Friday, November 4, 2016

क्या मालवा, निमाड़ का सिमी नेटवर्क ध्वस्त हो गया?

- हेमंत पाल 

  भोपाल जेल से भागे सिमी के 8 गुर्गों का पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने को लेकर देशभर में राजनीति चरम पर है। ये मुठभेड़ असली थी या नकली? उन्हें जिन्दा पकड़ना था, मारा क्यों गया? ऐसे कई सवालों से राजनीति गरमाई है। लेकिन, मालवा, निमाड़ के लिए ये सुकून भरी घटना है। पश्चिम मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में पिछले करीब 15 सालों से सिमी की गतिविधियां चल रही है। खंडवा से शुरू होकर सिमी ने खरगोन, इंदौर, धार और उज्जैन के ग्रामीण इलाकों में भी अपनी पकड़ बनाई! धार के भोजशाला मामले को भी अल्पसंख्यकों की आड़ में सिमी ने ही ज्यादा भड़काया! लेकिन, एक साथ 8 खूंखार आतंकवादियों के मारे जाने के बाद निश्चित रूप से सिमी की कमर टूटी है। किन्तु, अभी सबसे बड़ी चुनौती उन चेहरों को बेनकाब करना है जो सिमी के लिए स्लीपर-सेल के रूप में काम कर रहे हैं! क्योंकि, जब तक ये चेहरे सामने नहीं आएंगे, सिमी की जड़ों में मट्ठा नहीं डलेगा! उसके बाद ही दावा किया जा सकता है कि मालवा, निमाड़ से सिमी  नेटवर्क ध्वस्त हो गया!
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   सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया) का जब भी जिक्र आता है, नजरें मालवा के 4-5 जिलों पर केंद्रित हो जाती है। खंडवा, इंदौर, उज्जैन और धार जिले में इस प्रतिबंधित संगठन की जड़ें काफी गहरी है। सिमी मालवा, निमाड़ को अपने लिए सबसे सुरक्षित इलाका समझता है इसकी बहुत सी वजह है। ये जिले प्रदेश के सीमावर्ती हैं, इसलिए यहाँ से भागने के रास्ते आसान हैं। इंदौर व्यावसायिक और औद्योगिक क्षेत्र है इसलिए यहाँ बाहरी लोगों तादाद ज्यादा है। उनके बीच पहचान छुपाकर रहना आसान है। इन्हीं के बीच सिमी ने अपने मजबूत स्लीपर सेल बना लिए हैं। सांप्रदायिक अशांति फैलाने की कई कोशिशें भी पिछले कुछ दिनों में सिमी के सदस्यों ने की है।
  प्रदेश में खंडवा को सिमी की जन्मस्थली माना जाता है। लेकिन, कुछ सालों से ये इंदौर और धार जिले के पीथमपुर में सबसे ज्यादा सक्रिय देखे जा रहे हैं। धार के भोजशाला मामले में भी सिमी ने कई बार परदे के पीछे से सक्रियता दिखाई! पिछले साल धार जिले के कई इलाकों में बसंत पंचमी से पहले सांप्रदायिक तनाव भड़का था! पुलिस ने अधिकांश स्थानों पर पाया भी था कि इनमें स्थानीय लोग शामिल नहीं थे! यदि ऐसा था तो वे बाहरी लोग कौन थे, ये सवाल अनुत्तरित है? सिमी की मालवा और निमाड़ में मौजूदगी के कई बार सबूत मिले! अभी दशहरे के अगले दिन भी धार जिले समेत प्रदेश के कई इलाकों में तनाव भड़का था, जिसे समय रहते दबा तो दिया गया, पर इसके पीछे भी सिमी का हाथ होने की बात भी कही गई! सवाल उठता है कि आखिर प्रदेश के आधा दर्जन शहरों में एक जैसी घटनाएं क्यों घटी? इन सभी वारदातों में समानता होने के पीछे कोई न कोई कारण तो होगा ही!
     प्रदेश के मालवा, निमाड़ इलाके में सिमी की गतिविधियों के कई ठिकाने हैं। करीब 16 साल पहले महिदपुर के रहने वाले सफदर नागौरी ने इंदौर में युवाओं की रैली निकालकर अपनी ताकत दिखाने की पहली कोशिश की थी। इसमें 4 हज़ार से ज्यादा मुस्लिम युवा शामिल हुए थे। इस रैली में नागौरी ने भड़काऊ सांप्रदायिक भाषण दिया, तब उसके खिलाफ पहली बार मामला भी यहीं दर्ज हुआ था! लेकिन, इस रैली के बाद सिमी की गतिविधियां बढ़ी। उनके गोपनीय समर्थक और मददगार भी बढे! दायरा बढ़ा तो इंदौर, उज्जैन, धार, खंडवा और खरगोन में सिमी के स्लीपर सेल भी तैयार हुए! स्लीपर सेल का आशय उन सिमी समर्थकों से है, जो अपनी पहचान छुपाकर इस संगठन के लिए सक्रियता से काम करते हैं।
