाना चाहिए या नहीं? क्योंकि, तरह के आयोजन करवाने की न तो सरकार की जिम्मेदारी है और न उसकी कोई भूमिका ही होना चाहिए! संसद से लगाकर प्रदेश की विधानसभा  में भी इस मुद्दे पर भारी हंगामा मचा! अफ़सोस इस बात का कि पूरी बहस कौमार्य परीक्षण पर टिकी रही, उससे आगे के सवालों को किसी ने न तो देखा और न टटोलने की कोशिश तक नहीं की! 
  मंडला जिले के रामनगर में इसी योजना के तहत आयोजित वैवाहिक समारोह में दुल्हनों को नकली मंगलसूत्र दिए जाने का मामला सामने आया था। परिजनों की मानें तो जिला प्रशासन द्वारा उन्हें मंगलसूत्र सोने का बताकर दिया गया था! लेकिन, मंगलसूत्र नकली निकला! इस मामले में कोई भी अधिकारी कुछ भी कहने से बचते नजर आए! एक अधिकारी ने जरूर सफाई देते हुए बताया था कि सराफा व्यवसाइयों के हड़ताल के चलते आभूषणों खरीदी नही हो सकी! विवाह की औपचारिकता पूरी करने बाजार के मंगलसूत्र वितरित कर दिए गए! अब दुल्हनों के बैंक खाते में मंगलसूत्र के पैसे डाल दिए जाएंगे! इस तरह की घटनाएं पिछले 11 सालों में सैकड़ों बार हुई, पर कभी किसी को कटघरे में खड़ा नहीं किया गया! दरअसल, ये सीधे-सीधे धोखाधड़ी है! लेकिन, सरकारी पैसों की चिंता किसे है? 
  सरकार की इस योजना का सबसे ज्यादा मखौल आदिवासी जिलों में उड़ाया जा रहा है। झाबुआ और धार जिले भी इससे अछूते नहीं हैं। यहाँ इस योजना की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही है, जिसमे यहाँ पर ऐसे कई दम्पति इस विवाह योजना में शामिल होकर दोबारा विवाह कर रहे हैं, जिनका विवाह पहले ही हो चुका होता है! उनका मानना है कि सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए दोबारा शादी करने में क्या एतराज? जबकि, इस विवाह योजना का मकसद गरीब तबके के उन लोगों को लाभ देना है, मगर संबंधित विभाग इस योजना को मात्र किर्यान्वित कर अपना कार्य सफल करने की बात कर रहे हैं। 
 इस योजना को प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग के सफल प्रयोग तरह देखा गया! गरीब परिवार की कन्या की शादी करवाकर सरकार ने राजनीतिक पुण्य भी कमाया! लेकिन, इस बात ध्यान नहीं रखा गया कि इस योजना से नुकसान और इसका दुरूपयोग किस तरह हो सकता है! पिछले साल मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ये भी एलान किया था कि सरकार बेटियों की शादी के बाद उन्हें अकेला नहीं छोड़ेगी! पिता की तरह सरकार उन बेटियों की सुध लेगी जिनकी इस योजना में शादी हुई है। सरकार 'कुशलक्षेम सम्मेलन' आयोजित कर ब्याहता बेटियों से सरकार यह जानेगी कि ससुराल में उन्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं है? ये सही कदम है, पर क्या सरकार लिए ये सब कर पाना संभव है?  
  सीधी जिले में मुख्यमंत्री की इस योजना के तहत ब्याही गई एक लड़की को उसके ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने की भी बात सामने आई! अमिलिया थाने के चमरौहा गांव में ब्याही संगीता बंसल ने थाने में शिकायत की थी, कि उसे ससुराल में दहेज की मांग को लेकर प्रताड़ित किया जाता है। उसके 10 दिन के नवजात बच्चे को भी पति रमेश बंसल और ससुर रामस्वरूप बंसल ने छीनकर अपने पास रख लिया! इस पीड़िता के माता-पिता का हो देहांत हो चुका है और छोटे भाई ने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के सम्मलेन में पिछले उसकी शादी रामस्वरूप से कराई थी। एक साल तक तो सब ठीक रहा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसका पति उसे दहेज को लेकर प्रताड़ित कर रहा है और उसके दुधमुंहे बच्चे को भी उससे छीन लिया है। ये तो महज एक घटना थी! पर, क्या सरकार एक-एक विवाहित लड़की की परेशानियों का निराकरण कर सकेगी? क्या शादीशुदा जोड़ों तरह के सरकारी विवाह समारोहों से अलग किया जा सकेगा? क्या इन आयोजन होने वाले खर्च में बंदरबांट को रोका जा सकेगा? सवाल बहुत छोटे हैं, पर जवाब उतना आसान नहीं जितना लगता है?  
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