Friday, November 18, 2016

चुनी महिलाओं की पार्षदी पर पतियों का अतिक्रमण

- हेमंत पाल 

   नगर निगमों और नगर पालिकाओं में पार्षदों के दबदबे से ज्यादा ख़बरें अब 'पार्षद पतियों' की सुनाई देती हैं! अधिकारियों को धमकाने, अनर्गल काम के लिए दबाव बनाने, सरकारी आवंटित राशि में हिस्सेदारी करने जैसे कई मामलों में पार्षद पतियों का दखल बढ़ता जा रहा है। लेकिन, सरकार इस सबसे बेअसर है! त्रिस्तरीय पंचायती राज को लेकर नियम बना दिए, पर स्वायत्तशासी संस्थाओं में इस मुद्दे पर नकेल नहीं डाली गई! पत्नियों को हथियार बनाकर अपनी राजनीतिक इच्छा पूरी करने वाले इन 'पार्षद पतियों' का दखल इतना ज्यादा है कि वे परिषद् की बैठकों में भी अधिकारियों पर दबाव बनाने लगे हैं! ऐसे में उन मतदाताओं का क्या दोष जिन्होंने एक महिला को अपना प्रतिनिधि चुना था? जीतने के बाद वो महिला प्रतिनिधि तो कहीं नजर नहीं आई, अलबत्ता उसका पति मतदाताओं के गले पड़ गया! इससे महिला आरक्षण की मूल भावना बुरी तरह प्रभावित हुई है। मकसद था कि इससे महिलाओं में नेतृत्व करने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा, पर 'पतियों' की राजनीतिक इच्छा ने उसपर पानी फेर दिया! अब वो वक़्त आ गया है, जब सरकार को 'पार्षद पतियों' को लेकर कोई गंभीर और असरदार फैसला करना होगा!
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-  भोपाल नगर निगम के अतिक्रमण दस्ते के साथ बदसलूकी करने वाले पार्षद पति समेत दो दर्जन लोगों के खिलाफ पुलिस ने शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने और गाली-गलौज करने समेत विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया।
- विदिशा के सिविल लाइंस थाना पुलिस ने एक पार्षद पति के खिलाफ एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत युवती की शिकायत पर छेड़छाड़ और रास्ता रोकने का प्रकरण दर्ज किया है। युवती भोपाल में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत है। पार्षद पति के खिलाफ छेड़छाड़ का प्रकरण दर्ज किया गया।
- इंदौर में महिला पार्षद के पति ने स्ट्रीट लाइट का मेंटेनस करने वाली कंपनी के कर्मचारी के साथ मारपीट की! स्ट्रीट लाइट सुधारने से इनकार करने पर पार्षद पति ने कर्मचारी को थप्पड़ मार दिया। विवाद बढ़ने पर कंपनी की गाड़ी भी वहीं रुकवा ली।
- भोपाल नगर निगम महापौर ने परिषद की बैठकों में पार्षद पतियों के भाग लेने पर रोक लगा दी! महापौर ने वार्डों के निरीक्षण के दौरान पाया कि अधिकांश महिला पार्षदों के पति इन बैठकों में शामिल हुए।
- इंदौर की सांसद और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने महिला सरपंचों के लिए बुलाई बैठक से उनके पतियों को बाहर कर दिया। महाजन ने इंदौर में जिस बुराई पर नाखुशी जताई, वो पूरे प्रदेश और देश में फैली है।
- इंदौर के कई समाजसेवियों ने पार्षद पतियों के बढ़ते दखल पर आपत्ति जताते हुए, उनको मर्यादा में रहने की हिदायत दी है। उन्होंने ये भी कहा कि ये उन महिला प्रतिनिधियों का अपमान है, जिन्हें जनता ने वोट देकर चुना है।
   ये वो चंद घटनाएं हैं, जो प्रदेश में पार्षद पतियों के बढ़ते दखल और महिला पार्षद के अधिकारों में अतिक्रमण का संकेत देती हैं। न सिर्फ ग्राम पंचायतों में बल्कि नगर परिषद, नगर पालिका और नगर निगमों में भी में भी यही हाल है। इंदौर नगर निगम में हाल ही में महापौर ने वार्डों की समीक्षा का जो अभियान चलाया, उनमें महिला पार्षद अप्रासंगिक नजर आईं! इंदौर नगर निगम की कोई भी बैठक या आयोजन हो, महिला पार्षद कभी-कभी दिखती हैं, उनके पति ही ज्यादा दिखाई देते हैं। निगम के हर कार्यालय में पार्षद पतियों की ही दादागिरी नजर आती है। ये सिर्फ भाजपा की महिला पार्षदों की बात नहीं, कांग्रेस में भी हाल है। गिनती की महिला पार्षद ही होंगी, जो पतियों के बिना भी सक्रिय हैं। अधिकांश महिला पार्षद ऐसी हैं, जिनके पतियों ने उन्हें कठपुतली बनाकर उनके नाम पर नेतागिरी चमकाई! निगम के किसी अधिकारी की उन्हें रोकने-टोकने की हिम्मत इसलिए नहीं होती कि महिला पार्षदों को कोई आपत्ति ही नहीं है।