  इंदौर में सिमी की मौजूदगी और उनके समर्थकों का सबसे बड़ा सबूत पिछले साल 8 दिसम्बर को मिला था। उस दिन अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष कमलेश तिवारी द्वारा पैगंबर हजरत मोहम्मद पर दिए गए बयान के विरोध में इंदौर के मुस्लिम समाज को ज्ञापन देना था। रैली निकालने या रास्ता जाम करने की कोई सूचना नहीं थी। लेकिन, ईदगाह मैदान से युवक अचानक उग्र हो उठे और रीगल चौराहा पहुँच गए। पहले तो उन्होंने वाहनों को रोककर चौराहे की सारी सड़कें जाम कर दी। इसके बाद एक शो-रूम में तोड़फोड़ की और बाहर खड़े कई वाहनों के साथ तोड़फोड़ की! स्थिति इतनी ख़राब हो गई थी कि काबू पाने के लिए 10 थानों की फोर्स बुलाना पड़ी। उस दिन सुबह मुस्लिम समाज के लगभग 15 हजार लोग छोटी ग्वालटोली ईदगाह पर जमा हुए थे। यहां तकरीर के बाद उन्होंने हिन्दू महासभा के नेता कमलेश तिवारी के खिलाफ एसडीएम को ज्ञापन सौंपा।
  रैली के बाद रीगल चौराहा जाम करने का कोई प्लान नहीं था, पर भीड़ का एक हिस्सा अचानक रीगल तिराहे की ओर बढ़ा। सड़क पर इतने लोग जमा हो जाएंगे और इस तरह बवाल मचाएंगे इस बात का पुलिस प्रशासन को कोई अंदाजा नही था। लोगों की भीड़ जहां से निकली वहां चक्का जाम हो गया। यहां इन्होंने दुकानें बंद कराना शुरु कर दिया। इनका विरोध करने पर एक शो-रूम और कुछ गाड़ियों में तोड़फोड़ भी कर दी। छोटी ग्वालटोली इदगाह में इतनी भीड जमा हो गई थी कि समाज के लोग आसपास की बिल्डिंग की छत पर पहुंच गए। इसके बाद अबु रेहान फारुकी ने तकरीर की। बाद में पता चला कि इस भीड़ को भड़काने में सिमी के ही कुछ लोगों का हाथ था। देखा गया है कि सिमी की गतिविधियों पर नजर रखने को लेकर पुलिस की ख़ुफ़िया टीम अक्सर फेल हो जाती है।
 धार जिले का औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर सिमी का नया ठिकाना माना जा रहा है। इंदौर के नजदीक होने और औद्योगिक क्षेत्र होने से यहाँ सिमी विचारधारा वालों के लिए पहचान छुपाकर रहना आसान है। सिमी के सबसे सक्रिय सरगना सफदर नागौरी ने 2008 में इंदौर के निकट चोरल के जंगल में पीथमपुर के कमरुद्दीन के खेत में सिमी के लिए चार प्रशिक्षण कैंप लगाए थे। इसमें कई खूंखार आतंकवादी शामिल हुए थे। इन कैंपों के बाद ही इंदौर में नागौरी समेत 17 आतंकियों को पुलिस ने पकड़ा था। इनके पास से हथियार, कंप्यूटर, के अलावा तनाव फैलाने वाला आपत्तिजनक साहित्य भी बरामद हुआ था! इनके कब्जे से 60 से ज्यादा सिमकार्ड और गतिविधियों से जुड़े कागजात भी जब्त किए गए थे। इन्हें पीथमपुर और इन्दौर के माणिकबाग के नजदीक एक मकान से पकड़ा गया था। साथ में मकान मालिक हाजी गफ्फार, हाजी अबरार और मकान दिलवाने वाल अकरम को भी पकड़ा गया था। यहीं से खुलासा भी हुआ था कि सिमी का असल मकसद क्या है!
  पीथमपुर की सघन मजदूर बस्तियां और कई ग्रामीण इलाके पुलिस नजर में नहीं आते! यहाँ की औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले मजदूरों का सही रिकॉर्ड नहीं होने से भी पुलिस को परेशानी आती है। यहाँ काम करने वाले अधिकांश मजदूर बाहरी हैं, इसलिए पुलिस के लिए भी सबकी पहचान कर पाना आसान नहीं होता! मालवा और निमाड़ में सिमी की सक्रियता का एक कारण ये भी है कि ये इलाका सीमावर्ती है और यहाँ से महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान की सीमाएं ज्यादा दूर नहीं है! सारी माकूल परिस्थितियों के बावजूद भोपाल में हुई मुठभेड़ सिमी की जड़ों पर करार वार है। लेकिन, सवाल उठता है कि इसके बाद क्या सिमी के नेटवर्क पर असर पड़ेगा? इस पर नजर रखना ज्यादा जरुरी है। इसमें कोई राजनीति भी नहीं होना चाहिए! वोट बैंक लालच में सिमी के नेटवर्क और स्लीपर-सेल की अनदेखी की गई तो मालवा, निमाड़ एक बार फिर आतंक का अड्डा बन सकता है!
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