  ये नकली पार्षद अपनी असली पार्षद पत्नियों को उन मतदाताओं से कभी मिलने भी नहीं देते, जिन्हें वोट देकर चुना गया है। ऐसे में महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली सरकार की भावना का क्या होगा? महिलाओं के लिए आरक्षण की मूल भावना ही ये थी कि इससे महिलाओं में नेतृत्व करने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा, पर 'पतियों' की राजनीतिक इच्छा ने उसपर पानी फेर दिया! ऐसा करके पार्षद पति अपनी पत्नियों का तो नुकसान कर ही रहे हैं, महिलाओं को पिछड़ा और अभिशप्त बनाए रखने में भी मददगार हैं। इंदौर के संदर्भ में ये मामला इसलिए भी गंभीर है कि यहाँ महापौर महिला है, पर उन्हें कभी इस बात का अहसास नहीं होता कि उनकी ही बिरादरी के साथ नाइंसाफी हो रहा है।
  जब से सरकार ने महिलाओं के लिए स्वायत्तशासी संस्थाओं में सीटों का आरक्षण किया, कई पुरुषों को उनके लिए रास्ता छोड़ना पड़ा! जो पुरुष खुलकर राजनीति करना चाहते थे, उन्हें इस व्यवस्था के कारण पीछे हटना पड़ा! लेकिन, उन्होंने इस व्यवस्था के भीतर से भी उन्होंने राजनीति का आसान रास्ता खोज लिया। आरक्षित सीटों पर पत्नियों को चुनाव लड़वाया और खुद राजनीति करने लगे। इससे चुनी हुई महिलाएं फिर घरेलू बन गई और पति उनके नाम से राजनीति करने लगे। बात यहीं तक सीमित होती तो किसी को आपत्ति नहीं होती, पर ये पार्षद पति अपनी राजनीतिक सीमा और मर्यादा दोनों लांगने लगे हैं। पार्षद पत्नी के नाम से अधिकारियों को धमकाने लगे और शासकीय राशि में गड़बड़ी करने लगे! अब तो ये सब खुलेआम होने लगा! जब कोई घटना होती है, तो पार्षद पति गुंडागर्दी करने लगते हैं, दबाव बनाने लगते हैं या धमकाने लगते हैं। लेकिन, किसी जिम्मेदार अधिकारी के माथे पर शिकन तक नजर नहीं आती!
  ऐसी स्थिति में जनता खुद को ठगा सा महसूस करती है। आखिर, इस सबके पीछे जनता का क्या दोष? महिला पार्षद काम करना नहीं चाहती होगी, ऐसा नहीं है! लेकिन, पति के सम्मान और सामाजिक मर्यादा के कारण वो विरोध नहीं कर पाती! पत्नी की नेतागिरी की आड़ में ये पार्षद पति अपनी कई ऐसी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति कर लेते हैं, जो वे चाहते हैं! ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या महिला पार्षद सिर्फ नाम की जनप्रतिनिधि हैं? जब महिला सांसदों और विधायकों के कामकाज में उनके पतियों का कभी सीधे दखल नहीं देखा गया, तो फिर महिलाओं की सरपंची और पार्षदी पर पति क्यों हावी हो रहे हैं? जब किसी महिला को मतदाता अपना प्रतिनिधि चुनती है, तो उसके जहन में पति के अतिक्रमण की कल्पना नहीं होती!
   महिला सरपंचों और पार्षदों का व्यवस्था में दखल स्थानीय मामला नहीं है! वास्तव में ये एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है! लेकिन, कोई भी राजनीतिक पार्टी इस मामले में गंभीर नहीं है। पंचायत राज दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पंचायती सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि पंचायती राज व्यवस्था के तहत सरपंच के पति का दखल समाप्‍त होना चाहिए! बिलासपुर हाईकोर्ट में लगी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भी कोर्ट कहा कि पंचायती राज शासन व्यवस्था में सरपंच पतियों की दखलंदाजी और उनके द्वारा किए जा रहे शक्ति दुरुपयोग बंद होने चाहिए! राज्य सरकारों को नियम बनाने चाहिए! लेकिन, लगता है राज्य सरकार ही इस बारे में गंभीर नहीं है!
  खानापूर्ति के लिए राज्य सरकार ने प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पतियों पर बैठकों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया! शासन के इस फैसले के बाद अब महिला जनप्रतिनिधियों की बैठक में इनके पति उपस्थित नहीं होते! आदेश में कहा गया है कि पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों की ग्राम सभाओं की बैठकों में महिला सरपंचों तथा पंचों की सक्रिय भागीदारी जरुरी है! पंचायतों की कार्यवाहियों में सरपंच पति के शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया गया है। लेकिन, यह व्यवस्था नगर पालिकाओं और नगर निगमों में लागू क्यों नहीं की गई? यदि कोई पार्षद पति अधिकारियों को धमकाता है, पार्षद पत्नी के अधिकारों का खुद उपयोग करता है या निर्माण कार्यों में हिस्सेदारी करता है, तो महिला पार्षद को हटाने की भी कार्रवाई की जाना चाहिए! क्या सरकार ने इस दिशा में कभी सोचा है? सवाल उठता है कि नहीं सोचा तो अब सोचे!
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